फैसला, बिहार के मतदाताओं का…

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-निर्मल रानी

देश के दूसरे सबसे बडे राज्‍य बिहार का जनादेश आ चुका है। 6 चरणों में हुए इस मतदान में राज्‍य के 2.9 करोड़ मतदाताओं ने मतदान किया यह कुल मतों का 52.65 प्रतिशत था। चुनाव नतीजों को लेकर हालांकि इस बात के कयास काफी लंबे समय से लगाए जा रहे थे कि नीतीश कुमार बिहार में हो रहे विकास कार्यों तथा बिहार की राजनीति में सक्रिय अपराधियों पर नकेल कसे जाने के इनाम के रूप में सत्ता की अपनी पारी एक बार फिर दोहरा सकते हैं। परंतु निश्चित रूप से इतनी उम्‍मीद किसी भी राजनैतिक विशेषक को नहीं थी कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के जनता दल युनाईटेड तथा भाजपा रूपी घटक बिहार में इतनी शानदार सफलता हासिल करते हुए राज्‍य विधान सभा में तीनचौथाई बहुमत के आंकड़े को भी पार कर जाएगा। बहरहाल बिहार के मतदाताओं ने जेडीयू-बी जे पी गठबंधन को भारी मतों से विजय दिलाते हुए तीन चौथाईबहुमत तक पहुंचा दिया। अब चुनाव समीक्षक इस बात को लेकर मंथन करते दिखाई दे रहे हैं। कि राज्‍य की 243 सदस्यों की विधान सभा में जेडीयू -बी जे पी गठबंधन ने मिलकर 206 सीटों पर कैसे क़ब्जा जमाया तथा बिहार के मतदाताओं ने किन विशेषताओं व परिस्थितियों में नीतिश सरकार को इतने भारी बहुमत से विजय दिलाई। आईए हम भी इन चुनाव नतीजों की पृष्ठभूमि पर एक नजर डालने की कोशिश करते हैं।

पूर्व राष्ट्रपति ए पी जी अब्दुल कलाम ने बिहार में जनवरी 2007 में अप्रवासी भारतीयों के एक सम्‍मेलन को संबोधित करते हुए यह घोषणा की थी कि अब हरित क्रांति की शुरूआत बिहार राज्‍य से की जानी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा था कि बिहार की तरक्की क़े बिना भारत का विकास संभव नहीं है। और इसी सूत्र को आगे बढ़ाते हुए नीतीश कुमार ने अपनी सत्ता को विकास के प्रति समर्पित शासन बनाने का पूरा प्रयास किया। उधर राहुल गांधी ने भी गत वर्ष स्वयं नीतीश कुमार की तारीफ की थी तथा बिहार में हो रहे विकास कार्यों के लिए नीतीश कुमार को सराहा था। इसके अतिरिक्त मीडिया ने तो नीतीश कुमार को सुशासन बाबू तथा विकास बाबू जैसे कई तमगे दे डाले थे। उधर केंद्र सरकार द्वारा संचालित सड़क परियोजनाएं जहां बिहार के मतदाताओं को पहली बार उच्चस्तरीय राष्ट्रीय राजमार्ग के दर्शन करा रही थीं,वहीं ग्रामीण मतदाताओं को मनरेगा योजना से भी काफी राहत मिल रही थी। कुल मिलाकर जिस दौरान विकास व राहत की प्रारंभिक बयार बिहार में बहना शुरु हुई उस दौरान जनता को प्रदेश के मुख्‍यमंत्री की कुर्सी पर नीतीश कुमार बैठे दिखाई दे रहे थे। बिहार की जनता विकास को केवल विकास के रूप में ही देख रही थी न कि केंद्र अथवा राय द्वारा अलग अलग किए जाने वाले विकास कार्यों के रूप में। उधर स्कूली बालिकाओं को साईकल बांटा जाना तथा महिलाओं की स्वास्थय संबंधी योजनाओं ने सोने पे सुहागा कर दिखाया और नीतीश कुमार बिहार की महिलाओं के दिलों पर राज करते भी देखे गए।

विधानसभा चुनावों से पूर्व जेडीयू तथा बीजेपी में इस विषय पर काफी तनातनी दिखाई दी कि भजपा की ओर से बिहार में नरेंद्र मोदी व वरुण गांधी जैसे फायर ब्रांड नेता चुनाव प्रचार करेंगे या नहीं। नीतीश कुमार ने इन दोनों भाजपा नेताओं की तरफ से अपना रुंख कड़ा कर राय के अल्पसंख्‍यक मतदाताओं में बड़ी सफलता से यह संदेश छोड़ा कि लालू यादव के कुशासन के विरुद्ध बिहार में सुशासन स्थापित करना चूंकि जरूरी है इसलिए जेडीयू के लिए भाजपा का साथ उसकी मजबूरी है। और बिहार के अल्पसंख्‍यक मतदाताओं ने इस बात को बखूबी समझा। हालांकि भाजपा भी बिहार में हुई जीत पर वैसे ही जश्न मना रही है जैसा कि उसकी सहयोगी जेडीयू में मनाया जा रहा है। परंतु भाजपा नेताओं को यह महसूस करना होगा कि यदि नरेंद्र मोदी व वरुण गांधी जैसे भाजपा नेता चुनाव प्रचार में बिहार गए होते तो नतीजे बदल सकते थे। हालांकि भाजपा की यह बढ़त नि:संदेह नीतीश कुमार के विकास रथ पर सवार होकर हुई है तथा नीतीश कुमार की छवि का भाजपा ने पूरा लाभ उठाया है। गत् 5 वर्षों में यह चर्चा भी गर्म रही कि नीतीश सरकार ने अपराधियों के विरुद्ध सख्‍त कार्रवाईयां कीं तथा सैकड़ों अपराधी उनके शासनकाल में जेल की हवा खाने पर मजबूर हो गए। सैकड़ों आपराधिक मुकद्दमों की सुनवाई पूरी हुई। कुछ सर्वेक्षणों में यह भी बताया गया कि राय की महिलाएं नीतिश कुमार के शासनकाल में स्वयं को अधिक सुरक्षित महसूस कर रहीं थीं। जो महिलाएं नीतीश शासन से पहले सूर्य ढलते ही अपनी इत-आबरू व आभूषण बचाने की गरज से अपने-अपने घरों में वापस आ जाया करती थीं, अब उन्हीं महिलाओं के दिलों से अपराध का खौफ कम होने लगा था और उन्होंने देर शाम तक घूमना-फिरना, पढ़ना-लिखना तथा बाजार या रिश्तेदारियों में आना-जाना शुरु कर दिया था। परंतु यह तो वास्तव में वह दलीलें हैं जो राजनैतिक धरातलीय आंकड़ों से भिन्न हैं।

उदाहरण के तौर पर राजनीति में अपराधीकरण के बिहार के वर्तमान आंकड़ों को यदि हम देखें तो यह पिछली विधानसभा के आंकड़ों से भी ख़तरनाक हैं। वर्तमान 243 सदस्यों की विधानसभा में 141 विधायकों के विरुध्द आपराधिक व गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। जबकि पिछली विधानसभा में 117 विधायकों के ही विरुद्ध इस प्रकार के मामले दर्ज थे। वर्तमान 141 विधायकों में 85 विधायक ऐसे हैं जिनके विरुध्द हत्या, हत्या के प्रयास तथा अपहरण जैसे संगीन मामले दर्ज हैं। इन 141 अपराधी विधायकों में 58 विधायक सुशासन बाबू की पार्टी अर्थात् जेडी यू के उम्‍मीदवार की हैसियत से विजयी हुए हैं। जबकि 58 ही विधायक भारजीय जनता पार्टी जैसी ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवादी’ पार्टी के टिकट पर विजयी होकर आए हैं। वर्तमान विधानसभा में 10 विधायक ऐसे हैं जिन पर सबसे अधिक मामले दर्ज हैं। इनमें 6 जेडीयू और 3 बीजेपी के हैं। इसी प्रकार आरजेडी के 22 विधायकों में 13 के विरुद्ध तथा लोक जनशक्ति पार्टी में 3 विधायकों में तीनों पर, भारतीय कम्‍युनिस्ट पार्टी के एक ही विधायक और उसपर भी आपराधिक मुकद्दमा दर्ज है। कांग्रेस के 4 में से 3 विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।

