बोहरा ..प्रगतिशील मुस्लिम समाज 

विवेक रंजन श्रीवास्तव 

बोहरा मुस्लिम संस्कृति एक समृद्ध और अनूठी परंपरा है, जो इस्लाम के शिया समुदाय की एक उपशाखा, दाउदी बोहरा समुदाय से जुड़ी हुई है। यह समुदाय मुख्य रूप से भारत, पाकिस्तान, यमन और पूर्वी अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में फैला हुआ है, और इसकी उत्पत्ति 11वीं शताब्दी में मिस्र के फातिमिद खलीफा शासन से मानी जाती है। बोहरा समुदाय अपनी विशिष्ट धार्मिक प्रथाओं, सामाजिक संगठन, व्यापारिक कुशलता और सांस्कृतिक पहचान के लिए जाना जाता है। 

 बोहरा मुस्लिम इस्लाम के इस्माइली शिया संप्रदाय का हिस्सा हैं जो इमामत अर्थात आध्यात्मिक उन्नयन की अवधारणा पर आधारित है। दाउदी बोहरा समुदाय अपने वर्तमान आध्यात्मिक नेता, दाई-अल-मुतलक जिन्हें सैयदना कहते हैं, को इमाम का प्रतिनिधि मानता है, जो समुदाय को धार्मिक और सामाजिक मार्गदर्शन प्रदान करता है। उनकी धार्मिक प्रथाओं में नमाज़, रोज़ा, हज और ज़कात जैसे इस्लामी सिद्धांतों का पालन शामिल है लेकिन इनका तरीका और व्याख्या इस्माइली परंपरा से प्रभावित है।मोहर्रम का महीना बोहरा समुदाय के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जिसमें इमाम हुसैन की शहादत को याद करने के लिए मातम और मजलिस मतलब सभाएँ आयोजित की जाती हैं। उनकी मस्जिदें, जिन्हें “जमातखाना” भी कहा जाता है, पूजा और सामुदायिक एकत्रीकरण के केंद्र हैं। 

बोहरा समुदाय की सामाजिक संरचना अत्यधिक संगठित और केंद्रीकृत है। दाई-अल-मुतलक के नेतृत्व में समुदाय के सभी धार्मिक और सामाजिक कार्य संचालित होते हैं। यह समुदाय अपनी एकता और अनुशासन के लिए प्रसिद्ध है। बोहरा लोग अपने समुदाय के नियमों का कड़ाई से पालन करते हैं, जैसे कि विवाह, तलाक और अन्य सामाजिक रीति-रिवाजों में दाई की अनुमति लेना।शिक्षा और परोपकार पर भी विशेष जोर दिया जाता है। समुदाय के भीतर स्कूल, अस्पताल और कल्याणकारी योजनाएँ चलाई जाती हैं, जो सभी सदस्यों के लिए सुलभ होती हैं।

बोहरा संस्कृति में भारतीय और इस्लामी प्रभावों का सुंदर मिश्रण देखने को मिलता है। उनके पारंपरिक परिधान इसकी एक प्रमुख पहचान हैं। पुरुष “सदरी” और “टोपी” पहनते हैं, जबकि महिलाएँ “रिदा” नामक एक रंगीन दो-टुकड़े वाला परिधान पहनती हैं, जो हिजाब के साथ स्टाइलिश और व्यावहारिक दोनों होता है।भोजन में भी बोहरा समुदाय की अपनी विशिष्टता है। “थाल” उनकी खानपान की परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें लोग एक साथ बड़े थाल में बैठकर खाना खाते हैं, जो समुदाय की एकता और भाईचारे को दर्शाता है। बोहरा व्यंजनों में गुजराती, मुगलई और अरबी स्वादों का सम्मिलित स्वाद होता है, जैसे कि दाल-चावल बिरयानी और मिठाइयाँ जैसे मालपुआ।

बोहरा समुदाय ऐतिहासिक रूप से व्यापार और उद्यमशीलता के लिए प्रसिद्ध रहा है। गुजरात में उनकी जड़ों के कारण, वे मध्यकाल से ही व्यापारिक गतिविधियों में सक्रिय रहे हैं। आज भी बोहरा लोग कपड़ा, हार्डवेयर, गहने और अन्य व्यवसायों में प्रमुखता से कार्यरत हैं। उनकी ईमानदारी और मेहनत ने उन्हें वैश्विक व्यापारिक समुदाय में सम्मान दिलाया है।

बोहरा समुदाय की अपनी एक मिश्रित भाषा है, जिसे “लिसान-उद-दावत” कहा जाता है। यह गुजराती, उर्दू और अरबी का संयोजन है, और इसमें धार्मिक ग्रंथों और प्रथाओं से जुड़े शब्द शामिल हैं। उनकी लिखित परंपरा में इस्माइली दर्शन और फातिमिद इतिहास से संबंधित कई ग्रंथ शामिल हैं, जो अरबी और लिसान-उद-दावत में लिखे गए हैं।

आधुनिक युग में बोहरा समुदाय ने तकनीक और शिक्षा को अपनाया है, लेकिन अपनी परंपराओं को भी संरक्षित रखा है। दाई के मार्गदर्शन में समुदाय ने वैश्वीकरण के साथ कदम मिलाया है, और बोहरा लोग अब दुनिया भर में फैले हुए हैं, विशेष रूप से अमेरिका, कनाडा, यूके और मध्य पूर्व में। फिर भी, उनकी पहचान और धार्मिक निष्ठा में कोई कमी नहीं आई है।

बोहरा मुस्लिम संस्कृति एक जीवंत और गतिशील परंपरा है, जो धार्मिक आस्था, सामुदायिक एकता और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है। यह समुदाय न केवल अपनी धार्मिक प्रथाओं के लिए, बल्कि अपनी व्यापारिक कुशलता, सामाजिक संगठन और जीवनशैली के लिए भी अद्वितीय है। यह एक ऐसा समुदाय है जो अतीत को संजोते हुए भविष्य की ओर अग्रसर है। दुनियां में लगभग मात्र दस लाख की संख्या में बोहरा समाज के मुस्लिम हैं पर वे सम्पन्न, प्रगतिशील तथा मिलनसार हैं।

विवेक रंजन श्रीवास्तव 

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