लोकतंत्र जीत गया , लोकतंत्र हार गया

मध्यप्रदेश में जो कुछ भी हुआ है , वह अप्रत्याशित नहीं है। वर्तमान राजनीति से इससे अधिक कुछ अपेक्षा भी नहीं की जा सकती कि यह प्रतिशोध , प्रतिरोध और क्रोध के जंगल में लगी आग से बाहर निकल कर भी कुछ सोचेगी । यह नहीं कहा जा सकता कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है ? लोकतंत्र में अलोकतांत्रिक ढंग से की जा रही इस बेईमानी को करने में सबकी बराबर की भागीदारी है। हमाम में सब नंगे नजर आ रहे हैं ।
इसमें सबसे बड़ी जिम्मेदारी कांग्रेस की है , जिसे 1947 में देश की आजादी के बाद स्वतंत्र भारत की सत्ता चलाने का गौरव प्राप्त हुआ। परंतु उसने सत्ता का दुरुपयोग करते हुए अनेकों स्थलों पर लोकतंत्र की भावना , लोकतंत्र की आत्मा और लोकतांत्रिक मूल्यों का अपमान किया । सत्ता स्वार्थ में संविधान की धज्जियां उड़ाईं , देश में आपातकाल घोषित किया ,देश के नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाया और विपक्षी दलों को नीचा दिखाने का भी हरसंभव प्रयास किया। आज भारतीय लोकतंत्र का रथ जिस कीचड़ में जा फंसा है , उसमें भौंचक्की खड़ी कांग्रेस को वैसे ही लोकतांत्रिक मूल्यों , सिद्धांतों , लोकतंत्र की भावना और लोकतंत्र की आत्मा का स्मरण हो आ रहा है , जैसे दुर्योधन के साथ मिलकर जीवन भर अनर्थ का समर्थन करते रहे कर्ण को महाभारत युद्ध के समय अपने रथ के कीचड़ में फँसने पर धर्म की याद आई थी।
दुर्योधन के मित्र कर्ण को इसके उपरांत भी मौत का संवरण करना पड़ा था। यद्यपि उसके साथ भी उस समय अनर्थ ही हुआ था , परंतु अनर्थकारी को अनर्थ ढंग से मारने में कोई पाप नहीं होने का तर्क उस समय श्री कृष्ण जी ने दिया था।
जिस समय वर्तमान विधानसभा के चुनाव परिणाम मध्यप्रदेश में आए थे , उस समय लोकतंत्र की भावना , आत्मा , लोकतंत्र के मूल्य और लोकतांत्रिक सिद्धांतों की हत्या कांग्रेस ने भी की थी । दिए गए जनादेश का उल्लंघन कर उसने सत्ता स्वार्थ का परिचय देते हुए वहां पर सरकार का गठन किया था । भाजपा तभी से घायल हुई पड़ी थी और उसका प्रतिशोध उसे लेना ही था। जो उसने अब कांग्रेस के ही बड़े नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने साथ लाकर और अब वहां पर कमलनाथ की चल रही सरकार को गिराने की पूरी योजना बनाकर ले लिया है। जिससे मुरझाया हुआ कमर फिर से खेलने की तैयारी कर रहा है तो ‘कमल’नाथ मुरझा गया है। वर्तमान राजनीति का यह क्रूर और भयानक सत्य है कि यह इसी प्रकार के प्रतिशोध , प्रतिरोध , विरोध और क्रोध की दलदल में फंस चुकी है। इससे राजनीतिक दलों और राजनीतिज्ञों को चाहे कुछ लाभ हानि हो जाते हों , पर वास्तविक क्षति लोकतंत्र को होती है । पहले से ही सिसक – सिसक कर सांस ले रहे लोकतंत्र का दम घुटता जा रहा है और नेता हैं कि अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं।
माना कि हमारे लोकतंत्र में किसी भी नेता को किसी भी पार्टी का दामन थामने का पूरा अधिकार है , उसका जब जिस पार्टी से मन भर जाए उसे छोड़ने का भी उसे अधिकार है , यह भी माना जा सकता है कि किसी भी सरकार को इसी प्रकार गिराने का अधिकार भी राजनीतिक दलों के पास है , जिस प्रकार मध्यप्रदेश में षडयंत्र रचा गया है। इस सबके उपरांत भी क्या यह कहा जा सकता है कि मध्यप्रदेश में जो कुछ हुआ वह सब कुछ लोकतांत्रिक है ? और उसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे अनैतिक कहा जा सके ?
