संदर्भः छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच महानदी के जल-बंटवारे को लेकर ठनी।
प्रमोद भार्गव
छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों के बीच बहने वाली महानदी के जल बंटवारे को लेकर विवाद गहरा गया है। हालांकि यह विवाद आठ दशक से भी ज्यादा पुराना है। समय-समय पर विवाद के हल खोजे जाते रहे हैं,लेकिन अब तक सर्वमान्य हल
निकल नहीं पाया है। परंतु अब बदले राजनितिक परिदृश्य में इस विवाद का स्थायी हल निकलने की उम्मीद बढ़ गई है। एक तो अब दोनों राज्यों में एक ही दल भाजपा की सरकारें हैं,दूसरे केंद्र में भाजपा के ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बैठे हैं,जो बुनियादी समस्याओं के निराकरण में माहिर हैं। ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहनचरण मांझी ने एक उच्चस्तरीय बैठक की और केंद्र सरकार से समस्या निवारण में सहयोग मांगा है। अब सवाल खड़ा होना जरूरी है कि इस नदी के जल बंटवारे को लेकर विवाद इतना जटिल क्यों बन गया कि और सुलट क्यों नहीं रहा है।
छत्तीसगढ़ और ओडिशा भू-क्षेत्र की महानदी सबसे बड़ी नदी है। रामायण और महाभारत काल में भी इस नदी का अस्तित्व मौजूद था। तब इसे चित्रोत्पला, महानंदा और नीलोत्पला नामों से जाना जाता था। इसका उद्गम स्थल छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में स्थित सिहावा नामक पर्वत श्रृंखलाएं हैं। महानदी का प्रवाह दक्षिण से उत्तर की और सिहावा से निकलकर राजिम में पहुंचता है, तब इसमें पैरी और सोंदुर नदियां भी मिल जाती हैं। इन नदियों का जल विलय होने के साथ ही यह नदी विशाल रूप धारण कर लेती है। इसके बाद ऐतिहासिक नगर आरंग और सिरपुर से बहती हुई जब शिवरीनारायण में पहुंचती है तो अपने नाम के अनुरूप महानदी का स्वरूप ग्रहण कर लेती है। महानदी के तट पर ही धमतरी, कांकेर, चारामा, राजिम और चंपारण बसे हैं। शिवरीनारायण एक धार्मिक नगरी है। यहीं से यह नदी दक्षिण से उत्तर की ओर न बहकर पूर्व दिशा में बहने लग जाती है। संभलपुर में प्रवेश करने के साथ ओडिशा में बहने लगती है। इसके प्रवाह का आधे से अधिक भाग छत्तीसगढ़ में है। संभलपुर के आगे बलांगीर और कटक से निकलकर महानदी कुल 851 किमी की लंबी यात्रा कर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इस बीच इसमें पैरी, सोंदुर, शिवना, हंसदेव, अरपा, जोंक,ईब,मांड,केलो,बोरई,कंजी,लीलार और तेल नदियां भी मिलती हैं। कटक से लगभग 12 किमी पहले महानदी कई धाराओं में बंटकर बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाती है।
इस नदी पर कुल 253 बाँध,14 छोटे बांध और 13 एनीकट हैं। हीराकुंड, रुद्री,गंगरेल और मिनीमाता हसदेव बांगो जैसे प्रमुख बांध बंधे हैं। 6 बिजली संयंत्र भी बने हुए हैं। महानदी ही पूर्वी मध्यप्रदेश और ओडिशा की सीमाओं को निर्धारित करती है। गिब्सन नामक अंग्रेज ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि संभलपुर के निकट हीराकुंड का जो द्वीप क्षेत्र है, यहां एक समय हीरा मिला करते थे। जिनकी खपत रोम में होती थी। 2011 की जनगणना के अनुसार महानदी क्षेत्र में रहने वाले करीब 30 लाख लोगों की आबादी की आजीविका इसी नदी के पानी पर निर्भर है। महानदी पर हीराकुंड बांध बनने से पहले तक रोम के सिक्के मिल जाया करते थे, इसी तथ्य को गिब्सन ने इस क्षेत्र में हीरे की खदानें होने से जोड़ा है। चीनी यात्री व्हेनसांग ने अपनी यात्रा कथा में लिखा है कि मध्यप्रदेश से हीरों का व्यापार ओडिशा के कलिंग में होता था। इन विवरणों से पता चलता है कि महानदी और हीराकुंड क्षेत्र में कभी हीरे की खदानें रही हैं।
छत्तीसगढ़ के कुल भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 55 प्रतिशत हिस्से का पानी महानदी में जमा होता है। यह नदी और इसकी सहायक नदियों के ड्रेनेज एरिया का 53.90 फीसदी हिस्सा छत्तीसगढ़ में है। इसका 45.73 प्रतिशत ड्रेनेज एरिया ओडिशा और 0.35 प्रतिशत अन्य राज्यों में हैं। हीराकुंड बांध तक महानदी का जल ग्रहण क्षेत्र 82,432 वर्ग किमी हैं, जिसमें से 71,424 वर्ग किमी क्षेत्र छत्तीसगढ़ में हैं, जो कि इसके संपूर्ण जल ग्रहण क्षेत्र का 86 प्रतिशत है। हीराकुंड बांध में महानदी का बहाव 40,773 एमसीएम है, इसमें से 35,308 एमसीएम का योगदान छत्तीसगढ़ देता है। जबकि इस समय छत्तीसगढ़ केवल 9000 एमसीएम पानी का उपयोग कर रहा है, जो कि महानदी के हीराकुंड में उपलब्ध पानी का महज 25 प्रतिशत है। हालांकि छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का दावा था कि छत्तीसगढ़ केवल 15 प्रतिशत पानी का उपयोग करता है।
छत्तीसगढ़ क्षेत्र में महानदी पर 9 छोटे-बड़े बांध हैं। इन्हीं बांधों को लेकर विवाद की शुरुआत 2016 में हुई थी। तब ओडिशा सरकार ने आरोप लगाया था कि छत्तीसगढ़ सरकार ने महानदी की सहायक नदियों पर लघु बांध और एनीकट बनाकर ओडिशा को मिलने वाले पानी को कम कर दिया है। इस कारण गर्मियों में नदी का जलस्तर इतना गिर जाता है कि सिंचाई और पीने के पानी की किल्लत खड़ी हो जाती है। जबकि छत्तीसगढ़ का कहना है कि वह अपने क्षेत्र में ही जल का भंडारण करता है। अब ओडिशा चाहता है कि छत्तीसगढ़ महानदी की सहायक नदियों पर कोई बांध नहीं बनाए और जल के प्रवाह को बाधित न करे। इस विवाद को निपटने के लिए 2018 में सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक ट्रिब्यूनल का गठन किया था,लेकिन प्रकरण का निराकरण अभी तक नहीं हो पाया है। छत्तीसगढ़ के बड़े भू-भाग में कुंए और नलकूपों का जलस्तर भी यही बांध बनाए रखते हैं। लेकिन यहां सोचनीय पहलू है कि ज्यादातर ट्रिब्यूनल नदियों से जुड़े अंतर-राज्यीय जल विवाद निपटाने में सफल नहीं हो पाए हैं,इसलिए राज्य सरकारों को आपसी सहमति से इन समस्याओं का हल ढूढ़ने की जरूरत है।
प्रमोद भार्गव