जलवायु परिवर्तन और ऋतुचक्र में गड़बड़ी के कितने भयावह परिणाम निकल सकते हैं, इसका उदाहरण इस साल का मानसून है जो सितम्बर में भी डरा रहा है। पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र—हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख—में रिकार्ड तोड़ वर्षा, बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने की घटनाओं ने भारी तबाही मचाई। अगस्त में लद्दाख में सामान्य से 930 प्रतिशत अधिक वर्षा दर्ज की गई जबकि उत्तर भारत में औसत वर्षा 1200 प्रतिशत तक बढ़ी। इन आपदाओं में 100 से अधिक लोग मारे गए, अनेक लापता हैं। उत्तराखण्ड से जम्मू-कश्मीर तक तो तबाही हुई ही, दिल्ली, महाराष्ट्र और पंजाब जैसे राज्यों में भी आपदा का दृश्य है। इसका मुख्य कारण अरब सागर से चलने वाले पश्चिमी विक्षोभ और हिन्द महासागर से आने वाले मानसून की टक्कर मानी जा रही है। वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि भविष्य में ये स्थितियाँ और बढ़ेंगी जिससे आपदा प्रबंधन के लिए नयी चुनौतियाँ खड़ी हो गई हैं।
वैज्ञानिक विश्लेषण बताते हैं कि इस जलप्रलय का कारण पश्चिमी विक्षोभ और बंगाल की खाड़ी से आने वाली मानसूनी हवाओं की भिड़ंत है। सामान्यतः पश्चिमी विक्षोभ शीतकाल में सक्रिय रहते हैं, किंतु जलवायु परिवर्तन ने उन्हें मानसून ऋतु में भी सक्रिय कर दिया है। ये भूमध्य सागर से उत्पन्न निम्न दबाव प्रणालियाँ हैं, जो उपोष्णकटिबंधीय जेट धारा के साथ पूर्व की ओर बढ़ती हैं और शीतकाल में वर्षा कराती हैं। मानसून काल में सामान्यतः यह जेट धारा उत्तर की ओर खिसक जाती है, जिससे विक्षोभ सीमित रहते हैं किंतु 2025 में स्थिति उलट गई। मौसम विभाग के अनुसार जून से अगस्त तक कुल 15 पश्चिमी विक्षोभ दर्ज हुए जबकि सामान्यतः इनकी संख्या दो से अधिक नहीं होती। यह असामान्य वृद्धि जलवायु परिवर्तन का ही परिणाम है।
मानसून बंगाल की खाड़ी से नमी से भरी हवाएं लाता है और निम्न दबाव की रेखा बनाता है। जब पश्चिमी विक्षोभ इससे टकराते हैं तो वायुमंडल में नमी का तीव्र संघनन होता है, परिणामस्वरूप अचानक भारी वर्षा, बादल फटना और त्वरित बाढ़ आती है। अगस्त 2025 में लद्दाख की अतिरिक्त वर्षा तथा उत्तरकाशी के धराली गांव में बादल फटना इसी संनादन का प्रत्यक्ष परिणाम था। हिमालय की ऊँचाई इस प्रक्रिया को और प्रबल करती है। मौसम विभाग ने 28 अगस्त 2025 की रिपोर्ट में इस टक्कर को उत्तर भारत की भीषण बाढ़ का प्रमुख कारण बताया।
विशेषज्ञ मानते हैं कि आर्कटिक और पश्चिमी एशिया की असामान्य ऊष्मा ने उपोष्णकटिबंधीय जेट धारा को अस्थिर कर दिया है, जिसके कारण पश्चिमी विक्षोभ मानसून महीनों तक सक्रिय बने रहते हैं। रीडिंग विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक किरण हंट के अनुसार 2025 में पश्चिमी विक्षोभ सामान्य से कहीं अधिक थे, जो ‘‘मानसूनी पश्चिमी विक्षोभ’’ की प्रवृत्ति का संकेत है। आईआईटी मुंबई के प्रोफेसर रघु मुर्तुगुद्दे मानते हैं कि ये प्रणालियाँ पश्चिम एशिया की ऊष्मा वृद्धि से प्रेरित हैं।
जलवायु परिवर्तन से वायुमंडल की नमी धारण क्षमता भी बढ़ी है। क्लॉसियस-क्लैपेरोन समीकरण के अनुसार, तापमान में प्रत्येक एक डिग्री वृद्धि से नमी लगभग सात प्रतिशत बढ़ जाती है। यही अतिरिक्त नमी पश्चिमी विक्षोभ-मानसून टक्कर को और अधिक घातक बना रही है। आर्कटिक ऊष्मा से ध्रुवीय जेट धारा अधिक लहरदार हो गई है, जो उपोष्णकटिबंधीय जेट धारा को प्रभावित करती है। परिणामस्वरूप, सर्दियों में विक्षोभ घट रहे हैं और मानसून में बढ़ रहे हैं। हिमालय में हिमनद पिघलने से झीलों का आकार 40 प्रतिशत तक बढ़ चुका है, जिससे हिमनदीय झील फटने का खतरा कई गुना बढ़ गया है।
वैज्ञानिक अध्ययनों ने 15 पश्चिमी विक्षोभों को जलवायु परिवर्तन का प्रत्यक्ष परिणाम बताया। मौसम और जलवायु गतिशीलता (2024) में 70 वर्षों के आँकड़ों से पश्चिमी विक्षोभ के मौसमी बदलाव की पुष्टि हुई थी। नेचर पत्रिका ने हिमालयी मानसून की अवधि में हुए बदलाव को ताप वृद्धि से जोड़ा और अमेरिकी भूभौतिकी संघ की रिपोर्ट ने पश्चिमी विक्षोभ की बढ़ती तीव्रता का संबंध जलवायु परिवर्तन से स्थापित किया। भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान ने भी इस पर विस्तृत समीक्षा दी। वैश्विक मॉडल (सीएमआईपी-6) अनुमान लगाते हैं कि ताप वृद्धि से मानसूनी वर्षा 5.3 प्रतिशत प्रति केल्विन बढ़ेगी।
पश्चिमी विक्षोभ और मानसून की टक्कर नई नहीं है पर इसकी आवृत्ति व तीव्रता हाल के दशकों में कई गुना बढ़ी है। जून 2013 की केदारनाथ आपदा इसी टकराव से हुई, जब 400 प्रतिशत अतिरिक्त वर्षा ने हजारों लोगों को प्रभावित किया। जुलाई 2023 में हिमाचल-उत्तराखंड में ऐसे ही संनादन से 223 मिमी वर्षा दर्ज हुई। आँकड़ों से स्पष्ट है कि पहले मानसून में विक्षोभ बहुत दुर्लभ होते थे किंतु 2000 के बाद लगातार बढ़ रहे हैं। 2025 की घटनाएँ इस प्रवृत्ति का चरम उदाहरण हैं।
आईपीसीसी और डब्ल्यूएमओ की रिपोर्टों के अनुसार सन् 2100 तक भारत में मानसूनी वर्षा लगभग 20 प्रतिशत बढ़ सकती है किंतु यह वृद्धि अत्यधिक अनियमित होगी। हिमालयी क्षेत्र में चरम वर्षा सूचकांक दोगुना हो सकता है और हिमनदीय झील फटने का खतरा कई गुना बढ़ जाएगा। कुछ मॉडल अनुमान लगाते हैं कि पश्चिमी विक्षोभ की संख्या घट सकती है, लेकिन उनकी तीव्रता विशेष रूप से मानसून काल में बढ़ेगी। डब्ल्यूएमओ ने अनुमान व्यक्त किया है कि 2025-2029 के बीच 1.5 डिग्री ताप वृद्धि पार होने की 70 प्रतिशत संभावना है, जिससे हिमालयी आपदाएँ और भयावह होंगी। हिमालय, जिसे एशिया का ‘‘जल-स्तंभ’’ कहा जाता है, तेजी से संकटग्रस्त हो रहा है। हिमनदों के पिघलने से 2 अरब से अधिक लोगों की जल आपूर्ति, कृषि और आजीविका प्रभावित होगी। अनियमित पश्चिमी विक्षोभ और मानसून का मिलन बाढ़ और सूखे दोनों परिस्थितियाँ उत्पन्न करेगा जैसा 2025 में देखा गया।
इस संकट से निपटने के लिए ठोस कदम आवश्यक हैं। कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित मौसम पूर्वानुमान, हिमनदीय झील फटने की निगरानी, बाढ़ अवरोधक संरचनाएँ, वन संरक्षण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी, नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार और पेरिस समझौते का पालन जरूरी है। साथ ही हिमालय में अवैध निर्माण व खनन पर सख्त रोक, स्थानीय समुदायों की सहभागिता तथा विश्व वन्यजीव कोष की हिमनद संरक्षण परियोजनाएँ भी महत्त्वपूर्ण हैं।