कांग्रेस,संविधान और राहुल गांधी

राहुल गांधी ने पटना में एक विशेष कार्यक्रम में कहा है कि बिना जातिगत जनगणना के दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों का विकास नहीं होगा । उनका इस प्रकार का आचरण देश के लिए बहुत घातक सिद्ध होने वाला है।
वह हिंदू समाज के लिए बहुत ही भयंकर स्थितियां पैदा करने की ओर जिद पूर्वक बढ़ते जा रहे हैं। अघोषित रूप से जिस प्रकार उन्होंने देश को ‘ मुस्लिम राष्ट्र’ मान लिया था, अब भाजपा के शासन में हिंदुत्व में पड़ती हुई जान को देखकर उन्हें अपनी जान निकलती हुई नजर आ रही है। भाजपा का विरोध करते-करते राहुल गांधी जिस प्रकार हिंदू विरोध पर उतर आए हैं, वह चिंताजनक है। राहुल गांधी अब तक के कांग्रेसी नेताओं को पछाड़कर और भी लंबी छलांग लगाने की कोशिश करते दिखाई दे रहे हैं।
राहुल गांधी बार-बार इस बात पर जोर दे रहे हैं कि भाजपा संविधान बदल देगी। उनकी इस प्रकार की प्रवृत्ति का उन्हें अभी हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में लाभ भी मिला। अब इस प्रकार की रट निरंतर लगाते जाना उनकी राजनीतिक कार्यशैली में सम्मिलित हो गया है।
राहुल गांधी जानते हैं कि हमारे संविधान में जाति, धर्म और लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। जातिगत जनगणना लोगों के बीच दीवार खड़ी करने के समान है। इस विभाजनकारी सोच के कारण भारत ने अतीत में कई गहरे जख्म सहे हैं। संविधान निर्माताओं की मान्यता थी कि भविष्य में इस प्रकार के जख्म फिर ना सहने पड़ें, इसके लिए जातिविहीन और वर्गविहीन यहां तक कि संप्रदायविहीन समाज का निर्माण किया जाना आवश्यक है और यह भी कि ये जाति, वर्ग और संप्रदाय की दीवारें जितनी शीघ्रता से गिरा दी जाएंगी, उतना ही समाज का भला होगा। जिसके लिए राज्य प्रयास करेगा । स्पष्ट है कि ऐसी स्थिति को लाने के लिए प्रत्येक राजनीतिक दल भी काम करेगा। परंतु राहुल गांधी इन सारी राजनीतिक शुचिताओं को उपेक्षित करते हुए अपनी जिद पर अड़े हुए हैं। वह भावनात्मक उछाल लाकर किसी भी प्रकार सत्ता को कब्जाने के लिए लालायित हैं । इसका परिणाम चाहे जो हो, वह सब कुछ स्वीकार करने को तैयार हैं । यदि राहुल गांधी को इस समय कोई हिंदू समाज के लिए ‘ नया जिन्ना’ कहे तो इसका भी उन पर कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है । लगता है वह इस भूमिका को अपने लिए ‘ वरदान’ के रूप में स्वीकार करने को तैयार हैं ।
राहुल गांधी ने यह भी समझ लिया है कि यदि उनकी गलत नीतियों के कारण कल को देश टूटता है तो उस समय अपनी गलतियों को छुपाने के लिए उत्तर क्या दिया जाएगा ? वह मानकर चल रहे हैं कि उस समय लोगों को कह दिया जाएगा कि हिंदुवाद की उग्रवादी सोच के कारण देश बंटा है । याद रहे कि यही आरोप 1947 में देश के बंटवारे के समय नेहरू गांधी ने सावरकर जी जैसे उन नेताओं पर लगाए थे जो देश को बंटने से रोकने के लिए भरसक प्रयास करते रहे थे। कांग्रेस ने 1947 में भी ‘ मुंशिफ’ को ही ‘ कातिल’ घोषित किया था और अब भी यह उसी रास्ते पर चल रही है। यह ‘ कातिलों ‘ को ‘ मुंसिफ ‘ और ‘ मुंसिफ ‘ को ‘ कातिल’ बनाने की कला में बहुत ही पारंगत पार्टी है।
