डिजिटल होगी जातिवार जनगणना

संदर्भः- 2021 की जनगणना की अधिसूचना जारी
 जनगणना में स्व-गणना की सुविधा
प्रमोद भार्गव
        दुनिया की सबसे बड़ी आबादी की जनगणना की अधिसूचना जारी हो गई है। कोविड महामारी के कारण 2021 में होने वाली यह जनगणना अब षुरू होगी। कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष जातिवार जनगणना कराने की मांग कर रहा था। अचानक मोदी सरकार ने जातिवार जनगणना कराने का फैसला लेकर पूरे विपक्ष को चौंका दिया। क्योंकि अब यह मुद्दा हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा। साथ ही सभी वर्गों की प्रमुख जातियों के साथ उपजातियों की जनगणना के आंकड़े जब सामने आएंगे, तब यह स्पश्ट हो जाएगा कि सैद्धांतिक रूप से जातिगत गणना कराना उचित था या नहीं ? ई-बाजार, ई-आवेदन, ई-रेल व बस में आरक्षण ई-भुगतान के बाद अब ई-जनगणन यानी डिजिटल गिनती होगी। इस गिनती में जाति की गिनती भी साथ-साथ होगी। इसमें जन्म और मृत्यु दोनों ही डिजिटल जनगणना से जुड़े होंगे। हर जन्म के बाद डिजिटल जनगणना खुद ही अद्यतन हो जाएगी और जब किसी की मृत्यु होगी तो उसका नाम खुद ही डाटा से डिलीट हो जाएगा। सेंसर रजिस्टर यानी जनगणना में बच्चे के जन्म माता-पिता ,जाति और जन्म स्थान की जानकारी समेत 16 भाशाओं में 36 प्रष्नों के उत्तर दर्ज हो जाएंगे। बालक जब 18 साल का होगा तो खुद ही उसका नाम चुनाव आयोग के पास चला जाएगा, नतीजतन उसका मतदाता पहचान पत्र बनने के साथ मतदाता सूची में भी नाम स्वमेव दर्ज हो जाएगा। फिर जब किसी की मौत हो जाएगी तो ऑनलाइन जनगणना के डाटा से उस शख्स का नाम खुद ही डिलीट भी हो जाएगा। इस तरह से जनगणना का डाटा हमेशा खुद अद्यतन होता रहेगा। राश्ट्रीय जनसंख्या रजिस्ट्रर (एनपीआर) की प्रक्रिया पर करीब 12000 करोड़ रुपए खर्च होंगे। डिजिटल जनगणना की घोशणा 1 फरवरी 2021 को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने की थी।
जनगणना-2021 में नागरिकों को गणना में षामिल होने की एक बेहतर और अनूठी ऑनलाइन सुविधा दी गई है। भारत सरकार के केंद्रीय गृह मंत्रालय ने भारतीय नागरिकों को ऑनलाइन स्व-गणना का अधिकार देने के लिए नियमों में परिवर्तन किए हैं। जनगणना (संषोधन)-2022 के अनुसार परंपरागत तरीके से तो जनगणना घर-घर जाकर सरकारी कर्मचारी करेंगे ही, लेकिन अब नागरिक स्व-गणना के माध्यम से भी अनुसूची प्रारूप भर सकता है। इसके लिए पूर्व नियमों में ‘इलेक्ट्रॉनिक फार्म‘ षब्द जोड़ा गया है, जो सूचना प्रौद्योगिकी कानून 2000 की धारा दो की उप धारा (एक) के खंड आर में दिया गया है। इसके अंतर्गत मीडिया, मैग्नेटिक, कंप्यूटर जनित माइक्रोचिप या इसी तरह के अन्य उपकरण में तैयार कर भेजी या संग्रहित की गई जानकारी को इलेक्ट्रॉनिक फार्म में दी गई जानकारी माना जाएगा। यानी एनरायड मोबाइल से भी अपनी गिनती दर्ज की जा सकेगी, जो कि आजकल घर-घर में उपलब्ध है। इस ऑनलाइन प्रविष्टि के अलावा घर-घर जाकर भी जनगणना की जाएगी।
इसमें कोई दो राय नहीं कि ऑनलाइन प्रयोग अद्वितीय है। लेकिन देश की जनता के स्थायी और निंरतर गतिशील पंजीकरण के दृष्टिगत अब जरूरी है कि ग्राम पंचायत स्तर पर जनगणना की जवाबदेही सौंप दी जाए। गिनती के विकेर्द्रीकरण का यह नवाचार जहां 10 साला जनगणना की बोझिल परंपरा से मुक्त होगा, वहीं देश के पास प्रतिमाह प्रत्येक पंचायत स्तर से जीवन और मृत्यु की गणना के सटीक व विश्वसनीय आंकड़े मिलते रहेंगे। इस लेख में प्रस्तुत की जाने वाली जनगणना की यह तरकीब अपनाना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि तेज भागती यांत्रिक व कंप्यूटरीकृत जिदंगी में सामाजिक, आर्थिक व शैक्षिक बदलाव के लिए सर्वमान्य जनसंख्या के आकार व संरचना का दस साल तक इंतजार नहीं किया जा सकता ? वैसे भी भारतीय समाज में जिस तेजी से लैगिंक, रोजगारमूलक और जीवन स्तर मे परिवर्तन आ रहे हैं, उसकी बराबरी के प्रयासों के लिए भी जरूरी है कि हम जनगणना की परंपरा में आमूलचूल परिपर्तन लाएं ?
