चे ग्वेवारा पूजनीय हैं, लेकिन भारत माता और सरस्वती नहीं???

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-सुरेश चिपलूनकर

खबर केरल के कन्नूर से है, जहाँ वामपंथियों की स्टूडेण्ट्स ब्रिगेड DYFI ने एक जूता बेचने वाले की दुकान पर हमला किया, दुकानदार को धमकाया और दुकान को तहस-नहस कर दिया। कारण? वामपंथियों के आराध्य देवता(?) चे ग्वेवारा की तस्वीरों वाले जूतों की बिक्री…। उल्लेखनीय है कि कार्ल मार्क्स, लेनिन, माओ, चे ग्वेवारा, फ़िदेल कास्त्रो (यानी सब के सब विदेशी) कुछ ऐसे लोग हैं जिनकी पूजा वामपंथी करते हैं (भले ही वे खुद को नास्तिक कहते हैं, लेकिन असल में ये सारे शख्स इनके लिये पूजनीय हैं और इनकी किताबें वामपंथियों के लिये रामायण-गीता के समान हैं)। जब केरल में इन्होंने चे ग्वेवारा की तस्वीरों को जूतों पर देखा तो इनका माथा घूम गया और उस दुकानदार की शामत आ गई जो दिल्ली से यह जूते मंगवाकर बेच रहा था, उस बेचारे को तो ये भी पता नहीं होगा कि चे ग्वेवारा कौन थे और क्या बेचते थे?

लेकिन पाखण्ड और सत्ता के अभिमान से भरे हुए वामपंथी कार्यकर्ताओं ने सभी जूतों को नष्ट कर दिया और दुकान से बाकी का माल दिल्ली वापस भेजने के निर्देश दे दिये। क्या कहा? पुलिस?…… जी हाँ पुलिस थी ना… दुकान के बाहर तमाशा देख रही थी। भई, जब माकपा का कैडर कोई “जरुरी काम” कर रहा हो तब भला पुलिस की क्या औकात है कि वह उसे रोक ले। कोडियेरी पुलिस ने गरीब दुकानदार पर “चे” के चित्र वाले जूते बेचने (भावनाएं भड़काने) के आरोप में उस पर केस दर्ज कर लिया। जब वहाँ उपस्थित संवाददाताओं ने पुलिस से दुकानदार के खिलाफ़ लगाई जाने वाली धाराओं के बारे में पूछा तो उन्हें कुछ भी पता नहीं था, और वे पुलिस के उच्चाधिकारियों से सलाह लेते रहे। जब दुकानदार से पूछा गया तो उसने भी कहा कि “मुझे नहीं पता था कि चे की तस्वीरों वाले जूते बेचना प्रतिबन्धित हो सकता है, क्योंकि मैंने कई मेट्रो शहरों में चे की तस्वीरों वाले टी-शर्ट, की-चेन, मोजे, बिल्ले और जूतों की बिक्री होते देखी है, और यह जूते भी मैंने घर पर नहीं बनाये हैं बल्कि दिल्ली से मंगाये हैं…“। (उसकी बात सही भी है, क्योंकि “चे” की तस्वीरें ऐसी-ऐसी वस्तुओं पर छपी हैं जिनकी फ़ोटो यहाँ दिखाना अश्लीलता होगी…)

सभी देशवासियों और पाठकों को याद होगा कि एक दो कौड़ी के चित्रकार द्वारा भारत माता, सरस्वती, दुर्गा, सीता आदि के नग्न और अश्लील चित्र बनाये जाने पर हिन्दूवादियों द्वारा उसे लतियाकर देश से बाहर करने के मामले में, तथाकथित प्रगतिशील वामपंथियों, सेकुलरों ने “अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता” को लेकर जमकर रुदालियाँ गाई थीं… हिन्दू संगठनों को बर्बर, तानाशाह इत्यादि कहा गया… उस चित्रकार को (जिसने लन्दन-अमेरिका या नेपाल नहीं बल्कि एक धुर इस्लामी देश कतर की नागरिकता ली) को वापस बुलाने के लिये जमकर गुहार लगाई थी, और दुख में अपने कपड़े फ़ाड़े थे। उस चित्रकार को केरल सरकार ने “राजा रवि वर्मा” पुरस्कार भी प्रदान किया था, जो कि एक तरह से राजा रवि वर्मा का अपमान ही है। यही सारे कथित प्रगतिशील और वामपंथी तसलीमा नसरीन मामले में न सिर्फ़ दुम दबाकर बैठे रहे, बल्कि इस बात की पूरी कोशिश की कि तसलीमा पश्चिम बंगाल में न आ सके और न ही उसका वीज़ा नवीनीकरण हो सके।

लेकिन चे की तस्वीरों वाले जूतों पर हंगामे ने इनके पाखण्ड को उघाड़कर रख दिया है, इससे यह भी साबित हुआ है कि “भारतीय संस्कृति और जड़ों” से कटे हुए वामपंथी और प्रगतिशील ढोंगी हमेशा “विदेशी नायकों” को अपना हीरो मानते हैं, इनकी नज़र में चे ग्वेवारा की औकात भारत माता और सरस्वती से भी ज्यादा है। इनका संदेश है कि जूतों पर चे की तस्वीर को “अपमान” माना जायेगा, लेकिन भारत माता का नग्न चित्रण “अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता” है… यह है विशुद्ध वामपंथी चरित्र…

(यहाँ इस बात से कोई लेना-देना नहीं है कि चे ग्वेवारा कितने बड़े क्रान्तिकारी थे या उनका संघर्ष कितना महान था… यहाँ मुख्य मुद्दा है वामपंथियों के दोहरे मापदण्ड…)

अब इस “देसी” वामपंथी चरित्र और सेकुलरिज़्म का एक और उदाहरण देख लीजिये… केरल में कुछ समय पहले एक प्रोफ़ेसर के हाथ जेहादियों ने काट दिये थे क्योंकि उसने कथित तौर पर परीक्षा में इस्लाम के खिलाफ़ अपमानजनक प्रश्न पूछ लिया था। हालांकि वह प्रोफ़ेसर ईसाई है और वह कॉलेज भी ईसाई संस्था (Newman College) द्वारा संचालित है (यहाँ देखें…), लेकिन फ़िर भी केरल सरकार का दबाव और मुस्लिम संगठनों का डर इतना हावी है कि कॉलेज प्रशासन ने उस अपंग हो चुके प्रोफ़ेसर जोसफ़ को “ईशनिंदा” के आरोप में बर्खास्त कर दिया [एमजी विश्वविद्यालय आचार संहिता अध्याय 45, धारा 73(7) भाग डी, ताकि प्रोफ़ेसर को किसी भी अन्य निजी कॉलेज में नौकरी न मिल सके], साथ ही बेशर्मी से यह भी कहा कि यदि मुस्लिम समाज उस प्रोफ़ेसर को माफ़ कर देता है, तभी वे उसे दोबारा नौकरी पर रखेंगे…। कॉलेज के इस कदम की विभिन्न मुस्लिम संगठनों ने प्रशंसा की है।

पहले प्रोफ़ेसर को धमकियाँ, फ़िर प्रोफ़ेसर का भूमिगत होना, इस कारण प्रोफ़ेसर के लड़के की थाने ले जाकर बेरहमी से पिटाई, दबाव में प्रोफ़ेसर का फ़िर से सार्वजनिक होना और अन्त में उसका हाथ काट दिया जाना… इस पूरे मामले पर केरल की वामपंथी सरकार का रुख वही है जो अब्दुल नासिर मदनी की गिरफ़्तारी के समय था, यानी गहन चुप्पी, वोट बैंक का नापतोल (ईसाई वोट और मुस्लिम वोटों की तुलना) और प्रशासन का पूरी तरह राजनीतिकरण…(यहाँ देखें…)।

मुस्लिम वोटों के लिए गिड़गिड़ाने, बिलखने और तलवे चाटने का यह घृणित उपक्रम हमें पश्चिम बंगाल के आगामी चुनावों में देखने को मिलेगा, जब मुस्लिम वोटों की सौदागरी के दो चैम्पियन तृणमूल और माकपा आमने-सामने होंगे… ये बात अलग है कि यही वे लोग हैं जो नरेन्द्र मोदी की आलोचना में सबसे आगे रहते हैं और हिन्दू वोट बैंक (यदि कोई हो) को हिकारत की निगाह से देखते हैं…
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चलते-चलते :- सेकुलर नेताओं ने अपने साथ-साथ प्रशासन को भी कैसा डरपोक और नपुंसक बना दिया है इसका उदाहरण मुम्बई की इस सड़क दुर्घटना मामले से लगाया जा सकता है जिसमें मरीन ड्राइव पुलिस ने कोर्ट में आधिकारिक रुप से कहा कि चूंकि टक्कर मारने वाला “हिन्दू” है और मरने वाला मोटरसाइकल सवार “मुस्लिम” है इसलिये उसे ज़मानत नही दी जाये, वरना क्षेत्र में साम्प्रदायिक तनाव बढ़ने का खतरा है…। आश्चर्य हुआ ना? लेकिन रोज़ाना होने वाली सैकड़ों सड़क दुर्घटनाओं की तरह इस मामले को नहीं देखा गया, बल्कि पुलिस ने अपने बयान में लिखित में कहा कि सुशील कोठारी को पुलिस हिरासत में रखना जरूरी है, क्योंकि उसकी जमानत से शांति भंग हो सकती है…। अब इस मामले को उलटकर देखें और बतायें कि यदि मरने वाला हिन्दू होता और टक्कर मारने वाला मुस्लिम होता, क्या तब भी मुम्बई पुलिस ऐसा “सेकुलर” बयान देती?

