चीन की बैचेनी की मतलब समझें

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-संजीव पांडेय

इस समय चीन बैचेन है। बैचेनी का कारण भारत की विस्तारवादी विदेश नीति है। इस विदेश नीति के तहत भारत ने उन देशों से दोस्ती बढ़ानी शुरू कर दी है, जो देश चीन से किसी न किसी मसले पर भीड़े है। चीन काफी बैचेने से भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की हाल ही में हुई विदेश यात्रा और बराक ओबामा का नवंबर के दूसरे सप्ताह में होने वाली दक्षिण एशिया की यात्रा पर नजर रखे है। भारतीय प्रधानमंत्री की जापान, मलेशिया, दक्षिण कोरिया, वियतनाम यात्रा की आलोचना चीनी अखबार पीपुल्स डेली कर रहा है। जबकि ओबामा की यात्रा को भी चीनी अखबार विस्तारवादी यात्रा बता रहा है। दिलचस्प बात है कि चीन अपनी सारी गतिविधियों को विस्तारवादी बताने के बजाए सहयोगी बताता है पर भारत और अमेरिका की हर गतिविधियों को अलग तरीके से व्याख्या कर रहा है।

भारत की लूक इस्ट नीति की जोरदार आलोचना पिछले दिनों पीपुल्स डेली ने की। पीपुल्स डेली ने कहा कि भारत दक्षिण एशिया में राजनीति कर रहा है। भारत दक्षिण एशिया में चीन विरोध को बढ़ा रहा है और कई मुल्कों को चीन के खिलाफ लामबंद कर रहा है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की नीति को विस्तारवादी बताते हुए पीपुल्स डेली ने कहा है कि जापान को भारत भड़का रहा है। भारत की तरह ही जापान से चीन का सीमा विवाद शुरू हो गया है। भारत में जहां अरूणाचल प्रदेश को लेकर चीन बदमाशी कर रहा है, वहीं एक जापानी द्वीप पर चीन दावेदारी जता रहा है। हाल ही में जापान ने चीन के एक नौका को पकड़ लिया। इसका विरोध चीन ने अपने मुल्क में करवाया। लेकिन चीन का मानना है कि भारत यहीं नहीं रूका। चीन का घोर विरोध दक्षिण कोरिया को भी भारत ने अपने पाले में कर लिया है। गौरतलब है कि चीन दक्षिण कोरिया का घोर विरोधी रहा है। उतर कोरिया को पूरी सहायता चीन ही अबतक देता रहा है।

वियतनाम की राजधानी हनोई में भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने वेन जियाबाओ से मुलाकात की। उन्होंने साफ शब्दों में चीन की भारत नीति की आलोचना की। उन्होंने कहा कि भारत की आलोचना करने से पहले चीन अपनी गलतियों को सुधारे। खासकर कश्मीरी लोगों को अलग वीजा देने की नीति को छोड़े, जिसमें वीजा कागज पर देकर नत्थी किया जा रहा है। साथ ही अरुणाचल प्रदेश को लेकर भी चीन अपनी दावेदारी छोड़े। भारत के इस विरोध का मतलब अब चीन समझ रहा है। चीन अब भारत की विदेश नीति को हल्के में नहीं ले रहा है। चीन के सरकारी अखबार पीपुल्स डेली में यह लिखा जाना कि जापान को भारत ने अपने पाले में लिया है, साधारण बात नहीं है। चीन ने महसूस किया है कि भारत हर उस देश को अपने साथ करेगा जिसका किसी न किसी तरीके से चीन के साथ विवाद है। चीन को पता है कि सीमा विवाद के मसले पर जापान भारत के साथ खड़ा है।

