समाज

चू चू का मुरब्बा बना लोकपाल बिल

शादाब जफर “शादाब’’

छले चालीस सालो से भ्रष्ट राजनेताओ और भ्रष्ट राजनीति के कारण जो लोकपाल विधेयक कानून का रूप नही ले पाया। कुछ लोग चाहते है कि उसे हम चुटकिया बजा कर पास करा लेगे तो ये उन लोगो की भूल है। जिस अन्ना हजारे के पॉच दिन के आन्दोलन से डर कर सरकार लोकपाल व्यवस्था बनाने के लिये तैयार हो गई थी। और जिस अन्ना के पीछे पीछे देश से भ्रष्टचार मिटाने के लिये पूरा मुल्क चल पडा था आज वो अन्ना हजारे इस लोकपाल बिल के मुद्दे पर अकेला पडता नजर आ रहा है। हर दिन उभरने वाले विवाद लोकपाल समिति और उस के सदस्यो की साख को प्रभावित कर रहे है। बयानो और विवादो की ऐसी झडी लगी है कि अन्ना हजारे जैसे सीधे सादे साफ छवि वाले व्यक्ति को भी अपनी छवि और चरित्र बचाने क लिये संघर्ष करना पड रहा है। वही आज ये सारा का सारा घटनाक्रम एक ऐसी पहली बनता जा रहा है जिस का हल देश की 121 करोड जनता के लिये भी अबूझ पहेली बन गया है। बाबा रामदेव के आन्दोलन के पहले तक तो सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था। अन्ना के जन आन्दोलन के चलते सरकार झुकने और लोकपाल के मुद्दे पर कमजोर भी पडती और अन्ना सरकार पर हावी नजर आ रहे थे पर बाबा रामदेव के आन्दोलन को सरकार ने जिस प्रकार दमनकारी नीति से कुचला उससे जहॉ सरकार का हौसला बा वही अन्ना की अप्रत्याशित सफलता के बावजूद सरकार मजबूत और अन्ना कमजोर पडते नजर आने लगे। एक लोकतांत्रिक आन्दोलन जो हमारे रातनैतिक, प्रशासनिक और सामाजिक तंत्र का कायाकल्प करने की उम्मीद जगा रहा था आज वही आन्दोलन किसी कटी पतंग की तरह प्रतीत हो रहा है। आने वाले दिनो में ये आन्दोलन किस दिशा में जायेगा आज शायद खुद अन्ना हजारे भी न बता पायें।

दरअसल अन्ना और सरकार के बीच जिन सवालो को लेकर ठनी है वो कुछ इस प्रकार है। क्या प्रधानमंत्री, न्यायपालिका और संसद के अन्दर कार्यकलापो को लोकपाल के दायरे लाया जाना चाहिये ? क्या सीवीसी को लोकपाल के तहत रखा जाना चाहिये ? क्या संयुक्त सचिव से ऊपर के अधिकारी ही लोकपाल की जॉच के दायरे में आने चाहिये और भ्रष्टाचारियो की संपत्ति जब्त करने के क्या तरीके होने चाहिये ? कुछ दिन पहले केंन्द्र सरकार ने लोकपाल विधेयक पर देश के सभी राज्यो के मुख्यमंत्रियो और विपक्षी राजनीतिक पार्टियो से इन सवालो पर उन की जब राय जाननी चाही तो भाजपा और बसपा सहित कुछ दलो ने इस मुद्दे को चर्च के दौरान ये कह कर टाल दिया कि जब ये बिल संसद में रखा जायेगा वो तभी अपनी राय दे देगे। देश के तमाम राजनीतिक दल और राजनेता लोकपाल बिल पर साफ साफ राय देने से बच रहे है हिचक रहे है इस से साफ लगता है कि कांग्रेस और कुछ सांसद और देश की राजनैतिक पार्टिया देश में चल निकली भ्रष्टाचार की गंगा को रोकना नही चाहता। क्यो कि हमारे देश में आज एक आम आदमी के चुनाव जीतकर सांसद बनने के कुछ ही दिनो में उस के पास अकूत सम्पत्ती हो जाती है। और वो करोडपति अरबपति बन जाता है। उस के रिश्तेदार भाई बहन सब के सब दौलत से खेलने लगते है ये सब क्या है। आज समाज सेवा का छद्वम आवरण ओने वाले साम, दाम, दण्ड, भेद की चाण्क्य नीति अपना कर सांसद बनने वाले पैसे के कुछ लालची सांसदो को वतनपरस्त कतई ना समझा जाये क्यो कि ये सब के सब आज दौलत परस्त हो चुके है, वेतनपरस्त हो गये है। अब इन सांसदो से देश का विकास नही बल्कि विनाश हो रहा है।

