पुस्तकें कल्पवृक्ष भी है और कामधेनु भी है

0
68

विश्व पुस्तक दिवस-23 अप्रैल, 2025
-ललित गर्ग-
विश्व पुस्तक दिवस जिसे विश्व पुस्तक कॉपीराइट दिवस भी कहा जाता है, पुस्तक-संस्कृति को बल देने और पढ़ने की प्रवृत्ति के आनंद को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाने वाला एक विश्व उत्सव है। हर साल 23 अप्रैल को दुनिया भर में पुस्तकों के दायरे को पहचानने, उसे प्रोत्साहन देने एवं दुनिया को जोड़ने के लिए पुस्तक उत्सव अतीत और भविष्य के बीच एक कड़ी, पीढ़ियों और संस्कृतियों के बीच एक पुल है। इस अवसर पर, यूनेस्को और पुस्तक उद्योग के तीन प्रमुख क्षेत्रों – प्रकाशक, पुस्तक विक्रेता और पुस्तकालयों का प्रतिनिधित्व करने वाले अंतर्राष्ट्रीय संगठन, अपने स्वयं के प्रयासों के माध्यम से, दिवस के उत्सवों की प्रेरणा को बनाए रखने के लिए एक वर्ष के लिए  विश्व पुस्तक राजधानी का चयन करते हैं। किताबें, अपने सभी रूपों में, हमें सीखने और खुद को सशक्त रखने का मौका देती हैं। वे हमारा मनोरंजन भी करती हैं और हमें दुनिया को समझने में मदद करती हैं, साथ ही दूसरों की दुनिया में झांकने का मौका भी देती हैं। इस दिवस की 2025 की थीम है ‘अपने तरीके से पढ़ें’, यह थीम सभी आयु वर्ग के लोगों विशेषतः बच्चों को अपनी रुचि के अनुसार किताबें चुनने और पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है। इसका उद्देश्य बच्चों को पढ़ने में आनंद आने का अनुभव कराना और उनकी पढ़ने की आदत को मजबूत बनाना है।
23 अप्रैल विश्व साहित्य में एक प्रतीकात्मक तिथि है। इस दिन कई विश्वप्रसिद्ध लेखकांे का जन्मदिवस या पुण्यतिथि होती है। विलियम शेक्सपियर, मिगुएल डे सर्वेंट्स और जोसेप प्लाया का इसी दिन निधन हुआ था, जबकि मैनुएल मेजिया वल्लेजो और मौरिस ड्रून इसी दिन पैदा हुए थे। यूनेस्कों ने 23 अप्रैल 1995 को इस दिवस को मनाने की शुरुआत की थी। पैरिस में यूनेस्को की एक आमसभा में फैसला लिया गया था कि दुनियाभर के लेखकों का सम्मान करने, उनको श्रद्धांजली देने और किताबों के प्रति रुचि जागृत करने के लिए इस दिवस को मनाया जाएगा। पुस्तकों को ज्ञान का बाग भी कहा जाता है। यदि कोई इन पुस्तकों से सच्ची दोस्ती कर ले तो यकीन मानिए उसे जीवन भर का ज्ञान और हर समस्या का समाधान कुछ ही समय में मिल जाता है। समस्याओं एवं परेशानी के दौर में पुस्तक दोस्ती का पूरा फर्ज निभाती हैं। पुस्तक का महत्व सार्वभौमिक, सार्वकालिक एवं सार्वदैशिक है, किसी भी युग या आंधी में उसका महत्व कम नहीं हो सकता, इंटरनेट जैसी अनेक आंधियां आयेगी, लेकिन पुस्तक संस्कृति हर आंधी में अपनी उपयोगिता एवं प्रासंगिकता को बनाये रख सकेगी। क्योंकि पुस्तकें पढ़ने का कोई एक लाभ नहीं होता। पुस्तकें मानसिक रूप से मजबूत बनाती हैं तथा सोचने समझने के दायरे को बढ़ाती हैं। किताबों का अस्तित्व खत्म नहीं हो सकता। आधुनिकता की बात करें तो भी यह बात हर वक्त संभव नहीं कि किताबों के स्थान पर लैपटॉप आदि से पढ़ा जाए।
