कांग्रेस को गर्त में धकेलेंगे ऐसे बयान 

-सिद्धार्थ शंकर गौतम-
rahul
अपने इतिहास की सबसे करारी हार को न पचा पाने की स्वाभाविक कमजोरी कांग्रेस नेताओं से ऐसे-ऐसे बयान दिलवा रही है जो पार्टी के वर्तमान और भविष्य को अधिक नुकसान पहुंचाने की कुव्वत रखते हैं| बुधवार को दिल्ली के ताल कटोरा स्टेडियम में राजीव गांधी की जयंती के अवसर पर आयोजित महिला कांग्रेस के कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने बड़ा ही बेतुका और विवादित बयान दे दिया| उन्होंने कहा कि जो लोग आपको माता और बहन कहते हैं, जो मंदिरों में मत्था टेकते हैं, देवी की पूजा करते हैं, वही बसों में आपके साथ छेड़छाड़ करते हैं| उन्होंने कहा कि समाज महज कानून से नहीं बदलता है| समाज में महिलाओं के प्रति सोच बदलने की जरूरत है| राहुल ने कहा कि जब तक लोगों की सोच नहीं बदलेगी तब तक समाज को बदलना आसान नहीं है| राहुल की इस बात से इंकार नहीं कि समाज में आमूलचूल परिवर्तन हेतु सोच में बदलाव लाना एक बड़ी चुनौती है किन्तु उनका मंदिरों और देवी-देवताओं की पूजा करने वाले सभी हिन्दुओं पर कटाक्ष करना निंदनीय है| अपवाद सभी जगह तथा सभी धर्मों में होते हैं किन्तु उनका यह मत नहीं कि अपवादों को बहुसंख्यक जनसंख्या से जोड़ कर उसे कठघरे में खड़ा किया जाए? हाल ही में दुष्कर्म की कई घटनाओं में सामने आया कि मौलवी, मुस्लिम शिक्षक आदि ने मुस्लिम समुदाय की पवित्र मस्जिदों एवं  मदरसों में पाप कृत्य किया| तो क्या, समुदाय विशेष के किसी व्यक्ति के दुष्कृत्यों को उसके धर्म या पूरी जाति से जोड़कर देखना उचित है? राहुल ने बयान तो दे दिया किन्तु उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी तथा भविष्य में उसके क्या नुकसान हैं, यह शायद राहुल सोचना भूल गए| कांग्रेस के कई नेताओं ने हिन्दुओं और सनातन धर्म पर अनर्गल प्रलाप किया है किन्तु राहुल ने तो सारी सीमाएं तोड़ डाली हैं| राहुल को अपनी मां सोनिया गांधी से कुछ सीख लेना चाहिए जिन्होंने चुनाव परिणामों के बाद पहली बार सार्वजनिक मंच से बोलते हुए संयत भाषा का प्रयोग किया| राहुल के बयान से हिन्दू आस्था को ठेस लगना निश्चित है| वैसे भी इस बार के लोकसभा चुनाव में हुई हार के निहितार्थों को देखें तो कांग्रेस और उसके कुछ नेताओं का हिन्दू अस्मिता पर प्रहार और मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति का प्रचार-प्रसार काफी हद तक जिम्मेदार रहा है| यही वजह रही कि जो हिन्दू वोट बंटे रहते थे, इस बार एक-मुश्त भाजपा की झोली में गिरे किन्तु लगता है राहुल इस तथ्य को समझना ही नहीं चाहते| मंदिरों और देवी पूजा करने वालों पर उनके बयान से एक बार पुनः हिन्दुओं का एकजुट होना कांग्रेस के सियासी भविष्य के लिए नुकसानदेह साबित होगा| आने वाले समय में होने वाले विधानसभा चुनावों में राहुल को अपने विवादित बयान देने की गलती का एहसास हो जाएगा|
इसी कार्यक्रम में पूर्व केंद्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पोरबंदर से आगे समुद्र तक छोड़ आने की बात कह दी| इससे पूर्व वे मोदी को कांग्रेस सम्मेलनों में चाय बेचने की मुफ्त राय भी दे चुके हैं| इस वर्ष के आम चुनाव प्रचार के दौरान भी अय्यर ने मोदी को नया लड़का की उपाधि दी थी और कहा था कि जोश में आकर इसकी जुबान फिसल जाती है| खैर, इस बार भी अय्यर के बयान से मोदी समुद्र पार जाएं न जाएं, कांग्रेस की दुर्गति तय है| दरअसल, कांग्रेस नेताओं में जब-जब मोदी पर सीधा हमला किया है, मोदी की सियासी ताकत में उतना अधिक इजाफा हुआ है| सोनिया गांधी ने मोदी को मौत का सौदागर कहा तो गुजरात में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया, राहुल ने मोदी के हाथों को खून से सना बताया तो कांग्रेस लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद शर्मसार हो गई| हालात इतने निर्दयी निकले कि पार्टी पहली बार लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद भी प्राप्त न कर सकी| पर अपनी गलतियों से सीखने की बजाए कांग्रेस नेता ऊल-जुलूल बयानों का सिलसिला छोड़ ही नहीं रहे हैं| गाहे-बगाहे दिग्विजय सिंह की जुबान भी ज़हर उगल ही देती है| कांग्रेस के नीति-नियंताओं को यह तथ्य भली-भांति ज्ञात भी है किन्तु नेताओं, प्रवक्ताओं और पूर्व-प्रवक्ताओं पर लगाम लगाने में पार्टी नेतृत्व अब तक विफल ही रहा है| खासकर मोदी पर सीधे टिप्‍पणी न करने के पार्टी के निर्देश का भी अब जमकर उल्लंघन हो रहा है| कहां तो कांग्रेस में चुनावी हार का सटीक विश्लेषण होना चाहिए किन्तु बयानवीर नेताओं ने हार की कुंठा को निकालने का आसान रास्ता ढूंढ़ लिया है| कुल मिलाकर लब्बो-लुबाव यह है कि कांग्रेस सियासी भूमिका में स्वयं की प्रासंगिकता बरकरार रखने में नाकामयाब हुई है| कांग्रेस को इससे सबक लेना चाहिए कि बयाओं के तीर से पार्टी का भला नहीं होने वाला| बिहार, यूपी, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली जैसे राज्यों में मुंह की खा चुकी कांग्रेस की विफलता तो यही बयां करती है कि पार्टी को राहुल-सोनिया युग से निकल विकासपरक राजनीति को प्रमुखता देनी होगी वरना आगे भी पार्टी की यही दुर्दशा होने वाली है और हमेशा की तरह ठीकरा बयानवीर कांग्रेसियों पर ही फूटेगा|
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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

