कहीं अमेरिकी हितपोषण में तो नहीं लगी है सीबीआई?

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-गौतम चौधरी

बीते दिन संसद भवन में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने केन्द्र की संयुक्त प्रगतिषील गठबंधन सरकार पर भारतीय जनता पार्टी के साथ परमाणु दायित्व विधेयक पर समझौते का आरोप लगाया। हालांकि कांग्रेस ही नहीं भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने भी इस आरोप का खंडन किया है लेकिन जिस प्रकार सोहराबुद्दीन प्रकरण पर गुजरत के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को केन्द्रीय अन्वेषण् ब्यूरो ने क्लीनचिट दिया और संसद की प्रमुख प्रतिपक्षी भाजपा ने परमाणु दायित्व विद्येयक मुद्दे पर सत्ता पक्ष को समर्थन देने की घोषणा की उससे इस आशंका को बल मिलने लगा है कि केन्द्र की संप्रग सरकार ने संयुक्त राज्य अमेरिका समर्थक मुद्दे पर संसद की मुख्य विपक्षी भाजपा का समर्थन प्राप्त कर लिया है। हालांकि लालू और मुलायम के रहस्‍योद्घाटन में कितनी सत्यता है इस पर अभी और खोज की गुंजाईस है लेकिन जिस प्रकार भाजपा ने उक्त मामले पर यूटर्न लिया है उससे केन्द्र सरकार पर उंगली उठना स्वाभाविक है।

लालू या मुलायम के द्वारा लगाया गया आरोप सचमुच एक गंभीर मामला है। हालांकि ये दोनों विवादास्पद नेता कई बार सत्ता पक्ष के साथ संसद में अपने हितों को ध्यान में रख कर समझौता कर चुके हैं, लेकिन जिस मामले को इन दोनों समाजवादी नेताओं ने उठाया है वह कई सवालों को पैदा करने वाला है। इससे देश की संप्रभुता पर नकारात्मक प्रभाव पडेगा। लालू और मुलायम सीधे सीधी केन्द्र सरकार पर आरोप लगाये कि परमाणु दाचित्व विधेयक पर मतदान में साथ देने के लिए कांग्रेस ने गुजरात के मुख्यमंत्री को सीबीआई पर दबाव डाल कर क्लिनचिट दिलवाया है। इधर देष की दूसरी सबसे बडी भारतीय जनता पार्टी ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो पर कई बार राजनीतिक दूरूपयोग का आरोप लगा चुकी है। लालू और मुलायम के आरोप के बाद यह साबित होता है कि देश की अधिकतर पार्टियां इस बात को सैद्धांतिक रूप से मानने लगी है कि केन्द्रीय जांच ब्यूरो को भले इमानदार और सत्ता निरपेक्ष कहा जाये लेकिन वर्तमान में इस जांच ब्यूरो की विश्‍वसनीयता सवालों के घेरे में है। भारतीय जनता पार्टी के नेता लगातार इस बात का प्रचार कर रहे हैं कि कांग्रेस की अगुआई में चल रही केन्द्र की संप्रग सरकार न केवल अपने हितों के लिए अपितु अन्य राष्ट्रों के हितपोषण के लिए भी केन्द्रीय जांच ब्यूरो का उपयोग कर रही है। पिछली सरकार में जब संसद में अमेरिका के साथ परमाणु समझौते का विद्येयक पास होना था तो बाहर से समर्थन देने वाला वाम गठबंधन सरकार को साथ देने से मना कर दिया। अब संप्रग सरकार कमजोर पडने लगी, फिर सरकार ने कुछ पार्टियों को अपने पक्ष में मत देने के लिए पटायी। जिसमें मुलायम सिंह की पार्टी सपा सबसे आगे थी। उस समय सपा के कर्ता धरता अमर सिंह ने बेशर्मी की हद पार करते हुए कहा था कि देश हित में हम सरकार के साथ हैं और इस विधेयक का समर्थन कर रहे हैं, लेकिन पर्दे के पीछे का सच कुछ ही था। उस समय भी देश की प्रमुख जांच अभिकरण, केन्द्रीय जांच ब्यूरो पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम को धमकाने का आरोप लगा था। मुलायम तो मुलायम, लालू प्रसाद यादव के मामले में भी तो वही हुआ, जिस लालू को दुनिया घोटालेबाज कह रही है वही लालू जब कांग्रेस के गोद में जाकर बैठ गये तो केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने बिहार सरकार को चार घोटाले मामले की अपील तक के लिए मना कर दिया और लालू जी देखते ही देखते चारा चोर से साधु बन गये। इसी प्रकर का मामला मायावती के साथ भी है। लालू प्रसाद यादव, करूणानिधी आदि ऐसे ही राजनीतिक घराने हैं जिसे कांग्रेस अपने पक्ष में लगातार उपयोग कर रही है और सबसे बेशर्मी की बात तो यह है कि इस बात की जानकारी पूरे देश को है फिर भी कांग्रेस को इस बात की चिंता नहीं है। देश के अंदर का कोई मामला हो तो फिर बरदास्त किया जा सकता है लेकिन विदेषी कूटनीति और आर्थिक हितों के लिए देश के नेताओं पर दबाव बनाना यह तो देश की संप्रभुता के साथ खिलवाड है।

