डॉ. शंकर सुवन सिंह
हिंदुस्तान की संस्कृति ऋग्वेद जितनी पुरानी है। ऋग्वेद की रचना ईसा मसीह के जन्म लेने के 2500 वर्ष पूर्व की है। सफल जीवन के चार सूत्र हैं- जिज्ञासा,धैर्य,नेतृत्व की क्षमता और एकाग्रता। जिज्ञासा का मतलब जानने की इक्षा। धैर्य का मतलब विषम परिस्थितयों में अपने को सम्हाले रहना। नेतृत्व की क्षमता का मतलब जनसमूह को अपने कार्यों से आकर्षित करना। एकाग्रता (एक+अग्रता)का अर्थ है एक ही चीज पर ध्यान केन्द्रित करना। यही चारो सूत्र आपके ज्ञान को विशेष स्वरूप प्रदान करता है। ज्ञान,शान्ति का प्रतीक है। अज्ञानता,अशांति का प्रतीक है। विश्व में शान्ति वही कायम कर सकता है, जो ज्ञानी है। अज्ञानी तो अशांति का कारक होता है। अपराधी अज्ञानी होते हैं। अज्ञानता ही सारे अपराधों की जननी है। ज्ञान संस्कारों की जननी है। किसी भी देश की संस्कृति व संस्कार, उस देश में शान्ति को स्थापित करने में अहम् भूमिका निभाती है। भारत जैसे देश को अपनी वैदिक संस्कृति व सभ्यता में लौटना होगा तभी इस देश में शान्ति कायम हो सकती है। सत्य, अहिंसा विरोधी रथ पर सवार हो सत्ता के चरम शिखर पर पहुँचने वाले सुधारकों की मनोदशा ठीक नहीं है। सुधारकों की प्रवृत्ति ठीक होती तो देश में सत्य,अहिंसा का प्रवाह होता है। भारत जैसे देश में आए दिन अपराध जैसे हत्या,लूट,छिनैती,बलात्कार,धार्मिक उन्माद आदि होते रहते हैं। अपराध के मामलों में उत्तर प्रदेश भी शिखर पर है। प्रयागराज के नैनी स्थित हुक्का बार में 14 फरवरी 2023 को एक बालू कारोबारी की हत्या कर दी जाती है। अभी हाल ही में 24 फरवरी 2023 को राजू पाल हत्याकांड में मुख्य गवाह उमेश पाल को दिनदहाड़े सरेआम गोलियाँ और बम से भून दिया जाता है। इस हत्याकांड में उमेश पाल के गनर को भी अपराधी दौड़ाकर गोलियों से भून देते हैं। इस घटना से उत्तर प्रदेश के पुलिस प्रशासन और क़ानून व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह उठना स्वाभाविक है। इस घटना का मुख्य कारण न्याय मिलने में विलम्ब होना और क़ानून व्यवस्था का लचर होना है। उधर पंजाब में भारत के अमृतकाल के लिए अमृतपाल कहर बनता जा रहा है। पंजाब में खालिस्तानी संगठन (वारिस पंजाब दे) का मुखिया अमृतपाल सिंह और उसके गुंडों ने अमृतसर के अजनाला थाने को घेर कर अपने कब्जे में कर लिया था। अमृतपाल सिंह ने अमृतसर के एस एस पी (जेष्ठ पुलिस अधीक्षक) को भी धमकी दे डाली ” हिम्मत हो तो गिरफ्तार करके दिखाओ”। वो दिन दूर नहीं जब भारत की क़ानून व्यवस्था अपराधियों की गुलाम हो जाएगी। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारत विरोधी नारे लगते है तो वहीं पंजाब में खालिस्तानियों के सामने पुलिस आत्मसमर्पण कर देती है। इधर उत्तर प्रदेश में अपराध अपने चरम सीमा पर है। इस प्रकार की घटनाएं प्रत्येक दिन भारत के प्रत्येक राज्य से सुनने को मिल जाती है। भारत में महिलाओं के खिलाफ चौथा सबसे आम अपराध बलात्कार है। राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के मुताबिक साल 2019 में भारत में करीब 32 हजार रेप के मामले दर्ज हुए थे। देश के हर राज्य से ऐसी घटनाएं आए दिन हो रही हैं। इस प्रकार की घटनाएं समाज के बदलते स्वरुप,नेताओं के कोरे वादे और इंसानियत के साथ खिलवाड़ का वीभत्स रूप दर्शाती है। समाज में असहिष्णुता का विकास हो रहा है। समाज में बढ़ती बेरोजगारी, अशिक्षा, नैतिक मूल्यों का पतन आदि बुराइयां ही दरिंदगी और वहशीपन का कारण हैं। अपराध पर अनियंत्रण पुलिस के कार्य प्रणाली पर भी प्रश्न चिन्ह उठता है। पुलिस की अकर्मण्यता से अपराध का जन्म होता है। न्याय विभाग द्वारा ऐसे दोषी पुलिस कर्मियों को सख्त से सख्त सजा देनी चाहिए। दुनिया में सबसे अधिक अपराध दक्षिण अमेरिका के वेनेजुएला में होता है। अपराध के मामलों में भारत विश्व में 68 वें नम्बर पर आता है। भारत की आबादी लगभग 140 करोड़ पहुँच गई है। जिन अपराधों के केस दर्ज होते हैं वे आंकड़े बन जाते हैं और जो दर्ज नहीं होते वो आंकड़ों से बहार हो जाते हैं। सामाजिक व्यवस्था का नियंत्रण कानून के द्वारा ही संभव है। क़ानून का उद्देश्य प्रत्येक पीड़ित तक न्याय को पहुँचाना है। न्याय के बिना कानून की कल्पना करना व्यर्थ है। न्याय को अंग्रेजी में जस्टिस कहते है।जस्टिस शब्द लैटिन भाषा के जस से बना है, जिसका अर्थ है- बाँधना या जोड़ना। न्याय और व्यवस्था एक दूसरे के पूरक हैं। बिना न्याय के किसी भी व्यवस्था का संचालन असंभव है। न्याय का व्यवस्था से स्वाभाविक सम्बन्ध है। न्यायिक व्यवस्था समुदायों और समूहों को एक सूत्र में बाँधती है। मेरियम के अनुसार, न्याय उन मान्यताओं तथा प्रक्रियाओं का योग है जिनके माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति को वे सभी अधिकार तथा सुविधाएँ प्राप्त होती हैं जिन्हें समाज उचित मानता है। न्याय, पीड़ित व्यक्ति को बल प्रदान करता है। वहीं देश विरोधी ताकतों के सामने पुलिस नतमस्तक है। पीड़ित व्यक्ति न्याय व्यवस्था का लाभ लेने के लिए दर दर की ठोकरें खाता है। वहीं गुंडे मवाली थानों का घेराव करके पुलिस को अपने पक्ष में कर लेते हैं। यहां न्याय अनीति से चल रहा है जबकि न्याय नीति से चलता है। न्यायिक प्रक्रिया सुगम और सरल होनी चाहिए। न्यायिक अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि वो न्याय को सुगम और सरल बनाएं। प्रदेश की लचर कानून-व्यवस्था के कारण प्रदेश में अपराध बढ़ रहा है। अतएव हम कह सकते हैं कि अपराध लचर क़ानून व्यवस्था प्रमाण है।