समाज

प्यार के बदलते मायने

बेअंत सिंह चौधरीlove1

’प्यार’ शब्द की परिभाषा हर किसी ने अपने अनुसार गढ़ी है। पर यह शब्द

अपनी पवित्रता खोता जा रहा है। अगर आप किसी से ऐसा कहोगे तो वो बोलेगा कि

समय के अनुसार हर चीज बदल जाती है। पर मैं कहूंगा जहां पवित्रता नहीं

वहां प्यार नहीं। चाहे वो माँ-बेटे का प्यार हो या भाई-बहन का, पिता-बेटी

का प्यार हो या गुरू- शिष्य का, या फिर प्रेमी-प्रेमिका का…….!!

 

हाल ही में एक फिल्म रिलीज हुई ‘‘भाग मिल्खा भाग‘‘ जो कि ‘फ्लाइंग सिख‘

के नाम से मशहूर व विश्व विख्यात तेज धावक मिल्खा सिंह के जीवन पर आधारित

है।

कुछ दिनों पहले कि ही बात है जब मिल्खा सिंह ‘इंडिया न्यूज‘

न्यूज चैनल पर अपने जीवन की घटनाओं से अवगत करा रहे थे। अचानक हाथों ने

टीवी रिमोट पर काम करना बंद कर दिया और मैं उनकी बातों में तल्लीन होता

चला गया।

उन्होंने बताया कि किस तरह देश विभाजन के समय दंगों में उनके माता-पिता,

एक भाई और दो बहनें मारे गए और फिर कैसे अपनी कड़ी मेहनत से उन्होंने तेज

दौड़ में कई रिकाॅर्ड्स बनाए और तोड़े जो आज तक कोई नहीं कर पाया। चाहे

वो एशियाड ओलिम्पिक रहा हो या फिर ऐतिहासिक रोम ओलिम्पिक का दिन। उसके

बाद वो अपनी विवाहित बहन के पास चले गए।

तभी संवाददाता ने उन पर एक सवाल दाग दिया कि ‘‘जैसा हम सब जानते हैं कि

आपने भी अपने दिनों में प्यार किया था, जिसे आपने छिपा कर रखा। इसके बारे

में क्या कहेंगे??‘‘

इस सवाल के जवाब में मिल्खा सिंह ने कहा, ‘‘हां, प्यार तो

हुआ था। लेकिन हम जानते भी नहीं थे कि प्यार आखिर होता क्या है! हमारे

समय में यदि किसी दिन लड़की का चेहरा भी देख लेते या दिख जाता तो लड़के

सोचते जैसे ईश्वर के दर्शन हो गए और उनका पूरा दिन अब शानदार जाने वाला

है। लड़के हर दिन जुगत लगाते कि किस तरह लड़की की सिर्फ एक झलक ही मिल

जाए। होली और दिवाली की तरह मौकों का इंतजार होता था। सिर्फ इतनी सी सोच

के साथ कि एक झलक ज्यादा देर तक देखने को मिले। सादगी के लिए तरसते थे

लड़के! मैंने जिस लड़की को चाहा वो मेरी बहन के घर के सामने ही रहती थी।

फिर भी बड़ी मुश्किल से हिम्मत जुटानी पड़ती थी उसे देखने को। और जब बात

करने का मौका मिला तो दोनों के बीच 8 से 10 फीट की दूरी पर चलते-चलते

बातें होती थी। उस समय मैं अपनी विवाहिता बहन के साथ रहता था। यही वो

लड़की थी जिसने मुझे एथलीट बनने के लिए प्रेरित किया। छोटा था, माँ-बाप

का साया नहीं था, चीजें चोरी किया करता था, लेकिन उस लड़की ने ईमानदारी

से जीवन जीना सिखाया। और आज मैं यहां हूँ। लेकिन दुःख की बात यह है कि मुझे मेरी बहिन

के घर से उसके पति के द्वारा बाहर फेंक दिया गया। उसके बाद मेरा उससे

सम्पर्क टूट गया।‘‘

 

उनके द्वारा बताई गई बातों को सुनकर मैं सोच में डूब गया कि आज उस समय

को बीते ज्यादा वर्ष नहीं हुए हैं लेकिन मायने कितने बदल गए हैं!!

