जयप्रकाश नारायण और नानाजी देशमुख – एक तुलनात्मक विश्लेषण

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दो इंसान – जयप्रकाश नारायण और नानाजी देशमुख – पृष्ठभूमि अलग अलग | दोनों का जन्म दिन एक – 11 अक्टूबर | यद्यपि आयु में 14 वर्ष का अंतर । जेपी का जन्म बिहार के सारण जिले में हुआ, पिता एक सामान्य शासकीय कर्मचारी, किन्तु अपने जीवट से जेपी अध्ययन के लिए अमेरिका जा पहुंचे । जबकि नानाजी, जिन्होंने कम उम्र में ही अपने माता-पिता को खो दिया | स्वाभाविक ही संघर्षपूर्ण बचपन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बने । जेपी समाजवादी, जबकि नानाजी एकात्म मानववादी । किन्तु उस दिन पटना ने इन दोनों पुरुषों का मार्ग एक कर दिया । जेपी संपूर्ण क्रांति का चेहरा थे, किन्तु बाद में जो जनता दल अस्तित्व में आया, उसके योजनाकार नानाजी थे ।
आज भाजपा का जो ठोस आधार गोरखपुर में दिखाई देता है, उसकी नींव नानाजी ने ही रखी थी | तत्कालीन सरसंघचालक गुरू गोलवलकर जी ने नानाजी को संघ प्रचारक के रूप में गोरखपुर भेजा था । पास में फूटी कौड़ी नहीं, पूर्व से वहां कोई संगठनात्मक आधार नहीं, किन्तु नानाजी ने बाबा राघवदास की कुटिया में स्वयं भोजन पकाते संघ कार्य को गति दी । और देखते देखते 3 वर्ष के अन्दर अकेले गोरखपुर में ही 250 से अधिक शाखाओं का प्रारंभ हो गया | 1950 में उन्होंने पहले सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना की। कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश में जनसंघ का प्रसार करने वाले तीन लोग थे | पहले दीन दयाल उपाध्याय जिन्होंने सम्पूर्ण देश में संगठन को वैचारिक आत्मा प्रदान की, दूसरे अटल बिहारी वाजपेयी जिन्होंने अपनी वक्तृत्व क्षमता से जनता के दिलों में जगह बनाई और तीसरे नानाजी जो आयोजन और समन्वय के महारथी थे ।
दूसरी ओर, जेपी का जीवन चक्र कुछ अलग किस्म से चला । परिश्रम उन्होंने भी किया किन्तु अपनी शिक्षा के लिए । अमेरिका में एक छात्र के रूप में, जेपी ने एक गैराज में मैकेनिक के रूप में कार्य किया, बर्तन धोने, अंगूर और सब्जी बेचने जैसे छोटे छोटे काम कर अपनी शिक्षा का खर्च स्वयं उठाया । बर्कले में फीस का भुगतान करने में असमर्थ होने के कारण एक अन्य विश्वविद्यालय में स्थानांतरित हुए, जहाँ समाजवादी विचारधारा की ओर जेपी आकर्षित हुए | मार्क्स और एम एम रॉय ने इन्हें विशेष रूप से प्रभावित किया । भारत लौटने के बाद कांग्रेस में शामिल होकर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया | कांग्रेस में शामिल अवश्य हुए, किन्तु अपनी विचारधारा के अनुरूप कांग्रेस के अन्दर ही राम मनोहर लोहिया, अशोक मेहता आदि के साथ आचार्य नरेन्द्र देव की अध्यक्षता में कांग्रेस सोशलिस्ट समूह, का निर्माण किया । उनके विद्रोही रवैये को देखे हुए जेपी को स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान कई बार गिरफ्तार किया गया । एक उल्लेखनीय घटना है – जब वे भारत छोडो आन्दोलन के दौरान गिरफ्तार होकर हजारीबाग सेंट्रल जेल में बंदी थे, उस समय वे साहस पूर्वक जेल से फरार हो गए | अपने एक अन्य साथी योगेन्द्र शुक्ला को अपने कंधे पर उठाये उठाये वे गया तक गए तथा भूमिगत हो गए ।
नानाजी वह व्यक्ति थे जिन्हें विरोधी विचारधारा के लोगों का भी सहज सम्मान प्राप्त था | 1957 में उत्तर प्रदेश में जन संघ की स्थापना हुई, और जल्द ही उसने एक शक्तिशाली राजनीतिक ताकत का रूप ले लिया । उत्तर प्रदेश में जो पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी, उसके पीछे नानाजी का ही चमत्कार था | वामपंथी रुझान के राम मनोहर लोहिया, कृषक प्रतिनिधि चौधरी चरण सिंह और दक्षिणपंथी माना जाने वाला जनसंघ, इन तीनों के समन्वय से बना यह बेमेल गठबंधन सरकार बनाने में सफल हुआ | उनके प्रबल विरोधी चंद्र भानु गुप्ता अक्सर नाना को आधुनिक युग का “नाना फडनवीस” कहा करते थे । उन्होंने विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में भी सक्रिय रूप से भाग लिया।
आपातकाल –