जनसंख्या के आकार, लिंग और उसकी आयु के अनुसार उसकी जटिल संरचना का कुछ ज्ञान न हो तो आमतौर पर अर्थव्यवस्था के विकास की कालांतर में प्रगति, आमदनी में वृद्धि, खाद्य पदार्थों व पेयजल की उपलब्धता, आवास, परिवहन, संचार, रोजगार के संसाधन,  शिक्षा, स्वास्थ्य व सुरक्षा के पर्याप्त उपायों के इजाफे के पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है। जनसंख्या में वृद्धि के अनुपात में ही लोकसभा और विधानसभा सीटों को परिसीमन के जरिए बढ़ाया जाता है। 2028 में होने वाले लोकसभा चुनाव में महिलाओं के लिए भी 33 प्रतिषत सीटें आरक्षित रहेंगी। जनगणना में निरंतरता इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि देश व दुनिया में जनसंख्या वृद्धि विस्फोटक बताई जा रही है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया की जनसंख्या लगभग सात सौ करोड़ हो चुकी है। 2050 में यह आंकड़ा 10 करोड़ तक पहुंच सकता है। इस आबादी का पचास प्रतिशत से भी ज्यादा हिस्सा महज नौ देशों चीन, भारत, अमेरिका, पकिस्तान, बांग्लादेश, नाइजीरिया, कांगो, इथोपिया और तंजानिया में होगा। परिवार नियोजन के तमाम उपायों के बावजूद दुनिया में प्रति महिला सकल प्रजनन दर 2.5 शिशु है, 2050 में यह दर घटकर 2.1 प्रति महिला प्रति शिशु रह जाने की उम्मीद है।
धरती पर जितनी तेजी से मानव समुदायों की आबादी उन्नसवीं सदी में बढ़ी है, उतनी तेजी से बढ़ोतरी पहले कभी दर्ज नहीं हुई। एक अनुमान के मुताबिक ईसवी सन एक में धरती पर कुल आबादी लगभग तीस करोड़ थी। अठारहवीं शताब्दी के अंत में दुनिया की जनसंख्या एक अरब के आंकड़े को भी पार नहीं कर पाई थी। इन शताब्दियों में जन्म दर की मात्रा अधिक होने के बावजूद जनसंख्या वि्द्ध दर बेहद मंदी थी। प्रकृति पर निर्भर गर्भ निरोधकों से दूर और उपचार की आसान व सुलभ पद्धतियों से अनजान स्त्री-पुरूष बच्चे तो खूब पैदा करते थे, लेकिन उनमें से ज्यादातर मर जाया करते थे। बीमारियों की पहचान और उपचार से नियंत्रण के चलते बीसवीं शताब्दी के पहले ही तीन दशको में यह आबादी दोगुनी होकर करीब पौने दो अरब के आंकड़े को छू गई थी।
भारत की जनसंख्या 1901 में 23,83,96,327 थी। आजादी के साल 1947 में यह आबादी 34.2 करोड़ हो गई थी। 1947 से 1981 के बीच भारतीय आबादी की दर में ढाई गुना वृद्धि दर्ज की गई और आबादी 68.4 करोड़ हो गई थी। जनसंख्या व्ृद्धि् दर का आकलन करने वाले विशेषज्ञो का मानना है कि भारत में प्रति वर्ष एक करोड़ 60 लाख आबादी बड़ जाती हैं। इस दर के अनुसार हमें अपने देश की करीब एक अरब 40 करोड़ लोगों की एक निशचित जनसंख्या प्रारूप में गिनती करनी है, ताकि व्यक्तियों और संसाधनों के समतुल्य आर्थिक व रोजगारमूलक विकास का खाका खींचा जा सके । जनसंख्या का यह आंकड़ा अज्ञात भविष्य के विकास की कसौटी पर खरा उतरे उसका मूलाधार वैज्ञानिक तरीके से की गई सटीक जनगणना ही है।
हरेक दस साल में की जाने वाली जनता-जनार्दन की गिनती में करीब 34 लाख कर्मचारी जुटते हैं। डिजिटल डिवाइस से लैस 1.3 लाख जनगणना अधिकारी भी रहेंगे। छह लाख ग्रामों, पांच हजार कस्बों, सैकड़ों नगरों और दर्जनों महानगरों के रहवासियों के द्वार-द्वार दस्तक देकर जनगणना का कार्य करना कर्मचारियों के लिए जटिल होता है। यह काम तब और बोझिल हो जाता  है जब किसी कर्मचारी-दल को उसके स्थनीय दैनंदिन कार्य से दूर कर उसे दूरांचल गांव में भेज दिया जाता हैं। ऐसे  हालात में गिनती की जल्दबाजी में वे मानव समूह छूट जाते हैं, जो आजीविका के लिए मूल निवास स्थल से पलायन कर जाते हैं। ऐसे लोगों में ज्यादातर अनुसूचित जाति व अनुसूचित  जनजातियों के लोग होते हैं। बीते कुछ सालों में आधुनिक व आर्थिक विकास की अवधारणा के चलते इन्हीं जाति समूह के करीब चार करोड़ लोग विस्थापन के दायरे में हैं।  इनसे रोशन गांव तो अब बेचिराग हैं, लेकिन इन विस्थापितों का जनगणना के समय स्थायी ठिकाना कहां है, जनगणना करने आए दल को यह पता लगाना मुशकिल होता है ?


