नारियल तेल है मधुमेह का इलाज

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डॉ. राजेश कपूर, पारंपरिक चिकित्सक

एक अमेरिकी चकित्सक ने गहन खोजों से साबित किया है कि नारियल तेल का नियमित सेवन करने से मधुमेह रोगियों कि सभी समस्याएं सुलझ सकती हैं. मधुमेह रोगी दो प्रकार के हैं. एक का स्वादु पिंड या पेनक्रिया खराब होने के कारण इन्सुलन नहीं बना पता और दुसरे प्रकार के रोगियों के कोष इंसुलिन को ग्रहण नहीं कर पाते. मधुमेह के रोगी के कोष इंसुलिन रेजिस्टेंट होजाने और इंसुलिन को ग्रहण न करने के कारण ग्लूकोज़ या शर्करा ऊर्जा में परिवर्तित नहीं पाती. ऊर्जा या आहार के अभाव में रोगी के कोष मरने लगते हैं. यही कारण है कि मधुमेह रोगी को कोई भी अन्य रोग होने पर खतरनाक स्थिति बन जाती है , क्योंकि उसके कोष तो आहार के अभाव में पहले ही मर रहे होते हैं ऊपर से नए रोग के कारण मरने वाले कोशों कि मुरम्मत का काम आ जाता है जो कि शारीर का दुर्बल तंत्र कर नहीं पाता. ऐसे में नारियल का तेल सुनिश्चित समाधान के रूप में काम करता है.

खोज के अनुसार यह तेल बिना पित्त के ही पचने लगता है जबकि अन्य तेल अमाशय में पित्त के साथ मिल कर पचना शुरू करते हैं. नारियल-तेल बिना पित्त के सीधा लीवर में पहुँच जाता है और वहाँ से रक्त प्रवाह में और स्नायु कोशों में ‘कैटोंन बोडीज़’ के रूप में पहुच कर ऊर्जा कि पूर्ति करता है. यह ‘कैटोंन बोडीज़’ अत्यंत शक्तिशाली ढंग से नवीन कोशों का निर्माण करती हैं जिसके कारण शर्करा या इंसुलिन आदि दवाओं की ज़रूरत ही नहीं रह जाती. पसर आवश्यक है कि पहले चल रही दवाएं धीरे-धीरे बंद कि जाए और टेस्ट द्वारा परिणाम लगातार देखे जाएँ. नारियल तेल से नवीन कोष बनने लगते हैं तथा शरीर की रोग निरोधक शक्ति पूरी तरह से काम करने लगती है जिसके कारण सभी रोग स्वतः ठीक होने में सहायता मिलती है.

केवल मधुमेह ही नहीं एल्ज़िमर, मिर्गी, अधरंग, हार्ट अटैक, चोट आदि के कारण मर चुके कोष भी पुनः बनने लगते हैं तथा ये असाध्य समझे जाने वाले रोग भी ठीक होते हैं. जिस चिकित्सक ने यह शोध किया उनके पिता एल्ज़िमर्ज्स डिजीज के रोगी थे. वे केवल नारियल के तेल के प्रयोग से पुरी तरह ठीक होगये. इसके बाद उन्होंने इसी प्रकार के कई रोगियों का सफल इलाज किया.

चिकित्सा के लिए एक दिन में लगभग ४५ मी.ली. नारियल तेल का प्रयोग किया जाना चिहिए जो कि उत्तर भारतीयों के लिया थोड़ा कठिन है. वैसे भी शुरुआत केवल एक चम्मच से करते हुए धीरे-धीरे मात्रा बढानी चाहिए अन्यथा पाचन बिगड़ सकता है. भोजन में इसकी गंध उत्तर भारतीय अधिक सहन नहीं कर पाते. दाल, सब्जी में कच्चा डालकर या तड़के के रूप में इसका प्रयोग किया जा सकता है. मिठाईयों में भी इसका प्रयोग प्रचलित है जो कि बुरा नहीं लगता. मीठे के साथ खाना सरल भी लगता है. पर मधुमेह के रोगी को मीठे से परहेज़ तो करना ही होगा. इसका एक समाधान यह हो सकता है कि दिन में ३-४ बार सूखे या कच्चे नारियल का नियमित प्रयोग अपनी पाचन क्षमता के अनुसार किया जाए. गर्मियों में ध्यान देना होगा कि अधिक प्रयोग से गर्म प्रभाव न हो. सावधानी से प्रयोग करते-करते मात्रा की सीमा समाझ आ जाती है. एक उल्लेखनीय बात यह है कि दक्षिण भारतीय लोग नारियल की चटनी गर्मियों में भी दही में पीस कर बनाते हैं और पर्याप्त मात्रा में इसका प्रयोग करते हैं. अतः दही में पीस कर बनी नारियल की चटनी का प्रयोग तो गर्मियों के मौसम में भी आराम से किया जा सकता है. मारता पर्याप्त होनी चाहिए. रात को दही के प्रयोग से परहेज़ करना चाहिए.

पर आजकल के हालत में अब बात इतनी सीधी-सरल नहीं रह गयी है. तेल विषाक्त हो सकता है.

बाज़ार में उपलब्ध नारियल, सरसों, तिल, बादाम, जैतून के तेल विषाक्त हो सकते हैं. आजकत इन तेलों को निकालने के लिए दबाव प्रकिरिया या संपीडन नहीं किया जाता. एक रसायन का इस्तेमाल व्यापक रूप से तिलहन उद्योग में हो रहा है. यह ”हेक्सेन” नामक रसायन बीजों में से तेल को अलग कर देता है. हवा में इसकी थोड़ी उपस्थिति भी स्नायु कोशों को नष्ट करने लगती है. इसके खाए जाने पर जो विषाक्त प्रभाव होते हैं, उनपर तो अभी खोज ही नहीं हुई है पर वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सूंघने से दस गुना अधिक इसके खाए जाने के दुष्प्रभाव होंगे. यह रसायन न्यूरो टोक्सिक है, शरीर के कोशों को हानि पहुंचाता है, अनेक असाध्य और गंभीर रोगों का जनक है. वैसे भी यह प्रोटीन में से फैट्स को अलग कर देता है. स्पष्ट है कि यह हमारे शरीर के मेद या चर्बी को चूस कर बाहर निकाल देगा जो न जाने कितने भयावह रोगों का कारण बनेगा या बन रहा है. इन तथ्यों को हमसे छुपा कर रखा गया है और इस रसायन का प्रयोग बिना किसी रुकावट बड़े स्तर पर हो रहा है. एक बात अच्छी है कि गरम करने पर इस इस रसायन के अधिकाँश अंश उड़ जाते हैं. किन्तु यह अभी तक अज्ञात है कि इस रसायन के संपर्क में आने के बाद फैट्स कि संरचना में कोई विकार तो नहीं आजाते ?

अतः ज़रूरी है कि हम बाजारी तेलों का प्रयोग अच्छी तरह गर्म करने के बाद ही करें. मालिश आदि से पहले भी तेल को गर्म करने के बाद ठंडा करके प्रयोग में लाना उचित रहेगा.इसके इलावा हेक्सेन के हानिकारक प्रभावों के बारे में लोगों को और सरकारी तंत्र को जागृत करने की ज़रूरत है.. इतना तो हम मान कर चलें कि शासनकर्ता अधिकारी और नेता भी विषैले तेल खा कर मरना नहीं चाहते. उन्हें वास्तविकता की जानकारी ही नहीं है. वे केवल अपने क्षूद्र स्वार्थों को साधनें में मग्न हैं और अपने साथ-साथ सबके विनाश में सहायक बन रहे हैं. वास्तविकता जान लेने पर वे भी इस विष के व्यापार को रोकनें में सहयोगी सिद्ध होने लगेंगे. कुशलता और धैर्य से प्रयास करने के इलावा और कोई मार्ग नहीं.

दैनिक जीवन में विष निवारक वस्तुओं का प्रयोग थोड़ी मात्रा में करते रहें जिस से बचाव होता रहे. गिलोय, घीक्वार, पीपल, तुलसी पत्र, बिलपत्री, नीम, कढीपत्ता, पुनर्नवा, श्योनाक आदि सब या जो-जो भी मिले उन का प्रयोग भिगो कर या पका कर यथासंभव रोज़ थोड़ी मात्रा में करें. यदि ये सब या इनमें से कोई सामग्री न मिले तो स्वामी रामदेव जी का ‘सर्व कल्प क्वाथ’ दैनिक प्रयोग करें.

 

21 COMMENTS

  1. Apka lekh padhakar prayog karna suru Kiya hai fayda dikhane Laga hai khane ke sugar level 300 se uper rahata that an 240 per as gya hai Abhi 5 din hi huye hain thanks

  2. गुरु जी मेरे पिताजी को मधुमेह और गैंगरीन है। अंगुलिया सारी खत्म हो चुकी है। पंचगव्य चीकित्सा चल रही है। परंतु बुखार नही उतर रहा है । काफी कमज़ोर हो चुके है। आपसे जल्द से जल्द मिलना चाहता हूँ निदान के लिए कृपया सहायता करें।

  3. Dr sahan pranam. Mujhe 15 sal bad fir se t.b hui he first mujhe spine me hui thi.me thik ho gya ths. but is bar lungs me he.dr ne kha Thoda sa pani he.vase me thik hu.but dr ne t.b dots chalu kar di he.kya iska koi ayurvedic ilaz he.jisse ye jad se khatam ho jaye. Dotts ki dwai bhi nahi chhod skata.

    • तपेदिक के लिए हमारी दवाई बहुत अच्छी बनी हुई है।उसके लिए आप 94188 26 912 पर मैसेज करें।

  4. Dr sahan pranam. Mujhe 15 sal bad fir se t.b hui he but is bar lungs me he. Thoda sa pani he.vase me thik hu.but dr ne t.b dots chalu kar di he.kya iska koi ayurvedic ilaz he.jisse ye jad se khatam ho jaye. Dotts ki dwai bhi nahi chhod skata.

  5. आश्चर्य यह है कि आज पहली बार मेरी निगाह इस आलेख पर पडी है.यह लेख करीब चार वर्ष पुराना है,अतः इस पद्धति का इस्तेमाल बहुतों ने किया होगा.मैं जानना चाहता हूँ, क्या उनलोगों को इससे कुछ लाभ हुआ?,क्योंकि शुद्ध नारियल का तेल सबसे ज्यादा केरल में व्यवहार में लाया जाता .है.उसके बाद तमिलनाडू और दक्षिण भारत के अन्य राज्यों की गिनती होती है. अगर शुद्ध नारियल का तेल मधुमेह में लाभदायक होता ,तो वहां कम से कम लोग इस रोग के शिकार होते,पर मेरी जानकारी के अनुसारकेरल और तमिलनाडू की गिनती मधुमेह की राजधानी के रूप में होती है.ऐसे मैं पिछले पच्चीस वर्षों से मधुमेह का ऐसा रोगी हूँ,जिसने अभी तक दवा का सेवन नहीं किया है,अतः इस पर एक तरह से मेरा निरंतर अनुसंधान चलता रहता है,पर मेरी निगाह में ऐसा कोई सन्दर्भ आज तक नहीं आया.

    • सिंह साहब,
      मधुमेह के जो इंसुलिन पर रोगी थे उन्हें हमने नारियल का तेल दिया तो वह तीन चार महीने में ठीक हो गए। 1-2 महीने बाद हमने उनकी सभी दवाइयां पूरी तरह से बंद कर दीं। ईश्वर कृपा से वे पूर्ण स्वस्थ हैंः
      * आपकी बात भी सही है कि नारियल का तेल खाने वाले भी तो बीमार हैं। इसका कारण जो मुझे ध्यान में आया है वह यह है जब दवा कंपनियों के ध्यान में यह आया कि नारियल तेल से शरीर के सभी मरे हुए सेल बन जाते हैं और केटान बॉडी बहुत तेजी से बढ़ने लगती हैं तो उन्होंने रोगियों की संख्या को बढ़ाने के लिए नारियल में इस प्रकार के कीट और बीमारियां पैदा करदीं जिससे बहुत भयंकर विषयों का छिड़काव नारियल पर करना पड़ता है। आज स्थिति यह है कि नारियल के पानी और नारियल विषैले बन चुके हैं। बाजार में उपलब्ध नारियल का तेल की विषैला है। तो प्रश्न उठता है कि हमारे रोगी कैसे ठीक हुए।
      *सिंह साहब हम आर्ट ऑफ लिविंग के वर्जिन कोकोनट आयल का प्रयोग कर रहे हैं, जो कि केवल कहने को भर को नहीं, वास्तव में पूरी तरह से रसायन मुक्त है। उसके हमें अति उत्तम परिणाम मिल रहे हैं। आप भी चाहें तो करके देखें। एक दिन में एक बार में अथवा दो तीन बार में 35 से 40 मि.ली. तेल का प्रयोग करना है। चाहे तो भोजन में डाल कर लें, चाहे सीधा ले लें, किसी भी रूप में ग्रहण करना है। बाकी सामान्य प्रहेज तो होनी चाहिए।

  6. प्रो. मधुसुदन जी आपकी प्रदत्त सभी सूचनाएं बड़ी सही और प्रमाणिक हैं. आप चाहे इंजिनियर हैं पर वस्तुओं, विषयों को देखने, समझने की आपकी दृष्टि पैनी और पुर्णतः भारतीय है. आप सरीखे बुद्धिजीवी भारत की ताकत हैं.
    वैसे भी आयुर्वेद तो हम भारतीयों के रक्त में समाया हुआ है. जिन रोगों का इलाज ये आधुनिक चिकित्सक आज भी नहीं कर पाते उनका इलाज तो हमारी अनपढ़ दादी- अमा ही कर लेती थीं. जैसे पीलिया, दस्त, मरोड़ , चोट आदि. अपनी परम्पराओं को भुलाने के कारण ही हमारी समस्याएं बढ़ रही हैं. हम लोग तो उन्ही को पुनर्स्थापित करने, याद दिलाने का काम कर रहे हैं.

  7. डॉ. कपूर जी। निम्न लिखित में गलत हो, तो आप बिना हिचक संपादित कीजिएगा।
    कोयम्बतूर से कुछ आयुर्वेदिक पुस्तकें सामान्य ज्ञान के लिए, लाया था।
    उनमें, लिखा है, अभ्यंग( शरीर पर औषधियुक्त ऊष्ण तैल मर्दन-पंचकर्म} के कारण, सारे शरीर में रक्त प्रवाह बढकर, रक्त द्वारा दोष(Toxins ) एकत्रित होकर, आंतो और मूत्र(?) द्वारा बाहर निकाले जाते हैं। जब बाहर जाने लगते हैं, तो वह रोग अपना परिणाम दिखाते जाता है।यह पंच कर्म प्रक्रिया,{ ३ से ५ सप्ताह चलती है} मेरे लिए ३ सप्ताह चली।
    जीवनभर जिस जिस रोगसे आप ग्रस्त हुए थे, वे सारे न्यूनाधिक मात्रा में अपने रोग लक्षण दिखाते हैं। जैसे खांसी, ऍलर्जी, सूक्ष्म ज्वर, संधि-पीडा, आंखोका कुछ लाल होना, …. इत्यादि। सारांश: जिन जिन रोगोंसे जीवन में आप कभी न कभी पीडित हुए थे, वे सारे बाहर निकलते निकलते अपने लक्षण दिखाते जाते हैं। जाने के पश्चात आप स्वस्थता अनुभव करते हैं।
    पुस्तक कहती है, कि रोग के विषाणु (Toxins ) शरीर में ही दबे {ऍलोपॅथि दबा देती है}से रहने के कारण, बार बार उस रोगकी बाधा आपको होते रहती है।पंचकर्म द्वारा, इन विषाणुओं को मूत्र और मल द्वारा बाहर निकाल फेंका जाता है, तो फिर आगे दुबारा उस रोगके होने की संभावना ही समाप्त हो जाती है।
    यह प्रक्रिया, रोगको मूल सहित निष्कासित करती है। बाहर निकलते समय वह उभर आते हैं, इस लिए लक्षण दिखा कर जाते हैं।
    अधोरेखित करना चाहता हूं, कि रोग को मूलसहित भगाया जाता है। अभी मैं कोई आयुर्वेद विशेषज्ञ नहीं हूं, कि कौन कौन से रोग पर यह क्रिया सफल होती है, यह जानूं।
    पढा है, कि आयुर्वेद में पूरा पूरा रोग-निदान (Diagnosis) आवश्यक नहीं होता। वह गौण होता है|
    जिस अंग या ग्रंथि का रोग है? इतना ही पता होने पर उसी अंगसे विषाणुं ओं को बाहर करने में पंच- कर्म की विधि की जाती है। और जब वे विषाणुं निकल जाते हैं। तो दुबारा वह रोग आपको हो नहीं सकता।
    मैं ने जैसा मेरी समझ में (और अनुभव में) आया लिखा है। औरों के भी अनुभव हो, तो लिखिए। जिस से अन्य पाठकों को सहायता हो।
    एक सूक्ति बहुत उपयोगी पायी।— ॥लंघनं परौषधम्‌॥ अर्थ: उपवास सबसे श्रेष्ठ औषध है। कुछ देखता हूं, कि माताजी सारे उपवास करती हुयी, दुबली होने के उपरान्त स्वस्थ क्यों है?
    दीर्घ हो गयी टिप्पणी। वहां चिकित्सा के लिए, संसार भर से लोग आते देखे। एक को अनुभव पूछा। तो बोले मैं यहां तीसरी बार आ रहा हूं, इसीसे आप समझ लीजिए।
    (मैं रोग विशेषज्ञ नहीं हूं-स्ट्रक्चरल इंजिनियर हूं)

