पी सुरा को मस्त होकर, मस्त फिरतीं प्यालियां |
बैंगनों के घर में गिंरवीं, रक्स करतीं थालियां |
कौरवों की भीड़, आंखें बन्द कर चलती मिली,
नग्नतम् सड़कों पे खुलकर, चल रहीं पांचालियां |
एक अच्छी व्यंग्य कविता,को समझ पाए न लोग,
एक हज़ल पर देर तक, बजती रही थीं तालियां |
जो नदी निर्मल, सजग हो बह रही थी गांव में,
उसको अपना सा बनाने, उसमें गिरतीं नालियां |
नागफनियां शौहरों को, बीबियां आतीं नजर,
इन दिनों सपनों में उनके, बस रहीं शेफालियां |
दिन दहाड़े चौक पर, अबला ने जोड़े हाथ पर,
लुट गई अस्मत, बकाया रह गईं सिसकारियां |
एक जीजा को अकेले, अपने घर में घेर कर,
गुण्डई पर आमदा हैं,’राज’ घर की सालियां |