पुस्तक या किताब लिखित या मुद्रित पेजों के संग्रह को कहते हैं। पुस्तकें ज्ञान का भण्डार हैं। पुस्तकें हमारी दुष्ट वृत्तियों से सुरक्षा करती हैं और सकारात्मक सोच को निर्मित करती है। अच्छी पुस्तकें पास होने पर उन्हें मित्रों की कमी नहीं खटकती है वरन वे जितना पुस्तकों का अध्ययन करते हैं पुस्तकें उन्हें उतनी ही उपयोगी मित्र के समान महसूस होती हैं। पुस्तकें एक तरह से जाग्रत देवता हैं उनका अध्ययन मनन और चिंतन कर उनसे तत्काल लाभ प्राप्त किया जा सकता है। तकनीक ने भले ज्ञान के क्षेत्र में क्रांति ला दी है, पर पुस्तकें आज भी विचारों के आदान−प्रदान का सबसे सशक्त माध्यम हैं। महात्मा गाँधी को महान बनाने में गीता, टालस्टाय और थोरो का भरपूर योगदान था। प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी को विश्व ख्याति दिलाने में पुस्तकों की महत्वपूर्ण भूमिका है, यही कारण है कि उन्होंने पुस्तक संस्कृति को जीवंत करने का अभिनव उपक्रम ‘मन की बात’ कार्यक्रम में अनेक बार किया। पुस्तकों में जीवन का रहस्यमय एवं रोमांचक संसार है। इसलिये पुस्तक संस्कृति को प्रोत्साहन देकर ही हम उन्नत संस्कार, संसार एवं सृ़िष्ट का निर्माण कर सकेंगे। किताबों में ही किताबों के बारे में जो लिखा है वह भी बहुत उल्लेखनीय और विचारोत्तेजक है। मसलन टोनी मोरिसन ने लिखा है- ‘कोई ऐसी पुस्तक जो आप दिल से पढ़ना चाहते हैं, लेकिन जो लिखी न गई हो, तो आपको चाहिए कि आप ही इसे जरूर लिखें।’
शिक्षाविद चार्ल्स विलियम इलियट ने कहा कि पुस्तके मित्रों में सबसे शांत व स्थिर हैं, वे सलाहकारों में सबसे सुलभ और बुद्धिमान होती हैं और शिक्षकों में सबसे धैर्यवान तथा श्रेष्ठ होती हैं। निःसंदेह पुस्तकें ज्ञानार्जन करने, मार्गदर्शन एवं परामर्श देने में में विशेष भूमिका निभाती है। नरेन्द्र मोदी प्रयोगधर्मा एवं सृजनकर्मा राजनायक हैं, तभी उन्होंने उपहार में ‘बुके नहीं बुक’ यानी किताब देने की बात कही। सत्साहित्य में तोप, टैंक और एटम से भी कई गुणा अधिक ताकत होती है। अणुअस्त्र की शक्ति का उपयोग ध्वंसात्मक ही होता है, पर सत्साहित्य मानव-मूल्यों में आस्था पैदा करके स्वस्थ एवं शांतिपूर्ण समाज की संरचना करती है। इसी से सकारात्मक परिवर्तन होता है जो सत्ता एवं कानून से होने वाले परिवर्तन से अधिक स्थायी होता है। यही कारण है कि मोदीजी भारत को बदलने में सत्साहित्य की निर्णायक भूमिका को स्वीकारते हैं।