सर्वविदित है कि अमेरिकी हितों को ध्यान में रखकर अमेरिका के साथ परमाणु समझौता किया गया। इस बात पर से भी पर्दा उठने लगा है कि परमाणु दायित्व विधेयक में भी अमेरिकी हितों को ध्यान में रख कर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार देश के लोकतांत्रिक पार्टियों के उपर दबाव बना रही है। ऐसे में देश के सामने एक बडी विकट परिस्थिति पैदा हो गयी है जिससे निवटना साधारन बात नहीं है। हालांकि सत्ता के केन्द्र में बैठे लोगों को इतना तो जानकारी होना ही चाहिए कि सन 70 के बाद साम्यवादी रूस के इशारे पर चलने वाली इंदिरा गांधी ने भी भारतीय जांच संस्थाओं का दूरूपयोग करने लगी थी। उस दौरा में कई राष्ट्रवादी नेताओं की हत्या भी हुई। हालांकि उस हत्या के पीछे किसका हांथ था वह अभी तक रहस्य ही बना हुआ है लेकिन लोकतंत्र को दफन करने की कोशिश इंदिरा जी को महगा पडा और उन्हें ही नहीं उनके पूरे परिवार को उसकी कीमत चुकानी पडी। इस देश में कोई यह सोचे की वह लोकतांत्रिक मूल्यों का गला घोट कर बच जाएगा तो यह नामुमकिन है। उसे पूरा हिसाब चुकाना होगा। वर्तमान समय सन् 70 के बाद उत्पन्न स्थिति जैसा होता जा रहा है। जांच एजेंषियां लोकतांत्रिक मूल्यों का विदेशी हितों के लिए गला घोटने के फिराक में है। जिस प्रकार अमेरिकी भू राजनीतिक हितों के लिए भारतीय राजनेता, देश के आंतरिक राजनीतिक और विदेशी कूटनीति में बदलाव कर रहे हैं, उससे यह साबित हो गया है कि संयुक्त राज्य अमेरिका का हस्तक्षेप देश के आंतरिक मामले में बढता जा रहा है। ऐसे में अमेरिका जिस खेल के माध्यम से भारत में रूस को कमजोर किया वह खेल अन्य ताकतवर राष्ट्र खेल सकता है जो देश हित में तो नहीं ही होगा इसका प्रतिफल सत्ता के केन्द्र में रहने वालों को भी भुगतना पडेगा और पूरी कीमत भी चुकानी होगी। नरेन्द्र मोदी, सोहराबुद्दीन प्रकरण में किस स्तर पर डील हुआ है यह तो आने वाला समय बताएगा लेकिन सोहराबुद्दीन प्रकरण में केन्द्रीय अन्वेष्षण ब्यूरो किस प्रकार पूरे मामले को मीडिया ट्रायल पर आगे बढा रही है वह सबके सामने है। गुजरात या फिर अहमदाबाद में रहने वाले अंग्रेजी अखबार के पाठकों से यह बात छुपी नहीं है कि केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो, जो एक सप्ताह बाद कहती है उसे एक प्रमुख अंग्रेजी का दैनिक अखबर सप्ताहभर पहले छाप देता है। कहने का मतलब यह है कि मीडिया आख्या पहले छपती है और जांच ब्यूरो उसपर अपना बयान बाद में देता है। अगर मोदी को घेरने की साजिस केन्द्र सरकार नहीं रच रही है तो महाराष्ट्र और आंध्र की पुलिस सोहराबुद्दीन प्रकरण में बराबर की जिम्मेबार है लेकिन आज तक उसपर कार्रवाई क्यों नहीं की गयी? एसे कई सवाल गुजरातियों के ही नहीं देश के प्रबुध्द लोगों के मन को लगातर मथ रहा है।