6 COMMENTS

  1. आप सही हैं. मोदीजी की एक और बात लोगों को अखर गयी है. वह है बार बार स्वयं को ”चाय वाला बताना ”किन्तु व्यवहार में एक के बाद एक डिज़ाइनर सूट का उपयोग,अपने नाम वाला सूट आदि आदि. इतने जोड़ी सूट सामान्य आदमी पहिनता है क्या?गणतंत्र दिवस २६ जनवरी को मोदी केंद्रित बना दिया गया। अमेरिका का राष्ट्रपति दुनिया का चौधरी है और पटेल है. उसे तो यह देखना है की कौनसा देश उसके स्वार्थ की पूर्ती करता है?गणतंत्र दिवस पर ओबामा अमेरिका के हितार्थ आये थे ,भारत के लिए नही. मोदीजी ने अपने आप को ओबामा का पक्का मित्र और बालसखा निरूपित कर दिया. यहाँ तक की बजाय अमेरिका राष्ट्रपति या ओबामा साहेब कहने के या ”श्रीमान ओबामा कहने ”के वे पत्रकारों से चर्चा करते समय ”बराक” सम्बोधित करते थेज़ैसे ओबामा उनका बचपन का मित्र हो. मुझे याद है ‘ईटन और हीरो स्कूल ”में द्वितीय विष्व युद्ध के कई नेता और फौजी जनरल साथ साथ पढ़ते थे। ऐसा मैंने पढ़ा है.unme एक चर्चिल भी थे। किन्तु किसी नेता ने चर्चिल को ;;विंस्टन”के नाम से सम्बोधित नहीं किया. उन्हें ”सर चर्चिल” ही कहते। तीसरे आप ने जो जुमलों की बात कही वह एकदम ठीक है. किन्तु एक पक्ष और है. क्या अरविंदजी ने विपक्ष पर आरोप नहीं लगाये?अम्बानी ,अडानी और पता नहीं किसी से अंशदान लेने पर आपत्ति है तो क्या अरविंदजी बिना अंशदान लिए रैलियां प्रचार,हवाई यात्रायें कर गए?यदि मोदीजी ने लोकलुभावन नारे दिए हैं ,जुमले दिए है,तो अरविंदजी ने पानी,बिजली सस्ते माकन,वाई फै ,की बात नहीं कि.?यह चक्र परिवर्तन है. मतदाता परिवर्तन चाहता है. अरविंदजी ५ वर्ष में किस दर पर बिजली ,पानी। देते हैं झुग्गी झोंपड़ी की जगह पर ही मकान बनाकर देते हैं ,रोजगार उपलब्ध करते हैं,भृ ष्टा चार को कितना उखड़ते हैं समय बतायेगा. रही भाजपा के हारने की बात ,तो उनके कार्यकर्त्ता से लेकर सांसद तक सत्ता आने पर अनाप शनाप बोलने और दूसरे समुदायों को नसीहत देने के आदि हैं.वे आक्रामक नहीं हैं. ध्यान रहे वे हिंसक भी नहीं है.

  2. चिरकाल से मात्र बयान बाजी की उलटबांसियों पर आधारित कांग्रेस सत्ता-पक्षीय भारतीय पत्रकारिता समय समय पर किन्हीं लोगों द्वारा ऐसे ऐसे वक्तव्य प्रकाशित कर भोली भाली जनता के मन में अनावश्यक वाद-विवाद खड़ा करते कांग्रेस को राजनीतिक लाभ दिलाती रही है| और, आज यहाँ विषय की आड़ में लेखक मृत्यु-शैया पर पड़ी १८८५ में जन्मी बूड़ी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में प्राण फूंकने का व्यर्थ प्रयास कर रहा है| क्यों?

  3. राष्ट्रवादी विचार: पाठकों से मेरा विनम्र अनुरोध है कि श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व अधीन पहली बार भारत में सम्पूर्ण राष्ट्रवादी केन्द्रीय शासन के स्थापित होते राष्ट्र-विरोधी शक्तियों के प्रति सतर्क रहें| हाल में हुए निर्वाचनों में बुरी तरह विफल राष्ट्र-विरोधी तत्व फिर से सत्ता में आने के क्रूर उद्देश्य से उनके कुशासन से लाभान्वित मीडिया व सफेदपोश लोगों द्वारा अप्रासंगिक अथवा राष्ट्र-विरोधी लेखों में संशयी विचारों को प्रस्तुत कर सरलमति भारतीयों को पथभ्रष्ट कर रहे हैं| यह जानते हुए कि पिछले सरसठ वर्षों में फैली गरीबी, गंदगी, और पूर्व शासन में अयोग्यता व मध्यमता के कारण समाज के सभी वर्गों में उत्पन्न सर्व-व्यापी भ्रष्टाचार व अराजकता को पलक भरते ठीक नहीं किया जा सकता, हमें विशेषकर मोदी-शासन के विरोध में लिखे निबंध और लेखों द्वारा फैलाए व्यर्थ के वाद-विवाद से बचना होगा| यदि हम व्यक्तिगत रूप में अपना कुशल योगदान दें तो अवश्य ही प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में संगठित स्वाभिमानी व राष्ट्रवादी सामान्य भारतीय नागरिक भारत-पुनर्निर्माण कर पाएंगे|

    आज भारत में पहली बार सम्पूर्ण राष्ट्रवादी केन्द्रीय शासन के स्थापित होते चहूँ ओर मचे हर्षोल्लास के बीच यह अप्रासंगिक लेख अनावश्यक ही नहीं बल्कि रंग में भंग डालते दिखाई देता है|

    यदि आप मेरे विचार से सहमत हैं तो उपरोक्त संदेश को ऑनलाइन समाचार पत्रों व पत्रिकाओं में प्रस्तुत राष्ट्रीय शासन-विरोधी लेखों के उत्तर में संलग्न कर ओरों को भी ऐसा करने को कहें अथवा विषय पर स्वयं अपने “राष्ट्रवादी विचार:” लिखें|

  4. अभिनेता का नाटक वाला संवाद ये मूरख तालियाँ मिल जाएगी, इस (हीन) उद्देश्य से बोल गया।
    इसे पैरोपर खडा होकर सोचकर बोलने की आदत ही नहीं, न योग्यता है, न ज्ञान है।
    यह कौनसा नेतृत्व कर सकता है? कांग्रेस की हार का कारण ढूंढनेवालो, यह जीता जागता हार का बडा कारण है।
    ये शायद अभिनेता बन सकता है। नेता इस जन्म में नहीं।
    इसने जब भी मुँह खोला, भाडे के दर्शकों ने ही तालियाँ बजाई।

  5. I like the views expressed by Mr. Gautam; not because i like working of BJP but we as Indians are now fed up with Congress policies and view point and their culture. It is very unfortunate that the major opposition party has got imprisoned in the box of Gandhi, who never wanted congress to continue after Independence. . In last 67 years what have we got from congress regime , except stranding in ques for our daily needs as well . We hope and pray let Mr. Modi infuse and create and generate the feelings of liberation and second freedom in common man’s mind . We Indian need discipline and national feelings in our behavior and attitude; then only we can live in pride and held our head high in world community. Dr.K.K.Agarwal. . .

  6. कोई नई बात नहीं , राहुल गांधी में इतनी समझ होती तो आज कांग्रेस के ये हाल न हुए होते और लोग उन्हें” पप्पू” न पुकारते राहुल में न तो राजनीतिक परिपक्वता है और न ही आनी है। अय्यर जैसे नेता जिन्होंने आलाकमान की चरणवंदना में ही उसकी चौखट पर अपनी उम्र गुजारी है , से ज्यादा कोई उम्मीद क्या की जा सकती है? समुद्र में फेंकने वाले अब्दुल्ला को लोगों ने चुनाव में बहार फेंक दिया , उस से सबक न ले वे मोदी को समुद्र में फेंकने की बात करते हैं, पर लगता है कांग्रेस को ये नेता समुद्र में फेंक देंगे पराजय से घायल ये नेता इतने हताश हो गएँ है कि बोलने की सारी मर्यादाएं ही भूल गए कल तक ये दुसरे दलों को सीख देते थे पर आज इनका राजनैतिक चरित्र सामने आ गया है, ये अब भी यह नहीं समझ रहें हैं कि यह परिवर्तन उनके अपने कारनामों, व गरूर की वजह से हुआ है। मेडम सोनिआ भी विचत्र बयां दे यह सिद्ध करना छह रही हैं कि मोदी को चुनने वाली जनता बेवकूफ है जो उनकी बातों में आ गयी यहस्वीकर करने में उन्हें हिचक है कि जनता सब समझती है और अब उसे ज्यादा गुमराह नहीं किया जा सकता किसी ने ठीक ही कहा है कि पतन शुरू होने पर मति भी भ्रष्ट जाती है , शायद वही हाल कांग्रेस का होने जा रहा है

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