चीन की व्यापार नीति मुक्त नहीं है। इस कारण उनके व्यापारिक सहयोगी देशों को नुकसान होता है। भारत इसमें से एक है। दक्षिण कोरिया जैसे देशों को चीन से ज्यादा फायदा भारत से है। कोरिया की कंपनी पास्को को भारत के उड़ीसा में एक बड़ा प्लांट लगाने की अनुमति भारत ने दी है जो अबतक भारत का सबसे बड़ा विदेश निवेश है। इस निवेश पर भारतीय प्रधानमंत्री से दक्षिण कोरिया के नेताओं ने बात की। इस प्रोजेक्ट में आ रहे अड़ंगे को भारत ने खत्म करने का आश्वासन दिया है। भारत इस बात को समझता है कि आने वाले दिनों में दक्षिण एशिया में चीन विरोधी देशों से व्यापार को और बढ़ाना होगा ताकि व्यापार भारत के पक्ष में भी हो। चीन के साथ बेशक भारत का व्यापार चालीस अरब डालर से उपर पहुंच चुका है, पर अभी तक इस व्यापार का झुकाव चीन की तरफ है। भारतीय दवाई उद्योग की चीन के बाजार में अभी तक पहुंच नहीं है। इसका सीधा नुकसान भारत को है। चीन पर भारत मुक्त व्यापार पर दबाव डाल रहा है। चीन इसके लिए राजी नहीं है। क्योंकि भारतीय दवाई उद्योग के खुलते ही चीन को नुकसान हो सकता है।

दरअसल भारत ने चीन की विस्तारवादी विदेश नीति का जवाब देना शुरू कर दिया है। चीन जिस तरह से पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका को अपने खेमें किया है, उससे भारत की परेशानी बढ़ी है। नेपाल सीमा तक चीन ने तिब्बत स्थित लहासा से रेल लाइन बिछाने का काम शुरू कर चुका है। पहले चरण में लहासा से सिगात्से से तक रेल लाइन बिछाया जाएगा। इसके बाद इसे नेपाल सीमा तक लाया जाएगा। बाद में इसे काठमांडू तक बिछाए जाने की चीनी विस्तारवादी योजना है। इससे भारत काफी नाराज है। लंका में भी हैबेनटोंटा बंदरगाह का विकास चीन कर रहा है। लंका ने भारत-चीन विवाद का फायदा लेते हुए चीन से रक्षा सहयोग पर भी विचार शुरू कर चुका है। भारत चीन समेत अपने पड़ोसी मुल्कों की रणनीति को समझ रहा है। पाकिस्तान, श्रीलंका और नेपाल तीनों मुल्क गरीब है। इनकी अर्थव्यवस्था बुरी हालत में है। चीन इन्हें सहायता देकर अपने खेमें करना चाहते है। हाल ही में नेपाल में भारतीय राजदूत राकेश सूद पर जूता फेंके जाने की घटना को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। यह जूता माओवादियों ने फेंका जिनका नेतृत्व नेपाल के एक पूर्व मंत्री और माओवादी नेता गोपाल कर रहे थे। जबकि उस समय उसी इलाके में गए चीनी राजदूत का जोरदार स्वागत नेपाली माओवादियों ने किया था।

चीन की इस नीति की काट करते हुए भारत ने चीन की इस नीति के विरोध में मजबूत अर्थव्यवस्था वाले मुल्क जापान, दक्षिण कोरिया आदि को अपने पक्ष में करने की नीति पर चल पड़ा है। साथ ही मध्य एशिया में भी चीन को मजबूती से टक्कर देने के खेल में जुट गया है। अफगानिस्तान में भारत पहले ही अपना खेल कर चुका है। इससे चीन पूरी तरह से घबराया हुआ है। पाकिस्तान-चीन की जोड़ी भारत को अफगानिस्तान से निकालना चाहते है, पर अभी तक कामयाब नहीं हो पाए है। जबकि पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत स्थित ग्वादर में चीन द्वारा बनाए गए गवादर बंदरगाह का महत्व पहले ही भारत ने अपनी रणनीति से खत्म करवा दिया है। भारत ने ईरान स्थित एक बंदरगाह से तेहरान होते हुए सेंट्रल एशिया के अस्काबाद तक रेल लाइन पहले ही बिछवा दिया। इससे चीन द्वारा पाकिस्तान में बनाए गए ग्वादर बंदरगाह का महत्व खत्म हो गया। इस पराजय को चीन अभी तक भूल नहीं पाया है।