खैर… आप तो केन्द्र सरकार को और ज्यादा टैक्स देने के लिये तैयार रहियेगा, क्योंकि पुणे की जर्मन बेकरी ब्लास्ट केस में दो और “मासूम-बेगुनाह-गुमराह” लोग पकड़ाये हैं, जो लम्बे समय तक जेल में चिकन-बिरयानी खाएंगे, क्योंकि नेहरुवादी सेकुलरिज़्म का ऐसा मानना है कि “मासूमों” को फ़ाँसी दिये जाने पर “साम्प्रदायिक अशांति” फ़ैलने का खतरा होता है… इसी से मिलते-जुलते विचार कार्ल मार्क्स की भारतीय संतानों के भी हैं…

देश में इस प्रकार की घटनाएं और व्यवहार इसलिये होते हैं क्योंकि वोट बैंक की राजनीति और नेहरुवादी सेकुलर शिक्षा का मैकालेकरण, प्रशासनिक-राजनैतिक व्यवस्था की रग-रग में बस चुका है…। सिर्फ़ एक बार “विशाल हिन्दू वोट बैंक” की अवधारणा की कल्पना कीजिये और उसे अमल में लाने का प्रयास कीजिए… फ़िर देखिये अपने-आप देश की रीतियाँ-नीतियाँ, परिस्थितियाँ, यहाँ तक कि मानसिकता भी… सब बदल जायेंगी…।

8 COMMENTS

  1. Adarniya Suresh Dada, Bahut satik aur zakzor dene vale lekh ke liye sadhuvad….mere man me bhi kabhi kabhi is baat ko lekar kshob utpann hota hai ki kya bharat ki dharti par kranti kari(kathit mahatma ke anusar ‘aatankvadi’) paida nahi hue jo videshi kranti kariyo ki photo T-Shirt par lagai jaati hai [yaha bhartiya cricket kaptan DHONI ka udaharan dena uchit samazta hu] kya hi achchha hota ki DHONI pa.pu. Savarkar ji, ya Shahid Bhagat singh ke photo vala T-Shirt pahante [par ye log ab faishan me nahi hai, abhi to yuvraj faishan me hai]….yadi ham hi apane nayako ko bhula de to desh ko kaise pata chalega ke aazadi bina khadga aur dhal ke nahi mili thi…..JAI BHARAT…VANDE MATARAM

  2. सुरेश जी ने सत्य किन्तु बड़ी कडवी बात कह दी है.
    विदेशी नायकों” को अपना हीरो मानने वाले लोगो के लिए देवी देवताओं के अश्लील चित्र बनाये जाना तो अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता है किन्तु चे ग्वेवारा के चित्रों वाले जूतों को बेचने के कारन बिचारे गरीब की दुकान जलाना जायज / न्यायसंगत है.

  3. @ श्रीराम तिवारी जी-
    आयु में आप जैसे वरिष्ठ को मैं जवाब देना तो नहीं चाहता था, राजेश कपूर साहब ने पहले ही दिया है, फ़िर भी चन्द बातें झेल जाईये –

    1) आपने कहा – “…आप apni haisiyat dekho .chand -sooraj pr thoonkne से khud tmhi sharmshar हो rahe हो…” – मैंने कब कहा कि चे ग्वेवारा महान क्रान्तिकारी नहीं थे? चे तो महान थे ही, लेकिन भगवान के लिए उनकी तुलना भारतीय स्टाइल के वामपंथ से मत कीजिये…

    2) “…we kranti ke chir yuva hain unko jaanne ke liye aap jaise peelia rogoyon ke bs ki baat nahin aap to rss ki kayarta men itne doob gaye ki bhashai sabhyta ko bhi nahin chhoda…” मैंने चे के खिलाफ़ क्या कहा है जो आप इतना भड़क गये?

