चिदम्बरम का भ्रम

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डॉ0 मनोज मिश्र

 

इस समय पूरी दुनियॉ टेक्नोलॉजी की बढ़त की चपेट में है। मामला चाहे मिस्त्र की मुक्ति की लड़ाई में इण्टरनेट की भूमिका का हो, मीडिया की पहुॅच के कारण बिहार में सुशासन की विजय का हो या विकीलीक्स के खुलासों से घायल छद्म लोक तन्त्र का, हर मामले में टेक्नोलॉजी की विजय हुई है। विकीलीक्स के ताजे खुलासे में देश के गृहमंत्री पी0 चिदम्बरम की दोहरी मानसिकता का पर्दाफास कर दिया। 25 अगस्त 2009 को अमेरिकी राजदूत टिमोथी रोमर द्वारा अपने देश अमेरिका को भेजे गये गुप्त सन्देश (222183-सीक्रेट) में गृहमन्त्री चिदम्बरम द्वारा कही गई तमाम आपत्तिजनक बातों का खुलासा हुआ है। इन खुलासों से पूरा देश भौचक एवं हतप्रभ है। इस गुप्त संदेश में चिदम्बरम के हवाले से कहा बताया गया है कि भारत की प्रगति 11-12 प्रतिशत की दर से होती यदि देश केवल दक्षिणी एवं पश्चिमी हिस्से ही होते, दक्षिण भारत और शेष भारत में विकास का काफी अन्तर है, शेष भारत विकास (दक्षिणी पश्चिमी को छोड़कर) को पीछे खींच रहा है और विदेशी राजदूत को देश के नेताओं के बजाय आम जनता से मिलना ज्यादा उचित रहेगा आदि-आदि। इन खुलासाेंं के अगले ही दिन देश की संसद में हंगामा हुआ और माननीय गृहमंत्री ने खण्डन भी कर दिया। अब भाारत वासियों के मन में है कि यदि यह बात सच है तो? गृह मंत्री चिदम्बरम ने यदि ये बाते विदेशी राजदूत के समक्ष की है तो मामला बेहद चिन्ताजनक एवं संवदेनशील है।

चिदम्बरम और चिदम्बरवादियों के मन में अगर ऐसा कुछ चल रहा है तो उन्हे भारत की सांस्कृतिक और राजनैतिक आत्मा को समझना होगा। विकास दर की इस तात्कालिक सनक के कारण देश की सांस्कृतिक विरासत, साहित्य की भूमिका, देश के इतिहास और भूगोल के लिए हुए संघर्षों, राजनैतिक आन्दोलनो, असंख्य बलिदानों तथा देश की विशालता को नजर अन्दाज करना देश के लिए शहीद हुए नायकों का अपमान है। यदि देश में केवल दक्षिण-पश्चिम भाग ही होते तो पवित्र गंगा-यमुना का संगम कहा होता? राम की अयोध्या, कृष्ण की मथुरा और शिव की काशी कहॉ होते? कहॉ होता पवित्र तीर्थ बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री और कहॉ होता पर्वतराज हिमालय? रामायण का गायन और गीता का उपदेश किस देश में हुआ होता? सूर, कबीर, तुलसी, जायसी और मीरा ने किस देश के साहित्य को समृध्द किया होता? और अगर यह सब नहीं होता तो भारत की सांस्कृतिक विरासत क्या होती? यह देश आज भी आई0टी0 के साथ-साथ राम-रहीम, गीता और रामायण के लिए पूरी दुनियॉ में जाना जाता है ऋषि परम्परा इसी देश की संस्कृति की देन है बसुदैव कुटम्बकम जिसे आजकल व्यापारिक दृष्टि से ‘ग्लोबल विलेज’ कहा जाता है। देश की कुल सांस्कृतिक विरासत में दक्षिण पश्चिम के साथ-साथ शेष भारत की अतुलनीय योगदान है।

भारत के राजनैतिक आन्दोलनों की गवाह भी यही भूमि बनी है। जिसे चिदम्बरम साहब ने देश पर बोझ समझा है। यवनों के आक्रमण से आहत विभक्त भारत को एक सूत्र में पिरोकर चन्द्रगुप्त के नेतृत्व में देश को एकजुट कर संघर्ष के लिए तैयार करने वाला नायक चाणक्य भी इसी भूभाग का था। अगर देश में केवल दक्षिणी-पश्चिमी हिस्से ही होते तो अरावली की पहाड़ियॉ चेतक की टापों की गवाह न बनी होती। अगर केवल देश में दक्षिणी-पश्चिमी हिस्से ही होते तो सन् 1857 की क्रान्ति की चिंगारी न फूटी होती और न ही झॉसी की रानी का उदय हुआ होता। समाज सुधार राजा राम मोहन राय, भगवान बुध्द, दयानन्द सरस्वती और रवीन्द्र नाथ टैंगोर ने अपना ज्ञान तथा व्यवहार का संदेश कहॉ दिया होता? क्या सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू और चन्द्रशेखर आजाद ने इसीलिए अपने प्राण न्यौछावर किये थे कि आजाद भारत के विकास वादी गृहमन्त्री भारत को एक राष्ट्र न समझकर टुकड़ों में देखे। क्या गॉधी जी ने कभी कल्पना भी की थी कि जिस राष्ट्र के लिए वे जिये और मरे वह राष्ट्र विकसित और कम विकसित हिस्सों में बॉट दिया जाये। आजाद भारत के नेता जवाहरलाल नेहरू और डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद क्या इसी आधुनिक भारत के निर्माण की बात कर रहे थे? एकात्म मानववाद के प्रणेता दीन दयाल उपाध्याय तथा समाजवाद के पुरोधा राम मनोहर लोहिया भी इसी भूभाग में जन्मे थे। लोक नायक जयप्रकाश नारायण ने सम्पूर्ण भारत के युवाओं का सम्पूर्ण क्रान्ति के लिए आह्वान किया था न कि केवल शेष भारत का। दलित चेतना के नायक कांशीराम की जन्म स्थली और कर्मस्थली भी इसी भूभाग में है जिसे चिदम्बरम जी बोझ समझते है। चिदम्बरम जी जिस दल के गृहमंत्री के रूप में देश का नेतृत्व कर रहे है उस दल की नेता की पारिवारिक विरासत का स्रोत भी यही भूभाग है और अगर यह सब नही होता तो भारत कैसा होता?

