राजनीति

जनजातीय बंधुओं को हिंदू से काटने की कांग्रेसी छटपटाहट

कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या यही है! कांग्रेस पर सदैव ही कोई न कोई वेताल सवार रहता है!! कभी कम्युनिस्ट, कभी टेररिस्ट, कभी नक्सलाइट, कभी अर्बन नक्सलाइट !!! कांग्रेस पर सवार ये वेताल कभी-कभी दिखते भी हैं किंतु अधिकांशतः ये अदृश्य ही रहते हैं। ये वेताल बहुधा ही कांग्रेस के प्रवक्ताओं की भाषा में झलकते भी रहते हैं। अब मध्यप्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार का उदाहरण ही ले लो। उमंग बोले – “हम आदिवासी हैं, हम हिंदू नहीं हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि “मैं ये बात कई सालों से कहता आ रहा हूं।” सिंगार ने यह घोर असत्य कहा किंतु उन्होंने एक अपने व्यक्तव्य में एक सत्य भी कहा – “शबरी भी आदिवासी थीं जिन्होंने श्रीराम को बेर खिलाए थे।” अब जब, सकल हिंदू समाज के आराध्य श्रीराम आदिवासी शबरी के झूठे प्रेम उनके संग धरा पर बैठकर सम्मान और प्रेमपूर्वक खा रहे हैं तो भला किसी भी हिंदू के लिए ये जनजातीय बंधु बेगाने, पराये या विधर्मी कैसे हो सकते हैं?! शबरी और शबरी के सभी वंशज सकल हिंदू समाज हेतु वर्णीय, स्वीकरणीय, आदरणीय ही हैं।

       जनजातीय समाज जिस प्रकार से प्रकृति की, सूर्य की, गाय की, फसल की पूजा करता है वह शैली सकल हिंदू समाज की पूजा पद्धति में नाना प्रकार से परिलक्षित होती है। 

     जनजातीय समाज को नगरीय समाज से तोड़ने का प्रयास एक कथित नगरीय वर्ग (अर्बन नक्सलाइट्स) का षड्यंत्र ही है। सिंगार का यह कथन उस कथित अर्बन नक्सलाइट्स के षड्यंत्र का भाग ही है जो रावण दहन, महिषासुर, माँ दुर्गा के असुर वध, के नाम पर किया जा रहा है। कांग्रेस के मप्र नेता प्रतिपक्ष का यह षड़यंत्र वैसा ही है, जैसा जनगणना मे जनजातीय बंधु स्वयं को हिंदू न लिखाएँ, ऐसा कहकर किया जा रहा है। वस्तुतः ये सभी षड्यंत्र नगरों मे रहने वाला एक अर्बन नक्सलाईट, विघ्नसंतोषी, देशतोड़क, समाजविभाजक प्रकार का वर्ग कर रहा है।  

      हमारे लगभग सभी कस्बों, ग्रामों, नगरों के प्रारम्भ मे मिलने वाले खेड़ापति मंदिर जनजातीय देव परंपरा का ही एक अंग है। जनजातीय देव जैसे बड़ादेव, बुढ़ादेव, घुटालदेव, भैरमदेव, डोकरादेव, चिकटदेव, लोधादेव, पाटदेव, सियानदेव, ठाकुरदेव आदि देवता आज वनवासी समाज के अतिरिक्त ग्रामीण क्षेत्रों मे अन्य सभी जाति, समुदाय, वर्गों में भी पूजनीय देव माने जाते हैं। 

