
—–विनय कुमार विनायक
जातिवाद का जहर
वृन्दावन से लुम्बिनीवन तक
जस का तस पसरा पड़ा है!
प्रिय दलित-अंत्यजो!
ईश्वर-खुदा-भगवान भी
हो सकते नहीं इस मर्ज की दवा
सदियों से सैकड़ों दिए इम्तहान
पर क्या मिला तुम्हें आज तक
एक अदद आदमी होने का सम्मान?
तुम्हें शुद्ध करने में खुद
भगवान हो गए अशुद्ध
बुद्ध से गांधी तक खूब फजीहत हुई
तुम्हारी और तुम्हारे भगवान की भी!
बुद्ध और गांधी ने पंडित नहीं
किसी जीव वैज्ञानिक की तरह भगवान के
शत प्रतिशत गुणसूत्रों को निचोड़कर
तुम्हारी जाति सुधारने का प्रयोग किया
किन्तु दुर्भाग्य कि तुम्हारे जिन्स नहीं बदले
उलटे भगवान की जाति बदल गई!
राम शूद्र हो गए और हरि जुड़कर तुमसे
इतना बदनाम हुआ कि हरिजन सुनकर
क्षुब्ध हो जाते हो तुम!
फिर खोजते हैं पंडित-पालिटिसियन
कोई नया लोक लुभावना संबोधन
जो पवित्र/निर्दोष/निष्कलुष हो तुम्हारे लिए!
पर दुर्भाग्य कि सारे अनछुए कोश गर्भस्थ शब्द
जुड़ते ही तुमसे उन गालियों के पर्याय हो जाते
जो सदियों से दी जाती रही है
तुम्हें तुम्हारी जाति से जोड़ कर!
—विनय कुमार विनायक