मौत का व्यापार है जहरीली शराब का खेल

PoisonAlcoholसुरेश हिंदुस्थानी
भारत में कानून का सही तरीके पालन हो जाए तो कई समस्याएं स्वत: ही समाप्त हो जाएंगी। लेकिन हमारे देश में राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव के कारण समस्याएं बढ़ती ही जा रही हैं। राजनीति और प्रशासनिक व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार ही इन समस्याओं के बढ़ाने में सहायक होता है। हम जानते हैं कि देश में जितने भी गैर कानूनी काम होते हैं, उनके पीछे कहीं न कहीं राजनीतिक शक्ति का संरक्षण दिखाई देता है। कई जगह प्रशासन भी आंख बंद करके तमाशा देखता रहता है, इसके लिए प्रशासनिक अधिकारियों को इन अवैध कारोबारियों द्वारा उपकृत किया जाता है। कई प्रकार के मामलों में भारत देश के पीछे रहने के कारणों में अवैध कारोबार ही दिखाई देता है। शराब माफियाओं द्वारा किए जा रहे अवैध कारोबार के कारण जहां जन धन की हानि हो रही है, वहीं देश का स्वास्थ्य भी प्रभावित हो रहा है। शराब का अवैध कारोबार करने वाले माफिया सीधे तौर पर जनता के साथ मौत का खेल खेल रहे हैं। इस मौत के व्यापार से उत्तरप्रदेश की जनता सर्वाधिक प्रभावित दिखाई देती है।
अभी हाल ही में उत्तरप्रदेश के एटा और फर्रुखाबाद में जिस प्रकार से शराब के सेवन करने से लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है, उससे निश्चित रुप से यह कहा जा सकता है कि शराब पीने के आदी हो चुके व्यक्तियों को कैसी भी शराब मिल जाए, वह पीता ही है। हम जानते हैं कि उत्तरप्रदेश के कई शहरों में अवैध शराब बनाने का खेल चल रहा है। प्रदेश में कई बार इससे होने वाली मौत के मामले सामने आ चुके हैं। इतना ही नहीं वर्तमान में भारत की युवा पीढ़ी अपने आपको नशे के हवाले करती हुई दिखाई दे रही है। आजकल तो कई धनी परिवार के लोग शराब को स्टेट्स सिंबल के रुप में लेते हैं। लेकिन यह सही है कि शराब से जीवन तो बर्बाद होता ही है, साथ ही पूरा परिवार तबाही के कगार पर चला जाता है। समाज में बिगड़ते संबंधों का एक कारण भी शराब ही है। इसके अलावा शराब के सेवन के कारण दुर्घटनाएं होना तो आम बात हो गई है।
कई जगह देखने में आया है कि भारत की ग्रामीण और गरीब जनता को शराब के सेवन का आदी बनाने के लिए पहले उन्हें मुफ्त में शराब मुहैया कराई जाती है, इसके कारण उसे लत लग जाती है और गरीब होने के कारण वह महंगी शराब खरीदने में असमर्थ रहता है। मजबूरी में उसे सस्ती मिलने वाली शराब का सेवन करना पड़ता है। एक जानकारी के अनुसार अवैध शराब बनाने वाले व्यापारियों द्वारा शराब में जहां नींद की गोली मिलाई जाती है, वहीं यूरिया का भी उपयोग किया जाता है। रासायनिक पदार्थों से निर्मित किए जाने वाले इस मादक पदार्थ से मानव जीवन तबाह हो रहा है। कई क्षेत्रों में मानव का जीवन स्तर ऊंचा उठाने में शराब बहुत बड़ा अवरोधक का काम करती है। बुंदेलखंड के कई गांवों में ऐसे अवैध शराब बनाने के कई काम हो रहे हैं। कहा जाता है कि अवैध शराब का यह कारोबार अगर बंद हो जाए तो बुंदेलखंड का ग्रामीण किसान कुछ हद तक समृद्ध हो सकता है। लेकिन गंदी राजनीति के कारण और भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्थाओं के चलते इस पर रोक लगाने के सभी उपाय नाकाफी साबित हो रहे हैं।
अवैध शराब के कारोबार के अलावा बात की जाए तो देश की प्रतिष्ठित शराब कंपनियों द्वारा शराब का ऐसा विज्ञापन किया जाता है कि मानो यही सब कुछ है, इसके बिना कुछ भी नहीं। हमारे देश में प्रमुख हस्तियों द्वारा किए जा रहे शराब के विज्ञापनों के कारण देश का युवा वर्ग जाने अनजाने में शराब पीने का आदी होता जा रहा है। यहां हर रात लोग शराब पीते आसानी से देखे जा सकते हैं। तमाम तरह के कानून बनने के बाद भी भारत देश में नाबालिग खुलेआम शराब पीते देखे जा सकते हैं। शराब किसी भी समाज में एक बुराई मानी जाती है। शराब कई घरों का सुख-चैन छीन लेती है इसके बावजूद भारत देश में शराब की खपत निरंतर बढ़ती जा रही है।
शराब के अवैध कारोबार के बढ़ते प्रचलन में कई प्रकार की अव्यवस्थाएं दिखाई देती हैं। पहली तो यह कि यह काम बिना पुलिस और आवकारी विभाग के संरक्षण के चल ही नहीं सकता। इस प्रकार के संरक्षण के लिए कई स्थानों पर अवैध लेनदेन का सहारा भी लिया जाता है। अगर कानून के अनुसार इन अवैध कारोबारियों पर कार्यवाही की जाती तो संभवत: भविष्य में ऐसे काम करने वाले व्यक्ति अवैध शराब बनाने का कारोबार करने की हिम्मत नहीं कर सकते थे। लेकिन कहीं न कहीं प्रशासनिक कठोरता का अभाव ही इसको बढ़ाने में सहयोग करता हुआ दिखाई देता है। इसके अलावा देश में जो गैर सरकारी संगठन नशा मुक्ति के लिए अभियान चला रहीं हैं। उनकी कार्यवाही भी सवालों के घेरे में है। सरकारी धन के सहयोग से काम करने वाले यह एनजीओ केवल खानापूर्ति करके शासकीय धन का दुरुपयोग ही करती दिखाई दे रही हैं। सरकार को ऐसे संगठन को प्रतिबंधित कर देना चाहिए, जो अपने काम को ईमानदारी से नहीं करती। लेकिन भ्रष्टाचार के कारण ऐसा कर पाना संभव नहीं लगता। इन सब बुराइयों के लिए कहीं न कहीं सरकार भी जिम्मेदार है।
नशा एक अभिशाप है। यह एक ऐसी बुराई है, जिससे इंसान का अनमोल जीवन समय से पहले ही मौत का शिकार हो जाता है। नशे के लिए समाज में शराब, गांजा, भांग, अफीम, जर्दा, गुटखा, तम्बाकु और धूम्रपान सहित चरस, स्मैक, कोकिन, ब्राउन शुगर जैसे घातक मादक दवाओं और पदार्थों का उपयोग किया जा रहा है। नशे के आदी व्यक्ति को समाज में हेय की दृष्टि से देखा जाता है। नशे करने वाला व्यक्ति परिवार के लिए बोझ स्वरुप हो जाता है, उसकी समाज एवं राष्ट्र के लिये उपादेयता शून्य हो जाती है। वह नशे से अपराध की ओर अग्रसर हो जाता है तथा शांतिपूर्ण समाज के लिए अभिशाप बन जाता है।

नशा अब एक अन्तराष्ट्रीय विकराल समस्या बन गयी है। इस अभिशाप से समय रहते मुक्ति पा लेने में ही मानव समाज की भलाई है। इन सभी मादक प्रदार्थों के सेवन का प्रचलन किसी भी स्थिति में किसी भी सभ्य समाज के लिए वर्जनीय होना चाहिए। समाज में पनप रहे विभिन्न प्रकार के अपराधों का एक कारण नशा भी है। नशे की प्रवृत्ति में वृद्धि के साथ-साथ अपराधियों की संख्या में भी वृध्दि हो रही है। नशा किसी भी प्रकार का हो उससे शरीर को भारी नुकसान होता है, पर आजकल के नवयुवक शराब को फैशन और शौक के लिए उपयोग में ला रहे हैं। शराब के सेवन से पेट और लीवर खराब होते हैं। इससे मुख में छाले पड़ सकते हैं और पेट का कैंसर हो सकता है। पेट की सतही नलियों और रेशों पर इसका असर होता है, यह पेट की अंतडिय़ों को नुकसान पहुंचाती है। इससे अल्सर भी होता है, जिससे गले और पेट को जोडऩे वाली नली में सूजन आ जाती है और बाद में कैंसर भी हो सकता है। मादक द्रव्यों से मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचने के साथ-साथ समाज, परिवार और देश को भी गंभीर हानि सहन करनी पड़ती है। किसी भी देश का विकास उसके नागरिकों के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है, लेकिन नशे की बुराई के कारण यदि मानव स्वास्थ्य खराब होगा तो देश का भी विकास नहीं हो सकता। नशा एक ऐसी बुरी आदत है जो व्यक्ति को तन-मन-धन से खोखला कर देता है। इससे व्यक्ति के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और उसके परिवार की आर्थिक स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जाती है। इस बुराई को समाप्त करने के लिए शासन के साथ ही समाज के हर तबके को आगे आना होगा।
ये कैसी विडम्बना है कि सामाजिक हितों से सम्बन्धित तमाम मुद्दो व उससे जुड़े नकारात्मक प्रभावो पर हमारी सरकारे व सामाजिक सँगठन बहुत जोर शोर से आवाज उठाते हुए कुछ मसलो पर आन्दोलन तक छेड़ देते है परन्तु आये दिन इस तरह की होने वाली घटनाओ पर कभी भी कोई सामाजिक संगठन या राजनीतिक दल न आवाज उठाते है और न ही इस गम्भीर समस्या के निदान की ब्रहद स्तर पर कोई पहल करते है । कुछ जागरुक व जिम्मेवार नागरिक स्थानीय स्तर पर कही कही कुछ थोड़े प्रयास जरुर करते रहते है लेकिन वे इस बुराई को जड़ से मिटाने मे कभी भी पूर्ण समर्थ नही हो पाते ।

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