जय बोलो सुखराम राज की

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कुन्दन पाण्डेय

देश में इस समय सुखराम राज आ गया है। चौंकिए मत! इस राज में न तो सुख है, न राम। हैं तो बस सुखराम। क्योंकि सुखराम के भक्तों की संख्या दीन दूनी, रात चौगुनी की रफ्तार से बढ़ है। सुखराम का दिल बहुत ही छोटा है, लेकिन उसमें जगह अनलिमिटेड है। वह अपने भक्तों को कभी निराश नहीं करते। वह भारत के ऐसे जीनियस (जाज्वल्यमान नक्षत्र) हैं जिनके पास ‘सुख और राम’, दोनों का न फिनिश होने वाला ‘कुबेर का खजाना’ है।

सुखराम की भक्ति से आपके घर भी, कुछ ना कुछ आ ही जाएगा। बस यह ध्यान रहे कि भक्ति में ब्रेन का समुचित यूज अवश्य करिएगा, नहीं तो सूंघते हुए आयकर वाले भी आ जाएंगे। समस्या यह है कि आयकर, जवानी नहीं है जो आई और गई बल्कि ऐसा बुढ़ापा है जो अकेले नहीं जाता, साथ लेकर जाता है।

देश के हर घर में एक सुखराम मिल जाएंगे, नहीं होंगे तो पूरा घर किसी सदस्य को सुखराम बनाने में अपनी पूरी ताकत झोंककर सफल होने का बार-बार प्रयास कर रहा होगा। देश में नरसिम्हा राव सरकार में दूरसंचार मंत्री रहे सुखराम 1993 के एक दूरसंचार घोटाले में सजा पा चुके हैं।

और देश की यह स्थिति इसलिए है क्योंकि आप सुखराम की भक्ति की सलाह सबको देते हैं। आप झूठ अपने आप से कैसे बोलिएगा! अगर आप राम (या जो भी आपके सबसे प्रिय हों) के भक्त हैं, तो केवल इस कारण आपको हमेशा सुख से रहना चाहिए। लेकिन फिर भी यदि आपके पास सुख नहीं है, तब एक आखिरी ‘तीसरा रास्ता’ है। वह है सुखराम की भक्ति का! दोनों यदि आपके पास नहीं है, तो आप पक्के सुखराम भक्त हैं।

सुखराम का भक्त होना, भारत में सबसे आसान है। इसके लिए आप को किसी देवालय में नहीं जाना है। न तो आप को इन्हें कोई चढ़ावा-प्रसाद चढ़ाना है, न ही आप कभी व्रत-उपवास करना है। बस आपको ईमान बेचना है, वो भी आप को छूट है अपनी कीमत खुद तय करने की। आपके अपने ईमान की कीमत पर बाजार की शक्तियों, मांग-आपूर्ति या आरबीआई की बैंकिग नीतियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। आप जैसी चाहे, वैसी कीमत रख सकते हैं। ईमान को कई साल तक रखने के बाद भी बेच सकते हैं। यह सड़ने-गलने वाली चीज नहीं है। हां ज्यादा सप्लाई किए तो भाव गिर जाएगा।

भई सबसे शानदार बात ईमान बेचकर कमाई गई दौलत पर टैक्स तो कोई ‘माई का लाल’ आपसे नहीं ले सकता। बस यह है कि यह दौलत ज्यादा हो तो, आपको इस ब्लैक मनी को डकैतों, आयकर वालों और सीबीआई से बचाकर रखना होगा। बेहतर है कि आप अपनी ब्लैक मनी को समय रहते व्हाईट मनी में तब्दील कर लें।

लेकिन भई अन्ना ने ऐसी भ्रष्टाचार विरोधी लहर चलाई है कि लोग अब इश्क-मुश्क न पकड़ पाएं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। लेकिन दो नंबर का पैसा लोग खोजी कुत्ते से ज्यादे तेजी से सूंघकर जानने लगे हैं।

गौरतलब है कि सुखराम की भक्ति से वरदान पाते ही व्यक्ति हस्ती हो जाता है, सुखराम की भक्ति से कमाए धन का हस्तियां सदुपयोग-उपयोग नहीं कर पाती हैं। श्रीकान्त वर्मा की कविता का अंश देखिए…

हैजे से मरती हैं बस्तियां, जबकि मधुमेह और रक्तचाप से हस्तियां।

लेकिन समस्या यह है कि भक्तों को सुखराम प्रसाद तो देंगे ही! वे प्रसाद देने के मामले में बड़े दयालु हैं। क्या कहा जाए? राम से कुछ मिला नहीं, सुख से कभी संतोष हुआ नहीं तो मजबूरी में जनता का एक वर्ग सुखराम की भक्ति में लग जाता है। जो हाइ स्टेटस नहीं है, वो तो हाइ स्टेटस बनने के लिए जी-तोड़ सुखराम का प्रसाद पाने का अटेम्प्ट करता है।

