संध्या में जब बैठिए, करो यही विचार।
शुद्ध बुद्ध मैं हो रहा, स्वामी जगदाधार।।
काम मुक्त मैं हो रहा, क्रोध से हो गया दूर।
मद मोह मिटने लगे, लोभ हुआ काफूर।।
चैतन्य भाव जगाइए, समझो शुद्ध चैतन्य।
चैतन्य का चैतन्य से, मेल बड़ा प्रणम्य।।
भाव शुद्धि कीजिए , जपते – जपते ओम।
क्रोध भाव को त्यागिए, धारण करके सोम।।
गायत्री के जाप से, चित्त को कर लो शांत।
सहज भाव से बैठिए , होकर के निर्भ्रांत।।
तेज प्रभु का धारिये, मिटे ताप – संताप।
निर्मल काया जानिए, छुए न मन को पाप।।
पवित्र ह्रदय कीजिए, श्रद्धा भाव भरपूर।
एकाग्र मन को कीजिए,राग – द्वेष हों दूर।।
श्रेष्ठ बुद्धि दीजिए , विनय यही भगवान।
भक्ति भाव हृदय रहे, जब तक तन में प्राण।।
जैसे निर्मल आप हैं, कोई नहीं विकार।
मैं भी वैसा ही रहूं, हृदय की यही पुकार।।
स्नान कीजिए ध्यान में, अनुभव हो आनंद।
धन्यवाद प्रभु का करो, जो है करुणानंद।।