वैचारिक जड़ता लाती ही कुंठा

राजस्थान के दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में एडिटोरियल पेज के हैडर पर वाल्तेयर की उक्ति आती है कि हो सकता है में आपके विचारों से सहमत न हो पाऊं फिर भी विचार प्रकट करने के आपके अधिकारों की रक्षा करूंगा। असल में यह उक्ति स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी को यह प्रतिबिंबत करती है। यह हमारे लिए गौरव की बात है कि चाहे देश में राजतंत्र रहे, लेकिन तब भी स्वस्थ लोकतंत्र की तरह शास्त्रार्थ किए जाते थे और उसी से निष्कर्ष निकालने की कोशिश की जाती थी। जाहिर तौर पर शास्त्रार्थ के मंच पर भिन्न-भिन्न प्रकार की वैचारिक पृष्ठभूमि के महानुभाव एकत्रित होते थे और वे अपने बुद्धि कौशल व ज्ञान के आधार पर अपनी बात को सही ठहराने की कोशिश करते थे, मगर हर पक्ष दूसरे पक्ष का पूरा सम्मान करता था। दूसरी ओर आज जब कि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र कहलाते हैं तो वामंपथियों द्वारा जो वैचारिक छुआछूत किया जा रहा है, वह दुर्भाग्यपूर्ण ही है। उसकी एक मात्र वजह ये है कि मूल रूप से उनकी वैचारिक पृष्ठभूमि भारतीय संस्कृति से भिन्न है, इसी कारण उनमें सहिष्णुता का अभाव है।
वस्तुत: वैचारिक रूप से संपन्न समाज वही है, जिसके पास हर दृष्टि के विचार हैं और उनका तुलनात्मक अध्यय कर जो बेहतर है, उसे अपनाता है। और यह भी पक्की बात है कि मतैक्य उन्हीं में होगा, जो बुद्धिजीवी होंगे, जाहिल और जड़ तो सदैव एक रूप ही होते हैं। जहां विचारों की विभिन्नता है, वहीं ताजगी है, वहीं मंथन है, जहां एक रसता है, वहीं कुंठा है, गंदगी है, जेसे कि ठहरा हुआ पानी जल्द ही गंदा हो जाता है, जबकि निरंतर बहने वाला नदी का पानी सदैव निर्मल होता है। हमारी कोशिश यही रहनी चाहिए कि हम हर नए विचार का स्वागत करें, चाहे उससे सहमत न हों। इसके अतिरिक्त वैचारिक मतभेद की स्थिति में कभी भी शिष्टता का त्याग नहीं करना चाहिए।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com

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