चिन्ता और चिता में अन्तर

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चिन्ता ही चिता समान है।
चिता मौत का फरमान है।।

चिन्ता जिंदे को जलाती है।
चिता मुर्दे को जलाती है।।

चिता ही अंतिम सच है।
चिन्ता पहला ही सच है।।

चिता को दो गज जमीन चाहिए।
चिन्ता को केवल दिमाग चाहिए।।

चिता में आदमी जलता है।
चिन्ता में आदमी घुलता है।।

चिता तो एक बार जलाती है।
चिन्ता तो बार बार जलाती है।।

चिता तन को जलाती है।
चिन्ता मन को जलाती है।।

चिता लकड़ियों में पहुंचाती है।
चिन्ता, चिता तक पहुंचाती है।।

चिता में बिंदी नही लगती है।
चिंता में बिंदी पहले लगती है।।

चिता,चिन्ता से अच्छी है।
चिन्ता रोगों की गुच्छी है।।

आर के रस्तोगी

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आर के रस्तोगी
जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

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