भारत में लगातार घटती गरीबी एवं बढ़ती धनाडयों की संख्या

वैश्विक स्तर पर वित्तीय संस्थान अब यह स्पष्ट रूप से मानने लगे हैं कि विश्व में भारत की आर्थिक ताकत बहुत तेजी से बढ़ रही है। हाल ही में जारी किए गए एक सर्वे रिपोर्ट में यह बताया गया है कि भारत में पिछले बीते वर्ष में उच्च नेटवर्थ व्यक्तियों की संख्या एवं उनकी संपतियों में अतुलनीय वृद्धि दर्ज हुई है। जबकि विश्व के कई देशों विशेष रूप से विकसित देशों में उच्च नेटवर्थ व्यक्तियों की संख्या एवं इनकी सम्पत्ति में वृद्धि दर लगातार नीचे गिर रही है। इसका आश्य तो अब यही लगाया जा सकता है विश्व में आर्थिक शक्ति अब पश्चिम से पूर्व की ओर स्थानांतरित हो रही है।

भारत में जिस व्यक्ति की शुद्ध सम्पत्ति 5 करोड़ रुपए या उससे अधिक होती है उसे उच्च नेटवर्थ व्यक्ति (HNWI) कहा जाता है। पिछले वर्ष भारत में उच्च नेटवर्थ व्यक्तियों की औसत सम्पत्ति 8.8 प्रतिशत की दर से बढ़ी है, जबकि विश्व में यह औसतन 2.6 प्रतिशत की दर से बढ़ी है। इसका परिणाम यह हुआ है कि भारत में मिलिनेयर्स की संख्या बढ़कर 378,810 हो गई है और इनकी कुल सम्पत्ति 1.5 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर अर्थात 129 लाख करोड़ रुपए के आंकड़े को पार कर गई है। वर्ष 2024 में भारत में 4,290 अल्ट्रा उच्च नेटवर्थ व्यक्ति निवास कर रहे थे, जिनकी कुल सम्पत्ति 53,477 करोड़ अमेरिकी डॉलर थी। अल्ट्रा उच्च नेटवर्थ व्यक्ति उस नागरिक को कहते हैं जिसकी शुद्ध सम्पत्ति 3 करोड़ अमेरिकी डॉलर अथवा उससे अधिक होती है।

भारत में तो उच्च नेटवर्थ व्यक्तियों की संख्या बढ़ी है परंतु यूरोप में इनकी संख्या 2.1 प्रतिशत घटी है। ब्रिटेन में 14,000, फ्रान्स में 21,000, जर्मनी में 41,000 उच्च नेटवर्थ व्यक्तियों की संख्या घटी है। एशिया प्रशांत क्षेत्र में उच्च नेटवर्थ व्यक्तियों की संख्या 1.7 प्रतिशत बढ़ी है तो लेटिन अमेरिका में उच्च नेटवर्थ व्यक्तियों की संख्या 8.5 प्रतिशत घटी है। साथ ही, मध्य पूर्व में भी उच्च नेटवर्थ व्यक्तियों की संख्या में 2.1 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।

क्या भारत में उच्च नेटवर्थ व्यक्तियों की बढ़ती संख्या एवं इनकी बढ़ती सम्पत्ति से भारत में कहीं आर्थिक असमानता के गहराने का संकट तो खड़ा नहीं हो रहा है। हालांकि भारत में उच्च नेटवर्थ व्यक्तियों की बढ़ती सम्पत्ति, भारत की बढ़ती आर्थिक ताकत का प्रतीक भी है। परंतु, यदि इस बढ़ी हुई सम्पत्ति का लाभ समाज के समस्त नागरिकों को नहीं मिल पा रहा है तो यह सोचनीय प्रशन्न अवश्य है।

इसी संदर्भ में हाल ही में विश्व बैंक द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में अत्यधिक गरीबी में जीवन यापन करने वाले नागरिकों की संख्या में अतुलनीय रूप से कमी दर्ज की गई है। यह भारत के लिए  निश्चित ही बहुत अच्छी खबर हो सकती है। इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अत्यधिक गरीबी में जीवन यापन करने वाले नागरिकों की संख्या 34.44 करोड़ नागरिकों से घटकर 7.52 करोड़ नागरिक रह गई है। भारत में लगभग 27 करोड़ नागरिकों को अत्यधिक गरीबी से ऊपर ले आया जा सका है। विश्व बैंक की उक्त रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2011-12 में भारत की कुल जनसंख्या का 27.1 प्रतिशत नागरिक अत्यधिक ग़रीबी में जीवन यापन करने को मजबूर था परंतु वर्ष 2022-23 आते आते यह संख्या घटकर मात्र 5.3 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई है, जबकि, इस बीच भारत की जनसंख्या में भी वृद्धि हुई है। यह भारत में तेज गति से विकसित किए गए रोजगार के अवसरों के चलते सम्भव हो सका है। इस संदर्भ में विशेष रूप से केंद्र सरकार द्वारा लागू की गई विभिन्न योजनाओं के लाभ को देश की अधिकतम जनसंख्या तक पहुंचाने के कारण भारत में बहुआयामी गरीबी को कम करने में अपार सफलता हासिल की जा सकी है। बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) वर्ष 2005-06 में 53.8 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2022-23 में 15.5 प्रतिशत तक नीचे आ गया है। आगे आने वर्षों में भी यदि इसी प्रकार के आर्थिक विकास दर भारत में लागू रहती है तो बहुत सम्भव है कि कुछ ही वर्षों के उपरांत संभवत: भारत में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाला एक भी नागरिक शेष नहीं रहेगा।      

