परिचर्चा

परिचर्चा : ‘वैचारिक छुआछूत’

भारत नीति प्रतिष्ठान एक शोध संस्‍थान है। इसके मानद निदेशक हैं दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय में प्राध्‍यापक श्री राकेश सिन्‍हा। श्री सिन्‍हा राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ से जुड़े हैं और संघ के संस्‍थापक डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार के जीवनीकार हैं। प्रतिष्‍ठान के बैनर तले विभिन्‍न समसामयिक मुद्दों पर संगोष्‍ठी का आयोजन वे करते रहते हैं। इसी क्रम में गत 14 अप्रैल को प्रतिष्‍ठान ने ‘समांतर सिनेमा का सामाजिक प्रभाव’ विषय पर संगोष्‍ठी का आयोजन किया। वामपंथी कवि-पत्रकार श्री मंगलेश डबराल इसकी अध्यक्षता करने आये थे। इस बात को लेकर वामपंथियों ने श्री डबराल की चहुंओर आलोचना शुरू कर दी। कहा कि राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ के ‘विषैले प्रचारक’ की अगुआई वाली संस्‍था के कार्यक्रम में श्री डबराल क्‍यों गए ? सोशल साइट्स पर यह मामला जमकर उछला। बाद में श्री डबराल ने प्रतिष्ठान में अपनी उपस्थिति को ‘चूक’ बताई।

इसी मसले पर जनसत्ता ने अपने चार रविवारीय अंकों में वैचारिक एवं बौद्धिक संवाद पर बहस चलाया। इसके संपादक श्री ओम थानवी ने 29 अप्रैल को ‘अनन्‍तर’ स्‍तम्‍भ में ‘आवाजाही के हक में’ अपने विचार व्‍यक्‍त किए। इसके बाद पक्ष-विपक्ष में कई लेख लिखे गए। अंत में 27 मई को श्री ओम थानवी ने ‘अनन्‍तर’ में विचार व्‍यक्‍त कर इस बहस को समाप्‍त किया।

प्रवक्‍ता डॉट कॉम का मानना है कि स्‍वस्‍थ बहस लोकतंत्र का प्राण होती है। सब जानते हैं कि अपने देश में शास्त्रार्थ की परंपरा रही है, जिसके माध्‍यम से विभिन्‍न विचारधारा के लोग एक ही मंच पर विचार-विमर्श करते थे। वामंपथियों द्वारा प्रस्‍तुत यह वैचारिक छुआछूत दुर्भाग्यपूर्ण है। वैचारिक एकरूपता और एकरसता लोकतांत्रिक समाज के लिए घातक है। हम चाहते हैं कि प्रवक्‍ता के पाठक और लेखक इस विषय पर अपनी बात रखें जिससे हमारा लोकतांत्रिक समाज और सशक्‍त हो सके। 

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