      जनजातीय समाज और शेष हिंदू समाज की देवी पूजा तो और भी अधिक परस्पर समान है। घाटमुंडीन देवी, दंतेश्वरी देवी, मावलीदेवी, गोदनामाता, आमादेवी, तैलंगदेवी, कंकाली माता, लोहराजमाता, सातवाहीन माता, लोहड़ीगुड़िन माता, दुलारीमाता, शीतलादई माता, घाटमुंडिन माता, परदेशी माता, हिंगलाजिन माता, बुढ़िमाता, करमकोटिन माता, महिषासुन मर्दिनी, कोट गढ़िन, लालबाई, फूलबाई,  सतीमाता, काजली माता, महामाया देवी, परीमाता, अंबामाई, महालया देवी, जलदेवी, समलाया माता, बीजासनी माई, वामका माता, रोझड़ी माता, पीपला माता, बड़माता, आदि देवियां वनवासी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामों, क़स्बों, उपनगरीय व नगरीय क्षेत्रों मे भी सभी हिंदू समाजों द्वारा प्रमुखता से पूजी जाती है। 

     जनजातीय देव परंपरा का एक भाग ये भी है की ये हनुमानजी, गणेश जी, भेरुबाबा, गोगादेव, सिंगाजी, रामदेवजी आदि के भी पूजक होते गए व इन्हे पूजने के साथ साथ इन्हे अपने प्राकृतिक प्रतीकों मे मिलाते, घोलते चले गए। जनजातीय समाज की विभिन्न जातियों व अंतर्वर्गों ने इन देवताओं को परस्पर बाँट लिया व इन्हें विभिन्न प्रकार के अलग अलग वनीय वृक्षों पर स्थापित करते गए। जिस वनवासी वर्ग के देवता जिस प्रकार के वृक्ष पर निवास करते हैं उस जनजातीय वर्ग के लोग उस वृक्ष को न काटते हैं न काटने देते हैं।

    सदा से प्रकृतिपूजक जनजातीय समाज सूर्य, चंद्रमा, पेड़ पौधों, नदी, पहाड़, गाय, बैल, नंदी, सांड, नाग, सांप, बाज, मयूर, उल्लू, नीलकंठ आदि को भी पूजनीय मानता है और इनकी रक्षा करता है। अवसर चाहे कोई भी हो, बच्चे का जन्म हो, मृत्यु हो, विवाह हो, फसल बोनी हो, कटनी हो, नए यंत्र की पूजा हो जनजातीय समाज बड़ादेव अर्थात् शिवशंकर की पूजा अवश्य ही करता है। नगरीय समाज के उमापति महादेव  जनजातीय समाज के  बड़ादेव के ही परिष्कृत व संशोधित रूप हैं।   

                     अरण्यक समाज की चाकना परंपरा भी शेष हिंदू ग्रामीण परंपराओं से मेल खाती है। भारत के नागर समाज व अरण्यक समाज दोनों के ही प्राचीन इतिहास को देखें तो पता चलता है कि शिवलिंग का पूजन दोनों धाराओं मे समान रूप से होता रहा है।                         

                    भगवान श्रीराम के वनवास मे चौदह मे से दस वर्ष दंडकारण्य मे ही व्यतीत हुये हैं। जनजातीय समाज के मध्य श्रीराम का रम जाना, जनजातीय समाज अर्थात शैव समाज द्वारा श्रीराम के पक्ष मे युद्ध हेतु सहजता से उद्धृत होना आदि आदि घटनाक्रम श्रीराम के शिवभक्त होने से ही फलित हुये हैं। निषाद, वानर, मतंग, किरात, जटायु व रीछ आदि उस समय के प्रमुख जनजातीय समाज थे जो राम की शिवभक्ति व लोकभक्ति से प्रभावित होकर राम के पक्ष मे आ खड़े हुये थे। कथित नगरीय समाज में इन दिनों व्याप रहे अर्बन नक्सलाईट और विघ्नसंतोषी लोग है जो बड़ादेव व शिव मे भेद करके सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के मार्ग मे बाधा बनना चाहता है।

      अधिक उचित होगा कि उमंग सिंगार अपने कथन का खंडन करें व जनजातीय समाज को हिंदू समाज से काटने का प्रयास न करें। 

डॉ. प्रवीण दाताराम गुगनानी