डॉ. सतीश कुमार
मंजिल मिलेगी ही,
चाहे कितनी ही दूर हो।
शारीरिक, मानसिक थकावट,
हताशा, निराशा ।
हैं ये रूकावटें,
लक्ष्य तक पहुंचने के सफर में।
सीना तान जिसने सहा है,
मंजिल तक वही गया है।
जूझना है जीवन की,
प्रत्येक उस चुनौती से,
रोकती हैं जो, व्यक्ति को
बहुमुखी व्यक्तित्व बनने से।
विकास एकांगी व्यक्तित्व का,
ना स्वयं,
ना परिवार, ना समाज,
ना राष्ट्र के लिए है हितकर।
हर व्यक्तित्व का हो
चहुंमुखी विकास।
एकांगी विकास,
एकांगी सोच का,
बोता है बीज।
“मैं “, अहंकार
उपज है इसी की।
नहीं पनपने है देना,
इस बीज को
जाकर ,किसी भी हद तक।
‘मैं’ पन की सोच,
है विरूद्ध ‘हम’ की।
परिवार, समाज, देश
और बसुधैवकुटुब की।
‘हम’ है तो,
परिवार, समाज, देश है।
‘अहंकार ‘श्रेष्ठ अपने को ,
तुच्छ अन्य को ,
अत्याचार अनेक तरह के,
दूसरों पर करवाता है
असमानता, अन्याय
की सोच को बढ़ाता है।
‘मैं’ ‘हम’ में रूपांतरित हो,
सब सोंचे सबके लिए,
जल, थल, गगन है, तो
हम हैं, तुम हो, सब हैं।
सबके होने में,
है हमारा होना,
कटकर समाज, दुनिया से
नहीं कोई अस्तित्व है हमारा।