ऐतिहासिक मन्दिरों को ध्वस्त करने का षड्यंत्र

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दिल्ली हवाई अड्डा प्राधिकरण व जी एम आर ने बन्धक बनाए राजधानी के अनेक मन्दिर, दर्शनों से रोकने पर श्रद्धालुओं में जबरदस्त रोष

विनोद बंसल

दिल्ली के दक्षिण में एक गांव ने अपनी ज़िन्दगी के हजारों सालों में न सिर्फ़ अनेक उतार-चढ़ाब देखे बल्कि देश की आज़ादी के आन्दोलन व श्री विनोबा भावे के भू दान आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाई। मुगल काल में उसके ऊपर अनेक आक्रमण हुए तो अंग्रेजों के शासन काल में भी उसने अनेक हस्तियों से लोहा लिया। गांव के दोनों छोरों पर मन्दिरों व संतों की समाधियों की एक अविरल श्रंखला है। मन्दिरों के साथ बने बगीचे व पेडों के झुरमुट ने उन्हें एक अद्भुत आध्यात्म व रमणीय स्थल के रूप में स्थापित किया है। मन्दिर के गगन चुम्बी गुम्बद, उसकी स्थापत्य कला और दीवारों का ढ़ांचा मन्दिर की प्राचीनता का स्पष्ट बखान करता है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या और आस्था को देखते ही बनती है। आखिर क्या शक्ति है जो हजारों किलो मीटर दूर से लोग अपने-अपने परिवार के साथ लाखों की संख्या में यहां एकत्रित होते हैं, दर्शन करते हैं, प्रसाद चढाते हैं, लंगर चलाते हैं और अपनी मनोकामना पूरी होने की आशा के साथ लौट जाते हैं। साल में एक बार कनागती अमावस्या पर तो इतना बड़ा मेला लगता है कि प्रशासन को भी भारी भरकम प्रबन्ध करने पड़ते हैं। गांव के ठीक बगल में ही सेन्टूर होटल व इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अडडे के टी-3 टर्मीनल को बनाया गया।

नांगल देवत नामक इस गांव ने मुगलों, अंग्रेजों व अन्य आक्रमणकारियों से तो अनेक बार लोहा लिया और उन्हें परास्त किया किन्तु आज जिनको उसने अपना कहा उन्हीं ने उसे उजाड़ दिया। 1952-53 में हुई चकबन्दी के दौरान 28 बीघे में फ़ैली मन्दिरों की इस श्रंखला (धर्म स्थलों)को बिल्कुल अलग रखा गया जिसके अन्तर्गत कई मन्दिर, संतों की समाधियां, तालाब व शमशान घाट आदि आते हैं। 1964-65 में जब पालम हबाई अड्डे का विस्तार हुआ तब गांव की बेहद उपजाऊ लगभग 12000 बीघे भूमि ग्राम वासियों से छीन ली गई। ग्राम वासियों के अनुसार इसके बदले उन्हें मात्र 11/- रुपये प्रति गज के हिसाब से मुआवजा दिया गया जो हमारे पेट पर सीधी लात थी। इसके बाद सन् 1972 में गांव की आबादी को यहां से कंही अन्यत्र चले जाने का नोटिस थमा दिया गया किन्तु एक बड़े जन आन्दोलन की सुगबुगाहट की भनक लगने पर सरकार को अपना फ़ैसला टालना पड़ा। सरकार कहां चुप बैठने वाली थी उसने सन् 1986 में अवार्ड सुनाया और सभी को गांव खाली करने का आदेश हो गया। 360 गांवों की पंचायत बुलाई गई लोगों ने संघर्ष किया और महिलाओं के साथ सैंकडों ग्राम वासियों को गिरफ़्तार कर लिया गया जिनमें महिलाओं और कुछ पुरुषों को छोड रिहा कर लगभग 250 पर झूंठे व मनगढ़ंत केस दर्ज कर जेल भेज दिया गया।

