आर्थिकी

सरकारी महिला बैंक की चुनौतियाँ

bankआम बजट में वित्त मंत्री पी चिदंबरम के द्वारा पहला महिला सरकारी बैंक खोलने की घोषणा को संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (सप्रंग) सरकार महिला सशक्तिकरण की दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम बता रही है। अपने बजट भाषण में श्री चिदंबरम ने कहा कि प्रस्तावित बैंक महिलाओं के द्वारा संचालित किया जायेगा। यह बैंक: मुख्य रुप से उन महिला कारोबारियों, जो छोटे स्तर पर अपना कारोबार कर रही हैं, को वित्तीय सहायता उपलब्ध करवायेगा। साथ ही, यह वित्तीय समावेषन की संकल्पना को साकार करने की दिशा में भी कार्य करेगा। उल्लेखनीय है कि पुरुष को इस बैंक से पूरी तरह से अलग नहीं किया गया है। पुरुष इस बैंक में अपना पैसा जमा कर सकेंगे, लेकिन उन्हें बैंक से किसी भी प्रकार की कोर्इ वित्तीय सहायता नहीं मिलेगी।

सरकार इस बैंक को शुरू में 1000 करोड़ रुपये की पूँजी उपलब्ध करवायेगी, जिसे छोटे स्तर पर ऋण मुहैया करवाने के दृष्टिकोण से प्रर्याप्त माना जा सकता है। जरुरत के मुताबिक सरकार पुन: इस बैंक को पूँजी दे सकती है। इस बैंक के संदर्भ में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नये बैंकों के लिए जारी दिशा-निर्देष लागू नहीं होगा। चूँकि यह बैंक भी सार्वजनिक क्षेत्र का हिस्सा होगा, इसलिए इस बाबत अलग से किसी नियम-कानून को अमलीजामा नहीं पहनाया जाएगा। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के मामले में जारी दिशा-निर्देष ही इस बैंक पर लागू होंगे। लिहाजा यह बैंक भी अन्य सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों की तरह बैंकिंग उत्पादों एवं सेवाओं को ग्राहकों को बेचेगा। हाँ, इस कार्य को कार्यानिवत करने के क्रम में बैंक की प्राथमिकता में महिलाएँ जरुर रहेंगी।

महिलाओं ने भी सरकार के इस पहल का स्वागत किया है। स्वागत करने वालों में श्रीमती सोनिया गाँधी के अलावा प्रतिपक्ष की नेता श्रीमती सुषमा स्वराज भी हैं। निजी क्षेत्र के आर्इसीआर्इसीआर्इ बैंक की प्रबंध निदेशक चंदा कोछड़ एवं एचएसबीसी की भारत में प्रमुख नैना लाल किदवर्इ ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है। इंडियन बैंक के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक टी.एम.भसीन ने भी सरकार के इस प्रस्ताव का खैरमकदम किया है। बैंकिंग क्षेत्र में यदि महिला सशक्तिकरण की बात की जाए तो इस क्षेत्र में पिछले दषक से ही महिलाओं का दबदबा रहा है। यह रुतबा महिलाओं ने तब हासिल किया है, जब उन्हें घर और बाहर दोनों स्थान पर समान रुप से काम करना पड़ता है। फिर भी वे इस दोहरी जिम्मेदारी का निर्वाह बखूबी कर रही हैं। बता दें कि महिलाएँ फिलवक्त अनेकानेक बैंकों के शीर्ष पद पर काबिज हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की दो बैंकों की प्रमुख अभी महिलाएँ हैं। एकिसस बैंक और एचडीएफसी लिमिटेड की प्रमुख क्रमश: शिखा शर्मा एवं रेणु कर्नाड भी महिला हैं। रायल बैंक आफ स्काटलैंड का भारत में नेतृत्व मीरा सान्याल के हाथों में है। देश के केंद्रीय बैंक में बीते दिनों उषा थोराट और श्यामला गोपीनाथ डिप्टी गर्वनर रह चुकी हैं। इस परिप्रेक्ष्य में आर्इसीआर्इसीआर्इ बैंक की प्रबंध निदेशक चंदा कोछड़ महिला सशक्तिकरण के आलोक में उल्लेखनीय काम कर रही हैं। चंदा कोछड़ की कोर टीम के 10 प्रमुख सदस्यों में से 3 महिलाएँ हैं। वर्तमान में इस बैंक में अनुमानत: 40000 कर्मचारी काम कर रहे हैं, जिसमें से महिला कर्मचारियों की संख्या अमूमन 10000 है। इसी क्रम में महिलाओं की वकालत करते हुए वित्तीय मामलों के जानकार एवं सामाजिक वैज्ञानिक लीड विश्वविधालय के अध्यापक निक विलसन कहते हैं कि महिला प्रबंधकों का नजरिया वित्तीय जोखिम के मामले में संतुलित रहता है। वे दवाब में भी सही निर्णय लेने में सक्षम होती हैं।

