सृष्टि के रचियता का दिवस – विश्वकर्मा दिवस

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परमजीत कौर कलेर

घर ,आशियाना,घरौंदा जिसमें पहुंच कर हम पाते हैं सुकून …अपना घरौंदा तो पशु पक्षियों को बड़ा ही प्यारा होता है …अगर घरौंदा न होता तो आज भी हम जंगलों में घूम रहे होते…सृष्टि के रचियता की दया के कारण ही आज हम घरों में रह रहे हैं…जी हां आज दिवस है निर्माण और सृजन के देवता का दिवस …यानि कि विश्वकर्मा दिवस। आज है सृष्टि के रचयिता, निर्माण और सृजन के देवता का दिवस…इस दिन अगर विश्वकर्मा जी किसी पर मेहरबान हो जाएं तो होता है सबका कल्याण…विश्वकर्मा जी की पूजा करने से हमें मिलता सुख और समृद्धि।जिन घरों में हम रह रहें हैं वो कारीगरों ने तो बनाएं ही हैं तो क्या आपने कभी सोचा है कि इसके अधिष्ठाता कौन है …जी हां अगर विश्वकर्मा जी न होते तो शायद आज भी हम जंगलों में भटक रहें होते …कलाकारी की रीत भी विश्वकर्मा बाबा ने ही चलाई थी …सारे संसार को कैसे छत उपलब्ध करवाना है वो विश्वकर्मा जी से बेहतर कौन जान सकता है …ये तो थी सिर पर छत की बात …सुबह जब हम उठते हैं तो तभी से हम यंत्रों से जुड़ जाते हैं …हमारा जीवन चल रहा है तो मशीनों की बदौलत…यानि कि यंत्रों के सहारे ।आज का युग ही है मशीनी …ऐसे में यंत्रो के देव को कैसे भूल सकतें हैं …भारतीय संस्कृति और पुराणों में भगवान विश्वकर्मा को यंत्रो का अधिष्ठाता और देव माना गया है … भगवान विश्वकर्मा जी ने ही हमें सुख सुविधाएं प्रधान की हैं…आप सोच रहे हैं कि वो कैसे …आज जितनी भी मशीनरी चल रही है…यानि कि जो यंत्र और शक्ति सम्पन्न भौतिक साधनों का निर्माण खुद विश्वकर्मा जी ने किया…प्राचीन समय में स्वर्ग लोक लंका , व्दारिका, हस्तिनापुर जैसी जगहों के भी रचयिता भगवान विश्वकर्मा ही थे।

हिन्दु धर्म में विश्वकर्मा को निर्माण और सृजन का देवता माना जाता है ….विश्वकर्मा पूजा के दिन लोहे की सभी दुकानें बंद रहती है यही नहीं भवन निर्माता यानि की मिस्त्री, कारीगर , मजदूर इस दिन छुट्टी करतें है…विश्वकर्मा पूजा के दिन इंडस्ट्री एरिया में , फैक्ट्रियों , लोहे की दुकानों, वाहन शो रूम, सर्विस सेंटर बंद रहते हैं …इस दिन मशीनों को हाथ तक नहीं लगाया जाता …इस दिन मशीनों को साफ किया जाता है …लोहे लकड़ी के औजारों , साधनों को दूध में पानी मिला कर इस पर को से धोया जाता है …इन्हें रंग रोगन किया जाता है……भगवान विश्वकर्मा की पूजा करना भी बेहद आसान है…विश्वकर्मा जी की पूजा और यज्ञ विधि ज्यादा कठिन नहीं है…जो यज्ञ करता है वो अपने कार्य क्षेत्र या घर में पूजा करता है…हो सके तो पूरा परिवार ही इस पूजा में शामिल हो …अगर कोई कार्यकर्ता है है तो आप उसके साथ पूजा पाठ करनी चाहिए …भगवान विष्णु का ध्यान करें इसके बाद पुष्प हाथ में लेकर …अक्षय लेना है और विश्वकर्मा पूजा ओम आधार शक्ततपे नम बोल के भगवान विश्वकर्मा और भगवान विष्णु का ध्यान करना है इसके बाद ओम कमयि नम इस मंत्र का जाप करना है और ओम अनन्तम नम जाप करते हुए अक्षय रखते रहेंगे और विश्वकर्मा की मूर्ति स्थापित करेंगे …ओम पृथि्प्यै नम का जाप करते हुए चारों दिशाओं में यहां भगवान विष्णु की मूर्ति रखी है वहां भगवान विश्वकर्मा जी की मूर्ति स्थापित करनी है…इसके बाद सारे परिवार को रक्षा सूत्र बांधना चाहिए …फिर एक जल पात्र में जल भर देना है…जब ये प्रक्रिया हो जाए तब इसके बाद विश्वकर्मा जी का ध्यान करें…