उपरोक्त आंकड़े यह इशारा कर रहे हैं कि कानून व्यवस्था के सुधार के संबंध में जो आंकड़े नीतीश सरकार द्वारा पेश किए जा रहे हैं, उन आंकड़ों का हकीकत से भले ही कोई वास्ता न हो परंतु नितीश सरकार इन सबके बावजूद मतदाताओं को यह समझा पाने में सफल रही है कि नितीश सरकार ने कानून व्यवस्था में काफी सुधार किया है और सैकड़ों अपराधियों को जेलों में ठूंस दिया है। बिहार जनादेश ने यह भी साबित कर दिया है कि लालू प्रसाद यादव व रामविलास पासवान का अवसरवादी गठबंधन मतदाताओं के गले से नीचे नहीं उतरा। लालू यादव का मुस्लिम प्रेम तथा पासवान की मुस्लिम मुख्‍यमंत्री बनाए जाने की रट, दोनों ही बातें मतदाताओं विशेषकर अल्पसंख्‍यक मतदाताओं के गले से नहीं उतरी। दूसरी ओर नई नस्ल लालू यादव के उस तथाकथित ‘साहस’ पर भी अब और आगे मतदान नहीं करना चाहती जिसमें कि उन्होंने लालकृष्ण अडवाणी की रथ यात्रा को बिहार में रोककर उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। मतदाता अब यह बखूबी समझ गया है कि इस प्रकार के कदम केवल राजनैतिक हथकंडे मात्र हैं तथा किसी समाज विशेष व राज्‍य का इन बातों से कोई विकास या कल्याण नहीं होने वाला।

रहा सवाल कांग्रेस को 9 सीटों के बजाए 4 सीटें मिलने का तो तमाम राजनैतिक पंडित इस बात की आशंका से जूझ रहे थे कि कांग्रेस के साथ शायद कुछ ऐसा ही होने वाला है जैसा कि हुआ। इसका मुख्‍य कारण यही है कि कांग्रेस ने लालू यादव व राबड़ी देवी का साथ देकर दो दशकों तक अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मारी। दो बार आरजेडी के रहमोकर्म पर कांग्रेस ने सीटें स्वीकार कीं तथा सीमित संसदीय व विधानसभाई सीटों पर चुनाव लड़ी। परिणामस्वरूप लगभग पूरे राज्‍य से कांग्रेस का संगठन, पदाधिकारी तथा जनाधार लगभग समाप्त सा हो गया। संगठन न होने के कारण जमीनी स्तर पर प्रचार न हो पाने के चलते केंद्र सरकार के विकास कार्यों का श्रेय भी पार्टी को नहीं मिल सका। कहा जा सकता है कि जिस प्रकार नीतीश के विकास व सुशासन के रथ पर सवार होकर भाजपा ने काफी कुछ कमाया है, ठीक उसी प्रकार लालू व राबड़ी के भ्रष्ट व निकृष्ट शासन की नैया पर सवार होकर कांग्रेस ने अपना सब कुछ नहीं तो बहुत कुछ तो गंवा ही दिया है। इन्हीं राजनैतिक समीकरणों के चलते कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन ने राज्‍य में किसी कद्दावर कांग्रेसी नेता को तैयार नहीं होने दिया। जाहिर है इन सब राजनैतिक समीकरणों का नुकसान तो कांग्रेस पार्टी को एक न एक दिन भुगतना ही था और वर्तमान चुनावों में जब कांफी लंबे अंतराल के बाद कांग्रेस बिहार में अकेले चली तो पार्टी के साथ कुछ ऐसा ही हुआ जो अप्रत्याशित सा प्रतीत हो रहा है। परंतु इन चुनावों में साढ़े आठ प्रतिशत मत हासिल कर कांग्रेस ने अपना संगठन पुनर्गठित किया है तथा पूरे प्रदेश में चुनाव लड़ने योग्य अपने उम्‍मीदवार तैयार किए हैं। संभव है भविष्य में कांग्रेस अपने इन्हीं नए उम्‍मीदवारों व नए संगठन के बल पर आगे की मंजिलें तय करे। कुल मिलाकर इन चुनावों ने यह तो साबित कर ही दिया है कि अब समय न तो लफ्फाजी हांकने का है न ही जात-पात की राजनीति करने का। न कोई नाटक नौटंकी की अब राज्‍य को जरूरत है न ही झूठे वादों व आश्वासनों की। राज्‍य की जनता को सिर्फ विकास चाहिए और वह भी ऐसा विकास जो दिखाई भी दे, महसूस भी हो तथा उसका लाभ भी आम लोगों तक पहुंचता हो। नरेंद्र मोदी, शीला दीक्षित, भूपेंद्र सिंह हुड्डा, शिवराज सिंह चौहान के बाद अब नीतीश कुमार की सत्ता में वापसी तो कम से कम मतदाताओं के इसी मूड को दर्शा रही है।

