कुछ कर्म भलाई का कर ले

जीवन में आशाओं का
मोल कहाँ मिल पाएगा
इस मतलब की दुनिया में
कौन साथ निभाएगा।

सोना चाँदी हीरे मोती
मिट्टी तक बिक जाती है
बाजारों में गिरवी है जो
इज्जत तक बिक जाती है।

पहने धरम करम का चोला
पाप कमाई करता मानव
ईश्वर तक को भूल गया
ईश्वर से कब डरता मानव।

शापित है हर शख्स यहाँ
हैरान भी है परेशान है मानव
अपनों का ही गला काटकर
बनता है धनवान ये मानव।

पैसे की प्यास है इतनी गहरी
रिश्तो को ही भूल गया
हाथ डुगडुगी बना मदारी
जीवन हाथों से निकल गया।

दुश्मन हुए स्वजन स्नेही
माँ-बाप निकाले जाते हैं
रहा किसी का खौफ नहीं
नंगा नाच दिखाये जाते हैं।

अहंकार के बसी भूत हो
प्रेम प्यार सब भूल गया
छल दंभ द्वेष पाखंड लिए
उन्माद का झूला झूल गया।

क्यों जन्म हुआ इस दुनिया में
अब कहाँ किसी को याद रहा
भूल गया सारा मकसद
जीवन सारा का सारा बर्बाद रहा।

हे मानव खुद को पहचानो
कुछ कर्म भलाई का कर ले
पल-पल बीत रहा जीवन
कुछ नेकी का दम भर ले।

Previous articleतो समझो प्यार है
Next articleकठपुतली
राकेश कुमार सिंह
जन्म स्थान उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में 15 फरवरी सन 1965 को हुआ। शिक्षा स्नातक पेशे से सिक्योरिटी ऑफिसर वाईएमसीए नई दिल्ली में कार्यरत शौकिया लेखन क्रॉउन पब्लिकेशन के द्वारा काव्य संकलन *'यादें'* इपीफैनी पब्लिकेशन के द्वारा काव्य संग्रह *तुम्हारे बिना* और स्ट्रिंग पब्लिकेशन के द्वारा *सीपियाँ*और *काव्यमंजरी* प्रकाशित। (काव्य संकलन 120 सर्वश्रेष्ठ कविताएं *दिव्या* और 200 सर्वश्रेष्ठ शायरियां साझा संकलन में सहभागिता ऑनलाइन पत्रिकाओं जैसे प्रवक्ता.कॉम, अमर उजाला.कॉम, रिटको.कॉम, योर कोटस.कॉम पर हजारों रचनाएं प्रकाशित।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress