जनसांख्यिकी युद्ध का दबाव

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शंकर शरण 

केरल का कैथोलिक चर्च आगामी चौदह नवंबर ऐसे 5,000 दंपतियों को सम्मानित करेगा, जिनके 5 से अधिक बच्चे हैं। ‘परिवार बढ़ाओ’ के नारे के साथ यह अभियान आगे और तेज किया जाएगा। वहाँ कैथोलिक नेता ईसाइयों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए विविध प्रोत्साहन और पुरस्कार दे रहे हैं। वायनाड जिले का सेंट विन्सेन्ट चर्च अपने क्षेत्र के हर कैथोलिक परिवार को पाँचवें बच्चे के जन्म पर 10 हजार रूपए नकद दे रहा है। इदुक्की डायोसीज ने दो से अधिक हर बच्चे पर अधिकाधिक पुरस्कार और सहायता देने की विस्तृत योजना घोषणा की है। जैसे किसी परिवार में चौथे बच्चे के जन्म पर उसके जन्म संबंधी अस्पताल का पूरा खर्च डायोसीज उठायगा। पाँचवें बच्चे के जन्म पर बच्चे के जीवन भर का खर्च उठायगा। ऑल इंडिया क्रिश्चियन काऊंसिल के नेता जॉन दयाल के अनुसार हर ईसाई परिवार में चौथा बच्चा होने पर उसकी शिक्षा के लिए विशेष व्यवस्था की जाएगी। ईसाई संगठनों के अस्पतालों में बड़े परिवार वाले ईसाइयों के लिए आकर्षक चिकित्सा पैकेज दिए जाएंगे, आदि। अधिकाधिक बच्चे पैदा करने का यह ईसाई अभियान वर्ष 2008 से ही चल रहा है।

यह सब इसलिए, क्योंकि केरल में ईसाई संख्या पिछले एक दशक में ¼ प्रतिशत घटी है, जबकि मुस्लिम जनसंख्या दो प्रतिशत बढ़ गई। इस से केरल के कैथोलिक नेता इतने चिंतित हैं कि उन्होंने हिन्दुओं को भी मामले को गंभीरता से लेने के लिए कहा। क्योंकि वहाँ हिन्दू संख्या डेढ़ प्रतिशत प्रति दशक के हिसाब से गिर रही है। जबकि मुस्लिम जनसंख्या पौने दो प्रतिशत के हिसाब से बढ़ रही है। केरल सबसे बड़ी ईसाई आबादी वाले राज्यों में एक है। वहाँ लगभग 20 % ईसाई हैं। वे सुशिक्षित भी हैं। इसलिए उन की चिंता और चेतावनी को गंभीरता से लेना चाहिए। आज के विश्व में जनसांख्यिकी भी एक युद्ध है, जिसकी उपेक्षा करना आत्मघाती होगा। विशेषकर हिन्दुओं के लिए, जिनका दुनिया में मुख्यतः एक ही देश है।

किन्तु दुःख की बात है कि जब इस पर कोई हिंदू चिंता दिखाता है तो उसे ‘पिछड़ा’, ‘दकियानूसी’, ‘जनसंख्या विस्फोट से नासमझ’ या ‘घृणा का प्रचारक’ आदि बताकर हँसी उड़ाई जाती है। भारतीय जनसांख्यिकी की स्थिति पर ए.पी. जोशी, एम.डी. श्रीनिवास तथा जे. के. बजाज ने अपने विस्तृत अध्ययन ‘रिलीजियस डेमोग्राफी ऑफ इंडिया’ (2003) से पाया है कि भारत के हर प्रदेश में मुस्लिम जनसंख्या दूसरे किसी भी समुदाय की तुलना में अधिक गति से बढ़ी है। सन् 1993 में भारत में मुस्लिम जनसंख्या 11 प्रतिशत थी, जो केवल पंद्रह वर्षों में बढ़कर 14 प्रतिशत हो गई। पड़ोसी पाकिस्तान और बंगलादेश में जन्म-दर और भी तीव्र है, जिससे भारतवर्ष के संपूर्ण भूखंड में अनुमान से भी कम समय में मुस्लिम जनसंख्या हिन्दुओं के बराबर हो जाएगी। दो फ्रांसीसी विद्वानों यूसुफ कोरबेज तथा इमानुएल टॉड ने अपनी पुस्तक ‘ल रौंदेवू दे सिविलेजेशों’ (सभ्यताओं का मिलन) (2007) में भी ऐसा ही हिसाब दिया है। इस पर चिंता करने के बजाए हिंदू परिवारों में जन्मे सेक्यूलर-वामपंथी-उदारवादी पूरी बात को हँसी में उड़ाने की कोशिश करते हैं। क्या सुशिक्षित हिंदुओं में अपने समुदाय की सामूहिक आत्महत्या भावना का मनोरोग – डेथ-विश – फैल गया है? नहीं तो केरल के सुशिक्षित ईसाई समुदाय की चेतावनी पर वह ध्यान क्यों नहीं दे रहे?

जिस जनसांख्यिकी विंदु पर दुनिया का सबसे बड़ा आबादी समुदाय – ईसाई – इतना चिंतित है, ठीक उसी विषय पर उस से अधिक संकट झेलने वाले हिंदू समुदाय के बौद्धिक उलटा प्रयास कर रहे हैं! कृपया स्वयं जाँच करें। हमारे जो बौद्धिक और नेता दिन-रात परिवार-नियोजन और आबादी वृद्धि की चिंता करते रहते हैं – क्या उन्होंने ईसाई नेताओं को फटकारा कि वे आबादी वृद्धि को प्रोत्साहन देकर समस्या बढ़ा रहे हैं? क्या उन्होंने कभी मुस्लिमों को जनसंख्या नियंत्रण करने को कहा ? मुस्लिमों में तेज जनसंख्या वृद्धि के लिए कभी उन की आलोचना करना तो दूर रहा!

कोई यह भ्रम न पालें कि भारत में ईसाई और मुस्लिम संख्या में हिंदुओं से कम हैं, इसलिए उन पर जनसंख्या नियंत्रण की बातें लागू नहीं की जातीं। जहाँ ईसाई और मुस्लिम बहुसंख्या या एकछत्र संख्या में हैं, वहाँ भी उन्हें परिवार नियोजन का उपदेश कोई नहीं देता। न भारत के कश्मीर, केरल या नागालैंड में, न यूरोप या अरब में। बस पूरी दुनिया में एक मात्र हिंदू देश भारत के हिंदुओं को दिन-रात पढ़ाया जा रहा है कि आबादी कम करो। जबकि इसी देश में मुस्लिम और ईसाई आबादी का प्रतिशत निरंतर बढ़ रहा है। यह शिक्षित हिंदुओं की मूर्खता या डेथ-विश नहीं तो और क्या है?

मामला मात्र केरलीय ईसाइयों का नहीं। वेटिकन में बैठे पोप और उन के प्रवक्ता भी ईसाई आबादी बढ़ाने के खुले आवाहन कर रहे हैं। जबकि यूरोप में ईसाई वर्चस्व ही है। यही भावना यूरोपीय सरकारों में भी है। क्योंकि मामला वस्तुतः बहुत गंभीर है। दुनिया में अतिआबादी से अधिक बड़ी समस्या जनसांख्यिकी युद्ध है। कई मुस्लिम नीतिकार ईसाई आबादी को पीछे छोड़ने की सचेत रणनीति पर चल रहे हैं। कैथोलिक इसे अच्छी तरह समझते हुए अपनी विश्व रणनीति बना रहे हैं। इस बीच मूढ़ हिंदू क्या कर रहे हैं?

आज संपूर्ण ईसाई यूरोप अपने यहाँ इस्लामी देशों से बढ़ते आव्रजन और उस से संबंधित खतरों से मुकाबला करने की चुनौती झेल रहा है। यूरोपीय देशों में जन्म-दर प्रति दंपति 1.1 से 1.7 % के बीच रह गई है। जब कि जनसंख्या यथावत रहने के लिए भी जन्म-दर 2.2 % होना चाहिए। इस बीच अरब और उत्तरी अफ्रीकी देशों से हर वर्ष लाखों मुसलमान यूरोपीय समुद्र तटों पर अवैध रूप से घुसने की कोशिश करते हैं। एक बार सफल हो जाने पर स्थानीय लोकतांत्रिक कानून, मानवाधिकारवादी और इस्लामी कूटनीति के दबाव के सहारे उन्हें किसी न किसी तरह ठौर हो जाता है। यदि यही स्थिति रही तो अगले चालीस-पैंतालीस वर्ष में यूरोप इस्लामी महादेश हो जाएगा। इस खतरे को देख आज ब्रिटेन, जर्मनी, इटली में सरकारें लोगों को अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने की खुशामद कर रही है। जब कि आम यूरोपीय इस्लामी आव्रजन को हर कीमत पर रोकने की माँग कर रहे हैं।

यूरोप के मुस्लिमों में प्रजनन दर औसत 3.8 प्रति परिवार है, जबकि सामान्य यूरोपियनों में यह औसत 2.1 प्रति परिवार है। कई अवलोकनकर्ता यूरोप के लिए जिहादी आतंकवादी हमलों से अधिक भयावह इस ‘जनसांख्यिकी टाइम बम’ को मान रहे हैं। इस के द्वारा इस्लामी शक्तियाँ कुछ दशकों में बिना किसी लड़ाई के यूरोप पर कब्जा कर सकती है। यह अनायास नहीं होने वाला। कई इस्लामी प्रतिनिधि सचेत रूप से इस रणनीति का उपयोग कर रहे हैं। वे यह कहने में भी नहीं हिचकिचाते (“हमारी औरतों के गर्भ हमें जीत दिलाएंगे!” – संयुक्त राष्ट्र में अल्जीरिया के राष्ट्रपति हुआरी बोमेदियान)। लीबिया के गद्दाफी ने भी इस रणनीति से यूरोप पर कब्जे की बात की थी। सन् 1975 में लाहौर में इस्लामी देशों की एक बैठक में भी यूरोप में मुस्लिम आव्रजन बढ़ाकर ‘जनसांख्यिकी प्रभुत्व’ बढ़ाने की योजना घोषित की गई थी।

यह सब कोई छिपी योजनाएं नहीं। न भारत इस रणनीति से बाहर है। वास्तव में, भारत तो ईसाई और मुस्लिम दोनों विश्व-समुदायों के रणनीतिकारों की जनसांख्यिकी नीति का एक महत्वपूर्ण निशाना है। हाल में एक भारतीय मुस्लिम नेता ने कहा कि 2020 ई. तक हम यहाँ हिंदुओं के बराबर हो जाएंगे। मुहम्मद समीउल्लाह की ‘मुस्लिम्स इन एलियेन सोसाइटी’ (दिल्ली, 1992) तथा मुह्म्मद इमरान की ‘आइडियल वीमेन इन इस्लाम’ (दिल्ली, 1994) जैसी पुस्तकों से भारत में इस्लाम वर्चस्व की जनसांख्यिकी योजनाओं की झलक पाई जा सकती है। उलेमा परिवार नियोजन के विरुद्ध फतवे देते हैं। यह सुचिंतित रणनीति है। संयोग नहीं कि हमारे मुस्लिम नेता बोस्निया, अफगानिस्तान, ईराक जैसे देशों के लिए बयान जारी करते हैं, जब कि कश्मीर पर मौन रहते हैं। क्योंकि उनके लिए केवल इस्लाम-राष्ट्र का सिद्धांत है, भारत-राष्ट्र का नहीं। अतः कहीं भी इस्लामी आबादी का एक सीमा पार करना हमारे लिए दूसरी, तीसरी कश्मीर समस्या खड़े होने का कारण बनेगा।

इस खतरे के प्रति भारत के उच्च, मध्यवर्गीय हिंदू गाफिल हैं। वे हमारे कर्णधारों की ‘मुस्लिम फर्स्ट’ नीति के उत्स के कारण नहीं समझ रहे। इसके पीछे यहाँ हिंदुओं के घटते और मुसलमानों के बढ़ते प्रतिशत का दबदबा है। पर इन बातों पर शिक्षित, संपन्न, पर धर्म-चेतना से रिक्त हो चुके हिन्दू उच्च-वर्ग की उदासीनता सनक की हद तक है। यह विश्व के जनसांख्यिकी घटनाक्रम और इस्लामी मानसिकता से निरे अनजान हैं। विश्व में हर जगह मुस्लिम दूसरों की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ रहे हैं। इस में मुस्लिमों के शिक्षित-अशिक्षित या धनी-गरीब होने से कोई अंतर नहीं देखा गया है। साथ ही, हाल का इतिहास साफ दिखाता है कि किसी देश या क्षेत्र में मुस्लिम जनसंख्या का एक सीमा पार करना और सामाजिक अशांति पैदा होने में सीधा संबंध है। लेबनान, बोस्निया, कोसोवो इस के ज्वलंत उदाहरण हैं। अब चीन के सिक्यांग से भी कई बार वही समाचार आ चुका है।

पर भारत के सेक्यूलरवादी हिंदू शासक और बुद्धिजीवी मानो राष्ट्रीय आत्महत्या पर उतारू हैं। एक बार विभाजन, और जिहादी संहार की विभीषिका झेलकर भी जनसांख्यिकी संकट से आँखे चुराई जा रही है। पिछली जनगणना के आंकड़ों पर खुली चर्चा के बदले उसे छिपाने की कोशिश की गई। कुछ ने तो उल्टे आंकड़ों का ‘हिंदू संगठनों द्वारा दुरूपयोग’ करने पर चिंता की! यही शुतुरमुर्गी भंगिमा पड़ोस से जनसांख्यिकी आक्रमण के बारे में भी अपनाई जाती है। जो बुद्धिजीवी अपने घर में किसी को एक दिन रहने देने तैयार न होंगे, वे देश के सीमा में बंगलादेशी, पाकिस्तानी मुसलमानों की नियमित घुस-पैठ को ‘मानवीय’ दृष्टि से देखने की सलाह देते हैं! उन्हें परवाह नहीं कि यदि यही चलता रहा तो असम, प. बंग, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, आदि के लिए आगे क्या परिणाम होगा? वही होगा जो पश्चिमी पंजाब के सिखों, हिंदुओं, कश्मीर के पंडितों का हुआ और असम के हिंदुओं का जल्द होने वाला है।