    3) जमाने भर का इतिहास और महानता के पूज्य आराधकों का बखान कर डाला, लेकिन मूल मुद्दे पर एक शब्द भी नहीं…। दोबारा लेख पढ़िये जनाब, यह लेख चे ग्वेवारा के बारे में है ही नहीं…

    4) “…aap jaise poonjipatiyon ke jr khareed gulamo…” – सर जी यदि हम पूंजीपतियों के ज़रखरीद गुलाम होते तो छोटी सी जगह पर बैठकर कलम नहीं घिस रहे होते… बल्कि सिंगूर या नंदीग्राम में जाकर माकपा कैडर में भर्ती हो जाते और टाटा से माल कमाते… या फ़िर उड़ीसा जाकर वेदांता का तो विरोध करते, लेकिन पॉस्को के खिलाफ़ चुप्पी साधे रहते… 🙂

  4. सुरेश चिपलूनकर जी ! आपने सत्य को बड़े साफ, सही ढंग से, बड़ी प्रभावी भाषा शैली में प्रस्तुत किया है. जो निहित स्वार्थों के पूरे अंधे नहीं, उन्हें सच समझ आ जाएगा.
    -चे ग्वेवारा की जूतों पर छपी तस्वीर और देवी-देवताओं के अश्लील चित्रों को लेकर वाम पंथियों, सेक्युलरीस्टों के दोहरे मापदंडों की पोल आपने जितनी अच्छी तरह से खोली है, वह प्रशंसनीय है. इनका हिदू विरोध व शत्रुता पूर्ण व्यवहार भी आपने उजागर कर दिया है.
    -आपके दिए प्रमाणों का जवाब तो तिवारी जी महाराज दे नहीं पाए, जवाब संभव भी नहीं था. अतः जितना संभव था उतनी गालियाँ ( लिखित रूप में इससे अधिक वश नहीं चला ) देकर अपनी वामपंथी असहिष्णु मानसिकता प्रदर्शित कर दी. पर मेरे अनेक वामपंथी मित्र हैं , वे तो इतने असभ्य और असहिष्णु नहीं हैं ? शायद आपके सच की चोट कुछ अधिक गहरे तक घाव कर गई और वे अपना संतुलन खो कर तर्क शक्ती गंवा बैठे. उनका ऐसा खराब रूप पहली बार देख रहा हूँ . ईश्वर उन्हें सद्बुधी दे.( पर ये ईश्वर को मानते होंगे क्या ?)
    – शांतीप्रिय हिदुओं की पग-पग पर दुर्दशा करने व देशद्रोहियों को बार-बार समर्थन, सहयोग, सुरक्षा प्रदान करने वाले वामपंथियों व ढोंगी धर्म निर्पेक्षों की दुर्नीतियों को भी आपने प्रभावी ढंग से रेखांकित किया है. शत-शत बधाई. इसी प्रकार भारतीयता के शत्रुओं के चेहरों से नकाब उघाड़ते रहिये. हमारी शुभकामनाएं.
    * सुरेश जी आपने सही जगह चोट की है. तभी तो बौखलाहट में आपको निहायत मूर्ख, घटिया मानसिकता वाला कहा गया और आपकी हैसियत बतलाने का प्रयास किया गया है. आपको सभ्य भाषा का प्रयोग करने के निर्देश जारी किये गए हैं.
    अरे सीधे-सीधे क्यों नहीं कह देते कि हिन्दुओं की ऐसे-तैसी करने वालों की करनियों, ढोंगी धर्म निपेक्षों के साम्प्रदायिक व्यवहार, गुंडागर्दी, तानाशाही व देश द्रोह के भेद न खोलो वरना…….? तोड़-फोड़ और व्यक्ती को ठिकाने लगाने वालों की क्या कमी है इनके पास. काफी पुराना अनुभव है बंगाल और केरल का. अतः सुरेश जी ज़रा संभल कर.
    – इनके भेद मत खोलो, इनके प्रती सम्मानजनक भाषा का प्रयोग करो. भारतीय संस्कृति के प्रतीकों को चाहो तो जितना मर्जी अपमानित कर लो पर वामपंथ के भगवानों के विरुद्ध एक शब्द भी कहा तो ….? यही तानाशाही, अतिवादी, असहिष्णु सोच है इन सेमेटिक सम्प्रदायों की,( वामपंथी सम्प्रदाय सहित. )
    * पुनः आपकी प्रखर लेखनी को साशुवाद एवं शुभकामनाएं.