आज ‘प्यार‘ माडर्न लिबास में लिपटा हुआ हाईटैक हो गया है। सम्मान,

श्रद्धा और अटूट विश्वास का स्थान ऊपरी नखरे, छिछोरापन और कामवासना ने ले

लिया है। पश्चिमी लिबास के साथ-साथ संस्कार भी पश्चिमी होते जा रहे हैं।

पहले प्यार प्रेरित करता था और अब उकसाता है (आप समझ रहे होंगे)।

पहले जहां लड़की की एक झलक से ही पूरा दिन अच्छा गुजरता था वहीं आज लड़की

को हवस का शिकार बनाने के बाद भी इंसान भूखा ही है। जहां ‘प्यार‘ पहले

‘ईश्वरतत्व‘ था आज मात्र ‘रति‘ है।

कौन इंसान की शक्ल में भेडि़या हो कुछ कहा नहीं जा सकता! रिश्ते भी

तार-तार होने लगे हैं। कौन कितना बदला ‘लड़का‘ या ‘लड़की‘, कुछ कहा नहीं

जा सकता! समय ने किसको बदला, ‘लड़के को या लड़की को‘ कुछ कहा नहीं जा

सकता!

फेसबुक, ट्वीटर, वाट्सअप एप, आरकुट, ई-टाक आदि सोशल नेटवर्किंग

साइट्स ‘माडर्न प्यार‘ का प्लेटफार्म बनकर उभर रही हैं, जहां सुबह से

शाम तक फर्जी प्यार की ट्रेनें दौड़ती रहती हैं। कौन ‘कहाँ‘ और ‘किस‘

ट्रेन में बैठ रहा है किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता और शायद कोई चाहता भी

नहीं कि उन्हें उनकी जिम्मेदारी याद दिलाई जाए।

सभी ‘प्यार‘ को जल्दी-जल्दी जीने की कोशिश में लगे हुए हैं। आज

के अधिकतर युवा को तो पहली ही नजर में ऐसा प्यार हो जाता है कि जिसे

साबित करने की उधेड़-बुन में वो अपने माँ-बाप को ही भूल जाता है। आकर्षण

मात्र को प्यार कहने वाले युवा जो अपने माँ-बाप को एक वक्त की रोटी नहीं

खिला सकते वो प्यार में साथ जीने मरने की कसमें खाते हैं। लेकिन यह तब तक

ही चलता है जब तक सामने वाले से उसकी इच्छाएं पूरी होती रहें, अगर ऐहसान

हो तो उसे किसी दूसरे से प्यार हो जाता है!! कमाल की बात है!

‘माॅडर्न प्यार‘ की पटरियाँ स्कूलों से हाईटैक कोचिंग होती हुई काॅलेजों

तक बिछ चुकी है। बिना ‘ग्लेमर‘ के तो आज विद्यालय भी नहीं चलता!!

सबसे बड़ी शर्म की बात तो यह है कि आज की जनरेशन के अधिकतर युवा अपने

माँ-बाप को मूर्ख बनाने व धोखा देने से भी नहीं चूकते हैं। हाथ में

मोबाइल चाहिए और घर में कम्प्यूटर ताकि माॅडर्न प्यार ही पटरियों पर

धड़ा-धड़ दौड़ा जा सके। किसी भी तरह का व्यवधान नहीं चाहते।

पहले युवा माँ-बाप और अपने लक्ष्य की खातिर प्यार छोड़ देते थे, आज मात्र

फर्जी प्यार की खातिर …………..सीधा-सीधा बोलूं तो ‘‘भूख‘‘ षांत

करने की खातिर माँ-बाप और अपने लक्ष्य को ही छोड़ देते हैं।

अगर इन्हें समझाने की कोशिश करें तो केवल मात्र एक ही घिसा-पिटा वाक्य

इनके पास है कि, ‘‘दूध का धुला कौन है!!!‘‘ अब इन्हें कोन बताए कि

इन्होंने अपने ही माँ-बाप पर निशाना साध दिया ऐसा बोलकर!!

एक लड़की अपने कान पर मोबाइल रखती है या फिर ईअर फोन लगा लेती है और ऊपर

से चेहरे को स्कार्फ से ढक लेती है और फिर बेझिझक होकर लोगों के सामने से

निकलती है यह सोचकर कि अब वह जो कर रही है यह किसी को नहीं पता! कमाल का

अविश्कार है भाई!!

ध्यान रखने की बात यह है कि हम गेंद को जितनी जोर से दिवार पर मारेंगे

वो दूगुनी जोर से हमारी तरफ वापस आने वाली है।

प्यार करो लेकिन संस्कारित होकर। हवस की भट्टी में खुद को न तपाकर

मेहनत, व्यवहार और संस्कार में तपाओ ताकि सभी आपसे प्यार करें। फिर देखो

आपको कभी माॅडर्न प्यार की पटरियों पर दौड़ती ट्रेनों की आवश्यकता ही

नहीं पड़ेगी।

मुझे पूरा विश्वास है कि अगर आप उन्हीं युवाओं में से हैं जिनके

गुणों का बखान यहां हुआ है तो आप बिल्कुल भी मेरे विचारों से सहमत नहीं

होंगे। और यह भी हो सकता है कि मैंने ये शब्द व्यर्थ ही काले किए हों!!