इसका ज्वलंत रीजन यह भी है कि महंगाई डायन के इस जमाने में बिना पंडित-मौलवी और खर्च के, केवल सुखराम की ही भक्ति की जा सकती है। आप तो देख ही रहे हैं कि राम की भक्ति तो बीजेपी को ही सूट करती हैं, पता नहीं यूपी में कब तक सूट करेगी? बीजेपी अपना राम पर पेटेंटेड अधिकार होने का दावा भी करती है। जनता पेटेंटेड भगवान की भक्ति कैसे कर सकती है।

सुखराम सुख से हैं (गौर करिए नाम में पहले सुख है, राम बाद में) क्योंकि उन्हें लगता है कि राम यानि विष्णु (राम के मूल रूप) तो सिर्फ लक्ष्मी के साथ ही रहना पसंद करते हैं। और लक्ष्मी तो मेरे पास ही हैं। आज नहीं तो कल, त्रिलोकपति विष्णु (राम का मूल रूप) जैसा मर्यादित व्यक्ति लक्ष्मी के पास आ ही जाएगा। और यदि सुखराम के पास राम यानि साक्षात विष्णु हैं तो सुख की कमी तो हो ही नहीं सकती।

वैसे भी बीजेपी ने राम के साथ ऐसा सुलूक किया है कि लोग राम की भक्ति छोड़कर सुखराम की भक्ति में लग गए हैं। इसी कारण देश में सुखराम के भक्तों की संख्या दिनों-दिन बढ़ रही है। बीजेपी एक तरफ तो सुखराम के भक्तों (भ्रष्टाचारियों) का विरोध कर रही है, तो दूसरी तरफ सुखराम के अनन्य भक्त बाबूसिंह कुशवाहा को गले लगा रही है। अजीब विरोधाभास-उलटबांसी है भाई।

अरे यार, ये बीजेपी किसकी है सुखराम के भक्तों की (भ्रष्टाचारियों की), या राम के भक्तों की (सदाचारियों की)। बड़ा कन्फ्यूजन है यार! भाईयों बीजेपी को दोनों चाहिए सुखराम के भक्त और सुखराम के विरोधी (यानि माया और राम), ये तो बहुत मुश्किल है। बीजेपी एक म्यान में दो तलवार कैसे रखेगी? एक राम को केन्द्र सरकार में आने के बाद से रखा है कि नहीं, क्लियर ही नहीं करती। होगा ए कि दुविधा में दोनो गए, माया मिली न राम। आप तय करिए कि आप को सुख चाहिए या राम चाहिए या दोनों का कलियुगी गठजोड़ सुखराम!

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कुन्दन पाण्डेय
समसामयिक विषयों से सरोकार रखते-रखते प्रतिक्रिया देने की उत्कंठा से लेखन का सूत्रपात हुआ। गोरखपुर में सामाजिक संस्थाओं के लिए शौकिया रिपोर्टिंग। गोरखपुर विश्वविद्यालय से स्नातक के बाद पत्रकारिता को समझने के लिए भोपाल स्थित माखनलाल चतुर्वेदी रा. प. वि. वि. से जनसंचार (मास काम) में परास्नातक किया। माखनलाल में ही परास्नातक करते समय लिखने के जुनून को विस्तार मिला। लिखने की आदत से दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण, दैनिक जागरण भोपाल, पीपुल्स समाचार भोपाल में लेख छपे, इससे लिखते रहने की प्रेरणा मिली। अंतरजाल पर सतत लेखन। लिखने के लिए विषयों का कोई बंधन नहीं है। लेकिन लोकतंत्र, लेखन का प्रिय विषय है। स्वदेश भोपाल, नवभारत रायपुर और नवभारत टाइम्स.कॉम, नई दिल्ली में कार्य।

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  1. देश का मीडिया कांग्रेस, लिंग्वर्धक यन्त्र ,सेक्स वर्धक टानिक और दवाओं के प्रचार प्रसार में जी जान से लगा हुआ है..नतीजे सामने है…..६५ वर्षो से ….भ्रष्टाचार और बालात्कार की घटनाएं दिन दुनी और रात चौगुनी गति से बढती जा रही …..देश में भ्रष्टाचार और बलात्कार के लिए देश का चौथा खम्भा जिम्मेदार है…….
    सरकारी व्यापार भ्रष्टाचार

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