दिलचस्प बात है कि चीनी अखबार पीपुल्स डेली ने बराक ओबामा की दक्षिण एशिया यात्रा को भी विस्तारवादी और चीन विरोधी यात्रा बताया है। बराक ओबामा की भारत यात्रा से चीन परेशान है। चीन को लग रहा है कि भारत को मजबूत समर्थन अमेरिका देगा। क्योंकि अमेरिका भी चीन की आर्थिक नीतियों से परेशान है। बताया जाता है कि अमेरिका किसी भी कीमत पर सेंट्रल एशिया और दक्षिण एशिया में अपनी उपस्थिति रखना चाहता है। इसके लिए उसका महत्वपूर्ण सहयोगी भारत ही हो सकता है। गौरतलब है कि अमेरिका भी भारत का एक बड़ा व्यापार सहयोगी है। अभी भी भारत अमेरिकी रक्षा सामाग्री का सबसे बड़ा खरीदार है। अमेरिका भारत जैसे अपने ग्राहक को हाथ से नहीं निकलने देना चाहता है। साथ ही भारतीय मध्य वर्ग की क्रय शक्ति पर भी अमेरिका की नजर है।

8 COMMENTS

  1. @श्रीराम जी चीन का फार्मूला भारत में दो प्रदेशो में लागू किया गया था लेकिन बुरी तरह फेल हो गया है और गरीबी घटने की बजाय सुरसा के मुंह की तरह बढ़ गयी है क्योंकि एक ही फार्मूला हर जगह लागू नहीं होता भारत को भारतीय फार्मूला चाहिए लेकिन अफ़सोस आज किसी भी राजनीतिक दल के पास वो फार्मूला नहीं है लेकिन जो भी फार्मूला है कम से कम उन दो प्रदेशों में लागू फार्मूले से तो अच्छा है और चीन में भ्रष्टाचारियों को ही नहीं वैचारिक विरोधियों को भी गोलियों से भून दिया जाता है लेकिन दुःख की बात तो ये है की इतनी गोली चलने के बाद भी चीन भ्रष्ट देशो की सूची में ७८वें स्थान पर है और भारत आतंकवादियों पर भी बिना गोली चलाये ८७वें स्थान पर है लेकिन वामपंथ को भारत में ही मानवाधिकार की चिंता ज्यादा रहती है अपनी साम्यवादी तानाशाही में उसे सब ठीक लगता है अब इसका तिब्बत से बड़ा उदाहरण क्या होगा अगर आपके हिसाब से तिब्बत के लोग अपना घर और आज़ादी खो कर खुश है तो आप यहाँ क्या कर रहें है भारत छोड़े चीन में बसेरा बनाये
    नोट : अब अगर आप भ्रष्टाचारियों वाली सूची से सहमत नहीं है और इसे पश्चिमी साम्राज्यवादी देशों की हेराफेरी मानते है तो सम्पन्नता वाली सूची से भी नाम कटवाना होगा क्या आप तैयार है