विश्व बैंक की उक्त रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी को कम करने में लगभग एक जैसी सफलता मिली है। इसी का परिणाम है कि भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में अत्यधिक गरीबी दर आज 18.4 फीसदी से घटकर 2.8 प्रतिशत रह गई है। इसी तरह से शहरी क्षेत्रों में भी अत्यधिक गरीबी दर जो 10.7 फीसदी के करीब थी, वह घटकर सिर्फ 1.1 पर आ गई है। इसी तरह का एक व्‍यापक अंतर ग्रामीण-शहरी जीवन के आर्थ‍िक व्‍यवहार में भी दूर हुआ है, यह अंतर 7.7 फीसदी से घटकर सिर्फ 1.7 प्रतिशत पर आ पहुंचा है। विशेष रूप से महिलाओं के बीच रोजगार के अवसरों में अतुलनीय वृद्धि दर हासिल की जा सकी है। ग्रामीण इलाकों में कृषि के क्षेत्र में महिलाओं को रोजगार के अवसरों में वृद्धि दर्ज की गई है। वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही में शहरी क्षेत्रों के बेरोजगारी की दर 6.6 प्रतिशत तक नीचे आ गई है, जो वर्ष 2017-18 के बाद से सबसे कम है।

भारत में गरीबी दूर करने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों ने मिलकर काम किया है। इस सम्बंध में विशेष रूप से केंद्र सरकार द्वारा कई योजनाएं लागू की गईं हैं। इन महत्वपूर्ण एवं विशेष योजनाओं में शामिल हैं – प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, प्रधानमंत्री जन धन योजना, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना, प्रधानमंत्री उज्जवला योजना, प्रधानमंत्री आयुषमान भारत योजना, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना, प्रधानमंत्री गरीब अन्न कल्याण योजना, जैसी अनेक योजनाओं ने देश में गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे नागरिकों को बहुत अधिक लाभ पहुंचाया है, जिससे इन्हें गरीबी रेखा के ऊपर लाया जा सका है। इसी प्रकार, स्वच्छ भारत मिशन, जल जीवन मिशन, डिजिटल क्रांति, मेक इन इंडिया, जन औषद्धि केंद्र, विभिन्न फसल की एमएसपी पर खरीदी एवं इसके माध्यम से किसानों को आय की गारंटी देना, मखाना बोर्ड का गठन, जनजातियों का सशक्तिकरण – ग्राम समृद्धि, दालों में आत्मनिर्भरता के लिए मिशन चलाना, प्रधानमंत्री धन धान्य कृषि योजना, ग्रामीण विद्युत आपूर्ति, किसानों को किफायती दरों पर यूरिया उपलब्ध कराना, भारत को पंख (उड़ान 2 की उड़ान और तेज हुई), विमानन के क्षेत्र में नए युग का प्रारम्भ, आदि क्षेत्रों में लागू की गई उक्त वर्णित विभिन्न योजनाओं के माध्यम से जो अतुलनीय कार्य किए गए हैं, उससे देश में रोजगार के करोड़ों नए अवसर निर्मित करने में सफलता हासिल की जा सकी है।

उक्त वर्णित विभिन्न योजनाओं को लागू करने में केंद्र सरकार ने कभी भी वित्त की कमी नहीं आने दी क्योंकि करों की वसूली में ईमानदारी एवं वित्तीय अनुशासन के चलते जीएसटी, आय कर एवं कारपोरेट करों में उच्च स्तरीय वृद्धि दर्ज हुई है। न केवल उक्त वर्णित विभिन्न योजनाओं को लागू करने के लिए पर्याप्त वित्त की उपलब्धता बनी रही है बल्कि पूंजीगत खर्चों में भी अतुलनीय वृद्धि दर्ज की जा सकी है। साथ ही, बजट में वित्तीय घाटे को भी लगातार कम करने में सफलता हासिल हुई है। और तो और, केंद्र सरकार के विभिन्न उपक्रमों की कार्यप्रणाली में इस प्रकार से सुधार किया गया है कि जो उपक्रम पिछले कुछ वर्षों पूर्व तक घाटे में चल रहे थे एवं केंद्र सरकार को इन उपक्रमों को चलायमान बनाए रखने के लिए प्रतिवर्ष वित्तीय सहायता उपलब्ध करानी होती थी, आज ये उपक्रम केंद्र सरकार के लिए कमाऊ पूत साबित हो रहे हैं। वित्तीय वर्ष 2024-25 में तो केंद्र सरकार के विभिन्न उपक्रमों ने 5 लाख करोड़ रुपए से अधिक की राशि का लाभ अर्जित किया है। इन सभी कारणों से केंद्र सरकार एवं विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा आम नागरिकों के भले के लिए लागू की गई विभिन्न योजनाओं को चालू रखने में किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना करना नहीं पड़ा है एवं जिसके चलते गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे करोड़ों नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार करने में अपार सफलता मिली है।  

प्रहलाद सबनानी

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