गुजरात में ईसाइयत को सामाजिक आधार प्रदान करा रहा है टाईस्म ग्रुप

2
266

गौतम चौधरी

गुजरात के लिए 31 दिसंबर, सन 2010 की सबसे बडी खबर संयुक्त राज्य अमेरिका के किसी शहर में रहने वाले नॉबल पुरस्कार विजेता श्रीमान बेंकटरमण रामकृष्ण ने गुजरात के मुख्य मंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलने के प्रस्ताव को ठुकराया, यह है। मान्यवर रामकृष्ण ने मोदी से नहीं मिलने का कारण गोधरा दंगा में मोदी के दगादार छवि का होना बेताया है। हालांकि यह खबर टाईम्स ऑफ इंडिया के अहमदाबाद संस्करण के सातवें पन्ने पर छपने मात्र से इसकी अहमियत कम नहीं हो जाती है। टाईम्स के संवाददाता भरत याज्ञनिक ने अपनी पूरी खबर में थोडा व्यक्गित और थोडा अखबार का भी मनतव्य जोडा है लेकिन खबर में साबा सोलह आने दम है। कम से कम अहमदाबाद के लिए टाईम्स ऑफ इंडिया अंग्रेजी का सबसे अभिजात्य अखबार माना जाता है। मैं विगत एक साल से इसे देख रहा हूं। मतलब की खबर होती है तो पढता भी हूं लेकिन मैंने आजतक इस अखबार में हिन्दुत्व की कोई सकारात्मक खबर नहीं पढी है। इस एक साल में मुझे ऐसा लगा कि टाईम्स के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधि कोई खबर नहीं होती है। बीते दिनों, तारीख याद नहीं है विश्‍व हिन्दू परिषद् नामक संगठन का एक नकारात्मक समाचार भी मैंने इसी अखबर में पन्ने पर देखा। उसे पढा भी था। हलांकि दैनिक सामचार पत्र के संवाददाता ने कोई गलत नहीं लिखा था लेकिन इस खबर को देखकर ऐसा लगता था कि उसे किसी खास प्रयोजन से छापा गया है।

इधर सन 2002 के दंगों के बाद से इस अखबर ने मानों एक अभियान ही चला रखा हो। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को अमेरिका आने से मना किया, मोदी पर दबाव बढा, जाकिया जाफरी को न्याय नहीं, विषेष जांच दल के सामने मोदी प्रस्तुत, मोदी से 09 घंटे की पूछताछ आदि आदि न जोन कई ऐसी खबरें इस अखबार ने चलायी जिससे मोदी की नकारात्मक छवि लोगों के सामने आयी। विगत एक वर्ष के दौरान मोदी के सकारात्मक पक्ष पर इस अखबर ने शायद ही कोई टिप्पणी प्रस्तुत की हो। टाईम्स ऑफ इंडिया ने संत असीमानंद को भी एक गुंडा के रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन इसी अखबार ने उलगाववादी विनायक सेन को नायक बनाने में अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोडा। विनायक पर कवायद जारी है। माननीय न्यायालय की लगातार अवमानना हो रही है। विनायक के समर्थक कहे जाने वाले लोग सडकों पर उतर रहे हैं और टाईम्स जैसे अखबार विनायक जैसे घुर देषद्रोहियों के लिए प्रथम पन्न समर्पित कर रहा है। विगत एक साल के अध्यन से मैंने यह जाना और माना भी कि सचमुच टाईम्स ऑफ इंडिया की पूरी रिपोर्टिंग एक खास संप्रदाय को संवतिर्धत करने और कॉरपोरेट व्यापार को संरक्षण प्रदान करने के लिए हो रही है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रधान मोहन राव भागवत विगत दिनों बडोदरा आए। उन्होंने एक सार्वजतनक सभा को संबोधित भी किया, लेकिन टाईम्स में कोई खबर नहीं बनी। आलतू फालतू पर अपना पन्ना जाया करने वाला यह अखबार दुनिया के सबसे बडे संगठन के अगुआ का समाचार तक नहीं छापा। इसे क्या कहा जाये? मेरी दृष्टि में तो यह पूर्वाग्रह की पराकाष्ठा के अलावे और कुछ नहीं है। बीते तीन चार दिनों पहले भारतीय विचार मंच गुजरात प्रदेष ने भ्रष्टाचार पर बोलने के लिए सुब्रमण्यम स्वामी को बुलाया था। स्वामी बोले और चले भी गये। टाईम्स में खबर नहीं छपी। अब इस अखबार को जन चेतना का प्रतिनिधि कैसे कहा जा सकता है। फिर यही लोग दिल्ली में जाकर हल्ला मचाते हैं और कहते हैं कि हमें लोकतंत्र का चौथा खुंटा ठोकना है। बतावो कहां ठोकूं। न ठोकने दोगे तो लोगों की वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार का नगाडा बजाने लगते हैं। अब इन्हें किसने अधिकार दिया कि ये लोगों की अगुआई करें और वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का ढिढोरा पीटे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्यक्रम हो तो छोटा कॉलम भी नहीं लेकिन तिस्ता जी को छींक आयी इसके लिए पूरा पन्ना समर्पित। किसी को धमकाना हो तो दे ताली लेकिन समाज में अच्छा काम हो रहा है इसके लिए कोई मजाल है कि टाईम्स ऑफ इंडिया में कुछ लिख लेने की जुर्रत करे। आजकल बिहार के एक पत्रकार वहां डेक्स पर काम करते हैं। एक बिहारी संबंधी उनसे मिलने गया। उन्होंने मिलने से मना कर दिया। बाद में उन्होंने उसे फोन कर बताया कि अगर प्रबंधन जान जाये कि कोई संघ का कार्यकर्ता उससे मिलने अया था तो तुरन्त उसकी छुट्टी कर दी जाएगी। गजब की तानाषाही है। मजाल है कि कोई इस तानाषाही के खिलाफ हल्ला बोले।