गांव के बड़े बुज़ुर्ग किशन चन्द सहरावत(76 वर्ष) बताते हैं कि दिल्ली विधान सभा के अध्यक्ष डा योगानन्द शास्त्री के श्वसुर श्री हीरा सिंह भी ग्राम वासियों के साथ लड़ते हुए जेल गए थे। आन्दोलन का नेतृत्व पालम 360 गांव के प्रधान चौ रिजकराम सोलंकी व किसान नेता चौ महेन्द्र पाल सिंह टिकैत ने किया तथा प्रो जयपाल विद्यालंकार इसके संयोजक थे। 1998 तक केस चले किन्तु जब श्री साहिब सिंह वर्मा मुख्य मंत्री बने उन्होंने सभी केस बन्द करा दिए। इसके बाद ग्राम वासियों ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और दरियाब सिंह बनाम यूनियन आफ़ इण्डिया नामक केस दर्ज करा कर उससे गांव को बचाने का निवेदन किया। यह सब चल ही रहा था कि एक दिन 2007 में जी एम आर ने भारी संख्या में फ़ोर्स लगा कर चारों ओर से बुल्डोजर चला दिये और मन्दिर परिसर को छोड़ पूरे गांव को मलवे के ढेर में बदल दिया। लोगों को अपना सामान भी घरों से निकालने का समय नहीं दिया गया। गांव के ही श्री हंस राज सहरावत कहते हैं कि इस हादसे को सहन न कर पाने के कारण गांव के लगभग 300 लोगों ने अपनी जान दे दी। ग्रामीणों को न जगह दी न अपने और परिवार को सिर ढकने के लिए टैण्ट की व्यवस्था की। जी एम आर ने मात्र छ: माह का किराया देकर अपना पल्ला झाड़ लिया और लोग दर-दर की ठोकरें खाते रहे। जुलाई 2007 में जी एम आर ने 28 एकड़ में फ़ैले भव्य मन्दिरों, संतों की समाधियों व शमशान इत्यादि को अपने कब्जे में कर लिया। धीरे धीरे जी एम आर के बढ़ते शिकन्जे ने मन्दिर को न सिर्फ़ चारों ओर से लोहे की टिन सैट से सील कर दिया बल्कि वहां पर अपने आराध्य की पूजा अर्चना करने वाले भक्तों को भी तंग करना प्रारम्भ कर दिया। आज वहां न तो भक्तों को अन्दर जाने का सुगम रास्ता है और न ही वाहन खड़े करने के लिए व्यवस्था। सुरक्षा के भारी भरकम ताम झाम देख कर देहाती निराशा में आशा की गुहार लगा रहे थे।

अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लेने के लिए दिल्ली देहात से आजादी हेतु जो आन्दोलन छिड़ा वह इसी गांव से प्रारम्भ हुआ और सन् 1935 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने स्वयं यहां आकर आजादी के जज्बे के लिए ग्राम वासियों की भूरि भूरि प्रशंसा की। महात्मा गांधी के प्रिय अनुयायी आचार्य विनोबा भावे ने जब भू दान आन्दोलन का शुभारम्भ किया तब दिल्ली से जाते समय उन्होंने अप्रैल 1951 में इसी गांव में रात्रि विश्राम किया और यहीं के महाशय प्यारे लाल ने अपनी तीन एकड़ भूमि विनोबा जी को दान की जिसे उन्होंने तुरन्त उसी गांव के नत्थू व छज्जू जुलाहे तथा रिसाल नाई नामक तत्कालीन खेतिहर मजदूरों को एक एक एकड़ बांट दी जिसकी दूर-दूर तक चर्चा हुई।

