कविता

आ लौट के आजा भारत मां के खून

—विनय कुमार विनायक

आ लौट के आजा भारत मां के खून

कि तुम फैले हुए हो काबुल से रंगून,

तुम सगे भाई हो जैसे हिन्दू शक हूण!

तुम भ्रमित होकर अपने में देखते

गैर भारतीय, अरबी कबीले का गुण,

तुम नहीं हो अरब के कबिलाई मूल,

तुम हो बृहदतर भारत के हिन्दू कुल!

इस तथ्य को तुम क्यों नहीं कबूलते?

इन सच्चाइयों को तुम क्यों यूं भूलते?

तुम अफगानी, पाकी,बांग्लादेशी आज बने हो,

कल नहीं थे, कल भी शायद तुम नहीं रहोगे!

तुम्हारा पैतृक धर्म नहीं रहा है इस्लाम,

तुम अपने पूर्वजों का धर्म सनातन मान,

तुम्हारी मातृजाति नहीं अरबी फारसी इराकी,

तुम नहीं हो सहारा रेगिस्तान की बद्दूजाति!

तुम हमेशा गफलत में रहते रहे हो,

तुम अरबी इस्लाम की तलवार को लेकर

अपने वंशधर भाईयों को काटते रहे हो

कभी आक्रांता महमूद गजनवी बनकर

और कभी मुहम्मद गोरी,बाबर बनकर!

तुम जानते नहीं कि महमूद ने सत्रह बार

सोमनाथ मंदिर के क्षेत्र में कहर मचाकर

तुम्हारे पूर्वजों; माता बहन बेटी पत्नी को

मार-पीट बलात्कार कर मुस्लिम बनाया!

सुनो भारतीय पाकिस्तानी बंगाली मुसलमान,

तुम मत भूलो कि तुम हो उन्हीं बलात्कृत,

धर्मांतरित हिन्दुओं की निर्दोष अंजान संतान,

आज उन्हीं आक्रांताओं के गाते हो गुणगान,

गजनी गोरी की शान में रखते मिसाइलों के नाम!

तैमूरलंग, चंगेज खां, अलाउद्दीन, औरंगजेब ने

भारत की धरती को बार-बार अपवित्र किया था,

हमारे सम्मिलित पूर्वजों को जहर पिला दिया था,

उस जहर से उबरने की कोशिश तो करो भाईजान!

तुम पूर्वजों के देश से मुफ्त में शत्रुता पाले हो,

तुम अंजानवश खुद को अरबी फारसी में ढाले हो,

तुम अपने गफलत भरे इतिहास को सुधार लो,

अपने भविष्य की पीढ़ियों को कहर से उबार लो!

आखिर किस मकसद से अपने पूर्वधर्म भाईयों से

लगातार आतंकवाद के सहारे तुम लड़ रहे हो,

सच पूछो तो तुम सत्य मार्ग से बहक गए हो,

भूल जाओ गजवा ए हिन्द की आकाशीय बातें,

तुम्हें तो मालूम नहीं है अपने ही दीन की बातें!

—विनय कुमार विनायक