पितृपक्ष में होता हैं कौओं का विशेष महत्व —

कौओं को पितरों का रूप माना जाता है। मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितृ कौए का रूप धारण करके आते हैं। गरुड़ पुराण में बताया है कि कौवे यमराज के संदेश वाहक होते हैं। श्राद्ध पक्ष में कौएं घर-घर जाकर खाना ग्रहण करते हैं, इससे यमलोक में स्थित पितर देवताओं को तृप्ति मिलती है।

शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि कौवा एक मात्र ऐसा पक्षी है जो पितृ-दूत कहलाता है। यदि दिवंगत परिजनों के लिए बनाए गए भोजन को यह पक्षी चख ले, तो पितृ तृप्त हो जाते हैं। कौवा सूरज निकलते ही घर की मुंडेर पर बैठकर यदि वह कांव- कांव की आवाज निकाल दे, तो घर शुद्ध हो जाता है।

श्राद्ध के दिनों में इस पक्षी का महत्व बढ़ जाता है। यदि श्राद्ध के सोलह दिनों में यह घर की छत का मेहमान बन जाए, तो इसे पितरों का प्रतीक और दिवंगत अतिथि स्वरुप माना गया है।
इसीलिए श्राद्ध पक्ष में पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धा से पकवान बनाकर कौओं को भोजन कराते हैं। हिंदू धर्मशास्त्रों ने कौए को देवपुत्र माना है और यही वजह है कि हम श्राद्ध का भोजन कौओं को अर्पित करते हैं।
पंडित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार हमारे शास्त्रों में कौवे को पितरों के समकक्ष माना गया है इसलिए उन्हें ग्रास देने का विधान किया जाता है। इस मौके पर पितरों को याद करते हुए उन्हें भोजन कराने की परंपरा है।
वहीं गरुण पुराण में कहा गया है कि कौवा यमराज की वाहन होता है। पितरपक्ष के समय घर -घर जाकर भोजन करता है जिससे पूर्वजों की आत्मा तृप्त होती है। इसलिए कैवे का महत्व पितरपक्ष में कौवे का महत्व बढ़ जाता है। कौवा एवं पीपल को पितृ प्रतीक माना जाता है। इन दिनों कौए को खाना एवं पीपल को पानी पिलाकर पितरों को तृप्त किया जाता है। कौए को पितरों का प्रतीक क्यों समझा जाता है, यह अभी भी शोध का विषय बना हुआ है। कौवा एक विस्मयकारक पक्षी है। इनमें इतनी विविधता है कि इस पर एक ‘कागशास्त्र’ की रचना की गई है। रामायण के एक प्रसंग के अनुसार भगवान राम एवं सीता पंचवटी में एक वृक्ष के नीचे बैठे थे। श्रीराम सीता माता के बालों में फूलों की वेणी लगा रहे थे। यह दृश्य इंद्रपुत्र जयंत देख नहीं सके। ईर्ष्यावश उन्होंने कौए का रूप धारण किया एवं सीताजी के पैर पर चोंच मारी। राम ने उन्हें सजा देने के लिए बाण चलाया। इंद्र के माफी मांगने पर बाण से जयंत की एक आंख फोड़ दी, तब से कौए को एकाक्षी समझा जाता है। ‘मादा’ कौआ अपने बच्चे एवं कौए के लिए जान देती है। कहा जाता है कि जितना प्रेम ‘मादा’ कौवा कौए पर रखती है, इतना अन्य कोई पक्षी की मादा, नर पर नहीं रखती है। अगर कौवा हमारे आंगन में बोल रहा है तो समझो कोई मेहमान आने वाला है। यह पुराने समय से चली आ रही धारणा है।प्राचीन ग्रंथो और महाकाव्यों में इस कौवे से जुड़ी कई रोचक कथाएँ और मान्यताएं भी लिखी हुई है। पुराणों में भी कौवों का बहुत महत्व बताया गया है। पुराणों के अनुसार कौवों की मौत कभी बीमारी से या वृद्ध होकर नहीं होती है। कौवे की मौत हमेशा आकस्मिक ही होती है और जब एक कौआ मरता है, तो उस दिन उस कौवे के साथी खाना नहीं खाते है। कौवे की खासियत है कि वह कभी भी अकेले भोजन नहीं करते है। वह हमेशा अपने साथी के संग मिल बांटकर ही भोजन करता है।
पितृ दूत कहलाने वाले कौवे आज गांव से लेकर शहरों में यदा कदा ही नजर आते। बढ़ते शहरीकरण, पेड़ों की कटाई और ऊंची इमारतों के कारण प्रकृति का जो ह्रास हुआ है, उसने कौवों की संख्या को कम कर दिया है। जहाँ श्राद्ध के समय घर गाँव से लेकर शहरों में कौवों की भरमार दिखाई देती थी वहीं आज इनके दर्शन ही दुर्लभ हो गये हैं। जो कि पर्यावरणीय दृष्टि से भी चिंताजनक हैं।

?यह भी जानिए कौवों के बारे में–
यदि अपने घर के आसपास  आपको कौए की चोंच में फूल-पत्ती दिखाई दे जाए तो मनोरथ की सिद्धि होती है। 
यदि कौआ गाय की पीठ पर चोंच को रगड़ता हुआ दिखाई तो समझिए आपको उत्तम भोजन की प्राप्ति होगी। यदि कौआ अपनी चोंच में सूखा तिनका लाते दिखे तो धन लाभ होता है। कौआ अनाज के ढेर पर बैठा मिले, तो धन लाभ होता है। यदि आपको सूअर की पीठ पर कौआ बैठा दिखाई दें, तो अपार धन की प्राप्ति होती है। 
यदि कौआ बाईं तरफ से आकर भोजन ग्रहण करता है तो यात्रा बिना रुकावट के संपन्न होती है। वहीं यदि कौआ पीठ की तरफ से आता है तो प्रवासी को लाभ मिलता है। यदि कौआ मकान की छत पर या हरे-भरे वृक्ष पर जाकर बैठे तो अचानक धन लाभ होता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,338 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress