सियासी गलियारों में जाने को बेताब फ़िल्मी सितारे – सरिता अरगरे

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filmi-personalities-in-politicsलोक सभा चुनावों में इस बार फ़िल्मी सितारों की भरमार देखने को मिल रही है । संसद में सीटें बढा़ने के लिए सियासी पार्टियाँ बढ़-चढ़ कर फ़िल्मी हस्तियों का सहारा ले रही हैं। वैसे फ़िल्मी सितारों का राजनीति में आने का सिलसिला कोई नया नहीं है लेकिन इस बार ये संख्या काफ़ी ज्यादा है। सुपर स्टार तो पार्टियों के दुलारे हमेशा से रहे हैं , मगर अब हास्य कलाकारों और खलनायकों को भी भीड़ जुटाने के लिये जनता के बीच भेजने का सिलसिला भी ज़ोर पकड़ने लगा है।

देश में उत्तर से लेकर दक्षिण तक फिल्मी हस्तियाँ चुनाव प्रचार में शिरकत कर रही हैं। कुछ फ़िल्मी सितारे चुनाव मैदान में किस्मत आज़माने उतरे हैं जबकि कुछ चुनाव प्रचार करने वाले हैं। दक्षिण में फ़िल्मी कलाकारों के राजनीति में सफ़ल होने के कई उदाहरण मिल जाएँगे। एनटी रामाराव, एम जी रामचंद्रन, जयललिता, रजनीकांत ऎसे नाम हैं, जिन्होंने फ़िल्मी कैरियर में अपार सफ़लता पाने के साथ ही मतदाताओं के दिलों पर भी बरसों राज किया और प्रदेश का तख्तोताज सम्हाला। तेलुगू सिनेमा के सुपरस्टार चिरंजीवी ने पिछले साल ही प्रजा राज्यम पार्टी बनाई थी। वे इस बार दो संसदीय सीटों से चुनाव लड़ेंगे। उनके अलावा एनटी रामाराव के बेटे नंदामुरी बालाकृष्णन, सत्तर और अस्सी के दशक की मशहूर अभिनेत्री जयासुधा और विजया शांति भी चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं।

उत्तर भारत में जनता की भीड़ जुटाने में कई सितारे कामयाब रहे लेकिन संसद के गलियारों में उनकी चमक फ़ीकी पड़ गई। राजेश खन्ना, गोविंदा, धर्मेन्द्र, अमिताभ बच्चन ने मतदाताओं को निराश किया। वहीं ऎसे सितारे भी हैं जिन्होंने संसद में अपनी सक्रियता से धाकड़ नेताओं को मात दे दी। इनमें सुनील दत्त, हेमा मालिनी, राज बब्बर, विनोद खन्ना के नाम प्रमुखता से आते हैं। उत्तर प्रदेश में इस बार मतदाताओं को कई फिल्मी कलाकारों से रुबरु होने का मौका मिल रहा है। राज बब्बर, मनोज तिवारी और जयाप्रदा चुनाव में हिस्सा ले रहे हैं, वहीं भोजपुरी फ़िल्मों के मशहूर अभिनेता रवि किशन काँग्रेस का प्रचार करते नज़र आएँगे। उनके अलावा गोविंदा और नगमा ने भी महाराष्ट्र में काँग्रेस के लिए प्रचार की हामी भरी है। अक्षय कुमार, सलमान खान, शाहरूख और प्रीति ज़िंटा भी काँग्रेस उम्मीदवारों के लिये वोट माँगते दिखाई देंगे।

दरअसल जनाधार मजबूत करने के लिए राजनीतिक पार्टियाँ फ़िल्मी कलाकारों को टिकट देती रही हैं। आम जनता के बीच उनकी लोकप्रियता को भुनाने के पार्टियाँ रुपहले पर्दे के कलाकारों को अपना प्रतिनिधि बनाने की पहल करती हैं। वैसे देखा जाए तो सामाजिक सरोकार के नाते अगर कोई कलाकार राजनीति में आता है तो ये देश और समाज के लिहाज़ से प्रशंसनीय माना जाएगा।

एक बड़ा तबका मानता है कि जोश की बजाय होश के साथ सियासत में आने का फ़ैसला लेने वाले कलाकारों का स्वागत होना चाहिए। उनका तर्क है कि अगर पत्रकार आ सकते हैं, किसान आ सकते हैं, तो फ़िल्म स्टार क्यों नहीं आ सकते ? बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीत कर केन्द्र में मंत्री पद सम्हालने वाले विनोद खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा का कहना है कि अगर कोई फ़िल्म स्टार अपनी पसंद की पार्टी में शामिल होकर उसका प्रचार करता है तो इसमें कोई बुराई नहीं है क्योंकि उसकी भी अपनी विचारधारा हो सकती है।

शत्रुघ्न सिन्हा कहते हैं कि आजकल जिस तरह से फ़िल्म स्टार्स राजनीति में आ रहे हैं उसके पीछे वजह ये है कि वे लोकप्रिय होने के साथ ही आर्थिक रुप से मज़बूत भी हैं। ऎसे में राजनीतिक पार्टी पर आर्थिक दबाव नहीं रहता। इसके अलावा फ़िल्म स्टार्स राजनीति में राजकीय सम्मान पाने की लालसा से आते हैं जबकि राजनीतिक पार्टियाँ उनके जरिए ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचना चाहती हैं। इस तरह दोनों ही एक दूसरे की ज़रुरत पूरी करते हैं। वहीं अभिनेता से नेता बने धर्मेंद्र की हिदायत है कि फ़िल्म स्टार अगर राजनीति से दूर ही रहें तो अच्छा है। उनकी राय में अभिनेता को अभिनय तक ही रहना चाहिए और राजनीति में नहीं जाना चाहिए।

राजनीति से तौबा कर चुके सदी के महानायक भी राजनीति में जाने के अपने फ़ैसले को गलत मानते हैं। एक फिल्मी पत्रिका से बातचीत मे उन्होंने कहा था, ”मुझे कभी राजनीति मे नहीं जाना चाहिए था। अब मैंने सबक सीख लिया है. अब आगे और राजनीति नहीं ” अमिताभ ने सफाई दी कि इंदिरा जी की हत्या के बाद 1985 में वह भावुकता में राजीव का साथ देने के लिए राजनीति मे आ गए थे. ”मगर न तो मुझे तब राजनीति आती थी, न अब आती है और न मैं भविष्य में राजनीति सीखना चाहूँगा।”

तमाम ना नुकर के बीच एक सच्चाई ये भी है कि समाजवादी पार्टी के नेता अमर सिंह की बच्चन परिवार से करीबी के कारण भले ही अमिताभ तकनीकी रूप से समाजवादी पार्टी के सदस्य न बने हों, लेकिन समाजवादी पार्टी के सियासी जलसों में वे अक्सर दिखाई देते रहे हैं।
वहीं एक दूसरा वर्ग ऎसा भी है जो चुनावी मौसम में अपने फ़ायदे के लिए फ़िल्मी कलाकारों के इस्तेमाल को जायज़ नहीं मानता। राजनीति के जानकार भी मानते हैं कि राजनीति और फ़िल्मों का रिश्ता काफ़ी पुराना है और ये दोनों एक दूसरे की ज़रुरतों को पूरा करते हैं। पंडित नेहरु के जमाने में भी राजकपूर और नरगिस वगैरह की काँग्रेस से नज़दीकी थी और वो राज्यसभा में भी भेजे गए थे।
बेशक, इतनी बड़ी संख्या में सितारों की मौजूदगी से चुनाव में चमक – दमक बढ़ गई है। लेकिन इस शोरगुल में आम जनता की ज़िन्दगी से जुड़े बुनियादी मुद्दे कहीं गुम हो गये हैं। बहरहाल यह जमावड़ा देखकर कहा जा सकता है कि जहाँ राजनीतिक पार्टियाँ रुपहले पर्दे के सितारों के सहारे ज्यादा से ज्यादा लोगों को लुभाने और अपनी सीटों की संख्या बढ़ाने की तैयारी में हैं। वहीं ये फ़िल्मी सितारे भी सत्ता के गलियारे में जाने को लेकर काफ़ी उत्साहित दिख रहे हैं।

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