जनगणना की विधि का हो विकेंद्रीकरण
       जनगणना की प्रक्रिया के वर्तमान स्वरूप को बदला जाकर एक ऐसे स्वरूप में तब्दील किया जाए, जिससे इसकी गिनती में निरंतरता बनी रहे। इसके लिए न भारी भरकम संस्थागत ढांचे की जरूरत है और न ही सरकारी अमले की। केवल गिनती की केन्द्रीयकृत जटिल पद्धति को विकेन्द्रीकृत करके सरल करना है। गिनती की यह तरकीब ऊपर से शुरू न होकर नीचे से शुरू होगी। देश की सबसे छोटी राजनीतिक व प्रशासनिक इकाई ग्राम पंचायत है। जिसका त्रिस्तरीय ढांचा विकास खण्ड व जिला स्तर तक है। हमें करना सिर्फ इतना है कि तीन प्रतियों में एक जनसंख्या पंजी  पंचायत कार्यालय में रखनी है। इसी पंजी की प्रतिलिपि कंप्युटर में फीड जनसंख्या प्रारूप पर भी दर्ज हो। जिन ग्राम पंचायतों में इसे जनसंख्या संबंधी वेबसाइट से जोड़कर इन आंकड़ो का पंजीयन सीधे अखिल भारतीय स्तर पर हो सकता है। जैसा कि अब ऑनलाइन माध्यमों से अपनी गिनती दर्ज करा सकेंगे।
परिवार को इकाई मानकर सरपंच, सचिव ओर पटवारी को यह जवाबदेही सौंपी जाए कि वे परिवार के प्रत्येक सदस्य का नामकरण व अन्य जानकारियां जनसंख्या प्रारूप के अनुसार इन पंजियों में दर्ज करें। इस गिनती को सचित्र भी किया जा सकता है। चूंकि ग्राम पंचायत स्तर का प्रत्येक व्यक्ति एक दुसरे को बखूबी जानते हैं इसलिए इस गिनती में चित्र व नाम के स्तर पर भ्रम की स्थिति निर्मित नहीं होगी। जैसा कि मतदाता सूचियों और मतदाता परिचय-पत्र में हो जाती हैं। गिनती की इस प्रक्रिया से कोई वंचित भी नहीं रहेगा। क्योंकि जनगणना किए जाने वाले जन और जनगणना करने वाले लोग स्थानीय हैं। गांव में किसी भी शिशु के पैदा होने की जानकारी और किसी भी व्यक्ति की मृत्यु की जानकारी तुरंत पूरे गांव में फैल जाती है, अतः इस जानकारी को अविलंब पंजी में दर्ज किया जा सकेगा।
     ग्राम पंचायत पर एकत्रित होने वाली यह जानकारी प्रत्येक माह की एक निश्चित तारीख को विकासखण्ड स्तर पर पहुंचाई जाकर पंजी की एक प्रति विकासखण्ड कार्यालय में रखी जाए और इसे आधार बनाकर इसका तत्काल कंप्यूटरीकरण किया जाए। जिले के सभी विकास खंडों की यह जानकारी जिला स्तर पर बुलाई जाए और यहां इसका एकीकरण किया जाकर इस गिनती को कंप्यूटर में फीड किया जाए। इस तरह से सभी विकासखण्डो के आंकड़ों की गणना कर जिले की जनगणना प्रत्येक माह होती रहेगी। जिलाबार गणना के डाटा को प्रदेश स्तर पर सांख्यकीय कार्यालय में इकट्ठा कर प्रदेश की जनगणना का आंकड़ा भी प्रत्येक माह सामने आता रहेगा। प्रदेशवार जनसंख्या के आंकडो को देश की राजधानी में जनसंख्या कार्यालय में संग्रहीत कर प्रत्येक माह देश की जनगणना का वैज्ञानिक व प्रामाणिक आंकड़ा मिलता रहेगा। देश के नगर व महानगर वार्डो में  विभक्त हैंं। अतः वार्डवार जनगणना के लिए गिनती की उपरोक्त प्रणाली ही अपनाई जाए। इस गिनती में जितनी पारदर्शिता और शुद्धता रहेगी उतनी किसी अन्य पद्धति से संभव नहीं है।
प्रमोद भार्गव

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