विश्वकर्मा जी की पूजा तो जन का कल्याण करने वाली है इसलिए हर इंसान को सृष्टिकर्ता, शिल्प , तकनीक और विज्ञान के जनक भगवान विश्वकर्मा जी की पूजा अर्चना जरूर करनी चाहिए।अगर हम अपने प्राचीन ग्रंथों पर गौर करें तो आदि काल से ही विश्वकर्मा शिल्पी और अपने विशिष्ट ज्ञान विज्ञान कारण तो जाने ही जाते हैं …इनकी पूजा बड़ी ही श्रद्धा के साथ की जाती है इंसान तो इनकी पूजा करते ही हैं वहीं देवता भी विश्वकर्मा की पूजा और वंदना करते हैं…प्राचीन काल में जितनी भी राजधानियां है वो सभी विश्वकर्मा जी ने ही बनाई थी इन्द्रपुरी , यमपुरी , वरूणापुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमंडलपुरी का निर्माण इन्होंने ही किया था …कहा जाता है कि सतयुग में स्वर्गलोक , त्रेता में लंका, व्दापर में व्दारका, कलयुग में हस्तिनापुर विश्वकर्मा जी ने ही बनाई हैं …विश्वकर्मा जी के लिए निर्माण कार्य मानो चुटकियों का काम है…सुदामा पुरी में तक्षिण रचना इन्होंने एक पल में कर दी थी …इसको अगर कोई कर सकता था तो वो थे भगवान विश्वकर्मा …और जितने भी पुरातन सिद्ध स्थान , मंदिर , देवालय जिनका उल्लेख शास्त्रों में मिलता और जिनका कोई उल्लेख नहीं मिलता तो उन सबके निर्माण का श्रेय भगवान विश्वकर्मा को ही जाता है…वो इतने प्रतिभाशाली थे कि वो इन्हें पल भर में बना लेते थे…भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से हर मनोकामना और अभिलाषा पूरी होती है …इसके साथ धन और सुख समृद्धि की आशा रखने वालों को तो इनकी पूजा जरूर करनी चाहिए…इनकी पूजा करने से सभी मुरादें पूरी होती हैं जो बहुत मंगलदायी हैं …भगवान विश्वकर्मा देवताओं के शिल्पी बताए जाते हैं और इनकी पूजा करने से आपको बहुत लाभ होता है … आज के जीवन में इसका महत्व और भी ज्यादा बढ़ गया है … कोई व्यक्ति अपने जीवन में इंजीनियर का स्थान बनाना चाहता है तो कोई आर्कीटेक्चर में ऊंचा मुकाम पाना चाहता है…भगवान विश्वकर्मा को उनकी कृपा मिले…इसके लिए हर किसी को विधि विधान से इनकी पूजा करनी चाहिए ।

