आतंक की निरंतरता

संदीप कुमार श्रीवास्तव

7 दिसम्बर को भारत के प्रमुख पर्यटक स्थल वाराणसी में बम विस्फोट होता है। जिसमें दो निर्दोष लोगों की जान जाती है। एक दिन बाद गाजियाबाद के किसी साईबर कैफे से आंतकियों की धमकी आती है कि अगर भारत ने अमेरिका का सहयोग करना बन्द न किया तो काफिरों के खिलाफ ऐसे ही और अन्जाम को भुगतने के लिए तैयार रहे। इस तरह की आंतकी घटनाएं हमारे समाज और राष्ट्र की कुछ कमजोर कड़ियों की ओर इशारा करती हैं। सबसे पहले तो यह आन्तरिक सुरक्षा और कानून व्यवस्था बनाये रखने में हमारी असमर्थता का प्रमाण हैं। दुसरी ओर गठबंधन, राजनीति और क्षेत्रीय दलों के उदय ने कहीं न कहीं राष्ट्रीय सरकार की राजनीति इच्छाशक्ति को कमजोर किया है। हम अभी तक राष्ट्रीय मुद्दो पर आम राय कायम नहीं कर पाए है। चाहे आंतकवाद हो, नक्सलवाद हो, देश में कही भी विचरण, व्यवसाय या निवास की आजादी हो; राज ठाकरे द्वारा बिहारियों को भगाए जाने की घटना, कृषि व कृषकों की गिरती स्थिति; किसानों की आत्महत्या, बेरोजगारी, अशिक्षा, उच्च वर्ग द्वारा निम्न वर्गों का शोषण, भ्रष्टाचार, प्रशासनिक व राजनीतिक पारदर्शिता की कमी, पारस्थितिकीय असंतुलन या बढ़ती क्षेत्रीय अथवा आर्थिक विशमता हो, इन मुद्दो पर राजनैतिक दलों के बीच चाहे वह राष्ट्रीय स्तर के दल कांग्रेस या भाजपा हो या क्षेत्रीय स्तर के तमाम दलों के बीच आम राय का न होना और सरकार के बदलने के साथ ही समस्या से लड़ने की रणनीति भी बदल जाना, इस बात का संकेत हैं कि हम समस्याओं के समाधान का एक जुट प्रयास नहीं कर रहे हैं। इस कमजोरी का फायदा तुष्टीकरण करने वाले जनाधारविहिन नेता, राष्ट्रविरोधी तत्व, असामाजिक तत्व उठा रहे हैं। वाराणसी विस्फोट ने भले ही कुछ मासूमों की जान ली और कुछ दिनों के लिए सामान्य जनजीवन को प्रभावित किया लेकिन जनता ने आंतकियों के असली मसूंबो पर पानी फेर दिया। राष्ट्र को तोड़ना और साम्प्रदायिकता के जहर को लोगों के बीच फैलाने की साजिश नाकाम हुई है जो इस बात का सबूत है कि आम जनता अब जाति, धर्म के संकीर्ण स्वार्थों से उठ कर मानवीयता और राष्ट्रीयता के स्तर पर सोचने लगी है। 9 प्रतिशत की दर से बढ़ता विदेशी मुद्रा भंडार, अरबपतियों की बढ़ती संख्या की तुलना में आम जन की यह प्रतिक्रिया हमारे विकास का सबसे ठोस सबूत है। इस प्रतिक्रिया ने यह साबित किया है कि हमनें विकास किया है और यह विकास मात्र भौतिक नहीं है बल्कि मानसिक और संवेदनात्मक भी है। ऑख के बदले ऑख की मध्यकालीन सोच से हमारे राष्ट्र का हर सम्प्रदाय घृणा करता है। इस तरह की घटनाओं का लगातार होना हमारी प्रशासनिक अक्षमता और कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति का भी ठोस सबूत है। लंदन या मैड्रिड में होने वाले विस्फोटो के बाद जितनी तेजी से साजिशर् कत्ताओं को पकड़ा जाता है और ऐसी घटनाओं के दोहराव को रोका जाता है उससे हमें सबक लेने की जरुरत है।

1 COMMENT

  1. संदीप जी सादर अभिवादन …….
    आप का लेख पढ़ा आप बदलना चाहते हैं उस परिवेस को जो समाज को नुकसान पहुँचा रही है पर
    शिर्स में बैठे लोग अंजान होकर देख रहें हैं ऐसे लोगों पर मुझे तरस आता है ………
    लक्ष्मी नारायण लहरे
    युवा साहित्यकार पत्रकार
    कोसीर

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