  8. अज्ञानी जी इस उपयोगी जानकारी हेतु धन्यवाद.
    आयुर्वेदिक साहित्य में विपुल ज्ञान का भण्डार आज भी सुरक्षित है जब कि लाखों खोजपूर्ण पुस्तकें अरबी अक्रमंकारियों द्वारा नष्ट कर दी गयीं. यह बचा-खुचा आयुर्वेद का ज्ञान भी संसार के कुल चिकित्सा साहित्य से कहीं अधिक महत्व का और प्रमाणिक है. आप देख रहे हैं की आधुनिक और वैज्ञानिक कहलाने वाली ऐलिपैथी की हज़ारों दवाएं खतरनाक दुष्प्रभाव कर रही हैं , अनेकों को प्रतिबंधित करना पडा है. आगे भविष्य में भी अनेकों प्रतिबंधित करनी ही पड़ेंगी, यह निश्चित है. पर एक भी आयुर्वेदिक दवा बतलाएं जिसे प्रतिबंधित करना पडा हो ? बनाने वाले की कोई कमी रहे तो रहे, आयुर्वेद की एक भी दवा या योग प्रतिबंध के योग्य सिद्ध नहीं हुआ. तो फिर सम्पूर्ण और श्रेष्ठ चिकित्सा आयुर्वे ही हुई न की एलोपैथी ? इतना ज़रूर है की आधुनिक चिकित्सा की जाँच, सर्जरी आदि खोजों का लाभ उठाने में कोई हानि नहीं. पर चिकित्सा हेतु भारतीय पद्धति की औषधियां ही प्रयोग में अधिकतम लाना उचित है जो की सस्ती और सही प्रयोग करने पर हानी रहित होती हैं.
    – श्रुति ज्ञान से प्रचलित योगों की जानकारी का प्रचार और शास्तों में लिखित ज्ञान को प्रयोगों द्वारा सिद्ध करने की आज बहुत बड़ी ज़रूरत है जो की पर्याप्त मात्रा में तो क्या अति अल्प मात्रा में हो रहा है. इस पर काम करना एक बड़ी समाज और राष्ट्र सेवा है.

    • डा.साहाबो बहुत बहुत घन्यवाद जानकारीके लिएँ । मै सुगरका मरिज हुँ । नारियल तेलका प्रयोग करुङ्गा ।

  9. ऐसे लेखे से ही अग्रेजी दवा साम्राज्य खत्म होगा सुन्दर लेख

  10. डॉ साहब आपमें एक उत्कृष्ट चिकित्सक के गुण कूट-कूट कर भरे हुए हैं इसमें कोई संदेह नहीं है! नियमित वार्तालाप रोगी को अधिक लाभ पहुंचाता है, वर्तमान में डॉ मरीज को ग्राहक की नजर से ज्यादा देखते हैं यही वजह है की उपचार का उचित लाभ नहीं मिल पाता!

    मैं अपना अनुभव आपसे सांझा करना चाहूँगा! अभी पिछले महीने ही मैं अपने गाँव जो हिमाचल में स्थित है, गया था! मेरी सबसे छोटी ७ वर्षीय भतीजी के होंठों पर छालों के साथ साथ फोड़े बन गये थे और दवाई से भी कुछ खास असर नहीं पड रहा था(उसने कोई सोंदर्य क्रीम होंठों पर लगा ली थी जिसकी वजह से ये समस्या उत्पन्न हो गयी थी) बड़ी भतीजी से मैंने अमरुद का पत्ता मंगवाया और उसको चबा कर रस होंठों पर लगाने को कहा! उसको २-३ बार मनाने के बाद भी उसने मना कर दिया तो मैंने बड़ी भतीजी को यही क्रम करने को कहा! उसके रस होंठो पर लगाते ही पहले तो जोर जोर से रोना शुरू कर दिया लेकिन २ घंटे के भीतर ही होठों की सुजन काफी कम हो गयी! अबकी बार मेरे समझाने पर उसने खुद अमरुद का पत्ता ला कर लगाना शुरू किया! मुझे यकीन तो था की इसका सकारात्मक असर होगा परन्तु इतनी जल्दी होगा इसकी उम्मीद कम् थी! सिर्फ ३-४ बार कुछ घंटो के अंतराल पर लगाने से ही उसकी तकलीफ दूर हो चुकी थी! मैं खुद भी कभी कभार छाले होने पर अमरुद के पत्ते उपयोग में लाता हूँ ये प्रयोग जिनको भी बताया है आज तक इसके परिणाम ने निराश नहीं किया है!

    बहुत बहुत धन्यवाद!!

  11. – दादी इसी प्रकार अपने आशीर्वाद की वर्षा करतेे रहीए जीससे हम यूँही सत कार्यों और समाज सेवा के लिए बल व प्रेरणा प्राप्त करते रहें ,धन्यवाद!
    -अग्यानी आपका यह प्रयोग अती मूल्यवान जो जलने पर रत्न जोत और नारियल के तेल से बनाता है. अंग्रेजी दवाओं से कहीं अधिक लाभदायक और अवीलम्ब प्रभाव करने वाला है. अलसी पर अगला लेख देने का प्रयास रहेगा.
    -संतोष जी दक्षि न भारत में उत्तर भारत से ये रोग आज भी बहुत कम हैं. इन रोगों का कारण तो खेती और आहार में प्रयोग होने वाले रसायन तथा अंग्रजी दवाएं हैं. शायद आपको पता हो की बचपन में ज्वर उतारने के लीए दी दवाओं परासीटामोल व क्रोइसन आदि से उन्हें मधुमेह आसानी से हो जाता है. अनेक खोजें इस पर प्रकाईशत हो चुइकी हैं .नारियल तेल पर जो जानकारी मैंने दी है वह प्रमाणिक है.
    – प्रो. मधुसुदन जी आपका नारीयल तेल के बारे में अनुभव बड़ा उपयोगी है. प्रोत्साहन, प्रेरणा हेतु आभार.
    -अजित जी आपका धन्यवाद.प्रेरणा व्यर्थ न जायेगी.
    -इं. दिनेश गौड़ जी आपकी मेल की प्रतीकशा रहेगी. मेरे लिए जो भी संभव होगा वह हो सकेगा. उछ रक्त चाप का सर्वोत्तम इलाज है की स्वदेशी गो के गोबर और गोमूत्र के घोल का लेप करके २-४ घंटे बाद बिना साबुन के स्नान कर लीया जाए. ४-५ दिन में ही रोग काफी या पूरा ठीक हो जाएगा.

  12. आदरणीय डॉ. कपूर साहब…आपका लेख पढ़कर बहुत ख़ुशी हुई| यह जानकारी मेरे लिए अनमोल है| मेरे पिता को शुगर की बीमारी है| वैसे तो नियमित प्राणायाम करते रहने से उनकी शुगर कंट्रोल में है, किन्तु बीपी की वजह से उन्हें घी तेल भी बंद है| ऐसे में आपने बताया की नारियल तेल से कोई हानि नहीं है, यह अच्छा लगा| समस्या यह है कि राजस्थान में नारियल का शुद्ध तेल मिलना मुश्किल है और फिर यह खाने में उत्तर भारतीयों को विशेष पसंद भी नहीं आता| किन्तु फिर भी कुछ नहीं से कुछ अच्छा है| आपने इसके उपयोग के तरीके भी बताए हैं| बहुत बहुत धन्यवाद, यह जानकारी मै अपने पिता जी को दूंगा| इसके उपयोग के विषय में आपसे चर्चा करना चाहूँगा, इसके लिए समय मिलते ही आपको ई मेल करूँगा|
    बहुत बहुत धन्यवाद|
    सादर
    दिवस…

  13. बेहद लोकोपयोगी लेख, आप बधाई के पात्र हैं जो निस्वार्थ भाव से समाज कल्याण के लिए भी लिखते रहते है अन्यथा लोगों ने कलम को सनसनी फैलाने का माध्यम बना लिया है.

  14. कुछ सप्ताह पहले, मैं सह्कुटुंब कोयंबतूर(तमिलनाडु) स्थित “आर्य वैद्य चिकित्सालयम्‌” में तीन सप्ताह उनके काया-कल्प (Rejuvenation ) की पंचकर्म आधारित चिकित्सा का अनुभव करके, लौटा हूं। वहां २१ दिन के आहार में नारियल का ही, उपयोग सांझ-सबेरे रसोई में, होता है।वैसे तेल की मात्रा कम ही थी।पर नारियल की चटनी, (जैसे इडलि के साथ होती है) छोटी कटोरी भर दिया करते थे, जो मसाला कम होते हुए भी, स्वादिष्ट ही लगती थी। पर मैं उसे कुछ शंकित दृष्टिसे देखता था,( पर स्वाद से, खा जाता था) क्यों कि ऍलोपॅथी वाले नारियल को कॉलेस्टरॉल जनक मानते हैं।
    मुझे सीमास्पर्शी (Border line ) मधुमेह २, की समस्या हुआ करती थी। अचरज तब हुआ, जब उन्होंने चिकित्सा के अंतमें रक्त की परीक्षा की, और मैंने देखा की मेरी रक्त शर्करा ९५ पर आ गई। चिकित्सा के पहले जो १२०-१३० कभी कभी १४० तक हुआ करती थी।{मेरे पास छोटा शर्करा नापनेका उपकरण है।}
    पंच कर्म की अन्य विधियां भी साथ साथ थी। इसके कारण, केवल नारियल के, परिणामों को अलग करना संभव नहीं है।
    आपके चिकित्सा विषयक लेख, हमेशा पढा करता हूं। अन्य पाठक भी अपने अनुभव वर्णन करे, जिससे और पहलु उजागर हो सके।
    आप- एक- बहुत- आवश्यक- विषय- पर- लिखते- हैं। अबाधित लिखते रहे।
    बहुत बहुत धन्यवाद।

  15. Shri Kapoor ji, Kerala state mein log varsho se narial har sabji main upyog karte hain & narial tel sar par lagate hai & sabji main daalte hai. Iske baad bhi vahan ke log Daibetis & Prusher se peedit hai.

  16. डॉक्टर साहब आपने बिलकुल वैसे ही मेरी बात सुन ली जैसे लोग कहते हैं “भगवान ने मेरी सुन ली” इस जानकारी के लिए बहुत धन्यवाद देसी यानी आयुर्वेदिक चीजों में मेरी काफी रूचि है और मैं मौक़ा मिलने पर छोटे मोटे प्रयोग करता रहता हूँ शायद यही वजह है की पिछले २५ सालों में मेरा अलोपथिक दवाइयों पर खर्चा लगभग शुन्य ही है! नारियल का तेल बहुउपयोगी है इसमें कोई दो राय नहीं है! (१९९१ में मेरे पिता जी के ६०% जलने के बाद हम लोगों ने नारियल तेल और रतनजोत का उपयोग किया था )

    मैं चाहता हूँ की आप अगर समय मिले तो ‘अलसी’ के गुणों से भी लोगों को अवगत करायें! बहुत बहुत धन्यवाद!!

  17. डाक्टर राजेश कपूर जी
    अशिएर्वाद
    आपके लिखित लेख से बहुत जान कारी मिली
    धन्यवाद
    गुड्डो दादी चिकागो से

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