शिल्प , वास्तुकला , चित्रकला, काष्ठकला , मूर्तिकला और न जाने कितनी कलाओं के जनक हैं विश्वकर्मा जी… देवी देवताओं के सुन्दर आभूषण और विमानों का सृजन भी इन्होंने किया था शिव के लिए सोने की लंका भी इन्होंने ही बनाई थी…उनकी शरण में गया हुआ कोई भी मायूस नहीं लौटता ..वो उन्हे धन वैभव से सम्पन्न तो करते ही हैं वहीं वो सब के मन की मुरादें भी पूरी करते हैं । भगवान विश्वकर्मा की महत्ता को ब्यां करती एक कथा भी है …कहते हैं कि काशी यानि वाराणसी में एक धार्मिक प्रवृति का रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था…वो अपने काम में बड़ा निपुण था…मगर स्थान स्थान पर घुम कर भी वो अपने भोजन से ज्यादा धन नहीं कमा पाता था…पति की तरह पत्नी भी काफी परेशान और चिंता में रहती थी क्योंकि उसके कोई बेटा नहीं था…पुत्र प्राप्ति के लिए दोनों पति पत्नी साधु सन्तों के पास जाते थे लेकिन उनकी इच्छा पूरी न हो सकी…एक पड़ोसी ब्राहम्ण ने रथकार की पत्नी को सलाह दी कि वो भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाए…वहां तुम्हारी इच्छा जरूर पूरी होगी, अमावस्या वाले दिन रथकार की पत्नी ने भगवान विश्वकर्मा की पूजा की और इस तरह रथकार को भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने से पुत्र और धन की प्राप्ति हुई और वे सुखी जीवन व्यतीत करने लगे…भारत में जितने भी प्राचीन काल की इमारतें , भवन , मंदिर , देवालय, पूरे भारतवर्ष में बने कुएं बावड़ी विश्वकर्मा जी के वंशजों की कला कौशल की पहचान है …विश्वकर्मा जी में सत्यम् -शिवम् – सुन्दरम् रूप के दर्शन होते हैं …विराट रूप में विश्वकर्मा के दर्शन , ऐश्वर्य , अव्दितीय और आलौकिक हैं।

भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूप हैं …उनकी कहीं पर दो बाहें, कहीं चार, कहीं पर दस बाहें और एक मुख दिखाया गया है…विश्वकर्मा जी के पांच पुत्र थे मनु , मय , त्वष्टा, शिल्पी और दैवज्ञ हैं …उनके पांचों पुत्र अलग अलग विधाओं में माहिर थे और उन्होंने कई वस्तुओं का आविष्कार वैदिक काल में किया। मनु ने लोहे, तो मय को लकड़ी,त्वष्टा को कांसे और तांबे , शिल्पी ईंट और दैवज्ञ सोने चांदी के कार्य में माहिर थे…भगवान विश्वकर्मा गृह भवन के निर्माता ही नहीं थे …उन्होंने ब्रहमा को कण्डिका , शक्ति, विष्णु को पणव और कौमुदी को गदा, राम को धनुष , इन्द्र को कवच और वज्र, शंकर को त्रिशूल , कृष्ण को सुदर्शन चक्र, अग्नि को परशु , धर्मराज को दंड, परशुराम को कलात्मक शिव धनुष, राजा रघु को सांरग – धनुष भेंट के रूप प्रदान किए थे …महाभारत के युद्ध के समय आधुनिक अस्त्र – शस्त्र और कलात्मक रथों की रचना की थी…विश्वकर्मा जी ने दिव्य -दृष्टि नामक यंत्र बनाया जो बड़ा ही अनुपम और आलौकिक था …उस जमाने में इस यंत्र में युद्ध में हो रही हलचलों को देखा जा सकता था…यही यंत्र आजकल दूरदर्शन यानि टैलीविजन कहलाता है…ऐसा माना जाता है आज के भौतिक युग में भगवान विश्वकर्मा उपकारक देव माने गए हैं …ऐसा माना जाता है कि विश्वकर्मा जी की पूजा पूरे विधि विधान से करने पर …कठिन मशीनरी कामों में सफलता मिलती है ।

2 COMMENTS

  1. अति उत्तम, सरल व धाराप्रवाह भाषा में उपयोगि जानकारी देने हेतु साधुवाद व शुभकामनायें.

  2. नामक यंत्र बनाया जो बड़ा ही अनुपम और आलौकिक था …उस जमाने में इस यंत्र में युद्ध में हो रही हलचलों को देखा जा सकता था…यही यंत्र आजकल दूरदर्शन यानि टैलीविजन कहलाता है…ऐसा माना जाता है आज के भौतिक युग में भगवान विश्वकर्मा उपकारक देव माने गए हैं …ऐसा माना जाता है कि विश्वकर्मा

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