1974, वह समय जब कि देश में असंतोष का ज्वालामुखी खदबदा रहा था । पहली बार भ्रष्टाचार के खिलाफ जनाक्रोष सडकों पर आया, नैतिकता और आदर्श की बातें गलियों चौराहों पर होने लगीं | 1971 के बांगलादेश युद्ध व उसके बाद बांग्ला देश का उद्भव, इस लहर पर सवार जिन इंदिरा गांधी की लोकप्रियता चरम पर थी, वही इंदिरा गांधी निरंकुश शासन का पर्याय बन गईं । सिर्फ 3 साल में लोकप्रियता का ईंधन समाप्त हो गया । जीवन की कठोर वास्तविकताओं ने पटना की सड़कों पर विशाल जुलूस का रूप ले लिया जिसका नेतृत्व कर रहे थे जयप्रकाश नारायण उर्फ जेपी | वे जनता के क्रोध को एक आवाज दे रहे थे । उन्होंने पहले गुजरात में चिमनभाई पटेल सरकार के खिलाफ नवनिर्माण आंदोलन का नेतृत्व किया । और उसका अगला चरण था बढ़ते भ्रष्टाचार के खिलाफ, जनता और छात्रों से किया गया संपूर्ण क्रांति का आव्हान । पटना में जेपी जिस जुलूस का नेतृत्व कर रहे थे, उस पर पुलिस ने क्रूरता पूर्वक लाठीचार्ज किया । आज सोचकर हैरत होती है कि पुलिस ने जिन्हें अपने आक्रमण का लक्ष्य बनाया, वह थे बुजुर्ग गांधीवादी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जयप्रकाश नारायण | यहीं से नानाजी देश और समाज की नज़रों में आये | उन्होंने जे पी को लक्ष्य कर किया गया हर प्रहार अपने पर झेला | जेपी को खरोंच भी नहीं आने दी | चंद्रिकादास अमृतराव देशमुख उपाख्य नानाजी देशमुख ढाल बन गए जयप्रकाश नारायण जी की |
1975 में रामलीला मैदान में हुई रैली के दौरान जेपी ने सिंहनाद किया “सिंहासन खली करो कि जनता आती है ‘ | जेपी आंदोलन का प्रत्यक्ष चेहरा थे, लेकिन पृष्ठभूमि में नानाजी लोक संघर्ष समिति के महासचिव के रूप में संदेश भेजने, धन जुटाने और इसके हर पहलू के समन्वय का कार्य सम्हाल रहे थे । नानाजी गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान लम्बे समय तक भूमिगत रहे । इस दौरान नानाजी ने सुब्रमण्यम स्वामी, एम एल खुराना, रविंद्र वर्मा और दत्तोपंत ठेंगड़ी के छोटे से समूह के साथ भूमिगत समाचार बुलेटिनों और पर्चे प्रकाशित कर भूमिगत आन्दोलन चालू रखा, विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया, आवश्यकतानुसार धन जुटाया, हिरासत में लिए गए लोगों के परिवारों की मदद करने के लिए मुख्य योजना बनाई ।
हालांकि बाद में नानाजी 29 जून 1976 को गिरफ्तार कर लिए गए, लेकिन तब तक वे पूरा नेटवर्क बना चुके थे । बाद में जब आपातकाल हटा व चुनाव हुए तब नानाजी फिर एक बार जनता गठबंधन के वास्तुकार के रूप में सबसे आगे दिखाई दिए । अपने अपार राजनीतिक संपर्कों के माध्यम से नानाजी जनसंघ व अन्य संगठनों को मिलाकर बनी जनता पार्टी को एक दुर्जेय गठबंधन बनाए रखने में कामयाब रहे। 1977 में नानाजी स्वयं बलरामपुर से चुनाव जीते और जनता पार्टी की जीत में अहम भूमिका निभाई। उसके बाद उन्होंने कैबिनेट मंत्री बनने का प्रस्ताव सविनय अस्वीकृत कर दिया और कहा कि संघ प्रचारक के रूप में उनका जीवन तो समाज सेवा के लिए समर्पित है |
नानाजी अक्सर राजा राम की तुलना में वनवासी राम की अधिक प्रशंसा करते थे । उनका कहना था कि राजा के रूप में राम इसलिए अधिक सफल हुए, क्योंकि उन्होंने वन में रहते हुए गरीबी को जाना, समझा | इसीलिए नानाजी ने भी राजनीति से विराम लेकर गरीब वर्गों के उत्थान के लिए अपना जीवन खपाने का निर्णय लिया । दीन दयाल शोध संस्थान भी बनाया तो चित्रकूट में, जहाँ वनवास के दौरान भगवान राम ने अपना समय व्यतीत किया । अपने चित्रकूट प्रवास के दौरान नानाजी ने वहां के पिछड़ेपन, अशिक्षा और अंधविश्वास में डूबी जनता का मूक रुदन अनुभव किया । और फिर चित्रकूट का चेहरा बदलने के संकल्प के साथ वे समाज सेवा में जुट गए । गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों, कुटीर उद्योग और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में शोध कार्य इस प्रकल्प का लक्ष्य था | नानाजी का घोषवाक्य था ‘हर हाथ को काम, हर खेत को पानी” । नानाजी का यह चित्रकूट ग्रामीण विश्वविद्यालय भारत का पहला ग्रामीण विश्वविद्यालय था, और नानाजी इसके पहले चांसलर ।
आज हमारे आसपास न तो जेपी हैं और न ही नानाजी, लेकिन उनकी विरासत और आत्मा हमेशा हमें हमेशा प्रेरणा देती रहेगी । दोनों सच्चे कर्मयोगी थे । यह दोनों महान कर्मयोगी एक ही तिथि पर पैदा हुए और उनकी नियति भी एक समान थी।

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