बच्चों का यौन शोषण कानून

निठारी काण्ड के बाद दुनिया का शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने बच्चो के साथ हुए इस घिनौने यौन अपराध और हत्याकाण्ड के विरूद्व आवाज न उठाई हो और इस पर सख्त कानून बनाने के लिये सरकार से आग्रह न किया हो। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ( एनएसी ) की अध्यक्ष सोनिया गॉधी की पहल पर सकि्रय हुए महिला और बाल विकास मंत्रालय ने पिछले वर्ष बच्चो के खिलाफ यौन अपराधो की रोकथाम करने वाले विधेयक का मसौदा तैयार कर लिया था। देश में दिन प्रतिदिन बच्चो के यौन शोषण के मामलो को गम्भीरता से लेते हुए केन्द्रीय कैबिनेट ने 3 मार्च 2011 को बाल यौन अपराध पर रोक लगाने के उद्देश्य से सख्त प्रावधानो वाले प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन एगेंस्ट सेक्सुअल ऑफेंसेंस बिल 2011 को मंजूरी दे दी। जिस में बाल यौन अपराध के लिये आरोपी को सात साल कैद तक की सजा का प्रावधान किया गया है। साथ ही दोषी पर 50 हजार रूपये का जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
इस नये विधेयक के अनुसार यदि बच्चो का यौन शोषण किसी न्यास, अधिकरण, सुरक्षा बलो, पुलिस एवं सरकारी अधिकारी, बाल सुधार गृह, अस्पताल और शिक्षण संस्थानो के प्रबंधको अथवा कर्मचारियो ने किया हो तो इसे गम्भीर अपराध माना जायेगा। तथा यौन उत्पीड़न के समय बच्चे की उम्र 12 वर्ष से कम होने या उस के मानसिक अथवा शारीरिक रूप से विकलांग होने की स्थिति में यौन शोषण का मामला और भी गम्भीर श्रेणी में आएगा। यदि यौन उत्पीड़न का शिकार बच्चा गम्भीर रूप से जख्मी हो जाये अथवा उस के दिमाग पर गहरा असर पडता है तब भी दोषी सजा दी जायेगी। साथ ही बच्चे के साथ गलत व्यवहार काने वाले आरोपी के लिये इस विधेयक में कम से कम तीन साल की कैद का प्रावधान है। कैबनेट द्वारा पारित इस नये विधेयक में 9 अध्याय और 44 धाराए शामिल है। धारा सात के अनुसार 16 से 18 वर्ष की आयु वाले युवक युवती से जुडे मामले में यदि दोनो की सहमति मिलती है तब आरोपी को कोई सजा नही होगी।
बाल यौन अपराध पर रोक लगाने के उद्देश्य से सख्त प्रावधानो वाले प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन एगेंस्ट सेक्सुअल ऑफेंसेंस बिल 2011 में मुख्य रूप से बच्चो के खिलाफ यौन अपराधो की रोकथाम पर जोर दिया गया है। इस विधेयक में इस बात का भी पूरा ध्यान रखा गया कि जॉच प्रकि्रया के दौरान बच्चा किसी तरह के मानसिक तनाव या दबाव में नही आ पाये। इस नये कानून के तहत कोई भी बच्चा विशोष तौर पर गठित बाल पुलिस इकाई अथवा स्थानीय पुलिस के पास यौन अपराध की शिकायत दर्ज करा सकता है। रिर्पोट लिखते वक्त पुलिस को आसान भाषा का इस्तेमाल करना होगा ताकि बच्चा समझ सके। दिक्कत आने पर पीड़ित बच्चे को दुभाषिए की सुविधा भी सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जायेगी। ऐसे तमाम मामलो की रिर्पोट 24 घांटे क अन्दर अन्दर पीडित बच्चे अथवा बच्ची के माता पिता को थाने में