ये डोर मेरी खलासी को इख्तियार कर लिए
मेरे कर, पद बंदिश में हैं
ओ! नटवर मुझे छोड़ दो ,
मेरे अनुरागी को दो टेक
है एक डोर हमारा
शुष्क दरख़्त की भांति मेरा हयात हैं
प्रशाखा की भांति कर मेरे
खुश्क दरख़्त की भांति मैं खड़ी
विवश मैं , बिन तुम्हारे वियोग में पड़ी
मेरे अश्क है बेशकीमत
गिरते ही बन जाते मोती
इन्हे रोक लो
ओ ! नटवर मुझे छोड़ दो
इस डोर को मत समझो बंदिश मेरी
इन्हे तोड़ दो
ओ! नटवर मुझे छोड़ दो
ये समाज से अब त्रास नही
मैं कठपुतली ठहरी मेरा कोई वजूद नहीं
नटवर की बंदिश करते अहोरात्र हरण मेरा
मैं अभिजात जाया मुझमें अब पाक नही
ओ! नटवर मुझे छोड़ दो
मैं उमुक्त पक्षी इस पिंजरे को
तोड़ दो
ओ ! नटवर मुझे छोड़ दो
मैं तुमसे दुहाई करती हूं
दूंगी तुम्हे एक आने
कह दो तुम्हारी रिहाई करता हूं
ये उर बेकरार हैं बिन उसके
व्रण को मेरे भर दो
ओ ! नटवर मुझे छोड़ दो
कठपुतली क्यों हो श्लोक से खिन्न
हैं उसके मुहब्बत के पन्ने भिन्न
उन्हें खुला छोड़ दो
ओ ! नटवर मुझे छोड़ दो