पुस्तकें चरित्र निर्माण का सर्वाेत्तम साधन हैं। उत्तम विचारों से युक्त पुस्तकों के प्रचार और प्रसार से राष्ट्र के युवा कर्णधारों को नई दिशा दी जा सकती है। देश की एकता और अखंडता का पाठ पढ़ाया जा सकता है और एक सबल राष्ट्र का निर्माण किया जा सकता है। पुस्तकें प्रेरणा की भंडार होती हैं उन्हें पढ़कर जीवन में कुछ महान कर्म करने की भावना जागती है। पुस्तकें कल्पवृक्ष भी है और कामधेनु भी है, क्योंकि इनकी छत्रछाया में मनुष्य अपनी हर मनोकामना को पूरा करने की शक्ति एवं सामर्थ्य पाता है। पुस्तकें अमूल्य है और जन-जन के लिये उपयोगी है, निश्चित ही वे एक नये व्यक्ति और एक नये समाज-निर्माण का आधार भी है। पुस्तकें ही व्यक्ति में सकारात्मकता का संचार करती है। नये मूल्य, नये मापदण्ड, नई योग्यता, नवीन क्षमताएं, आकांक्षाएं और नये सपने- तेजी से बदलती जिंदगी में सकारात्मकता को स्थापित करने में पुस्तकों की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
इंसान घर बदलता है, लिबास बदलता है, रिश्ते बदलता है, दोस्त बदलता है, फिर भी परेशान क्यों रहता है? क्योंकि उसने पुस्तकरूपी कल्पवृक्ष की छाया में बैठना बन्द कर दिया है जबकि इन्हीं पुस्तकों की सार्थक कोशिश होती है कि इंसान बदलें, उसकी सोच बदलें, उसका व्यवहार बदलें लेकिन बदलने की उसकी दिशा सदैव सकारात्मक हो ताकि वह जिंदगी के वास्तविक मायने समझ सके। जब तक इंसान खुद को नहीं बदलता, वह अपनी मंजिल को नहीं पा सकता। मंजिल को पाने एवं जीत हासिल करने के लिए स्वयं का स्वयं पर अनुशासन जरूरी है। यही सूत्र पुस्तक-संस्कृति की उपयोगिता एवं महत्व को उजागर करता है। पुस्तकें एक रचनात्मक एवं सृजनात्मक दुनिया है, जिसमें विद्वान लेखकों, विचारकों एवं मनीषियों ने अपनी कलम में वही सब कुछ लिखा होता है जिसे उन्होंने अपने आस-पास की जिंदगी में देखा है, भोगा है। इन पुस्तकें के विचार किसी न किसी के द्वारा कभी न कभी सोचा, कहा, लिखा, मनन किया या जीया गया होता है। ये पुस्तकें एक जरिया है, झरोखा है, जिसमें युगों का ज्ञान है, महापुरुषों के अनुभव हैं, संतपुरुषों की सूक्तियां हैं, प्रबुद्धजनों के जीवन का निचोड़ हैं। जिनकी प्रेरणा और ऊर्जा से इंसानों को रोशनी मिलती है, जो सबके घर में आनंद को और सूरज को अवतरित करने की क्षमता का स्रोत भी है।
इंटरनेट और ई−पुस्तकों की व्यापक होती पहुंच के बावजूद छपी हुई किताबों का महत्व कम नहीं हुआ है और वह अब भी प्रासंगिक हैं। भारत ही बल्कि दुनिया को बदलने में सत्साहित्य की निर्णायक भूमिका असंदिग्ध हैं। हजारीप्रसाद द्विवेदी ने तभी तो कहा था कि साहित्य वह जादू की छड़ी है, जो पशुओं में, ईंट-पत्थरों में और पेड़-पौधो में भी विश्व की आत्मा का दर्शन करा देती है।’ निश्चित ही विश्व पुस्तक दिवस की पुस्तक-प्रेरणा भारतीय जन-चेतना को झंकृत कर उन्हें नये भारत के निर्माण की दिशा में प्रेरित कर रही है। 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress