चुनाव राजनीति

कांग्रेस के खोखले चुनावी वायदे

-अरविंद जयतिलक- sonia
यह कहना कठिन है कि कांग्रेस के लोकलुभावन चुनावी घोषणापत्र को देश गंभीरता से लेगा या उस पर यकीन करेगा। इससे भी शयद ही लोग प्रभावित हों कि राहुल गांधी ने देश के हजारों लोगों से विमर्श कर उनके विचारों को घोषणापत्र में जगह दी है। सवाल विष्वसनीयता का है जिसे कांग्रेस गंवा चुकी है। आमजन की नजर में अब उसका घोषणापत्र महज एक छलावा है, जिसके बूते वह सत्ता की वैतरणी पार करना चाहती है। देश चकित है कि 2009 के जिस चुनावी घोषणापत्र में उसने सौ दिन के अंदर महंगाई कम करने और भ्रष्टाचार मिटाने का वादा किया था वह पांच साल बाद भी पूरा नहीं हुआ और उसे पुनः घोषणापत्र में षामिल किया है। आखिर देश कैसे यकीन करें कि दोबारा सत्ता में आने पर कांग्रेस इसे पूरा करेगी ही? किसी से छिपा नहीं है कि जब उसे महंगाई पर नियंत्रण लगाना चाहिए था तब वह वैष्विक कारणों को जिम्मेदार बता अपना बचाव कर रही थी। अब कैसे कोई ऐतबार करे कि वह दोबारा सत्ता में आने पर पुनः इसी तरह की जुगाली नहीं करेगी। कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणापत्र में भ्रष्टाचार से निपटने का संकल्प व्यक्त किया है। लेकिन यह सिर्फ षिगूफा भर है। उसके षुतुर्गमुर्गी आचरण के कारण ही देश को टू-जी स्पेक्ट्रम आवंटन में एक लाख छिहत्तर हजार करोड़ रुपए का नुकसान झेलना पड़ा और राश्ट्रमंडल खेल में भ्रष्टाचार के कारण दुनिया में भारत की छवि धूमिल हुई। भ्रष्टाचार को लेकर कांग्रेस कितना संजीदा है इसी से समझा जा सकता है कि केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के पद पर पी जे थॉमस की नियुक्ति मामले में प्रधानमंत्री को न्यायालय का फटकार सहनी पड़ी और देश से माफी भी मांगना पड़ा। रही-सही कसर कोयला आवंटन घोटाले ने पूरा कर दिया जिसमें देश को अरबों का चूना लगा और देश को उर्जा संकट से जुझना पड़ रहा है सो अलग से। घूस के एक अन्य मामले में सरकार के रेलमंत्री पवन कुमार बंसल को इस्तीफा देना पड़ा। अब सवाल यह कि कांग्रेस किस मुंह से भ्रष्टाचार मिटाने का भरोसा दे रही है? कांग्रेस ने घोषणापत्र में देश में बिजनेस और इकोनॉमी के लिए बेहतर माहौल उपलब्ध कराने और एक साल के अंदर नई डीटीसी (प्रत्यक्षश कर संहिता) और जीएसटी बिल को पारित कराने का वादा किया है। लेकिन उससे पूछा जाना चाहिए कि 2009 के चुनावी घोशणा पत्र में भी उसने अर्थव्यवस्था में सुधार के अलावा आतंकवाद और नक्सलवाद पर काबू, षिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, जल आपूर्ति, स्वच्छता, ग्रामीण विकास, कृशि, रोजगार, खाद्य एवं पोशण में सुधार के साथ महिला, दलित, आदिवासी, बच्चे एवं अल्पसंख्यकों के विकास व कल्याण के लिए ढेरों वादे किए थे। क्या पूरा किया? अर्थव्यवस्था की ही बात करें तो वित्त मंत्रालय का 5.7 से 5.9 फीसदी के बीच विकास दर होने का अनुमान धरा का धरा रह गया। सरकार की नीतिगत अपंगता की वजह से विदेषी मुद्रा भंडार में गिरावट आयी है। राजकोशीय घाटा बढ़ता जा रहा है। निर्यात में गिरावट और आयात में भारी वृद्धि से व्यापार घाटा अरबों डॉलर के पार पहुंच गया है। चालू खाते का घाटा से निपटने का सरकार के पास कोई रोडमैप नहीं है। 