ऐसा नहीं कि हमारे बुद्धिजीवी और नेता इस खतरे को बिलकुल नहीं समझते। वे समझते हैं, इसी लिए ध्यान बँटाने की कोशिश करते हैं! यह वही दुर्भाग्यपूर्ण पराजित मानसिकता है जो शतियों से उत्तर भारत के उच्च-वर्गीय हिंदुओं में पैठ गई है। वे अपनी तात्कालिक सुख-सुविधा और सुरक्षा से बढ़कर देश समाज की चिंता, रक्षा करने के प्रति अनिच्छुक से रहे हैं। आतताइयों, आक्रमणकारियों के साथ किसी न किसी तरह का समझौता करके, सेवा करके शांति खरीदने की नीति अपनाते रहे। नतीजे में स्थाई वैर-भाव से चालित आक्रमणकारियों को पैठने, बढ़ने का अवसर मिलता रहा और धीरे-धीरे भारतवर्ष छीजता, सिकुड़ता रहा। यह प्रक्रिया आज भी चल रही है। देश में अनेक ऐसे नेता हैं जो सत्ता की लालसा में कटिबद्ध इस्लामी रणनीति के हाथों खेल रहे हैं। ऐसे नेता आंभी, जयचंद, मान सिंह आदि का स्मरण कराते हैं। भारत के विरुद्ध देशी-विदेशी इस्लामी रणनीति के प्रति हमारी सरकारों की नीति चुपचाप समय काटने, बहाने गढ़ने के अतिरिक्त कुछ नहीं रही है।

वस्तुतः भारत की बढ़ती जनसंख्या उतनी बड़ी समस्या नहीं। भारत से कम उपजाऊ भू-भाग वाला चीन और सिंगापुर क्षेत्रफल के हिसाब से बहुत अधिक आबादी को अच्छी तरह संभाल रहे हैं। हमारी समस्या कुव्यवस्था, भ्रष्टाचार, विचारहीनता और नेतृत्वहीनता है। वैसे भी, यदि भारत में जनसंख्या-वृद्धि दर घटेगी तो बंगलादेश व पाकिस्तान से जनसांख्यिकी आक्रमण और बढ़ेगा। जब तक यह आक्रमण नहीं रुकता, तब तक यहाँ जनसंख्या-वृद्धि दर में कमी करना अपने घर को घुसपैठियों के लिए खाली करते जाने के समान ही है। अतः अच्छा हो, कि हम केरल के ईसाइयों की सलाह पर ध्यान दें।

17 COMMENTS

  1. निम्न साइट पर जाकर देखें।
    ईसाइयों की संख्या बढाने का कारण और भी है।
    मिशनरियों को सालाना जो राशि वितरित होती है, वह उनके क्षेत्र में, क्रिश्चनों की जनसंख्या(और मतांतरण) के अनुपात में होती है।देशका मालिक जब सो रहा है, तो यह सब होना ही है।
    मधुसूदन
    https://www.thenational.ae/news/worldwide/
    Catholic Church calls upon Christians to give birth to more children –लेखक : Shaikh Azizur रहमान
    आवश्यक है कि सारे देश की एक ==>समान नीति निर्धारित<=== हो, जो वास्तव में सभीके लिए लागु की जाए। पर फिर शासन को वोट भी तो चाहिए।
    केवल हिन्दुओं को उपदेश या दोष देना सही नहीं मानता।

  2. सिंह जी सादर धन्यवाद सुमार्ग दिखने के लिए लेखक द्वारा उपलब्द्ध कराये गए आकड़ो पर यदि गंभीरता से मनन किया जाय तो ये आकरे कही से भी गलत प्रतिक नहीं होते. उपरोक्त लेख एवं लेखक की आहात टिप्पणी किसी भी सच्चे हिन्दुस्तानी को बागी बनाने पर मजबूर कर सकती है .लेखक ने बिन्दुवार हिन्दुओ की ही कमिया सांकेतिक रूप से गिनवाई है बस समझ समझ का फेर है और इस फेर के फेर को समझना व इससे निपटाना ही हम सभी का उद्देश्य होना चाहिये .

