कांगे्रस में फिर उठने लगे बेसुरे राग


सुरेश हिन्दुस्थानी
देश के सबसे बूढ़े राजनीतिक दल के रुप में पहचान रखने वाले कांगे्रस की आंतरिक स्थितियां वर्तमान में कुछ अच्छी दिखाई नहीं दे रहीं हैं। लम्बे समय से कुशल राजनीतिक नेतृत्व के अभाव से जूझ रही कांगे्रस पार्टी का वर्तमान कमोवेश नेतृत्वहीन सा ही दिख रहा है। देश की जनता की ओर से और कांगे्रस में भी कई नेताओं द्वारा इस प्रकार के स्वर समय समय पर मुखरित होते रहे हैं। ऐसे में कांगे्रस के भविष्य की परिणति किस प्रकार का अध्याय निर्मित करेगी, यह स्वयं कांगे्रसियों के लिए चिंतन का विषय हो सकता है। वर्तमान में यह चिन्ता भविष्य के लिए बहुत बड़ा सवाल खड़ा कर रही है। पहला प्रश्न तो यह है कि वर्तमान में ऐसा चिंतन करना और उसके अंतर्गत बयानबाजी करना कांगे्रस नेताओं के लिए खतरा समझा जाने लगा है। क्योंकि कांगे्रस में नेतृत्व पर सवाल खड़े करना एक चुनौती सा ही है। कांगे्रस के विरोध में कांगे्रस के अंदर ही उठ रहे स्वर पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने के लिए अवरोध का काम ही कर रही है। अभी हाल ही में कांगे्रस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर कुछ ऐसा ही अवरोध स्थापित करने का काम किया है। हम जानते हैं कि पूर्व में इन्हीं मणिशंकर अय्यर ने नरेन्द्र मोदी को चाय वाला कहकर कांगे्रस को संजीवनी देने का प्रयास किया था, लेकिन यही चाय वाली बात मोदी को सत्ता दिला गई। देश के सभी चाय वाले मोदी के साथ जुड़ते चले गए। इसलिए कहा जा सकता है कि मणिशंकर अय्यर ने एक प्रकार से भाजपा की जीत की राह आसान कर दी। कांगे्रस लगभग ऐसे ही हालातों से अब भी गुजर रही है। अंदर ही अंदर अपने नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं। ऐसे सवाल कांगे्रस की राह में कांटे बिछाने का काम कर सकते हैं।
कुछ समय पूर्व मेरठ के कांगे्रस जिलाध्यक्ष विनय प्रधान को इसलिए पदच्युत कर दिया कि उन्होंने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी को पप्पू कह दिया। इसी प्रकार बिहार के कांगे्रस अध्यक्ष अशोक चौधरी को भी कुछ ऐसी ही स्थितियों का सामना करना पड़ा। अभी हाल ही में कांगे्रस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर ने भी संकेतों में सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर हमला बोला है। उन्होंने कहा कि कांगे्रस का राष्ट्रीय अध्यक्ष मां या बेटा ही बन सकता है। इसकर सीधा सा आशय यह भी है कि यह पहले से ही तय है कि यह दोनों ही कांगे्रस प्रमुख रह सकते हैं। सवाल यह आता है कि ऐसे में कांगे्रस कौन से लोकतांत्रिक मूल्यों का पालन कर रही है। कांगे्रस नेता मणिशंकर अय्यर ने ऐसा बयान देकर वास्तव में कांगे्रस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर ही सवाल उठाए हैं। संभवत: वे इस बात को जानते हैं कि राहुल गांधी राजनीतिक रुप से पूरी तरह से अपरिपक्व हैं। कांगे्रस में राहुल से वरिष्ठ कई नेता लम्बा राजनीतिक अनुभव रखते हैं, इसके बाद भी वरिष्ठ नेताओं को राहुल के बराबर महत्व नहीं दिया जा रहा है। कुछ ऐसा ही आशय प्रदर्शित करने वाला बयान पूर्व केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश ने भी दिया था। धरे धीरे ही सही आज कांगे्रस के वरिष्ठ नेताओं को अपने भविष्य के प्रति चिन्ता होने लगी है। कांग्रेस पार्टी का वर्तमान और भविष्य उसके वरिष्ठ नेताओं के लिए कई प्रकार के प्रश्नचिन्ह उपस्थित कर रहा है। कांग्रेस में अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय व्यतीत करने वाले नेताओं द्वारा गाहे बगाहे कहा जा रहा है कि कांग्रेस की कमान बहुत जल्दी विरासती पृष्ठभूमि से उपजे राजनेता राहुल गांधी को मिलने वाली है। इससे जहां कांग्रेस के कुछ ऐसे नेता तो प्रसन्न दिखाई दे रहे हैं, जिन्हें अपनी क्षमताओं पर विश्वास नहीं हैं, ऐसे नेता कांग्रेस में बहुत हैं, जो संक्षिप्त मार्ग से पद और प्रतिष्ठा प्राप्त करने की लालसा रखते हैं, लेकिन जो नेता अपना राजनीतिक प्रभाव रखते हैं वे जरूर आत्म मंथन के दौर से गुजर रहे होंगे। कांग्रेस की भावी राजनीति के बारे में यह भी कहा जाने लगा है कि जब राहुल गांधी के हाथों में कमान आएगी तब वे ही लोग कांग्रेस को चलाएंगे जो राहुल गांधी के आसपास रहते हैं। ऐसे में कांग्रेस का भविष्य क्या होगा, इस पर आशंका के बादल उमड़ते दिखाई दे रहे हैं। जिस प्रकार से राहुल गांधी को कांग्रेस में नंबर एक पर विराजमान किया जा रहा है, कमोवेश उस तरीके को लोकतांत्रिक कतई नहीं माना जा सकता। केवल सोनिया गांधी के संकेत पर किए जाने सारे निर्णयों से यही बात सामने आती है कि कांग्रेस में सांघिकता का अभाव है। वहां महत्वपूर्ण निर्णयों में संगठन की भूमिका का कोई महत्व नहीं है। ऐसे में आज मणिशंकर अय्यर ने मुंह खोला है, भविष्य में कांग्रेस का अन्य कोई वरिष्ठ नेता मुंह खोल दे तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।

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