याद मुझे अक्सर आ जाते,आने,दो आने वाले दिन|
दूध मलाई गरम जलेबी,और रबड़ी खाने वाले दिन||
तीस रुपये में मझले काका, दिल्ली तक होकर आ जाते|
एक रुपये में ताजा खाना ,होटल में छककर खा आते||
बिन कुंडी के बाथ रूम में ,बेसुर में गानेवाले दिन|
याद मुझे अक्सर आ जाते,आने दो आने वाले दिन||
नाई काका बाल बनाने ,पेटी लेकर घर आ जाते|
दो रुपये में एक सैकड़ा, चाचा हरे सिंगाड़े लाते||
जेब खर्च के लिये पिता से, दो पैसे पाने वाले दिन|
याद मुझे अक्सर आ जाते, आने दो आने वाले दिन||
गब्बर बैल जुती गाड़ी में, भेरों के मेले में जाना|
फुलकी,गरम कचौड़ी,बर्फी,किसी हाथ ठेले पर खाना||
हँसते गाते, धूम मचाते,मन को भा जाने वाले दिन|
याद मुझे अक्सर आ जाते, आने दो आने वाले ||
धन्यवाद – प्रभु दयाल जी
वो दिन हवा हुए जब खलील खान फाख्ता उड़ाते थे |
वो दिन जब दौड़ लगते थे और नदी में नहाते थे |
वो दिन जब तख्ती लिखते थे और स्लेट तोड़ते थे |
बड़ों की देखा देखी बैलो की सानी भी करते थे और गाय पर हाथ फेरते थे |
वो दिन भी क्या दिन थे | कहाँ गए वो दिन |
उन दिनों की याद दिलाना एक बड़े पुण्य का काम है |
स्कूल जाने के लिए दो पैसे मिलते थे और लगता था कारून का खज़ाना मिल गया |
अगर कभी एक आना मिल गया तो समझो बड़ा दिन हो गया |