लोकपाल विधेयक पर संयुक्त मसौदा समिति पर सरकार और अन्ना के बीच मतभेद कम होने की बजाये और ब गयें। हालाकि दोनो पक्षो ने तीखे मतभेदो और गम्भीर आरोपोप्रत्यारोपो की खिची तलवारो को फिलहाल अपनी अपनी मयानो में तो रख लिया। लेकिन विधेयक के प्रमुख मुद्दो पर अपने अपने रूख पर टस से मस नही हुए। एक ओर जहॉ सरकार का अन्ना पर ये आरोप है कि अन्ना लोकपाल बिल के बहाने सरकार के समानांतर सरकार खडी करना चाह रहे है वही अन्ना सरकार पर आरोप लगे रहे है कि लोकपाल का मलतब समानांतर सरकार नही है। सरकार झूठ बोलकर लोगो में भ्रम फैला रही है। अन्ना अब ये भी कह रहे है कि जंतर मंतर के आन्दोलन को रोकने के लिये सरकार की ओर से अधिसूचना जारी कर उन की मांगे मानना सरकार की महज एक चाल थी। पर अब सरकार अपने वादे से मुकर गई। आज केंन्द्र की सरकार भ्रष्टाचारी, दमनकारी और अत्याचारी हो चुकी है। देश में फैले भ्रष्टाचार के कारण सरकार को विकास के साथ साथ आम आदमी और कमर तोड मंहगाई पर नियंत्रण और लोकपाल विधेयक का कोई ख्याल नही रहा उसे ख्याल है अपने सहयोगी दलो के भ्रष्ट नेताओ को कानूनी शिकंजे से बचाने का। सरकार घोटालो के मायाजाल से बाहर निकल कर उस गरीब के बारे में भी सोचने के लिये तैयार ही नही जिस गरीब ने अपनी रहनुमाई के लिये संसद भवन में इसे कुर्सी दी मान सम्मान दिया।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिॅह जी ने 2004 में केन्द्र की सत्ता सभालते समय लोकपाल व्यवस्था बनाने का वायदा किया था, लेकिन उनकी सरकार का पूरा एक कार्यकाल गुजर गया और सरकार के दूसरे कार्यकाल के भी दो वर्ष पूरे होने के बाद भी उन्हे अपने वादे और लोकपाल विधेयक की याद नही आई। सरकार की ऑख लोकपाल बिल पर अब भी नही खुलती। दूसरे कार्यकाल में लोकपाल विधेयक तब सतह पर आया जब घपलोघोटालो के कारण सरकार को चेहरा छुपाना मुश्किल हो गया। अन्ना हजारे के इस जन आन्दोलन को भरपूर सर्मथन मिला। पर जिन लोगो के सर्मथन से इस आन्दोलन को और बल मिलता वो लोग इस आन्दोलन में दूर दूर भी नजर नही आये जैसे कि अरुंधति राय, मेघा पाटेकर, सुन्दरलाल बहुगुणा, वृंदा करात जैसे समाजसेवी लोगो को अन्ना के साथ अनशन पर जरूर बैठना चाहिये था। वही कुछ राजनीतिक लोगो ने अपना अपना वोट बैंक बनाने के उद्देश्य से अन्ना के करीब आना चाहा उन लोगो को अपने मंच से अन्ना ने सियासी रोटिया सेंकने नही दी।

बाबा रामदेव के निकट सहयोगी बालकृष्ण के खिलाफ फर्जी पासपोर्ट मामले में सीबीआई की एफआइआर के बाद अब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) बाबा रामदेव के खिलाफ फेमा (विदेशी मुद्रा प्रबंधन कानून) के तहत कार्यवाही में जुट गया जिस के तहत उनकी विदेशी संपत्तियों के साथ विदेशी मुद्रा में किये गये लेन देन की भी जॉच की जा रही है। बाबा पर खार खाई केंन्द्र सरकार इस वक्त बाबा पर पूरा िशंकजा कसना चाहती है। वित्त मंत्रालय को बाबा के खिलाफ शिकायत की आड़ लेकर सरकार द्वारा बाबा के खिलाफ जॉच शुरू की जा चुकी है। इस वक्त ईडी और सरकार के निशाने पर बाबा की दिव्य फार्मोसी है। जो सालाना करोडो रूपये की आयुर्वेदिक दवाईया विदेशो को निर्यात करती है। बाबा पर सरकार ये आरोप लगा रही है कि दिव्य फार्मेसी द्वारा विदेशो में निर्यात की गई दवाओ की कीमत जानबूझ कर काफी अधिक दिखाई जाती है। जिस की आड़ में बाबा विदेश में जमा अपने काले धन को वापस सफेद कर लेते है। ईडी अब तक दिव्य फार्मेसी द्वारा विदेशो में भेजी दवाओ का विस्तृत ब्योरा और आय की जानकारी भी बाबा से मांगने की तैयारी कर रही है। यही नही ईडी बाबा रामदेव की पतंजलि योगपीठ द्वारा कितने शिविर विदेशो में लगाये गये व इन से कितनी आमदनी हुई इस भी जॉच करने में जुट गई है। कल तक बाबा के गुणगान गाने वाली सरकार और उस के मंत्री मुझे लगता है कि आज सत्ता के अंहकार में पूरी तरह चूर है। पर जिस विचार धारा को ये सरकार जन्म दे रही है हो सकता है कि आने वाले समय में सत्ता हाथ से खिसक जाने के बाद जिस भंवर में आज बाबा रामदेव फंसे है कल कांग्रेस और उस के मंत्री फंस जायें।

16 अगस्त को अन्ना ने लोकपाल बिल को लाने के लिये एक बार फिर से अनशन का ऐलान किया है। वही बाबा रामदेव ने दिल्ली पहॅुच कर ये ब्यान दिया कि उनके और अन्ना के बीच कोई मतभेद नही का जवाब अन्ना ने ये कह कर दे दिया कि रामदेव और उनके बीच कुछ मतभेद है। सरकार के साथ ही अन्ना ने भी बाबा को जोर का झटका धीरे से दे दिया है। दूसरी ओर बाबा रामदेव और बालकृष्ण की सरकार ने कुंडली खंगालनी शुरू कर दी है दोनो बाबाओ ने अपनी ट्रस्टो की संपत्ती की घोषणा के साथ जमीन, पासपोर्ट और हथियारो का ब्योरा तो दे दिया परन्तु अपनी कंम्पनियो व अपनी अपनी संपत्ताी की घोषणा अभी तक नही कि जिस से साफ साफ जाहिर है कि काले धन पर सरकार से जवाब मागंने वाले आज खुद ही काले धन के मुद्दे पर सवालो के घेरे में आ गये है।