मामले पर प्रतिपक्षी भाजपा के साथ केन्द्र सरकार की कोई डील हुई है तो यह खतरनाक है और इसे किसी कीमत पर सही नहीं ठहराया जा सकता है। इससे भाजपा के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पडेगा। हम बार बार पाकिस्तान पर आरोप लगाते रहे हैं कि वहां लोकतंत्र नहीं है और पाकिस्तान की सत्ता का सूत्र वहां की गुप्तचर संस्था आई0 एस0 आई0 के हाथ में है। लालू, मुलायम तथा भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की बात माल ली जाये तो हम किस मुह से अपने पडोसी पाकिस्तान को कोसेंगे? अब हमारे देश की सत्ता भी केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो जैसी गुप्तचर संस्था नियंत्रित करने लगी है। विगत दिनों उगाही माफिया सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ प्रकरण पर सीबीआई के खिलाफ मोर्चेबंदी के लिए अहमदाबाद आए सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता और भारतीय उच्च सदन, राजसभा में प्रतिपक्ष के नेता अरूण जेटली ने केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो पर कई आरोप लगाये तथा उन्होंने कहा कि बोफोर्स घोटाले में कांग्रेसी नेताओं ने किस प्रकार षडयंत्र कर विष्वनाथ प्रताप सिंह के बेटे को फसाने की योजना बनायी थी वह मामला जांच के बाद सामने आ गया और कांग्रेसी नेताओं की पोल खुल गयी। कुल मिलाकर जेटली ने सीबीआई पर कांग्रेस के इसारे पर देश के प्रतिपक्षी पार्टियों को बदनाम करने का आरोप लगाया। यही नहीं जेटली ने भारतीय न्यायालय पर भी अरोप मढे। कुल मिलाकर हमें क्या समझना चाहिए कि सच मुच हम दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र में जी रहे हैं और जिसे हम चुन कर भेज रहे हैं क्या वही सत्त चला रहा है या फिर ऐसी कोई विदेशी शक्ति है जो भारत के संपूर्ण सत्ता का संचालन अपने हाथ में रखे हुए है और देश की जनता को बेवकूफ बनाया जा रहा है?

ऐसे कहा जाये तो यह कांग्रेस की पुरानी चाल है। प्रतिपक्ष को बांट कर कांग्रेस अपना उल्लू सीधा करती रही है। इसे और स्पष्ट करने के लिए कहा जा सकता है कि कांग्रेस लगातार बाहर की शक्तियों को सहयोग करती रही है। स्वतंत्रता प्रप्ति के बाद कांग्रेस के नेता और देश के प्रधानमंत्री ने जहां एक ओर कॉमनवेल्थ के साथ रहने की घोषणा की वही उन्होंने रसियन साम्यवादी साम्राज्यवाद के क्षद्म हितों की पूर्ति के लिए नासिर, टीटो के साथ मिलकर गुट निरपेक्ष आन्दोलन खड़ा किया। भले विदेषों में इन दोनों संगठनों से भारत को थोडा सम्मान मिल गया होगा लेकिन भारत को इसकी भी कीमत चुकानी पडी है। उसी दौरान चीन से मात खाना पडा। रूस के साथ कई ऐसे अनगल समझौते करने पडे जो प्रकारांतर में देशहित में नहीं था। इंदिरा जी के सामय में तो मानों देश रूसी साम्राज्यवाद का आर्थिक गुलाम ही हो चुका था। रूस साम्राज्यवाद की समाप्ति के बाद अब हम संयुक्त राज्य अमेरिका की गुलामी की ओर बढ रहे हैं। इसे रोका जाना चाहिए अन्यथा इसकी प्रतिक्रिया के लिए देश का प्रभुवर्ग तैयार रहे।

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  1. गौतम जी शानदार लेख के लिए बधाई. कांग्रेस पार्टी शुरू से ही हित साधना में लगी हुई है. यह पार्टी अपने फायदे का गुलाम है. आपने जो बताया है वो सर्व विदित है. लेकिन आपने अपने बेहतरीन कलम से इसे संकलित किया है. कांग्रेस का नेतृत्व सोनिया के हाथ में आने से स्थिति बाद से बदतर हुई है. सरकार की विदेशी ताकतों पर निर्भरता काफी बढ़ गयी है. यदि कांग्रेस नेतृत्व देशी रहता तो शायद इतने साजिश नहीं होते. सरकार ने बीजेपी जैसी बड़ी पार्टी तक को मजबूर कर दिया है, तो इस समस्या की विभीषिका को समझा जा सकता है. गरीब वर्ग को बरगलाना इस सरकार को खूब आता है. देश के सभी बुद्धिजीवियों को एकजुट होकर इस सरकार के खिलाफ कमर कसना होगा. अन्यथा देश कमजोर होते चला जायेगा.

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