हम सभी जानते हैं कि संवैधानिक व्यवस्थाओं के स्पष्ट और मजबूत होने के उपरांत भी भारत में कई ऐसे राजनीतिक दल हैं जो सीधे जातिवाद की राजनीति करते हैं और किसी जाति विशेष के आधार पर ही किसी प्रदेश में या केंद्र की किसी ‘ खिचड़ी सरकार ‘ में कोई मंत्री पद या प्रधानमंत्री तक बनने में सफल हो गए हैं। वे सारे प्रयास केवल असंवैधानिक ही नहीं थे अपितु संविधान की धज्जियां उड़ाने का काम करने वाले भी थे। 2014 के बाद लगा था कि अब इस प्रकार के प्रयासों पर पूर्णविराम लग जाएगा। परंतु राहुल गांधी ने अपनी राजनीतिक कार्यशैली से स्पष्ट कर दिया है कि वह इस प्रकार की गतिविधियों को और भी अधिक पैनी धार देकर देश को भविष्य की नई आपदाओं से परिचित कराने में किसी प्रकार की कमी नहीं छोड़ेंगे।
क्या राहुल गांधी देश के लोगों को यह बता सकते हैं कि नेहरू ,इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के साथ-साथ मनमोहन सिंह की सरकारों के काल में कांग्रेस ने जातिगत गणना न कराकर दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों को विकास से जानबूझकर वंचित किया ? यदि नहीं तो उन्होंने लगभग 60 वर्ष के अपने शासनकाल में इन जाति समूहों का विकास क्यों नहीं किया ? आज वह बार-बार यह भी कहते हैं कि देश के इतने उद्योगपतियों में से एक भी उद्योगपति एससी ,एसटी, ओबीसी का नहीं है ? तो क्या इस पर वह बता सकते हैं कि कांग्रेस के शासनकाल में भारत के कुल उद्योगपतियों में से कितने एससी, एसटी ओबीसी थे या महत्वपूर्ण पदों पर बैठने वाले लोग लोगों में से कितने लोग इन जाति समूहों से आते थे ? क्या अचानक ऐसा हो गया है कि जहां कांग्रेस अपने शासन काल में 100 में से 80 एससी, एसटी, ओबीसी को महत्वपूर्ण पदों पर बैठा रही थी वहीं केंद्र की मोदी सरकार ने उन सबको बाहर निकालकर कोई नई व्यवस्था देश को दे दी है ? स्पष्ट है कि ऐसा कहीं कुछ नहीं हुआ है। केवल भावनात्मक नारे लगाकर लोगों को भड़काने की कोशिश करते हुए राहुल गांधी सत्ता स्वार्थ के लिए विदेशी शक्तियों के हाथों में खेल कर भारत को अस्थिर करने का जानबूझकर गंभीर अपराध कर रहे हैं।
राहुल गांधी ने दिल्ली में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में जानबूझकर चुनाव में मजबूती से उतरकर चुनाव प्रचार नहीं किया है। वह चाहते हैं कि केंद्र में मोदी सरकार से जूझने के लिए केजरीवाल ही मुख्यमंत्री के रूप में आने चाहिए। इसके लिए उन्होंने अपनी पार्टी के गौरव को भंग करना तक भी स्वीकार कर लिया है। उन्हें पता है कि उन पर लोग फिर उंगली उठाएंगे कि जब से उन्होंने कांग्रेस का नेतृत्व संभाला है, तब से निरन्तर चुनाव हारने का उन्होंने कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। इसके उपरांत भी वह चुनाव हारने को तैयार हैं । पता है क्यों ? केवल इसलिए कि देश में हिंदू ,हिंदी और हिंदुस्तान की बात ना हो। उनकी इस सोच से उनके इरादे स्पष्ट होते हैं। जो कि निश्चित रूप से बहुत ही खतरनाक भविष्य की ओर संकेत कर रहे हैं।

डॉ राकेश कुमार आर्य

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