दर्ज करानी होगी और पुलिस को दर्ज करनी जरूरी होगी। पीडित बच्चे का ब्यान माता पिता अथवा अभिभावक की मौजूदगी में दर्ज करना होगां। ब्यान दर्ज करने वाला पुलिसकर्मी वर्दी नही पहन सकेगा जब कि जॉच करने वाले अधिकारी को यह सुनिश्चित करना होगा की किसी भी मौके पर आरोपी और बच्चे का आमनासामना न हो सके। मामले की के त्वरित निपटारे के लिये विशोष अदालतो में सुनवाई होगी, वह भी कैमरे के सामने। साथ ही अदालत चाहे तो ताबडतोड सुनवाई से बच्चे को राहत भी दे सतिी है। इस नये कानून में पीडित बच्चे के साथ न तो पुलिसकर्मी को आक्रामक लहजे में बात करने की इजाजत है और न ऐसे प्रशन पूछने की जिस से बच्चे का चरित्र हनन होता हो। यौन उत्पीडन के शिकार बच्चे अथवा उस के मॉ बाप की सहमति के बगैर उस की पहचान को सार्वजनिक नही किया जा सकेगा। इस नये कानून में विशोष अदालत की ओर से मामले का संज्ञान लेने के एक माह के भीतर बच्चे की गवाही रिकॉर्ड करानी पडेगी और संबंधित कोर्ट को एक साल के अन्दर बाल यौन उत्पीडन मामले का निपटारा भी रिना होगा। बच्चे को पोर्नोग्राफी से बचाने के लिये इस नये विधेयक में विशोष प्रावधान है। मीडिया, स्टूडियो और फोटोग्राफी से जुडे लोगो पर ऐसे माूलो की तत्काल रिर्पोट का जिम्मा डाला गया है। अपनी जिम्मेदारी पूरा नही करने वाले दण्ड के भागी होगे। कानून बनने पर मीडिया में ऐसी घटनाओ की रिर्पोटिग के दौरान पीडित बच्चे या उस के परिजनो की पहचान सार्वजनिक नही की जा सकेगी।
सवाल ये उठता है कि क्या केवल कानून बनने से हमारे बच्चे सुरक्षित हो गये यदि कुछ लोग ये सोचते है तो उनका सोचना एकदम गलत है। हालाकि ऐसी हरकते करने वालो की हमारे समाज में संख्या उगंलियो पर गिनी जा सकती है। पर पूरे पुरूष समाज पर किसी एक पुरूष द्वारा ये घिनौना दुष्कृत्य करने के बाद एक बदनुमा दाग तो लग ही जाता है। हमारे आस पास खास कर घरो के अन्दर किसी अपने के द्वारा ही हमारे मासूम बच्चो के साथ यौन उत्पीडन की निरंतर बती घटनाओ से ये तो स्पष्ट है कि आज हमारे बच्चे अपने ही घरो में हमारे पडौसियो के यहा और स्कूल कैब, स्कूल वैनो और स्कूलो में सुरक्षित नही है। जिन टीचरो को हम बच्चो की जिन्दगी सवारने की जिम्मेदारी देते आज उन में से कुछ टीचर बच्चो का यौन शोषण कर उन्हे जीवन भर कलंकित जीवन जीने के लिये मजबूर कर रहे है। बच्चो के साथ दिन प्रतिदिन बती यौन उत्पीडन की घटनाओ ये तो साफ साफ है की आज हम लोग पाश्चात्य सभ्यता में पूरे पूरे रच बस गये है क्यो की ऐसी घटनाए हमे पिश्चमी देशो में ही सुनने को मिलती थी। पर ये सब कुछ अब हमारे देश में भी सुनने को मिलने लगा है। हमे सोचना चाहिये और अपने घरो में आसपास और अपने खास मिलने चिलने वाले लोगो और घरेलू नौकरो पर कडी निगाह रखनी होगी। कानून अपना काम करे और हम अपने प्रति और अपने समाज के प्रति गम्भीर रहे तो काफी हद तक हम इस बुराई से अपने आप को और अपने मासूम बच्चो को सुरक्षित रख सकते है।

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