कविता महिला-जगत

स्तनपान बनाम बोतलपान : एक नवजात शिशु की अभियक्ति

हे माँ ! मैं तो नन्हा सा मासूम हूँ .

तेरा ही सलोना सा लाल हूँ.

मेरी स्नेहिल अनुभूति को समझा है, तूने,

आँचल को छुड़ाकर,बोतल दिया है,तूने.

यह कैसा है न्याय तेरा,

कहती है तो लाल है मेरा.

आधुनिकता की दोड़ मैं सिद्ध तूने किया है,

स्तनपान के बजाय बोतलपान मेरा आहार है.

इस आहार से तो निराहार भला हूँ.

इस सदी का भावी कर्णधार मैं हूँ.

ना शिवाजी बनूगां,ना बापू बनूगां.

बोतलपान से बोतल को अपनी माँ कहूँगा.

-शालिनी मैथु