यदि पूर्ण सत्यनिष्ठा से इस प्रश्न का उत्तर खोजा जाए तो मध्य प्रदेश में अब भी लोकतंत्र , लोकतांत्रिक मूल्यों , लोकतंत्र की भावना और लोकतांत्रिक सिद्धांतों की हत्या हुई है। लोकतंत्र राजनीतिक शिष्टाचार , राजनीतिक नैतिकता और उन समस्त मानवीय मूल्यों की पोषक राजनीतिक विचारधारा है जिसमें अधर्म , अन्याय और अनैतिकता के लिए रंच मात्र भी स्थान नहीं है। संवैधानिक प्राविधानों की दुर्बलता का लाभ लेकर राजनेता अपने आप को दूध का धुला कह सकते हैं , परंतु आत्मा के न्यायालय में खड़े होकर यदि यह अपना अवलोकन करेंगे तो निश्चय ही इनकी आत्मा इन्हें धिक्कारेगी । कांग्रेस ने लोकतंत्र के इन राजनीतिक सिद्धांतों की अवहेलना करते हुए यदि पाप कमाया तो भाजपा को उस रास्ते का अनुगमन नहीं करना चाहिए था । ऐसी अपेक्षा भाजपा के समर्थकों , शुभचिंतकों और देश के मतदाताओं की उससे रही है। उसे भारतीय राजनीति को लोकतंत्र और लोकतांत्रिक मूल्यों का पाठ पढ़ाना चाहिए था।
माना कि जिस समय कमलनाथ को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था , उस समय वहां पर लोकतंत्र की हत्या हुई थी। जिसे संविधान संगत ठहरा कर भी संविधान संगत नहीं कहा जा सकता । क्योंकि नैतिकता तब भी पराजित हुई थी । जिसके लिए भाजपा या तो चुनावों की प्रतीक्षा करती या फिर अब भी चुनावों के माध्यम से उसे सत्ता में आना चाहिए था। एक षड्यंत्र के अंतर्गत ज्योतिरादित्य सिंधिया को अपने साथ लाना और कुछ विधायकों का इसलिए त्यागपत्र दिलवा देना कि इससे सरकार बनाने में सुविधा होगी – भाजपा के लिए उचित नहीं कहा जा सकता। यह सांप छछूंदर की लड़ाई है , जिसे हताश व निराश लोकतंत्र बहुत ही दर्द भरी आंखों से देख रहा है।
संभवत: राजनीति को वेश्या इसी प्रकार के गलत हथकंडों को सत्ता प्राप्ति का माध्यम बनाने वाले लोगों की राजनीति और राजनीतिक सोच को देखकर कहा गया है। कल परसों जो लोग भाजपा को गाली दे रहे थे , वही आज भाजपा के राष्ट्रवाद की आरती उतारने लगे हैं । इधर भाजपा है जो माँ भारती की आत्मा और भावना के प्रति सत्यनिष्ठा की बार-बार दुहाई देती रही है , परंतु कांग्रेस की ‘बी टीम’ के रूप में काम करते हुए वह भी भूल जाती है कि वह जो कुछ कर रही है उससे भी मां भारती की आत्मा और भावना को ठेस पहुंचती है।
कांग्रेस के राहुल गांधी के बारे में यह सत्य है कि वह राजनीतिक परिपक्वता से अभी भी बहुत दूर हैं । उनकी इससे बड़ी कोई मूर्खता नहीं हो सकती कि वह दिल्ली को केजरीवाल को सौंपकर भी खुशी मनाते हैं और अपना राजनीतिक जनाधार पहले की अपेक्षा आधा होने पर भी उन्हें कोई कष्ट नहीं होता। बस , उन्हें खुशी इस बात पर होती है कि भाजपा सत्ता से दूर हो। एक बड़ी पार्टी को पूरा देश अपनी आंखों के सामने मरता हुआ देख रहा है और इसका कारण केवल राहुल गांधी हैं । उनकी ‘आउल नीतियों’ ने इस संगठन का सत्यानाश कर दिया है । वह किसानों के ऋण की माफी की घोषणा करते हैं और राजस्थान में चुनावी सभाओं के दौरान मंचों से खड़े होकर झूठ बोलते हैं कि उनकी मध्य प्रदेश की सरकार ने किसानों का ऋण माफ कर दिया है। राजस्थान के लोगों को मध्यप्रदेश के लिए कहकर भ्रमित करते हैं और मध्य प्रदेश के लोगों को किसी दूसरे प्रांत का उदाहरण देकर भ्रमित करते हैं। सारा देश उनकी इन नीतियों का मजाक उड़ा रहा है। वह मोदी सरकार पर यह कहकर गंभीर आरोप लगाते हैं कि उसने 15 – 20 उद्योगपतियों को साढ़े पांच लाख करोड़ रुपए का ऋण मुफ्त में दे दिया है तो कभी इसी आंकड़े को घटाते हुए वह एक लाख 10 हजार करोड़ की राशि पर आ जाते हैं । लोग उनके बोलने के आंकड़े इकट्ठा करते रहते हैं और उनकी मूर्खता पर हंसते रहते हैं ।