मंदिरों के प्रति लोगों की अगाध श्रद्धा का अन्दाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि चारों ओर से भगवान के घर को सीखचों में बन्द करने के बावजूद लोगों ने बाउण्डरी के नीचे जमीन में गड्ढे खोद कर वहां से मन्दिर में प्रवेश का रास्ता बना लिया है। हर ब्रहस्पतिवार व अमावस्या के दिन यहां भक्तों का मेला लगा रहता है। श्राद्ध पक्ष में कनागती अमावस्या के दिन तो यहां बड़ा मेला लगता है जिसमें महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, पश्चिमी बंगाल, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश सहित अनेक राज्यों के लाखों लोग अपने-अपने पितरों का तर्पण यहीं आ कर करते हैं। बाबा समेराम सहित अनेक बड़े संतों की समाधि व शिवालय, एक तने से तीन पेड़ बने त्रिवेणी नामक वृक्ष, हजारों वर्ष पुराना बड़ का जर्जर होता वृद्ध किन्तु विशाल पेड़, बेहद नक्कासी व स्थापत्य कला का अनुपम उदाहरण भगवान शंकर का गगन चुम्बी मन्दिर व उसके पास के बने तालाब इत्यादि पवित्र स्थान आनायास ही मन को मोह लेते हैं।

ग्राम वासियों ने अपने गांव की उपजाऊ कृषि योग्य जमीन और उसके बाद अपने घरों को उजड़ना तो किसी तरह अपने दिल पर पत्थर रखकर स्वीकार कर लिया किन्तु जब आस्था और विश्वास की बात आती है तो मन्दिरों के लिये ग्राम वासी तिलमिला जाते हैं। जब खेत छिन गये, घर छिन गए तो इतनी दूर से अब मन्दिरों का ही क्या करोगे? इस प्रश्न के उत्तर में ग्राम प्रधान चौ सहराज सहरावत कहते हैं चाहे हमारी जान चली जाए किन्तु अपने आराध्य देवों को हम किसी भी कीमत पर वहां से हिलने नहीं देंगे। बाबा समेराम व भगवान भोले के इस पवित्र स्थान के लिए सिर्फ़ हमारा गांव ही नहीं पूरे उत्तर भारत के लोगों की अगाध श्रद्धा है। समाधियों व मन्दिरों के अन्यत्र स्थानांतरण के सुझाव पर गांव वासी पूछते हैं कि क्या महात्मा गांधी की समाधि को दिल्ली से गांघी नगर या जवाहर लाल नेहरू जी की समाधि को इलाहाबाद ले जाया जा सकता है? यदि नहीं तो यह अन्याय हमारे साथ ही क्यों। वे आगे कहते हैं कि जब इसी हवाई अड्डे के टी-2 रनवे नं 10/28 पर बनी पीर बाबा रोशन खान व बाबा काले खान की मजार का रखरखाव ही नहीं श्रद्धालुओं को वहां पर दर्शन कराने के लिए जी एम आर कंपनी अपने वाहन व अन्य सुविधाएं मुसलमानों को दे सकती है और उन मजारों के कारण रनवे को शिफ़्ट कर सकती है तो आखिर हमारे मन्दिरों के साथ ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों?

विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि जी एम आर इन प्राचीन मन्दिरों को भी तोड़ने की योजना बना रही है। उसने इस हेतु पुलिस फ़ोर्स मांगी जो कभी भी मिल सकती है जो लोगों की भावना को एक क्षण में ध्वस्त कर देगी। देखना यह है कि लोगों की आस्था और उनका स्वाभिमान जीतता है या कलियुगी रावणों का अहंकार जो सोने की लंका बनाने के लिए लोगों का सब कुछ कुचलने को तत्पर हैं।

2 COMMENTS

  1. जबरन भू अधिग्रहण मानवता के न्यायालय में अपराध है चाहे वह कोई भी करे.

  2. क्या यह न्याय संगत है कि जब वही काम नरेंद्र मोदी करते हैं तो ‘विकाश पुरुष’ कहलाते हैं जब वही काम कोई ऐंसा सत्ता प्रतिष्ठान करता है जो आपके मन माफिक नहीं तो वह मूर्ति भंजक ‘हिंदुत्व विरोधी’
    और यहाँ तक कि देशद्रोही तक ठहरा दिया जाता है. यह तो सरासर महा बेईमानी है.

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