एक घटना और, जिसका उल्लेख करना यहां ठीक रहेगा। विगत दिनों कई खबर आयी कि गलत शपथ-पत्र प्रस्तुत करने को लेकर नरोडा पाटिया कांड के एक आरोपी ने गुजरात बार कॉन्सिल को एक आवेदन देकर कहा कि मुकुल सिन्हा एंड कंपनी के वकालत करने के अधिकार से बंचित किया जाये। यह खबर टाईम्स ने मात्र एक कॉलम में निबटा दिया लेकिन मुकुल के गिरोह उक्त आरोपी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने वाले हैं उसके लिए इस अखकार ने कुल चार कॉलुम खर्च किये। बाद मे पता चला कि यह खबर उक्त अभियुक्त को धमकाने के लिए प्लांट किया गया था। टेलीग्राफ के एक मित्र बता रहे थे कि टाईम्स ग्रुप में खबर को सही स्थान दिलाने के लिए बाकायदा एक कंपनी का गठन किया गया है। जिसे खबर छपवानी है वह उस कंपनी से बात करे फिर पैसा चुकाए और अपनी खबर छपवाये।

विगत एक साल में इतने अनुभव हुए जिसकी व्याख्या के लिए न तो मेरे पास समय है और न ही उतना स्थान। मैं पूरी कटिंग रखा हूं। चाहूं तो प्रत्येक खबर की मीमांसा प्रस्तुत कर सकता हूं लेकिन यह यहां के लिए जायज भी नहीं है। अब इस विषय पर जरा सोचनी चाहिए कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है? बातें साफ है, टाईम्स ऑफ इंडिया को संसाधन उपलब्ध कराने वाली संस्था भारत के हितचिंता के लिए नहीं अपितु भारत को बरबाद करने के लिए खडी की गयी है। उस संस्था को ईसाई धर्म के प्रचार प्रसार के लिए बनाया गया है। इस बात को न तो हिन्दू अभिजात्य समझने को तैयार है और न ही मुस्लमान। तिस्ता हों या मुकुल भाई, विनायक हों अरविन्द राजखोवा, माओवाद विचारक वारवरा राव हो या फिर अरविन्द सिन्हा। सच मानिए ये सारे के सारे लोग ईसाई हैं और भारत में ईसाइयत को बढावा देने के लिए ईसाई संगठनों के द्वारा खडे किये गये व्यक्तित्व हैं। कोई अध्यन करने वाला जिज्ञासू युवा चाहे तो रांची और अहमदाबाद जैसे स्थानों पर जाकर इसका अध्यन कर सकता है। इससे ईसाइयत के षडयंत्र का पता चलेगा।

अंत में एक बात और जो संस्था गुजरात विद्यापीठ में गुजरात सरकार के खिलाफ गतिविधियों के लिए पैसा खरच रही है वही संस्था पानी के सवाल पर आदिवासियों को उकसा रही है। उसी संस्था के लोग तटवर्ती क्षेत्र के मछुआरों को भडका रहे हैं। वही संस्था गोधरा दंगे के एक्टीविस्टों को आर्थिक सहायता प्रदान कर रही है। वही संस्था उगाही माफिया सोहराबुद्दीन के मामले को सुर्खियां दिलाने के लिए काम कर रही है और वही संस्था गुजरात में मारी गयी लस्कर की आतंकवादी इसरत को देषभक्त साबित करने के लिए लॉबिंग कर रही है।

इन तमाम उठापटक को खासकर गुजरात में नरेन्द्र भाई के कार्यकाल से जोड़कर देखा जाना चाहिए। जब से नरेन्द्र भाई सत्ता में आये तभी से यहां सही ढंग से ईसाई गतिविधियों पर लगाम लगा है। इस बात से ईसाई नेतृत्व खफा है और नरेन्द्र भाई की सरकार को अस्थिर करने के कोई भी मौके को अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता। सारे कुराफात की जड अहमदाबाद का वह चर्च है जहां एक वृध्द फादर विरजते हैं। अगर इसके पीछे ऐसी बात नहीं होती तो फिर वह फादर जाकिया जाफरी के मामले में सक्रिय क्यों होता? विगत एक साल के दौरान मैंने जो अध्ययन किया उससे यही लगा कि गुजरात के उठा-पटक के पीछे न तो हिन्दू का हाथ है और न ही मुस्लमानों का। यहां के सारे षड्यंत्र की जड़ में ईसाई संगठन काम कर रहा है। जिसका काम हिन्दू और मुस्लमान दोनों को आतंकी साबित करना है। जिसे टाईम्स ऑफ इंडिया जैसा माध्यम समूह सामाजिक आधार प्रदान करने के लिए अपना पूरा का पूरा पन्ना समर्पित किये हुए है।

2 COMMENTS

  1. गौतम चौधरी जी आपका अध्ययन आँखें खोलने वाला व देश हित में किया गया सही दिशा में अत्यंत महत्व का कार्य है. देश भर में चल रहे अनेक पश्चिम प्रेरित ईसाई षडयंत्रों को समझने के लिए इस प्रकार के अनेक प्रयास बड़े धैर्य पूर्वक करने की आवश्यकता है. इस महत्वपूर्ण लेख हेतु साधुवाद.

  2. गौतम जी
    टाइम्स नाऊ देखते हैं क्या… अर्नब गोस्वामी को देखियेगा कभी… शक होता है कि ईसाई या जेहादी तो नहीं है वह? या उसका बाप…

Leave a Reply to Suresh Chiplunkar Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here