  2. संजीव पाण्डेय के इस आलेख में वर्तमान दौर की भारत -चीन प्रतिस्पर्धा ही झलकती है .
    लेकिन वास्तव में मामला गंभीर है …चीन की सरकार ,जनता और मीडिया सबके सब वहां की हु जिन्ताओ सरकार {साम्यवादी}के साथ हैं .इधर भारत की जनता बुरी तरह जात -धर्म ,भाषा और क्षेत्रीयता के नाम पर बटी हुई है .इस देश के अधिकांश नेता महाभ्रुष्ट हैं .जबकि चीन में भ्रष्टाचारियों को गोलियों से भून दिया जाता है. चीन दुनिया की सम्पन्नता सूची में ९ वें नंबर पर आ गया है जबकि भारत ६७ वें नंबर पर है .
    हम ७० साल से तिब्बत के लाखों लोगों को धरमशाला और देश के दुसरे भागों में में पाल पोश रहे हैं .उधर तिब्बत की ९० फीसदी जनता चीन में शामिल होकर तरक्की के तराने गा रही है ..चीन ने अमरीका की अर्थव्यवस्था पर शिकंजा कस दिया है ..जबकि भारत की जनता भूखों मर रही है और हजारों क्विंटल गेहूं खुले में सड़ चूका है .हम अपने बारे में ज्यदा सचाई ब्यान करेंगे तो हमारे अंध राष्ट्रवादी दिग्भ्रमित शोहदे हम पर ही पिल पड़ेंगे .इस देश की अभी तो यही तस्वीर है .अकेले अमेरिकी राष्ट्रपति की अगवानी या कमान वेल्थ की मेजवानी से देश के ६७ करोड़ लोगों के दुःख दर्द दूर नहीं हो जायेंगे .चीन का विकाश जिस रस्ते से हुआ व्ही रास्ता ही लगता है भारत की तकदीर बदल सकता है.

  3. tibbat mein amaanviy kabje ke baare mein kyaa kahtaa hai chen ? bhaarat kee san 1962 se kabjaai zameen wistaar waad kaa ghinonaa roop naheen hai ? amerikaa se cheen mile to theek aur bhaarat mile to wistaar waad ? wise yah to yaad rakhanaa hee hogaa ki amerikaa cheen se kaii gunaa adhik khatarnaak saabit ho rahaa hai. kyonki amereekaa ke agent bhaarat kee sattaa par kaabij hain aur cheen ke ajent kewal do pradeshon mein. atah filhaal amerikee khatraa adhik badaa hai.

  4. टिप्पणी दो।क्षमा करें दो टिप्पणियों के लिए। ===
    ***सुरक्षा नीति ==निकटके देश मित्र मानकर नहीं बनाई जाती==
    Paradigm Shift हो चुका है।अर्थात भारतके आस पास की स्थिति में आमूलाग्र बदल आया है। ऐसी स्थिति में विचारप्रणाली और कूट नीति भी बदलनी पडेगी। नही बदलेंगे तो फिरसे चीन सीमा को भेदकर घुस सकता है। पहले प्रदेश क्लैम करेगा, बादमें घुसपैठ। विसा देना चालु कर चुका है। कश्श्मिरीयों को कागज पर वीसा देता ही है। एक सबेरे न्यूज़ आएगी कि, चीन अरूणाचलमें घुस आया है।और हमारा परदेश निर्देशित शासन झूठा आश्वासन देते रहेगा, कि खास कुछ घबराने की ज़रूरत नहीं है।
    इसके ७ बिंदू मैं आपके सामने रखता हूं। आप कृपया अपना मत और संकेत दें। (कुछ पढा है, सोचा है, निम्न )
    (१) अपने सीमांत प्रदेश में सडकोंका निर्माण सेना के शीघ्र नियुक्तिके काम आता है। हमारी अरूणाचल और J & K की सडकें कोई संतोषकारक नहीं है।१९६२ में चीनके आक्रमण ने भी हमें जगाया नहीं है।
    (२) सीमापार के निकट के देशों पर हमारा दबाव/प्रभाव आवश्यक होता है। हमारा पाक और बंगलापर क्या प्रभाव है? नेपालपर भी खास नहीं। तिब्बतपर तो हमने चीनको मनमानी करनेकी अनुमति दे दी है। दलाई को आश्रय दिया है, बस ।
    (३) पडौसी देशोंसे संबंध। पाक बंगला आप जानते हैं।
    (४) विश्व शक्तियोंसे संबंध: चीन छिपा हुआ शत्रु है। अमरिका उदासीन, रशिया से ,कोई फर्क नहीं पडता।
    (५) अपनी विश्व शक्ति के रूपमें प्रस्थापना { अपने मनमें मानने से कूछ नहीं होगा।}
    (६) सुदूर के प्रदेशोमें अपने अड्डे स्थापित करना। और अन्य देशोंपर निगरानी करना।{ कहीं भी हमारी धाक नहीं}
    (७) समुद्री सत्ता या वर्चस्व? {कहीं भी नहीं }
    जो पाठक पुस्तकें पढते हैं, अनुरोध है=> कि पण्णीकरकी, भारतीय विद्या भवन प्रकाशित “समुद्री सत्ता “पर की पुस्तक पढे। और “Politics Among Nations” by Morganthau पढें।