बहरहाल बजट में की गर्इ प्रस्तावित बैंक की घोषणा से छोटे कर्जदाताओं के बीच संषय की भावना पनपने लगी है, क्योंकि माइक्रोफाइनैंस कंपनियों (एमएफआर्इ) का अब तक इस बाजार पर तकरीबन पूरी तरह से कब्जा रहा है। इस क्षेत्र में पहले से सरकारी बैंकों का दखल ज्यादा नहीं होने के कारण उनको लग रहा है कि अब उन्हें गलाकाट प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा, जिससे उनका कारोबार प्रभावित होगा। ज्ञातव्य है कि आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित श्रीनिधि बैंक स्व सहायता समूह (एसएचजी) को कर्ज मुहैया करवा करके सूक्ष्म स्तर के लेनदारों को माइक्रोफाइनैंस कंपनियों के जाल में फंसने से बचाती है। माना जा रहा है कि सरकार द्वारा प्रस्तावित महिला बैंक भी इसी तर्ज पर काम करेगा। भले ही प्रस्तावित महिला बैंक सार्वजनिक क्षेत्र का पहला बैंक होगा, लेकिन महिलाओं द्वारा एक लंबे अरसे से बैंक संचालित किया जा रहा है। आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित श्रीनिधि बैंक के अलावा भी निजी एवं सरकारी तौर पर देश एवं विदेशो में अनेकानेक बैंक महिलाओं के द्वारा संचालित किये जा रहे हैं। स्वाश्रेयी महिला सेवा सहकारी बैंक (सेवा) की स्थापना वर्ष, 1974 में की गर्इ थी। आज की तारीख में इस बैंक के लगभग 93000 जमाकत्र्ता हैं। मान देशी महिला सहकारी बैंक, जिसकी स्थापना वर्ष, 1997 में की गर्इ थी, भी इसके बरक्स अच्छा काम कर रहा है। इन दोनों बैंकों ने महाजनों के जाल से ग्रामीण महिलाओं को निकालने में अपनी महती भूमिका निभार्इ है।

हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में महिलाओं द्वारा संचालित सार्वजनिक क्षेत्र का पहला बैंक वर्ष, 1989 में खुला था, जिसे 100 मिलियन की चुकता पूँजी से खोला गया था। कहा यह भी जा रहा है कि वित्त मंत्री पी चिदंबरम को सरकारी क्षेत्र में महिलाओं द्वारा संचालित पहला बैंक खोलने की प्रेरणा पाकिस्तान से मिली है। विकसित देशो में तो काफी सालों से महिलाओं के द्वारा बैंकों का संचालन किया जा रहा है। इस मामले में पिछड़े व विकासशील देशो की बात करें तो युगांडा, श्रीलंका, मारीशस इत्यादि देशो में भी महिलाओं के द्वारा बैंक संचालित किया जा रहा है। इन देशो में महिला बैंक सिर्फ बैंकिंग कार्यकलाप तक सीमित नहीं है, वरन वह महिलाओं को आर्थिक रुप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी कृतसंकलिपत है।

