युद्ध की विभीषिका की भेंट चढ़ता बचपन

                  प्रभुनाथ शुक्ल

दुनिया में शांति सिर्फ बुद्ध के रास्ते से आएगी युद्ध से नहीं।युद्ध का सबसे बुरा प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। पूरे विश्व भर में अब तक हजारों बेजुबान मासूम युद्ध की भेंट चढ़ चुके हैं। ग्लोबल मंच पर बाल अधिकार की बात करने वाली संस्थाएं हाथ बांधे खड़ी हैं। यूक्रेन और रूस के मध्य छिड़ी जंग खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। ऐसे हालात में संयुक्तराष्ट्र संघ, यूनिसेफ और नाटो जैसी वैश्विक संस्थाओं का फिर मतलब क्या है। अभी तक रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन दुनिया के सबसे ताकतवर नेता के रूप में उभरे हैं। उनकी जिद के आगे संवैधानिक वैश्विक संस्थाएं बेमतलब साबित हुई है। दुनिया भर के मुल्कों ने पुतिन से युद्ध रोकने की अपील कि लेकिन उन्होंने किसी को तवज्जो नहीं दिया। संयुक्तराष्ट्र संघ, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय और नाटो जैसी संस्थाएं, यूरोपीय संघ सारे प्रतिबंध लगाने के बावजूद भी पुतिन को युद्धविराम के लिए नहीं मना सकीं। अमेरिकी राष्ट्रपति जोबाइडन भी यूक्रेन और रूस के मध्य नहीं आना चाहते। सिर्फ बंदरघुड़की से काम चलाना चाहते हैं जबकि यूक्रेन बर्बाद हो रहा है।

यूक्रेन और रूस की जनता कभी भी युद्ध नहीं चाहती थी। लेकिन दोनों राजनेताओं ने देश को युद्ध की विभीषिका में ढकेल दिया। संभवत है इसका एहसास ब्लादीमरी पुतिन और जेलेंस्की दोनों कर रहे होंगे। युद्ध की विभीषिका से उबरने के बाद पुतिन और जेलेंस्की के हाथ में क्या होगा इस पर भी उन्हें विचार करना होगा। क्योंकि पुतिन के फैसले के खिलाफ रूस में भी आम नागरीकों ने प्रदर्शन किया है। यूक्रेन के राष्ट्रपति की पत्नी ओलेना ने रूसी सैनिकों की माताओं से एक मार्मिक अपील की है। उन्होंने लिखा है देखिए आपके बेटे किस तरह हमारे पति, बच्चे और भाइयों का कत्ल कर रहे हैं। कोई भी मां किसी बच्चे को इस तरह कत्ल होते नहीं देख सकती। रूसी हमले में अब तक 144 से अधिक मासूम बच्चों की मौत हो चुकी है जबकि ढाई सौ से अधिक बच्चे घायल हुए हैं। युद्ध की विभीषिका का असर रूस और यूक्रेन की अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ेगा। क्योंकि यूरोपीय संघ ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं। युद्ध के खात्मे के बाद चीन और भारत वैश्विक प्रतिबधों को किनारे कर रूस कि कितनी मदद करते हैं यह भविष्य के गर्त में है।

यूक्रेन के जिन बेगुनाह मासूम बच्चों के हाथों में खिलौने, किताबें और सपने होने चाहिए उन्हें दर्दनाक मौत मिल रहीं है। रूसी हमले में उनके स्कूलों को तबाह कर दिया गया है। अस्पताल खंडहर में तब्दील हो गए हैं। मां-बाप की मौत से तमाम बच्चे अनाथ हो गए हैं। लेकिन दुनिया यह सब मौन होकर देख रही है। सेव द चिल्ड्रन की एक रिपोर्ट के अनुसार यूक्रेन के 60 लाख बच्चों का भविष्य दांव पर लगा हुआ। 464 स्कूल तबाह हो गए हैं। अस्पतालों में इलाज की सुविधा बंद हो गई। युद्ध की वजह से यूक्रेन के 75 लाख बच्चों में 15 लाख ने देश छोड़ दिया है। अभी तक युद्ध का खतरा टला नहीं है। संयुक्तराष्ट्र संघ और दुनिया यूक्रेन की बर्बादी पर कुछ नहीं कर पायी हैं। अगर यह स्थिति रूस के साथ होती तो किस तरह के हालत होते।