गृहमंत्री की विकास की परिभाषा समझ से परे है। समन्वित विकास का मायने हर पक्ष का विकास होता है न कि केवल एक हिस्से का विकास। हर राष्ट्र की एक आत्मा होती है और होती है उसकी एक समृध्द संस्कृति। किसी राष्ट्र का निर्माण संस्कृति का परिणाम होता है और यहीं सांस्कृतिक इकाई भारत राष्ट्र राज्य के रूप में स्थापित है। भारत पूरब-पश्चिम तथा उत्तर और दक्षिण में नहीं बटॉ है। कश्मीर से कन्याकुमारी और अटक से कटक तक भारत एक है। देश का अगर एक हिस्सा आर्थिक तौर समृध्द है तो दूसरा हिस्सा सांस्कृतिक और राजनैतिक तौर पर पुष्ट है, हर हाल में भारत एक इकाई है जिसका अगर एक हिस्सा विकास कर रहा है तो सम्पूर्ण भारत विकास कर रहा है और अगर एक हिस्सा पिछड़ा है तो यह पूरे देश के लिए चिन्ता का कारण है। इस सबके बावजूद क्या केवल विकास दर ही किसी राष्ट्र की परिभाषा होती है? क्या राष्ट्र की पहचान विकास दर से ही होती है? तो क्या जिन देशों की विकासदर कम है वे राष्ट्र रहने के काबिल नहीं? दुनियॉ का सबसे विकसित देश भी समस्याओं से जूझ रहा है। अमेरिका में भी लगभग 04 करोड़ लोग बिना बीमा के जीवन यापन कर रहे है। ये लोग अमेरिका के विकास में बाधा हो सकते है तो क्या अमेरिका यह कह दे काश! ये 4 करोड़ लोग अमेरिका में न होते, काश! अपराध ग्रस्त टैक्सास न होता और काश! अमेरिका में एक सवा करोड़ अवैध घुसपैठिये न होते। क्या मायने हैं इन सब बातो का। हर राष्ट्र आन्तरिक चुनौतियों से जूझता है। और उनसे पार पाने की कोशिश करता है। किसी देश का एक भूभाग सम्पन्न और दूसरा भूभाग कमजोर हो सकता है तो क्या सम्पन्न भूभाग ही राष्ट्र होना चाहिए? विकास की इस अन्धी दौड़ ने सांस्कृतिक और राजनैतिक विरासत को बेगाना बना दिया है।

इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता है कि दक्षिण-पश्चिम का भौतिक विकास शेष भारत की तुलना में कहीं ज्यादा है। उत्तर और उत्तर पूर्वी राज्य विकास के इस नये दौर में पिछड़ गये प्रतीत होते है। यह अचरज भरा प्रश्न है कि आजादी के बाद से केन्द्र में ज्यादातर नेहरू-गॉधी परिवार का प्रत्यक्ष या परोक्ष शासन रहा है फिर भी उत्तर प्रदेश बेहाल और बदहाल ही रहा है। इन प्रदेशों के नेतृत्व समय की परिवर्तन की आहट नहीं समझ सके और न ही विकास के नये पैमानों के अनुसार अपने को ढाल सके। इधर बिहार, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, पंजाब, और उत्तराखण्ड ने सुशासन का राज कायम किया है और अपनी विकासदर में अपेक्षित सुधार किया है। इस सच से भी इनकार नहीं किया जा सकता है सबसे ज्यादा युवा संभावनाओं वाला राज्य विकास की इस दौड़ में पिछड़ गया है। सत्ता पाने के लिए क्षेत्रीय राजनैतिक दलों के नेतृत्व ने विकास के सिवा सब कुछ किया है और राष्ट्रीय दल क्षेत्रीय दलों के राजनैतिक टोटकों के समाने असहाय सिध्द हुए है। फिर भी इन राज्यों की भूमिका को राष्ट्र राज्य के निर्माण में उपेक्षा नहीं की जा सकती है। अभी कुछ वर्षों पहले तक देश की विकास दर काफी कम थी तो क्या उसे विश्व विरादरी का हिस्सा होने का हक नहीं था। इस समय जबकि उत्तर-दक्षिण का विवाद लगभग समाप्ति पर है उस समय चिदम्बरम के यह उदगार चिन्ता का विषय है। जब देश के गृहमंत्री का विचार ही अपने देश के बारे में ऐसा हो तो अलगाववादियों से उनका अन्तर करना मुश्किल है। इन खुलासो से एक बात तो सिध्द हुई है कि टेक्नोलॉजी के इस युग में दोहरी बातों और दोहरे चरित्र का कोई स्थान नहीं है।

 

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