  5. चे गुवे वेरा को आपने स्मरण किया आप धन्यवाद के पात्र हैं . जिस तरह भारत में जन्मे गाँधी जी के नाम के इंग्लॅण्ड अमेरिका रूस जर्मनी .फ़्रांस और तुर्की के अलावा भी दुनिया के कई देशो में स्टेचू या उनके नाम से महत्वपूर्ण स्थलों .चौराहों या सड़कों के नाम हैं .जिस तरह से भारत के रविन्द्रनाथ टैगोर .इंदिरा गाँधी .ज्योति बासु के नाम दुनिया के कई देशों की जनता की जुवान पर हैं .जिस तरह तिब्बत के दलाई लामा .अमेरिका के लिंकन ;फ्रांस के नेपोलियन ;ब्रिटेन की विक्टोरिया .रूस के लेनिन चीन के माओ ;वियतनाम के हो ची मिह और तुर्की के कमाल पाशा सारी दुनिया में सामान रूप से सम्मान के पात्र हैं उसी तरह लातीनी अमेरिका के चे गुवे वेरा ;क्यूबा के फिदेल कास्त्रो ;बेल्जियम की रोजा लाक्साम्वर्ग और भारत के अमर शहीद सरदार भगतसिंह और अन्य स्वधीनता senani hamari aajaadi के prena shtrot हैं .in vaastvik vibhootiyon की tulna kalpnik mithkon से karna nihayat hi moorkhtpoorn karywahi hai .अमर शहीद poojneey nahin banki anukarneey hote हैं और samaaj के agyaniyo को ateet में aise hi gyniyon ne jeevan की rah batai so we अमर हो gaye .ab आप apni haisiyat dekho .chand -sooraj pr thoonkne से khud tmhi sharmshar हो rahe हो .चे गुवे वेरा की tsveer amesha bhagt singh की kal kothri में उनके sirhane rakhi rahte thi jispr sare bhart को garv hai yadi tumhen asl nakal की pahchan nahin तो ismen kisi ka kya dosh apni ghatiya mansikta ka baar bar prdashan kane से आप jaise bagule hans nahin हो jayenge .

  6. bharat men anek aise huye hain jo dunia men pooje ja rahe ahin .ram krishn gautam gandhi shri ravishankar shree mahesh yogi shree rajneesh or e m s namboodiripad b t randive saare sansar me ek samaan aadarneey hain .usitrh इसा maseeh mohammad sahib or pop bhi are sansaar men prasiddh hain .isi trh gareebo majdooron or kisano ki shoshan mukti ke nayak shahid bhagatsing bharat men maao cheen men lenin roos men or ch-gu-vera letrin amreeka men papular hain .we kranti ke chir yuva hain unko jaanne ke liye aap jaise peelia rogoyon ke bs ki baat nahin aap to rss ki kayarta men itne doob gaye ki bhashai sabhyta ko bhi nahin chhoda .vampanth ko aapke nasihat ki jarurat nahin aap jaise poonjipatiyon ke jr khareed gulamo se च gu vera ke darshan ko samjh pana smbhav nahin hme aap se hamdardi hai .

  7. “चे ग्वेवारा पूजनीय हैं, लेकिन भारत माता और सरस्वती नहीं???”“ – by – सुरेश चिपलूनकर

    मुस्लिम वोटों के लिए जो देश में राजनीति के खेल खेले जा रहे हैं, क्या उनका सशक्त उत्तर केवल हिन्दू वोट बैंक की राजनीति ही रह गया है ?

    यह प्रथमदृष्टया दु:साहसिक (desperate) नीति प्रतीत होती है. सिधान्तिक रूप से देख-पडताल करने पर नीति उचित उतरनी चाहिए

    यह मुस्लिम बनाम हिन्दू का खेल मस्तिष्क को भाता नहीं है.

    वैसे मतदाता सब समझता है. अपना हित पहचानता है. वोट का मोल और ताकत मालूम है.

    मजहब को बीच में लाना बिलकुल अनावश्क है ?

    हिन्दू उदार है. युक्तियुक्त और उचित बात समझा सकता है.

    खेल ऐसे खेलिए की सांप मरे, पर लाठी न टूटे. हम राष्ट्रवादी है, राष्ट्रवादी सदा रहेगे.

    वन्दे मातरम. भारत माता की जय.

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