आलोचना साहित्‍य

आलोचना की हद !

posterदुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्त्रिक देश भारत की सबसे अच्छी खूबी यह है की यहाँ बड़े से बड़ा और सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी अपने देश की सरकार से सवाल पूछने और उसकी कमी बताने के लिए स्वतंत्र है . आज विश्व के बहुत से देशों के लोग जहा अपनी ही सरकार की तानाशाही सहने को मजबूर है , बहुत से देश जहा अपनी बात कहना तो दूर व्यक्ति सिर्फ इसलिए आतंकवादियों द्वारा मौत के घाट उतार दिया जाता है क्योकि वह उनके धर्म का नहीं है , वहां भारत ही एक ऐसा देश है जहा हर तबके का व्यक्ति बिना किसी भय के अपनी बात कह सकता है .

सकारात्मक आलोचना किसी भी देश की प्राण वायु के सामान होती है . इससे सरकार को यह पता चल पता है की उनकी नीतियों और कार्यप्रणाली पर देश की जनता क्या सोचती है . परन्तु जब सरकार के विरोधियों द्वारा की जाने वाली आलोचनाएँ नकारात्मक रूप ले लेती है तब यही देश के प्राण में जहर भरने का काम करती है .अफ़सोस की बात यह है की आज भारत की विपक्षी पार्टियां प्रधानमंत्री के विरोध में इस कदर अंधी हो गयी है की वह देश को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी नीचा दिखाने से गुरेज नहीं कर रही है .देश में लेखकों/फिल्मीहस्तियों द्वारा सरकार के विरोध में सम्मान लौटने वालों को समर्थन देने वाली विपक्षी पार्टियां यह नहीं सोच रही की उनके ऐसा करने से देश की छवि विश्व पटल पर भी खराब हो रही . इतना ही नहीं जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ब्रिटेन के दौरे के समय अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के द्वारा भारत में फैली तथाकथित असहिष्णुता पर उनसे सवाल पूछे गए तो देश की विपक्षी पार्टियों ने अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का खुल कर स्वागत किया. जबकि इस तरह के सवाल से नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत छवि से ज्यादा देश की छवि को नुकसान पहुँचता है .मगर विरोधियों को इससे क्या लेना देना.

इसके अलावा नेहरू जयंती के अवसर पर कांग्रेस पार्टी के कुछ सदस्यों द्वारा एक विवादित पोस्टर लगाया गया जिसमे पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू को ‘राजा भोज ‘ और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘गंगू तेली’ कह कर मजाक बनाया गया.यह प्रधानमंत्री के अपमान के साथ साथ एक तरह से समाज के उन सभी लोगों का अपमान है जो छोटी जाति से आते है .आश्चर्य की बात तो यह है की चुनावों के दौरान जाति के अंतर को मिटाने का वादा कर जनता से वोट मांगने वाली कांग्रेस और अन्य पार्टियों ने प्रधानमंत्री की जाति का मखौल उड़ानेवाले उस पोस्टर पर किसी भी तरह की शर्मिंदगी नहीं व्यक्त की.आखिर यह विरोध और आलोचना का कौनसा स्तर है जहा नेहरू को महान बताने के लिए कांग्रेस को मोदी को नीचा दिखाना पड़ रहा है .

वहीँ बिहार में भाजपा की हार पर यह कहने वाले की बिहार का फैसला ही देश का फैसला है, 2014 में आये देश के फैसले को आखिर क्यों भूल जाते है . एक राज्य के चुनाव परिणाम को पूरे देश से जोड़ कर प्रधानमंत्री की आलोचना करना कहा तक सही है . हमे यह नहीं भूलना चाहिए की इसी देश की जनता ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाया है और उन पर व्यक्तिगत हमले कर उनका अपमान करना एक तरह से देश की जनता द्वारा दिए गए उस ऐतिहासिक जनाधार का भी अपमान करना है . इसलिए विपक्षी दलों को आज आत्ममंथन करने की आवर्श्यकता है.उन्हें सोचना होगा की नरेंद्र मोदी को झुकाने की फ़िराक में वो कही देश के लोकतंत्र को तो नहीं झुका रहे .उन्हें प्रधानमंत्री पर निजी हमले करने के बजाये ,सरकार से देश से जुड़े जरुरी मुद्दों पर बहस करना चाहिए.तभी विपक्षी दल इस देश की जनता के मंन में अपने प्रति विश्वास जगा पाएंगे . लोकतंत्र में आलोचना और विरोध जरुरी है मगर अपने निजी विरोध को राजनीतिक विरोध से आगे रखने से सभी पार्टियों को बचना चाहिए..सार्वजनिक जीवन में दूसरे के प्रति विरोध या उसकी आलोचना एक हद तक हो तभी बेहतर रहता है. खासतौर से देश के राजनैतिक दलों को एक दूसरे की आलोचना करते समय विरोध और नफरत के बीच की महीन रेखा को कभी पार नहीं करना चाहिए .यही देश के हित के लिए अच्छा है

-अवन्तिका चन्द्रा