कविता

कुछ कर्म भलाई का कर ले

जीवन में आशाओं का
मोल कहाँ मिल पाएगा
इस मतलब की दुनिया में
कौन साथ निभाएगा।

सोना चाँदी हीरे मोती
मिट्टी तक बिक जाती है
बाजारों में गिरवी है जो
इज्जत तक बिक जाती है।

पहने धरम करम का चोला
पाप कमाई करता मानव
ईश्वर तक को भूल गया
ईश्वर से कब डरता मानव।

शापित है हर शख्स यहाँ
हैरान भी है परेशान है मानव
अपनों का ही गला काटकर
बनता है धनवान ये मानव।

पैसे की प्यास है इतनी गहरी
रिश्तो को ही भूल गया
हाथ डुगडुगी बना मदारी
जीवन हाथों से निकल गया।

दुश्मन हुए स्वजन स्नेही
माँ-बाप निकाले जाते हैं
रहा किसी का खौफ नहीं
नंगा नाच दिखाये जाते हैं।

अहंकार के बसी भूत हो
प्रेम प्यार सब भूल गया
छल दंभ द्वेष पाखंड लिए
उन्माद का झूला झूल गया।

क्यों जन्म हुआ इस दुनिया में
अब कहाँ किसी को याद रहा
भूल गया सारा मकसद
जीवन सारा का सारा बर्बाद रहा।

हे मानव खुद को पहचानो
कुछ कर्म भलाई का कर ले
पल-पल बीत रहा जीवन
कुछ नेकी का दम भर ले।