  3. सिंह जी सादर धन्यवाद सुमार्ग दिखने के लिए लेखक द्वारा उपलब्द्ध कराये गए आकड़ो पर यदि गंभीरता से मनन किया जाय तो ये आकरे कही से भी गलत प्रतिक नहीं होते.

    उपरोक्त लेख एवं लेखक की आहात टिप्पणी किसी भी सच्चे हिन्दुस्तानी को बागी बनाने पर मजबूर कर सकती है .लेखक ने बिन्दुवार हिन्दुओ की ही कमिया सांकेतिक रूप से गिनवाई है बस समझ समझ का फेर है .

  4. विमलेश जी धन्यवाद.मैंने पहले भी लिखा है कि हिन्दू दूसरे को दोष देने के पहले अपने दामन में झांक कर तो देखे कि वास्तव में वे क्या हैं और पहले हिन्दू बने तब दूसरों को दोष दें.मुझे सबसे बड़े सेक्युलर कबीर दास की साखी अक्सर याद आ जाती है,
    बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिला कोए,
    जो दिल ढूंढा आपना,मुझसा बुरा न कोए.
    इसका नतीजा यह होता है कि मै किसीको दोष नहीं दे पाता.हिन्दू अगर उच्च नीच का भेद छोड़ दें और हमारे शास्त्रों द्र्वारा बताये हुए नियमों, जिनका निचोड़ श्री मद भागवत गीता में है , का पालन करे तो हिन्दुओं की संख्या बराबर बढ़ती जायेगी.एक बात पर कभी किसी हिन्दू ने ध्यान दिया है कि भ्रूण ह्त्या केवल हिन्दू करते हैं.क्यों नहीं,कोई हिन्दू संस्था व्यापक रूप में इसके विरुद्ध अभियान छेड़ती है?इस तरह की अनेक कुरीतियाँ सदियों से हमारे समाज में जड़ जमाये हुए हैं,उनको तो दूर कीजिये.
    केरल में ईसाईयों की संख्या बहुत है.उसके बारे में भी एक दन्त कथा प्रचलित है.जब इसाई मिसिनरी वाले केरल में आये और उन्होंने अपने धर्म का प्रचार आरम्भ किया तो कोई उनको सुनने को ही तैयार नहीं.उन्होंने बहुत सोच समझ कर एक चाल चली.उनका एक प्रचारक अपने शारीर को सांवला बनाने के लिए धुप का नियमित सेवन करने लगा और एक दो सालों के बाद हिन्दू सन्यासी के रूप में प्रकट हुआ.उसने एक आश्रम की स्थापना की और हिन्दू धर्म के बारे में प्रवचन करने लगा .धीरे धीरे उसकी ख्याति बढ़ने लगी और साथ साथ बढ़ने लगी उसके अनुयाइयों की संख्या.कुछ वर्ष और बीत गए.जब उस तथाकथित संन्यासी और उसका आश्रम बहुत प्रसिद्द हो गया तो उसने एक विराट भोज का आयोजन किया जिसमे हजारो लोग शामिल हुए.खाना आरम्भ होने के बाद वह संन्यासी वेश धारी ईसाई अन्दर चला गया और फिर बाहर निकला इसाई पुजारी के पोशाक में और बताया कि वास्तव में वह कौन है.क्रुद्ध भीड़ ने तुरत उसकी हत्या कर दी, पर ब्राह्मणों ने उन हजारों हिन्दुओं को जो उस भोज में शामिल हुए थे, हमेशा के लिए जाति बहिष्कार कर दिया.दन्त कथा गलत भी होसकती है,पर कहानी में दम तो है.अफ़सोस यह है कि आज भी हमारी बहुत सी गलत मान्यताएं कायम हैं.

  5. सिंह साहब एक बात लिखना भूल गया था इन तथा कथित सेकुलरो की नजर में वाही सेकुलर है जो हिन्दुओ को रूडिवादी अल्प्बुध्धि सांप्रदायिक आदि आदि कह कर गरियाये लतियाये उसी को ये सेकुलर भाई अपना बिरादर समझते है .

    कम से कम ये सब तो मुझसे तो नहीं ही हो पायेगा मै नॉन सेकुलर ही सही सांप्रदायिक ही सही जो भी आप समझे सब काबुल ,

  6. आर सिंह जी सदर अभिवादन

    सेकुलर होना ना तो कोई बुराई न तो पाप है. किन्तु कुछ तथा कथित लेखक केवल सेकुलर सेकुलर की बिना वजह रट लगाये रहते है .

    रही बात आपकी तो यह केवल आप तक ही सिमित नहीं है सारा हिन्दू समाज सेकुलर सहनशील कुछ अर्थो में कायर भी है अपवादों को छोड़ कर.
    इतना कुछ होने के बाद भी कुछ अविवेकी हिन्दुओ को लगातार सेकुलर बनो सेकुलर बनो कह कर क्या साबित करना चाहते है .
    इन तथाकथित सेकुलरो की बोलती या यू कहो इनकी बिकी हुयी कालमो की स्याही वाही क्यों चुक जाती है .जहा सेकुलर होना सबसे बड़ा गुनाह बताया जाता है वो भी धर्म के नाम पर .

    लानत है ऐसे लेखको पर

    सिंह जी जरा विचार कीजिये की हम आप यदि सेकुलर न होते तो क्या होते .

  7. श्री विमलेश त्रिवेदी जी,आपने सेक्युलरों को जो लिंक पढने की सलाह दी थी,वह मैंने पढ़ा,क्योंकि एक हिन्दू होने के नाते मैं सर्व धर्म का सम्मान करता हूँ ,अतः आप जैसों की निगाह में मैं सेक्युलर हूँ.अब मैं आपको एक सलाह देता हूँ आप श्री मद भागवत गीता पढ़िए और उसके बाद बताइये की आप जो इंसान और इंसान के बीच घृणा फैला रहे है वह क्या हमारे सर्वश्रेष्ठ धर्म ग्रन्थ गीता के अनुकूल है.?

  8. ईसाई विरोधी कुप्रचार से लड़ें हिंदू: वेटिकन
    वेटिकन सिटी, एजेंसी : वेटिकन ने दीपावली के मौके पर हिंदू मतावलंबियों से इसाई धर्म विरोधी कुप्रचार के खिलाफ लड़ने का आह्वान किया है। साथ ही ईसाईयो को मुक्त होकर धर्म संबंधी काम करने देने का आग्रह किया है। इस अपील का महत्व इसलिए भी है क्योंकि 16वें पोप बेनडिक्ट विश्व शांति के लिए 27 अक्टूबर को इटली के असीसी में दुनिया के विभिन्न मुल्कों के 200 धर्माचार्यो व मतावलंबियों के साथ साझा बैठक करने वाले हैं। पोप जान पॉल दिृतीय द्वारा 1986 में शुरू की गई इस बैठक के रजत जयंती वर्ष पर हिंदू, मुस्लिम सिख,जैन, बौद्ध, पारसी बहाई आदि शामिल होंगे। बैठक में शामिल होने के लिए भारत से सात हिंदुओं को न्योता भेजा गया है जिनमें महात्मा गांधी के पौत्र राजमोहन गांधी भी शामिल हैं। पोप की बहुधर्म संवाद परिषद (पोंटीफिसिकल काउंसिल फॉर इंटररिलीजियस डायलाग) के मुखिया जे.लुईस टाउरन और उपप्रमुख पियर लुगी केलाटा के हस्ताक्षर युक्त संदेश में हिंदुओं से यह अपील की गई है। उन्होंने कहा, दीपावली असत्य पर सत्य की, अंधकार पर प्रकाश और बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है। हिंदू व ईसाई घृणित और कुप्रचार के खिलाफ मिलकर लड़े और आपसी विश्वास के साथ धार्मिक स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त करें। संदेश में कहा गया है कि धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ व्यक्तिगत और सामुदायिक रूप से पेशे, धर्म की स्वीकार्यता है। टाउरन ने कहा, बहुत जगहों पर धार्मिक स्वतंत्रता में कमी दिखाई पड़ती है। कई स्थानों पर हमारे सदस्यों को धार्मिक मान्यता और स्वतंत्रता की कमी के आधार पर पूर्वाग्रह और उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है। उनका कहना है कि धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला मानवाधिकार के अन्य अधिकारों के लिए खतरनाक है। संदेश में कहा गया है कि विश्व में हिंदू तीसरा सबसे बड़ा धर्म, जिसे मानने वालों की संख्या तकरीबन एक अरब है। इनमें से ज्यादातर भारत में रहते हैं। हाल के वर्षो में इसाईयों को हिंदू अतिवादियों के कारण हिंसा और उत्पीड़न की घटनाओं का सामना करना पड़ा है। कई राज्यों के कानून के कारण धर्म प्रचारकों को काम करने में दिक्कत आ रही है। ऐसे में विभिन्न धर्मो के साथ मिलकर काम करे, तो सभी समुदायों को फायदा होगा। पोप की न्याय और शांति परिषद के मुखिया पीटर कोडवो अपपीह तुर्कसन ने बताया कि 16वें पोप की बैठक में ईरान और सउदी अरब समेत विभिन्न मुस्लिम देशों के 70 धर्माचार्यो के शामिल होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा, यह बैठक शांति के एक मार्ग तलाशने के लिए बुलाई गई है। हालांकि मिस्र अल अजहर मस्जिद के मुख्य इमाम ने नव वर्ष पर हुए बम धमाके पर पोप के बयान के विरोध में बैठक के बहिष्कार का एलान किया है।

  9. भाई शंकर शरण जी ने तो अपना एजेंडा सभी को बता दिया
    अब कृपा करके बी के सिन्हा जी को भी बताना चाहिए दहेज़ दानव, डायन कह कर हजारों स्त्रियों को जब उत्पीडित किया जाता है

    इन सब मसलो पर आप जैसे लेखको की कलम की जरूरत है .

    सेक्युलर समाज बनाने का जिम्मा अकेले बेचारे जैन साहब का नहीं है सिन्हा जी आप भी मन से योगदान कीजिये

    शरण जी के बौद्धिक स्तर तक पहुचने में मुझे लगता है जिन्दगी निकल जाएगी

  10. यह जन संख्या बढाने वाली बात मेरे गले तो नहीं उतर पा रही है.मैं देहात का रहने वाला हूँ और वहां मैंने ज्यादा बच्चों वालों की हालत देखी है.किस तरह वे अधिक संतानों के बोझ तले दबे हुयें हैं यह वही जान सकता है जिन्होंने उनकी हालत देखी है.यह कह देना कि हिन्दुओं कीसंख्या बढ़ाने के लिए हिन्दुओं को अधिक बच्चे पैदा करना चाहिए,बड़ा आसान है,पर कौन सी ऐसी हिन्दू संस्था है जो इनका भार उठाने को तैयार है.अगर तैयार हो भी तो आदमी की अपनी भावनाएं शायद ऐसा न करने दें.हिन्दुओं से मेरी यही सलाह है कि पहले जितने बच्चे पैदा कर रहे हो उनको को तो इंसान बनाओ और कुपोषण का शिकार होने से बचाओ,फिर ज्यादा के लिए सोचना.

  11. जनसंख्या विस्फोट, जनसंख्या असंतुलन और लिंग असंतुलन के परिप्रेक्ष्य में मुस्लिमों और ईसाईयों में जनसंख्या वृद्धि के प्रोत्साहन को देखा जाना चाहिए. हम इस प्रतिस्पर्धा के पक्ष में नहीं हैं. सरकार इस प्रोत्साहन को रोकने के पक्ष में नहीं है. वीरेंद्र जैन शंकर शरण के पक्ष में नहीं हैं और बी.के.सिन्हा हिन्दुओं के पक्ष में चर्चा किये जाने के पक्ष में नहीं हैं …… ….आखिर समस्या का समाधान क्या हो ? सेक्यूलर जैन जी क्या सेक्यूलर सरकार को इस बात के लिए तैयार कर सकते हैं कि पूरे देश में एक सामान नागरिक संहिता और क़ानून लागू किया जाय ? सेक्यूलर को सेक्यूलर की बात माननी चाहिए …यह एक सामान्य सिद्धांत है. पर सच्चाई तो यह है कि सरकार कई प्रकार के भेदभाव बना कर रखना चाहती है. ऐसे में शंकर जी का नुस्खा ही एक मात्र व्यावहारिक उपाय बचता है.
    जहाँ तक सेक्यूलरिज्म की बात है तो एक कटु सत्य यह भी है कि सेक्यूलरिज्म पूरी तरह से एक यूटोपिया है…..सेक्यूलरिज्म की बात करने वाले केवल हिन्दुओं को ही सेक्यूलर बनाने पर क्यों तुले हुए हैं ? वे मुस्लिमों और ईसाईयों को सेक्यूलर क्यों नहीं बनाना चाहते ?
    एक सूचना यह भी – छत्तीसगढ़ में धर्मान्तरित इसाई लोग अपना पहले वाला जातिसूचक उपनाम धारण करना ज़ल्दी नहीं छोड़ते जिससे एक भ्रम की स्थिति निर्मित होती है. इससे जहाँ एक ओर उनके हिन्दू विरोधी बयानों से समाज में विवाद होता है वहीं वे छल करके हिन्दुओं में विवाह सम्बन्ध स्थापित कर अपनी धार्मिक संख्या बढ़ा रहे हैं.

  12. जिनकी द्रष्टि साम्प्रदायिक होती है वे सारी चीजो^ को उसी नजरिये से देखते है^ | यह समस्या है और हिन्दू मुस्लिम ईसाई सारे ही साम्प्रदायिक और कट्टरवादी इसी तरह की हरकते^ करते रहते है^| इसलिए मुख्या समस्या एक सेक्युलर समाज बनाने की है जहां धर्मो^ के बीच में^ झगड़े न हों और देश हित में^ कठोर क़ानून बिना किसी भेदभाव के लागू हों | पर हर तरह का साम्प्रदायिक इसका विरोध करता है |

  13. भाई शंकर शरण जी कृपया बताइए कि किस अजेंडा के तहत आपका अध्यन और लेखन चल रहा है निशाना आपका सदैव मुस्लिम या ईसाई क़ी तरफ होता है हिन्दू समाज क़ी कुरीतियों पर आप क़ी लेखनी कब दौड़ेगी ?दहेज़ दानव आपकी आँखों से क्यों ओझल है डायन कह कर हजारों स्त्रियों को जब उत्पीडित किया जाता है तब आप खामोश क्यों रहते है
    पारसी इस देश में कितने है फिर भी उन्होंने अपनी आबादी नहीं बढाई और वे सबसे धनी kaum में से है
    bipin kumar sinha

    • बी.के. सिन्हा जी। मेरा एजेंडा अपने समाज की रक्षा और आत्मगौरव की चेतना जगाने का है। इस में किसी दूसरे समुदाय के प्रति घृणा या क्रोध फैलाने का कोई भाव नहीं है। बल्कि उनसे आत्मसम्मान सीखने, और बराबरी से बर्ताव करने का है। पोरस ने सिकन्दर से वही माँग की थी, जिससे उसे सम्मान मिला भी। यदि ईसाई और मुस्लिम अपने को ईसाई और मुस्लिम कहकर सारी दुनिया में बेखटके हर चर्चा कर सकते हैं, और उन्हें कोई कम्युनल कहकर लांछित नहीं करता; तो किसी हिन्दू का अपने को हिन्दू कहना – और इसी आधार पर राजनीतिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक चर्चा करना – स्वीकार किया जाए, मेरी बस इतनी सी चाह है। यह सेक्यूलरिज्म विरुद्ध नहीं है, बल्कि स्वयं ईमाम बुखारी कह चुके हैं कि भारत में हिन्दू बहुमत ही सेक्यूलरिज्म का कारण है, और कुछ नहीं। ‘सेक्यूलरवादी’ बंधुओं द्वारा सेक्यूलरिज्म की चिन्ता करने से वह नहीं बना हुआ है। वैसे भी, सेक्यूलरिज्म का सारा अर्थ धर्म-मजहब निरपेक्ष शासन होता है। जबकि भारत में सेक्यूलरिज्म केवल इस्लामी-ईसाई पक्षपात में बदल कर रह गया है। मेरी बातों में, तथ्यों में, या तर्क में भी यदि कोई गलती हो, तो उसे मैं सहर्ष स्वीकार करूँगा। किन्तु सत्य बातें, और उनसे निकलने वाले सीधे निष्कर्षों को कोई न लिखे, और यदि लिखे तो उसे ‘सांप्रदायिक’ की गाली देकर खारिज किया जाए – इस अनुचित बौद्धिक चलन को खत्म होना चाहिए। मेरा यही एजेंडा है। यह न्यायोचित है। इसे आप किसी भी कसौटी पर कस कर देख लें।

      पारसियों का जो उदाहरण आपने दिया, तो कृपया यह भी न भूलें कि उन्होंने अपने समुदाय के आसन्न खात्मे को सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर लिया है। उन्होंने धरती में अपना काल-पत्र गाड़कर आगामी मानवता को कभी अपने हुए होने की जरूरी जानकारी सुरक्षित कर दी है। यदि कोई हिन्दू अपने समाज का खात्मा न चाहे, तो उसे दोषी ठहराना कहाँ का न्याय है?

      फिर, पारसियों का केवल धनी होना आप देख रहे हैं। केवल धनी होना सबसे बड़ा मूल्य नहीं, इतना तो तालिबान भी जानते हैं। आत्म-सम्मान और आत्मगौरव सबसे बड़ी चीज है, पारसियो और दूसरे समुदायों में हमें यही पहले देखना चाहिए।

  14. श्री शंकर शरण जी द्वारा उठाये गए बिन्दुओ पर निश्चय ही गहन मंथन की जरूरत है अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब हिन्दुओ के बच्चे भी मदर्शो में शिक्षा लेते नजर आयेंगे .

  15. बहुत अछे सर जी अभी हिंदुयों ने जागना चाहिए अब तो इसाई भी हिन्दुयोंको सलाह दे रहे है

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