चौकलेट (लघुकथा )

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अनुभव छः साल का बच्चा दूसरी कक्षा मे पढता है,थोड़ा मौलामस्त थोड़ा, शैतान और लिखने मे आलसी। अपनी मां से अजीब अजीब सवाल करता है।

एक दिन पूछा ,’’ मै बूढ़ा कब होऊंगा ?’’ उसकी मां विनीता सोचने लगी कि किसी को जवान होने की जल्दी हो ये तो समझ मे आता है पर अनुभव शायद दुनियां का पहला बच्चा है जो बूढ़ा होने का इंतजार कर रहा है।

विनीता ने पूछा ‘’बेटा तुम बूढ़ा क्यों होना चाहते हो ?’’

अनुभव ने अपना अनुभव बता दिया ‘’मम्मा, पापा को औफिस जाना पड़ता है काम करना पड़ता है। मुझे और दीदी को स्कूल जाना पड़ता है, पढना पड़ता है। दादा जी आराम से सोते हैं कोई उनसे नहीं कहता ये करो,ये मत करो चाहें जितनी देर टी.वी. देखते हैं।‘’

विनीता ने समझाया ’’बेटा, दादा जी भी बहुत पढ़े लिखे हैं बहुत साल काम भी किया है।अब रिटायर होकर आराम ही तो करेंगे।‘

अनुभव की बालबुद्धि मे ये बात कितनी घुसी ये तो नहीं कहा जा सकता, पर उसकी इस तरह की बातें सुनकर विनीता परेशान हो जाती है। कभी सोचती कि पता नहीं इस लड़के का क्या होगा !

अनुभव को पढ़ाई का क्या महत्व है इसकी बिलकुल समझ थी ही नहीं। विनीता लगकर सब याद करवा देती समझा देती, पर वो कक्षा मे कुछ लिखता ही नहीं था, लिखता भी तो आधा अधूरा। विनीता ने उसकी एक कमज़ोरी का फ़ायदा उठाने का निर्णय लिया। अनुभव को चौकलेट बहुत पसन्द हैं, सब बच्चों को पसन्द होती हैं। चौकलेट का लालाच देकर उससे कोई भी काम आसानी से करवाया जा सकता है ।स्कूल मे हर सोमवार को यूनिट टैस्ट होते हैं। विनीता ने कहा कि जब भी वो टैस्ट मे पूरे दस मे से दस अंक लायेगा, उसे बड़ी वाली चौकलट मिलेगी। अगले दिन गणित का टैस्ट था, विनीता ने अच्छी तरह तैयारी करवा दी थी। जब टैस्ट की कापियाँ जाँचने के बाद वापिस मिली तो अनुभव को दस मे से दस अंक मिले थे, पर पहले साढ़े नौ अंक दिये गये थे फिर आधा नम्बर बढा दिया गया था। विनीता ने देखा एक मामूली सी ग़ल्ती थी, पर अंतिम उत्तर पर उसका कोई असर नहीं पड रहा था। चलो, अनुभव की बड़ी वाली चौकलेट तो पक्की हो गई।

शाम को गणित की अध्यापिका का फोन विनीता के पास आया वो कहने लगीं ‘’आज अनुभव ने कक्षा मे बहुत रोना धोना मचाया।‘’

विनीता ने पूछा ‘’क्या हुआ ?’’

अध्यापिका ने उत्तर दिया ‘’मैने उसे साढ़े नौ अंक दिये थे तो बहुत ज़ोर ज़ोर से रोना शुरू कर दिया,मैने समझाया कि साढे नौ नम्बर भी बहुत अच्छे होते हैं।‘’

अनुभव ने रोते रोते कहा ‘’पता है, पर चौकलेट तो नहीं मिलेगी।‘’

फोन पर अध्यापिका और विनीता दोनो को अनुभव की बालसुलभ हरकत पर हंसी आगई।

इस धटना के बाद विनीता ने सोचा कि अनुभव को कुछ ढ़ील देना ज़रूरी है, हमेशा तो पूरे अंक लाना संभव नहीं होता है।

विनीता ने अनुभव को समझाकर कहा, ‘’ बेटा, आगे से तुम्हें पूरे 10 नम्बर लाने पर बड़ी वाली चौकलेट मिलेगी 9 नम्बर लाने पर उससे थोड़ी छोटी और 8 नम्बर लाने पर एक छोटी चौकलेट मिलेगी।‘’

7-8 हफतों तक अनुपम को कोई न कोई चौकलेट मिलती रही। विनीता को लगा उसका प्रयोग सफल रहा। अचानक एक बार अनुपम को हिन्दी मे 10 मे से केवल 2 नम्बर मिले।

विनीता ने थोडा गुस्से से डाँट कर कहा, ‘’ये क्या ? सब तो आता था, फिर लिखा क्यों नहीं ?’’

अनुपम ने मासूमियत से कहा ‘’मम्मा, कल जो अंकल आये थे वो इतनी सारी चौकलेट लाये थे,सब फ्रिज मे रक्खी हुई हैं इसलियें कुछ लिखने की ज़रूरत नहीं थी।‘’

ये सुनकर विनीता के मन मे क्या भाव आये होंगे, इसका अंदाज़ कोई भी मां लगा सकती है।

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बीनू भटनागर
मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

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