  5. shishir chandra जी से सहमत हूं। भारत का भाग्य है, कि हम दक्षिण, पूर्व, और पश्चिम की ओरसे समुद्र से घिरे हैं, जो हमें सुरक्षा प्रदान करते आए हैं। उत्तर में हिमालय हमारा रक्षक रहा है। मूर्खता हमारी ही थी, कि हमने इस भूमिमें पाक और बंगला खडे कर शत्रु पैदा किए। मूरख हमही थे।—वैसे सदियोंसे बाहरी शत्रुओंसे मुक्त रहे। खैबर और बोलन घटियोंसे २५०० सालतक मर्यादित शत्रु आया।
    इसलिए (ध्यानसे पढें)==> हमारी मानसिकता बडी विशाल रही, इसमें फिर हिंदुत्वकी समन्वयी विचारधाराने भी हमें गाफिल बना दिया।६२ का चीनी हमला भी(पू. गुरूजी ने बताया, तब जाने) हमें ठीक जगा ना सका। अब====हवाइ जहाज, अण्वास्त्र, मिसाइल, रॉकेट्स का युग है।हिमाला हमारी कुछ रक्षा कर पाएगा, पूरी नहीं। (जागिए!) चीन सीमापर रास्ते बना बैठा है।हमारे अरूणाचल में भी, रास्ते कहां है?(जागिए!) हमारे शासक स्विस बॅंक भरने में व्यस्त है। देशभक्त तो चुनाव हारे हुए हैं। लल्लु पंजु शासक, इतालवी दिशा निर्देश, कठपुतली प्र. मंत्री। (सचमुच भय लगता है)
    पुरानी विश्व बंधुता वाली प्रणाली नहीं चलेगी। एक ही बात में हम भागवान है, चीन १२-१४ देशोंसे घिरा है। हम ३-४। लेकिन हमारे पडोसी चीन के दोस्त है, और फिर कॉमरेड लोग भत्ता पाते हैं, चीनसे। चीन जाकर आते हैं, क्यों? क्या लेने-जाते हैं? कितनी बार? जयचंद कहींके?

  6. यह बात सही है कि चीन की पेशगी में बल पड़ा है. लेकिन यह कहना कि भारत जीतने लगा है, मन बहलाने के लिए अच्छा है. अभी भी शक्ति संतुलन एकतरफा चीन के तरफ है और भारत को उसकी बराबरी करने के लिए दसियों साल लग जायेंगे.
    भारतीय राजनेता अभी तक फिसड्डी साबित हुए हैं आशा है वो अब जागे होंगे.

  7. बिलकुल ठीक लिखा है श्री पाण्डेय जी ने. चीन अपनी सेन्य ताकत के साथ साथ अपना बाजार बढ़ाते जा रहा है. हमारे देश के प्रयासों से उसे बेचेनी होना स्वाभिक है आखिर हम उसके बाजार में कब्ज़ा करते जा रहे है.

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