
प्रभुनाथ शुक्ल
मैं
तुम्हारे आँगन का आमरूद हूँ
तभी तो मैं महफूज़ हूँ
तुमने
मेरा बेइंतहा ख्याल रखा
मुसीबतों से मुझे संभाल रखा
मैं
छोटा सा नन्हा एक बीज था
कोई न मेरा अस्तित्व था
तुमने
मुझे उम्मीद से धरती में डाला
अंकुरित हुआ तो मुझे पाला
मैं
खुद को कभी मरने नहीं दिया
सपनों को टूटने नहीं दिया
तुमने
मेरे हौसले को बढ़ाया
और संजीदगी से जिलाया
मैं
अब उम्मीदों के साथ खड़ा हूँ
एक बीज से नन्हा सा पौधा हूँ
तुमने
मुझे सींचा और ताप से भी बचाया
अब मैं तुम्हारी उमीदों का पेड़ हूँ