माना जा रहा है कि प्रस्तावित महिला बैंक को कर्इ स्तरों पर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। सबसे महत्वपूर्ण चुनौती मानव संसाधन के स्तर पर हो सकती है। हालांकि प्रस्तावित बैंक की शाखाओं को खोलने वाले स्थानों का खुलासा अभी नहीं किया गया है। फिर भी बजट भाषण में महिला बैंक की संकल्पना के रेखाकंन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मोटे तौर पर इस बैंक का विस्तार ग्रामीण इलाकों, तहसील एवं अनुमंडल स्तर पर होगा, क्योंकि इसका उद्देष्य छोटे स्तर पर कार्यरत महिला उधमियों को आर्थिक एवं सामाजिक रुप से सबल बनाना है। चूँकि सूक्ष्म स्तर पर काम करने वाली महिला उधमियों की संख्या महानगरों में नगण्य है। अस्तु महिला सरकारी बैंक का टारगेट गाँव एवं कस्बानुमा शहरों की तरफ रहने की प्रबल संभावना है। दूसरा महत्वपूर्ण पहलू इस संबंध में यह है कि अभी भी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कर्मचारियों , अधिकारियों का तनख्वाह बहुत ही कम है। एक बैंक लिपिक को आरंभ में कुल वेतन तकरीबन 15000 रुपये मिलता है, जिसमें एक परिवार का गुजारा होना आज की मंहगार्इ में बहुत ही मुश्किल है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि नये बैंकों के खुलने के बाद सरकारी बैंकों से कुशल मानव संसाधन का पलायन होना लाजिमी है। जाहिर है इस तरह की प्रतिकूल स्थिति में ग्रामीण क्षेत्र एवं कम सैलरी पर काम करने वाली इच्छुक महिलाओं को अक्टूबर, 2013 तक चिनिहत करना महिला बैंक के लिए आसान नहीं होगा।

सरकारी बैंकों में कार्यरत मानव संसाधन की समस्याओं से जुड़ी हुर्इ खंडेलवाल समिति का मानना है कि मानव संसाधन स्तर पर सरकारी बैंकों की चुनौतियाँ कम होने की बजाए, बढ़ने वाली हैं, क्योंकि आगामी वर्षों में तकरीबन 80 प्रतिशत महाप्रबंधक, 65 प्रतिशत उप महाप्रबंधक, 58 प्रतिशत सहायक महाप्रबंधक और 44 प्रतिशत मुख्य प्रबंधक सेवानिवृत हो जायेंगे। इस वजह से रिजर्व बैंक ने वर्ष, 2010 से वर्ष 2020 की अवधि को सेवानिवृति का दशक करार दिया है। स्पष्ट है योग्य मानव संसाधन की कमी का खामियाजा महिला सरकारी बैंक को भी भुगतना पड़ सकता है।

गौरतलब है कि बीते सालों में ग्रामीण क्षेत्रों एवं कस्बानुमा शहरों में महिला कारोबारियों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। शहरों एवं महानगरों में भी महिला उधमी नित दिन सफलता की नर्इ मिसाल कायम कर रहे हैं। स्व सहायता समूह (एसएचजी) के माध्यम से इनकी सहायता भी की जा रही है। एसएचजी के गठन एवं विकास में सरकारी बैंक अपनी सकारात्मक भूमिका निभा रहे हैं। बावजूद इसके सरकारी महिला बैंक के लिए इस फ्रंट पर चुनौतियाँ बरकरार रहेंगी, क्योंकि दूसरे सरकारी बैंकों के लिए कारोबार बढ़ाने के लिए विकल्प बहुतेरे हैं, पर इस मामले में महिला बैंक के हाथ बंधे रहेंगे। वित्तीय समावेषन के प्लेटफार्म पर अन्य सरकारी बैंक पहले ही डिरेल हो चुके हैं। इसलिए इस संबंध में महिला बैंक से कोर्इ भी उम्मीद करना बेमानी होगा। इस दृष्टिकोण से महिला बैंक सीमित संसाधनों के साथ कोर्इ बड़ा कारनामा करेगा, इसकी परिकल्पना नहीं की जा सकती है। पाकिस्तान में पहला सरकारी महिला बैंक असफल हो चुका है। वर्ष, 1989 में अपने आगाज के बाद से इस महिला बैंक के पूरे पाकिस्तान में महज 38 शाखाएँ खुल सके हैं। बावजूद इसके भारत में खुलने वाला पहला सरकारी महिला बैंक की सफलता या असफलता का आकलन उसके खुलने से पहले करना समीचीन नहीं होगा।