सेव द चिल्ड्रन रिपोर्ट के अनुसार यूक्रेन में 80 हजार बच्चे जो मां के गर्भ में है उन्हें जन्म लेना है। इस जंग की हालात में किस तरह से उन्हें मैटरनिटी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी उस स्थिति में जब अस्पताल ध्वस्त हो चुके हैं दवाओं और दूसरी सुविधाओं का अकाल है। क्या यह मातृत्व और बाल अधिकारों पर कुठराघात नहीं है। यूनिसेफ और संयुक्तराष्ट्र ने क्यों मुंह को सील लिया है। अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के युद्ध रोकने के फैसले के बाद भी युद्ध नहीं रुक रहा है। युद्ध किसी समस्या का हल नहीं। एक युद्ध भविष्य में कई युद्ध की आधारशिला रखता है।

सवाल सिर्फ यूक्रेन और रूस के युद्ध का नहीं। सीरिया अफगानिस्तान, यमन, इराक और सोमालिया जैसे देशों का भी है। यहां लाखों बच्चे युद्ध की भेंट चढ़ गए हैं। लेकिन बच्चों के अधिकारों को लेकर पूरी दुनिया मौन है। नार्वे के पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार तीन साल पूर्व यानी 2019 में 160 करोड बच्चे युद्ध के इलाकों में रह रहे थे। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार सीरिया में युद्ध के दौरान हर 10 घंटे में एक बच्चे की मौत हुई। जबकि इस दौरान 10 लाख से अधिक बच्चों ने जन्म लिया। युद्ध में 5427 बच्चों की मौत हुईं। अफगानिस्तान में साल 2018 तक पांच हजार बच्चों की युद्ध में मौत हुई। इस दौरान हजारों लोग शरणार्थी बने। लाखों की संख्या में बच्चों को पढ़ाई छोड़नी पड़ी। यहां हर 10 मिनट में एक बच्चे की बीमारी से मौत हुई। युद्ध के दौरान यहां 1427 बच्चों की मौत हुई। यहां चार लाख से अधिक बच्चे कुपोषण के शिकार हो गए । युद्ध की वजह से 20 लाख बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे है। 17 लाख बच्चों के परिवारों को विस्थापित होना पड़ा।

सोमालिया में 1991 के दौरान युद्ध के शुरुआती नौ महीने में अट्ठारह सौ बच्चों की मौत हुई। 1278 बच्चों का अपहरण हुआ। 10 में से 6 बीमार बच्चों को इलाज तक की सुविधा उपलब्ध नहीं मिल पायी। इराक में अमेरिकी सेना की कार्रवाई के दौरान साल 2003 से साल 2011 के बीच काफी बच्चों की मौत हुई। युद्ध की वजह से बच्चों को अस्पताल में इलाज तक की सुविधा नहीं मिल पायी और उनकी मौत हो गई। दुनिया भर में युद्ध ग्रस्त इलाकों में बाल अधिकार हाशिए पर हैँ। जिम्मेदार संस्थाओं की तरफ से इस मसले पर उचित कदम नहीं उठाए गए। यूनिसेफ जैसी संस्थाओं की तरफ से सिर्फ आंकड़े पेश किए गए। संयुक्तराष्ट्र संघ जैसी संस्थाओं को इस पर व्यापक रणनीति बनानी चाहिए। युद्ध क्षेत्रों में लाखों बच्चों को उनका अधिकार हासिल होना चाहिए। बाल अधिकार को लेकर दुनिया के देशों को एक मंच पर आना चाहिए। जिम्मेदार संस्थाओं को इस पर नीतिगत निर्णय लेना चाहिए।

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