3 COMMENTS

  1. नेपाल का एक सन्दर्भ लें। बहुत सारे लोगो ने प्रचण्ड एवम बाबुराम के बीच वैमनस्व पैदा करने की कोशीश की। लेकिन वह लोग सावधान थे जो ऐसा नही हो सका. बहुत सारे लोग चाहेंगें की भाजपा एवम जदयु मे टुटन हो जाए। लेकिन ऐसा न हो पाए इसके लिए दोनो दलो मे परिपक्व सोच की आवश्यकता है.

  2. भाजपा की जित हजम नहीं हो रही है???
    नरेंद्र मोदी बिहार जाते तो भाजपा १०२ साईट जीतती ,भाजपा मुर्ख जो १०२ पर ही लड़ी थी उसे अकेले सब सितो पर लड़ना चाहिए था,कमरों में बैठे ये लोग क्या जानते है जनता क्या चाहती है ,नितीश कुमार के कारन नहीं सुशिल कुमार “मोदी” के कारन वापसी हुयी है नाम भले ही नितीश का हो,भाजपा ने हमेश यही किया है छोटे छोटे गैर दल के नेताओ को अपने कंधो पर बैठा कर आगे बढे फिर वो ही उसको आखे दिखने लगे चाहे मायावती हो या नितीश ,अगर भाजपा चाहती है की उसके वोट उसके पास ही रहे तो उसे एक क्षण भी हिन्दू विचार से समझोता नहीं करना चाहिए क्योकि विकास फिक्स के नाम पर कोई वोट नहीं देता है हिन्दू या जाती गत समीकरण बैठा कर नाम भले ही विकास का दे दो ,मायावती ने शुद्ध रूप से भाजपा के वोट तोड़ कर सत्ता हटिया ही थी भाजपा “सेक्युलर” बनाने के चक्कर में अपने प्रतिबद्ध वोट भी खो चुकी है उत्तर प्रदेश में ,बिहार में भी यही होगा ,बिहार के लोग लालू के गुंडों को आने नहीं देना चाहते थे उन्हें कम गुंडे जड़ यु मंजूर है लेकिन बुदबुदा जल्द ही फूटेगा .
    भाजपा के लोग विकास करते है काम भी करते है लेकिन वे ये भूल जाते है की वोट उन्हें हिंदुत्व के ही मिलते है विकास के नहीं ,जब जब भाजपा ने हिंदुत्व की उपेक्षा की है उसे मत खानी पड़ी है शेर जब गीदड़ की तरह बोलने लगे तो उससे चूहा भी नहीं डरता है,शेर को शेर ही रहना चाहिए………

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