12वीं पंचवर्शीय योजना का प्रारुप तय करते समय सरकार ने 9 फीसदी विकास दर का लक्ष्य निर्धारित किया था लेकिन आज वह न्यूनतम स्तर पर है। कल-कारखाने ठप्प हैं। उत्पादित वस्तुओं की कीमत बढ़ती जा रही है। फिर कैसे भरोसा किया जाए कि कांग्रेस सत्ता में दोबारा आने पर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाएगी? कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में 70 करोड़ लोगों को सेहत का अधिकार, पेंशन का अधिकार, सामाजिक सुरक्षा एवं आवास देने का लालच परोसा है। लेकिन उचित होगा कि वह स्पश्ट करे कि पिछले दस वर्शों में क्या किया है? आज अनुसूचित जाति और जनजाति के वर्गों में बाल मृत्यु दर और कुपोशण की समस्या चिंताजनक हालात में है। सरकार का नेशनल रुरल हेल्थ मिशन और स्वास्थ्य बीमा योजना दम तोड़ चुका है। गरीबी उन्मूलन के लिए सरकार सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना, स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना, प्रधानमंत्री ग्रामोदय योजना, अत्योदय अन्न योजना और मनरेगा जैसी अनगिनत योजनाएं चला रही है। लेकिन देश के ग्रामीण इलाकों में आज भी निर्धन लोग औसतन 17 रुपए और शहरों में 23 रुपए रोजाना पर गुजर-बसर करने को मजबूर हैं। भूखमरी और कुपोशण की समस्या लगातार गहराती जा रही है। सरकार की गलत आर्थिक नीति के कारण ही आज 30 करोड़ से अधिक लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिल रहा है। जबकि सरकारी गोदामों में हर वर्श साठ हजार करोड़ रुपए का अनाज सड़ रहा है। विडंबना यह कि इससे निपटने के लिए सरकार ने अभी तक कोई रोडमैप पेश नहीं किया है। आखिर क्यों? घोषणापत्र में अगले पांच वर्श में दस करोड़ युवाओं को रोजगार देने की बात कही गयी है। लेकिन गौर करें तो 2009 के चुनावी घोषणापत्र में भी कुछ ऐसा ही वादा किया गया था। उस कसौटी पर कांग्रेसनीत सरकार खरा नहीं उतरी। युवाओं के लिए रोजगार सृजित करने के मामले में वह एनडीए सरकार से बहुत पीछे रही। लेकिन आष्चर्य की सरकार के मुखिया डॉ. मनमोहन सिंह अपनी सरकार का प्रदर्षशन एनडीए सरकार से उम्दा बताने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। जबकि आंकड़े बताते है कि ग्रामीण विकास और रोजगार के क्षेत्र में सरकारी खर्च जीडीपी का दो फीसदी से भी कम है। सरकार ने गरीबों को रोजगार देने के लिए मनरेगा योजना षुरु की। दावा किया कि इससे लोगों को रोजगार मिलेगा। गांवों से पलायन थमेगा। लेकिन ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला। उल्टे योजना भ्रष्टाचार का षिकार बन गयी है। कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा, महिलाओं के सशक्तिकरण, अनुसूचित जाति एवं जनजातियों का कानूनी सुरक्षा प्रदान करने का जिक्र किया है। लेकिन कांग्रेसनीत सरकार को स्पश्ट करना चाहिए कि जिस सच्चर समिति ने अपनी रिपोर्ट में अल्पसंख्यकों की समस्याओं को रेखांकित किया है क्या उसे दूर की है? क्या यह रेखांकित नहीं करता है कि कांग्रेस का मकसद अल्पसंख्यकों की भलाई नहीं बल्कि उनका वोट हड़पना है? कांग्रेस ने 2009 के चुनावी घोषणापत्र में महिला सुरक्षा का भरोसा दिया था। लेकिन उसका दावा खोखला साबित हुआ। घरेलू हिंसा अधिनियम पारित होने के बाद भी महिलाओं पर अत्याचार जारी है। दिल्ली बलात्कार कांड के बाद देशव्यापी जनाक्रोश से बचने के लिए सरकार ने सख्त कानून बनाए। लेकिन उसका असर नदारद है। कांग्रेस ने चुनावी घोषणापत्र में आदिवासी समाज के कल्याण के लिए ठोस कदम उठाने की बात कही है। लेकिन उससे पूछा जाना चाहिए कि अरसे से आदिवासी समाज आवासीय भूमि और कृशि के लिए जमीन की मांग कर रहा है और उसे क्यों नहीं दिया गया? फिलहाल कांग्रेस के लोकलुभावन वादों को देखते हुए समझना कठिन नहीं है कि उसे सत्ता से बेदखल होने का आभास हो गया है इसलिए वह लोकलुभावन वायदे किए हैं। लेकिन देश उसके नेतृत्ववाली सरकार की पिछली दस साल की गलतियों को नजरअंदाज कर उसके लोकलुभावन वादों पर विष्वास करेगा ऐसा संभव नहीं है। उसे दस साल की नाकामियों की कीमत चुकानी ही होगी।