इसके उपरांत भी कांग्रेस का यह ‘राजकुमार’ सुधरने का नाम नहीं ले रहा । जिस समय राजस्थान और मध्य प्रदेश में उन्होंने सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया को पीछे कर वहां बुजुर्ग नेताओं को सत्ता सौंपी थी , उसी समय यह स्पष्ट हो गया था कि उनकी सोच इन दोनों युवाओं से अपने लिए खतरा अनुभव करती है । इसलिए इन दोनों को उन्होंने सत्ता से दूर रखा । उसी का परिणाम आज निकल रहा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया उनका ‘हाथ’ छोड़ कर भाजपा में शामिल हो गए हैं । कल को यदि इसी रास्ते पर सचिन पायलट भी चलें तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।
एक अच्छा वकील वह होता है जो अपने विरोधी वकील की गलतियों और मूर्खताओं का अधिक से अधिक लाभ उठा सकता है । इसी प्रकार एक अच्छा राजनीतिज्ञ भी वही होता है जो अपने प्रतियोगी राजनीतिज्ञ की मूर्खताओं का अधिक से अधिक लाभ उठाता है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कांग्रेस में एक ऐसे ही नेता के रूप में राहुल गांधी मिले हुए हैं । कांग्रेस को अब अंतर्मंथन करना ही होगा कि यदि उसे जीवित रहना है तो परिवार और एक व्यक्ति विशेष की परिधि से अपने आप को बाहर निकालना होगा।
भाजपा के लिए भी सोचने का समय है कि उसे कांग्रेस की उन मूर्खताओं का अनुगमन नहीं करना चाहिए , जिनके कारण वह सत्ता से बाहर हुई। यदि इसके उपरांत भी भाजपा कांग्रेस की मूर्खताओं का ही अनुगमन करती रहेगी तो उसका हश्र भी जनता कांग्रेस जैसा ही करेगी । इस बात को भाजपा का नेतृत्व जितनी शीघ्रता से समझ लेगा उतना ही अच्छा होगा।
देश के मतदाताओं को भी समझना होगा कि वह राजनीतिक नेतृत्व पर इस बात के लिए दबाव बनाएं कि चुनाव सुधारों के लिए वह मजबूर हो जाए। देश के मतदाताओं को यह भी प्रयास करना चाहिए कि राजनीतिक आचार संहिता लागू कराने के लिए भी राजनीतिक नेतृत्व पर दबाव बनाएं। देश के चुनाव आयोग व न्यायालयोन को भी लोकतंत्र , लोकतांत्रिक मूल्यों और लोकतांत्रिक भावना और आत्मा का सम्मान करने के लिए नैतिकता को राजनीति में सबसे ऊपर रखने के लिए अपनी ओर से सार्थक प्रयास करने चाहिए। सचमुच राजनीतिक शुचिता के जिस संकल्प को लेकर भाजपा आगे बढ़ी थी और अटल जी जैसे नेता जिस राजनीतिक शुचिता को मंचों से बार-बार दोहराया करते थे , वह अब दम तोड़ रही है। हम सबको समय रहते सावधान होना होगा। वर्तमान में मध्यप्रदेश की स्थितियों को देखकर यही कहा जा सकता है कि वर्तमान राजनीतिक लोगों की परिभाषा के अनुसार लोकतंत्र वहां पर जीत गया है और लोकतंत्र की वास्तविक परिभाषा और भावना के अनुसार लोकतंत्र वहां हार गया है।

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