…लेकिन बाजी पलट गई!

Smriti-Iraniरोहित वेमुला और कन्हैया के मामले को देश के विपक्षी नेताओं ने जमकर भुनाया था। टीवी चैनलों और अखबारों को देखकर ऐसा लगता था कि संसद के इस सत्र में सरकार की जबर्दस्त किरकिरी होगी लेकिन बाजी पलट गई। स्मृति ईरानी और अनुराग ठाकुर के भाषणों के आगे कांग्रेसी और वामपंथी ढेर हो गए। वे जिन बातों को सही सिद्ध कर सकते थे, उन पर भी उनकी धुनाई हो गई।
भाजपा के सांसदों ने एक मोटा सवाल उछाला-आप किसके साथ हैं? अफजल गुरु को ‘शहीद’ कहने वालों के साथ हैं या उन जवानों के, जिन्होंने देश पर अपनी जान न्यौछावर कर दी? आप भारत की संसद पर हमला करने वालों के साथ हैं या देश की रक्षा करने वालों के साथ? भाजपा ने हैदराबाद और जनेवि की घटनाओं को दो साफ-साफ हिस्सों में बांट दिय, काला और सफेद! दोनों में से आप सिर्फ एक को चुन सकते हैं। बीच का रास्ता बंद है। यहां मध्यम मार्ग नहीं है। कांग्रेस फंस गई। राहुल गांधी की बोलती बंद हो गई। राहुल के लिए यह बताना मुश्किल हो गया है कि वे हैदराबाद और जनेवि किसलिए पहुंच गए थे? लेने के देने पड़ गए।
औसत कांग्रेसी कार्यकर्ता भी पूछ रहे हैं कि हमारे नेता को हुआ क्या है? वह अपना दिमाग क्यों नहीं लगाता? जो जैसी चाबी भर देता है, वह वैसा नाच दिखाने लगता है। ज्योतिराजे सिंधिया ने अपने नेता को बचाने की बहुत कोशिश की और कुछ वज़नदार तर्क भी दिए लेकिन वे सब तर्क अफजल गुरु के खाते में डूब गए। मृत अफजल को ‘गिरफ्तार’ करने की मांग करने पर उनकी स्थिति काफी हास्यास्पद बन गई। इसका एक अर्थ तो साफ है। कांग्रेस का बौद्धिक दिवालियापन जगजाहिर हो गया है। दुनिया की सबसे बड़ी और पुरानी पार्टी किस दुर्दशा को प्राप्त हो गई है? उसके पास कई अनुभवी और योग्य नेता अभी भी हैं लेकिन अब उनकी कोई पूछ नहीं है। पूछ उन्हीं नेताओं की है, जिनकी पूंछ है और जो जमकर हिलती है।
देश का विपक्ष खोखला हो गया है, इस पर भाजपा फूलकर कुप्पा हो जाए, यह अच्छा नहीं है। भाजपा भी नेतृत्व की दृष्टि से मुश्किल में है। वरना, क्या वजह थी कि रोहित वेमुला और कन्हैया का मामला इतना तूल पकड़ लेता? यदि भाजपा नेताओं में कुछ परिपक्वता होती तो वे इन गैर-मुद्दों को मुद्दा क्यों बनने देते? मच्छर मारने के लिए तमंचा क्यों तानते? विश्वविद्यालय के लड़के अपने मामले खुद ही निपट लेते। सरकार को फटे में पांव फंसाने की क्या जरुरत थी? संतोष की बात है कि सरकार अब ज़रा संभल गई है। उसने धींगामुश्ती करने वाले वकीलों को पकड़ा है और अफजल गुरु के नारे लगाने वालों को पकड़ने के लिए वह जनेवि के अंदर नहीं घुसी है। आशा है, उसने जनेवि और हैदराबाद विवि के मामलों में जैसे संसद को सार्थक बना दिया है, वैसे ही इस पूरे सत्र को भी सार्थक बनाएगी

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